Saturday 12 February 2022 12:26 PM IST : By Indira Rathore

सात समंदर पार से आयी परी, शुरू हुई अनोखी लव स्टोरी - पहाड़ी लड़का अशोक व ऑस्ट्रियन लड़की सबीने

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ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन.... सच ही तो है, प्यार में जाति, धर्म, उम्र, देश, भाषा जैसी सारी बातें बेमानी हैं। एकाएक कोई अजनबी जिंदगी में आता है, जिसे देख कर दिल के तार झंकृत होने लगते हैं, मन उसके तसव्वुर में डूब जाता है, दिल कहता है, यही तो है वो, जिसकी तुम्हें तलाश थी। 

कवि, लेखक, अनुवादक, ब्लॉगर और चित्रकार अशोक पांडे उत्तराखंड के हल्द्वानी में रहते हैं और उनकी संगिनी सबीने लीडर ऑस्ट्रिया के वियना की हैं। वे एंथ्रोपोलॉजिस्ट हैं। इन दोनों की मुलाकात लगभग 27 वर्ष पूर्व 1994 में हुई। सबीने वियना युनिवर्सिटी से भारत के पहाड़ों पर शोध कर रही थीं। इसी सिलसिले में वे भारत आयीं। वे कई जगह गयीं। फिर नैनीताल भी आयीं। एक कॉमन दोस्त के जरिए अशोक और सबीने की मुलाकात हुई। अशोक कुछ समय साउथ अफ्रीका में रह कर लौटे थे। सबीने को कुमाऊं में पिथौरागढ़, धारचूला, मुनस्यारी जैसी कई जगहों को देखना था। दोस्त के प्रस्ताव पर अशोक ने सबीने के साथ जाना मंजूर किया। तब उनके गंतव्य के लिए कोई सीधी बस नहीं थी। वे नैनीताल से बस ले कर बागेश्वर गए। बस में सबसे पिछली सीट पर धक्के खाते पहाड़ी रास्तों पर देश-जहान की बातों के साथ उनका जो सफर शुरू हुआ, वह आज तक जारी है। 

बातों ही बातों में 

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अशोक बताते हैं, ‘‘मैं घुमक्कड़ रहा हूं और यह बात मेरे घरवालों को मालूम रही है। सबीने के साथ निकलते हुए मैंने अपने घर पर कहा कि कुछ दिनों के लिए जा रहा हूं। कहां जा रहा हूं, यह बात उन्हें स्पष्ट नहीं बतायी थी। सबीने के साथ वह सफर खासा दिलचस्प गुजरा। घुमावदार पहाड़ी रास्तों में हमने साहित्य, फिल्म, भाषा, संस्कृति और लोगों के बारे में खूब बातें की, चुटकुले सुने-सुनाए। कुल मिला कर सबीने मुझे एक मजेदार लड़की लगीं। सफर के दौरान हमारी दोस्ती हो गयी। धारचूला पहुंचने पर सबीने ने कहा कि क्यों ना हम साथ-साथ ही यात्रा करें, बहुत कुछ जानने-समझने को मिलेगा और शोध का कार्य भी आगे बढ़ेगा। अब आगे की पहाड़ियों में जो हम घुसे, तो तीन-साढ़े तीन महीने वहीं रह गए। वे वीरान जगहें थीं। कुछ भी मिलता था, तो खा लेते थे, क्योंकि आसपास दूर-दूर तक दुकान नहीं थी। मेरे पास कुछ पोस्टकार्ड थे। कुछ समय तक घर पर बताता रहा कि कहां हूं। फिर पोस्टकार्ड भी खत्म हो गए और नए पोस्टकार्ड मिलने का कोई जरिया नहीं था। तब मैंने भोजपत्र में चिट्ठी लिखनी शुरू की। बहरहाल यात्रा का यह पड़ाव समाप्त हुआ और सबीने वापस अपने देश चली गयीं। तब तक हमने सोचा नहीं था कि कभी हम साथ रहेंगे। यह अच्छी दोस्ती थी और इसे अगले मुकाम तक ले जाने का खयाल हमारे दिल में नहीं अाया था।’’ 

दोस्ती आगे बढ़ी

वियना लौटने के 2 महीने बाद ही सबीने वापस भारत आ गयीं। इस बार भी दोनों यात्राओं में साथ रहे। अशोक बताते हैं, ‘‘कुछ समय बाद मैं भी ऑस्ट्रिया गया। हम साथ रहने लगे। इस बीच 1996 में बेटी डैफ्ने सुनंदा का जन्म हुआ। मैंने अपने घर पर अपने इस रिश्ते के बारे में नहीं बताया था, क्योंकि मैं नहीं जानता था कि उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी। बेटी दो साल की हो गयी, तो मुझे लगा कि उसे भारत लाना चाहिए। जून 1999 में उन्हें आना था, तो मैंने रानीखेत में एक दोस्त का घर उनके रहने के लिए तैयार करवाया। इस बार मैंने माता-पिता को बताया कि उनकी बहू और पोती भारत आ रहे हैं। उनके लिए यह खबर थोड़ी शॉकिंग तो थी, लेकिन जब सबीने और बेटी आए, तो मेरी मां और भाभी ने पारंपरिक रीतिरिवाजों से उनका गृह प्रवेश कराया और सबीने को पहाड़ का परंपरागत मंगलसूत्र भी पहनाया। सबीने यात्राओं के दौरान पहाड़ी संस्कृति, खानपान और परंपराओं से परिचित हो गयी थीं। उन्होंने ही अंतर्राष्ट्रीय साहित्य और सिनेमा में मेरी रुचि जगायी। घूमने का शौक जगाया और बताया कि कैसे घूमा जाना चाहिए। हम लगभग 10 साल जगह-जगह घूमे। कई जगहों पर तो खाने तक को कुछ नहीं मिलता था। कई यात्राओं में बच्ची भी हमारे साथ होती थी। महाराष्ट्र गए तो ठाणे गए, गुजरात में भुज और कच्छ गए, केरल में कन्नूर गए। हमने हमेशा नयी जगहें तलाश कीं।’’ 

प्यार बांधता नहीं

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दिल में एक-दूसरे के प्रति प्यार और सम्मान हो, रिश्ते के प्रति जिम्मेदारी हो, तो शादी एक रस्म के सिवा कुछ नहीं। यही वजह है कि अशोक और सबीने ने विधिवत विवाह नहीं किया, लेकिन पिछले 26-27 वर्षों से साथ हैं। अशोक कहते हैं, ‘‘हमने शादी नहीं की। हम अपने-अपने देश में स्वतंत्र रूप से कार्य करते रहे। हां, हम कई-कई महीने साथ रहे हैं। याद नहीं कि इन वर्षों में कभी हमारे बीच किसी तरह की तनातनी हुई हो। सबीने जिंदगी को भरपूर जीनेवाली महिला हैं। उन्होंने पहाड़ी व्यंजन बनाने सीखे, तो मैंने उनसे बेकिंग सीखी। वे मुझसे उम्र में कुछ महीने बड़ी हैं, लेकिन एक्टिव लाइफ जीती हैं, वॉकिंग और साइकिलिंग करती हैं। उनका जो वजन 1997 में था, वही अब तक है। हमारे सारे दस्तावेजों में बेटी का नाम है। पिता के रूप में मैंने बेटी की हर जिम्मेदारी का निर्वाह किया है। हमारी बेटी 25 साल की है, 8 भाषाएं जानती है और 4 साल से नौकरी कर रही है। वह एक स्वतंत्र लड़की है। अभी हाल ही में वह अपनी कंपनी की ओर से एक कॉन्फ्रेंस में पेरिस गयी और वहां अपने देश का प्रतिनिधित्व किया। उसे मॉडलिंग, हॉर्स राइडिंग और पियानो बजाना बहुत पसंद है।’’ 

वियना के मजेदार अनुभव

अशोक कहते हैं, ‘‘मैंने स्पेनिश सीखी है, लेकिन जब पहली बार वियना गया, तो मुझे लगा कि मुझे जर्मन सीखनी चाहिए। लेकिन जब मैं जर्मन बोलता था, तो एक वाक्य के बाद स्पेनिश बोलने लगता। सबीने ने कहा कि यहां जर्मन के बजाय अंग्रेजी ही बोलो। अंग्रेजी बोलने से लोग तुम्हें पढ़ा-लिखा समझेंगे, क्योंकि यह भाषा इन्हें खास नहीं आती, लेकिन जर्मन गलत बोलोगे तो लोग मजाक उड़ाएंगे। वियना रहने के दौरान बेटी को स्कूल लाने-ले जाने, उसे पढ़ाने जैसे सभी काम मैंने किए हैं। कोरोना और लॉकडाउन के कारण पिछले 2 वर्षों में हम लोग नहीं मिल सके हैं। जैसे ही सीमाएं खुलेंगी, हम फिर मिलेंगे।’’ 

दूरी का कोई मतलब नहीं

लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में कई कपल्स को दिक्कतें होती हैं। इस दंपती को नहीं हुईं, क्योंकि दोनों क्रिएटिव हैं, अपने-अपने कार्य में व्यस्त रहते हैं। अशोक बताते हैं, ‘‘सबीने बहुत पढ़ती हैं। इसके अलावा एक बुनियादी इंसानियत उनके भीतर है। लगभग ढाई साल उन्होंने दो सीरियाई और इजिप्शियन परिवारों को अपने घर में शरण दी। उन्हें नौकरी दिलवाने में मदद की।’’