Tuesday 25 January 2022 01:06 PM IST : By Indira Rathore

कैलेंडर गर्ल्स के ग्लैमरस प्रोफेशन की कड़वी सचाई

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नया वर्ष आते ही तमाम बड़े ब्रांड्स के कैलेंडर्स लॉन्च होने लगते हैं। खूबसूरत लोकेशंस पर परफेक्ट बॉडी शेप वाली बिंदास लड़कियों के जबर्दस्त शूट्स को देख कर लोग अचंभित रह जाते हैं। लेकिन कैमरे के पीछे कैसा होता है इन मॉडल्स का जीवन, ऑडिशन से रिजेक्शन तक, शरीर के एक-एक इंच को पैमाने पर नापने से ले कर शूट्स के लंबे घंटों तक क्या-कुछ झेलना होता है इन्हें, यह अकसर खूबसूरत लोकेशंस पर स्विम सूट्स में मुस्कराती तसवीरों से नहीं पता चल पाता। तसवीर के पीछे के इसी सच को जानने का एक प्रयास । 

वर्ष 2015 में मधुर भंडारकर ने एक फिल्म बनायी थी, कैलेंडर गर्ल्स। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि 99 फीसदी कैलेंडर गर्ल्स असफल रह जाती हैं। कम ही मॉडल्स को उनकी मेहनत का सही नतीजा मिल पाता है। हर साल कैलेंडर्स पर नए चेहरे आते हैं, तो पुरानों को भुला दिया जाता है। हालांकि यह भी सच है कि आज कई कैलेंडर गर्ल्स मॉडलिंग की दुनिया का जाना-पहचाना चेहरा हैं, कइयों ने फिल्मों में सराहनीय सफलता हासिल की है। हालांकि ग्लैमर की दुनिया में सफलता का उनका शुरुआती पड़ाव कैलेंडर ही रहा। 

चुनौतियों से भरी राहें

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इस स्टोरी के लिए एक नामचीन मॉडल से बात करने की कोशिश की गयी, तो उनका कहना था कि वे गुजरे वक्त की बात नहीं करना चाहतीं। दूसरी ओर एक सफल मॉडल और पूर्व कैलेंडर गर्ल रेवती (नाम बदलने की शर्त पर) बताती हैं, ‘‘मॉडल्स की लाइफ आसान नहीं होती। एक खास उम्र में नाम-दाम सब मिलता है, लेकिन फिर वैसे ही असाइनमेंट्स मिलने लगते हैं या आइटम सॉन्ग के ऑफर आते हैं। कोई एक्टर नहीं चाहता कि एक इमेज में फंस कर रहे। मॉडल्स का प्रोफेशनल कैरिअर छोटा होता है। शरीर को सही शेप में रखना बड़ा चैलेंज है। सोशल मीडिया का दौर है। ऐसे में ट्रोल होना आम बात है। कैमरे के पीछे भी खासी उठापटक और असुरक्षा है। कई बार असाइनमेंट्स साइन होने के बावजूद बाहर कर दिया जाता है, तो कभी कास्टिंग कंपनियां फेक निकलती हैं। आंख-कान खुले नहीं रखे, तो गलत हाथों की कठपुतली बनते देर नहीं लगती।’’ 

सुंदरता की कीमत

रेवती कहती हैं कि कैरिअर के शुरुआती दौर में उन्हें मुंबई में घर तक नहीं मिल पाता था। लोग मॉडल्स को सर्वसुलभ समझते हैं। वे सोचते हैं कि मॉडल है तो रात-बेरात लौटेगी, नशा करेगी या पुरुषों के साथ आती-जाती होगी। बीते साल कोरोना के कारण कई स्ट्रगलर लड़कियों के लिए घर का किराया भी देना मुश्किल हो गया था। जितनी सुंदर ग्लैमर की दुिनया दिखती है, हकीकत में उतनी सुंदर है नहीं। 

जिनके हिस्से सफलता आयी

दूसरी ओर दीपिका पादुकोण, कैटरीना कैफ, याना गुप्ता, लीजा हेडन, ईशा गुप्ता, नरगिस फाखरी और सयामी खेर आज फिल्मों में नाम कमा रही हैं। दीपिका पादुकोण की सफलता की कहानी 2006 में किंगफिशर कैलेंडर गर्ल बनने से शुरू हुई। इसी तरह रॉकस्टार फेम नरगिस को भी बड़ा ब्रेक किंगफिशर कैलेंडर से मिला। बिकिनी गर्ल टीना देसाई को बॉलीवुड में ज्यादा सफलता नहीं मिली, पर हॉलीवुड के कई बड़े बैनर्स के साथ वे काम कर रही हैं। इंटरनेट की सेंसेशन पूनम पांडे अपने बोल्ड स्टेटमेंट्स से हमेशा चर्चा में बनी रहती हैं। 

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ग्लैमर की दुनिया में जहां कई लड़कियां संतुलित ढंग से आगे बढ़ते हुए सफलता के पायदान तय करती हैं, वहीं कुछ लड़कियां समझौते नहीं कर पातीं और पीछे लौट जाती हैं। कुछ एेसी भी हैं, जो बहुत कुछ दांव पर लगा देती हैं। हर साल कैलेंडर्स पर नए चेहरे दिखते हैं, कुछ रातोंरात सेंसेशन बन जाते हैं, तो कुछ खो जाते हैं। यही इस प्रोफेशन की सचाई है। 

हर इंडस्ट्री में होते हैं अच्छे-बुरे लोग - अश्विनी अहीर, इंटरनेशनल मॉडल-एक्टर, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर

हम दो बहनें और एक भाई हैं। मेरी बहन पल्लवी सैन्य सेवा की तैयारी कर रही है और छोटा भाई प्रसाद इंजीनियरिंग सेकेंड इयर में है। मम्मी हाउसमेकर हैं और हम फार्मिंग करते हैं। मैं इंटरनेशनल मॉडल हूं और मैंने कई ब्रांड्स के साथ काम किया है। मैंने 2018 में एशियन इंटरनेशनल सिंगल मीडिया फेस्टिवल में भारत का प्रतिनिधित्व किया। मैं खुद भी इंजीनियर हूं। 

यात्रा ऐसे हुई शुरू

मुझे बचपन से अपनी फोटो खिंचवाना और एक्टिंग करना बहुत पसंद था। कॉलेज के दौरान मैंने अपनी मेकअप आर्टिस्ट फ्रेंड के एक कंपीटिशन में हिस्सा लिया। पहली बार जब एक वॉच ब्रांड के लिए रैंप वॉक किया, तो मेरा कॉन्फिडेंस देख कर लोग चकित थे। वे यकीन नहीं कर रहे थे कि मैं पहली बार मॉडलिंग कर रही हूं। यहीं से मेरी मॉडलिंग यात्रा शुरू हो गयी। अब तो मेरी डेब्यू मूवी इज इट प्यार ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज होनेवाली है। 

टफ है लाइफ अपनी

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मॉडलिंग एक टफ जॉब है। अपने खानपान और फिटनेस का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। अपना पसंदीदा खाना तक छोड़ना पड़ता है। हमारे शरीर में जरा भी चेंज आ जाए, तो लोग नोटिस करते हैं। मैं अपनी फिटनेस का पूरा ध्यान रखती हूं। हालांकि यात्राओं के दौरान रुटीन को फॉलो करना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन मैं अपनी डाइट और एक्सरसाइज के साथ कभी समझौता नहीं करती। मैं नियमित रूप से ऑरेंज जूस, ग्रीन टी और कोकोनट वाॅटर जरूर लेती हूं। मुझे एक्ने की प्रॉब्लम्स थी, नीम वाॅटर से मुझे बहुत मदद मिली। वर्कलोड और स्ट्रेस से पीसीओडी या हारमोनल प्रॉब्लम्स होती हैं, जिसमें नीम बहुत कारगर है। मैं नियमित हेअर स्पा लेती हूं। फिटनेस फ्रीक हूं, तो पसीना बहाना मुझे बहुत पसंद है। पसीना बहाने से फील गुड हारमोन्स रिलीज होते हैं, जिससे मन और चेहरा दोनों खिले रहते हैं। 

पहले कॉन्ट्रैक्ट की यादें

पहला कॉन्ट्रैक्ट मिलना आसान नहीं होता। मैं इंडस्ट्री से बाहर की हूं, मुझे इस फील्ड के बारे में कुछ भी पता नहीं था। शुरू में यह पता करना भी बहुत मुश्किल होता था कि जो काम है, वह फेक तो नहीं है, बहुत सारा होमवर्क करना होता है। अब तो मेरे पास अपनी मैनेजर है, जो मेरे प्रोजेक्ट्स संभालती है, लेकिन पहले यह सब नहीं था। मेरा पहला पेमेंट 500 रुपए था, जिसकी मुझे बहुत खुशी हुई, क्योंकि यह सब मेरी अपनी मेहनत से मुझे मिला था। मुझ पर अपने परिवार और कैरिअर दोनों की जिम्मेदारी थी। मॉडलिंग बहुत डिमांडिंग फील्ड है, लेकिन इस फील्ड में हम हैं, तो इसकी चुनौतियों को भी स्वीकार करना होता है। चूंकि मानसिक तैयारी थी, तो पहले शूट के दौरान भी मैंने बहुत दबाव नहीं झेला। मेरी टीम बहुत अच्छी थी। फोटोग्राफर ने बहुत सपोर्ट किया, इससे मेरी मुश्किल आसान हो गयी। 

काम करना आसान नहीं - अवनी मोदी, अभिनेत्री-मॉडल

मैं गुजरात के गांधी नगर में पैदा हुई और वहीं पली-बढ़ी। कॉलेज टाइम से ही थिएटर का शौक था और यही शौक मुंबई खींच लाया। यहां थिएटर करते हुए मॉडलिंग असाइनमेंट्स मिलने लगे। ऑडिशंस देती रहती थी। कुछ दक्षिण भारतीय फिल्में कीं। दो तमिल और दो तेलुगू फिल्में कीं। मधुर भंडारकर की फिल्म कैलेंडर गर्ल के लिए तीन राउंड ऑडिशंस हुए। आखिरकार मेरा सलेक्शन हुआ। इससे पहले 15 दिन की वर्कशॉप हुई। इस बीच मैंने कई पाकिस्तानी शो और फिल्में देखीं। उर्दू शब्दों का सही उच्चारण सीखा। 

रोल के लिए इतना वजन घटाया कि फिर बढ़ाना पड़ा

मैंने थिएटर के दौरान कभी बिकिनी नहीं पहनी थी, मैं कंफर्टेबल भी नहीं थी, लेकिन फिर मैंने यह चुनौती ली और खुद को फिट रखने के लिए बहुत मेहनत की। नतीजा यह हुआ कि मैं जरूरत से ज्यादा दुबली हो गयी। मुझे दोबारा वजन बढ़ाना पड़ा। शूट्स के बीच में मुझे लगातार खाना पड़ता था। थिएटर से आने के कारण एक्टिंग मेरे लिए समस्या नहीं थी, बल्कि यह स्क्रीन पर ज्यादा आसान थी, क्योंकि यहां रीटेक हो सकता है, जो थिएटर में नहीं होता। 

थका देते हैं लंबे शूट्स

हम जब कैलेंडर्स पर बिकिनी बॉडी देखते हैं, तो लगता है कि वाह, क्या सीन है, क्या कपड़े हैं, कितनी फिट मॉडल है। पर सच पूछा जाए, तो हम जिस तरह के ग्लैमरस और टाइट कपड़ों और हाई हील्स में 12-14 घंटे लगातार शूट करते हैं, वह आसान नहीं होता। इसमें बहुत धैर्य की जरूरत होती है। बिना शिकायत किए, बिना थके आपको हर मौसम, हर तरह के लोकेशन पर शूट करना होता है।

शूटिंग के रोमांचक अनुभव 

फिल्म कैलेंडर गर्ल के लिए मॉरीशस में एक शूट हुआ था। क्रूज में याट के टॉप पर चढ़ कर शूट करना था, इसके लिए स्पेशल परमिशन ली गयी, क्योंकि इस पर चढ़ने की अनुमति नहीं होती है। मधुर भंडारकर जी ने पहले ही समझा दिया था कि यह मुश्किल शॉट होगा, तो ध्यान से करना होगा। इसे ड्रोन से शूट किया गया। बहुत डर लगा था उस समय, क्योंकि कभी स्टंट तो किया नहीं था। अगर जरा भी बैलेंस बिगड़ता, तो उस ऊंचाई से गिरती और मेरा बचना नामुमकिन होता। इन सारी स्थितियों को टेक्निकली समझना होता है। सच यह है कि स्क्रीन पर जो कुछ इतना चमकदार और सहज दिखता है, वास्तव में उतना ही टफ होता है। फिल्म उन सभी लड़कियों के लिए निश्चित रूप से एक मार्गदर्शक की तरह थी, जो ग्लैमर की दुनिया में आना चाहती हैं।