Wednesday 05 March 2025 02:49 PM IST : By Nishtha Gandhi

नर्सों के हित में कई काम कर रही हैं सिस्टर नीलिमा

Neelma

सिस्टर नीलिमा से बात करेंगे तो आपको महसूस होगा कि सकारात्मक रवैया किसी भी मुश्किल को कितना आसान बना सकता है। अस्पताल में मरीजों का गुस्सा, बीमारी, तकलीफ सब कुछ चुपचाप सहता है वहां का नर्सिंग स्टाफ। लेकिन क्या यह सब इतना आसान होता है, दूसरों की सेवा करना, अपनापन दिखाने का यह गुण एक नर्स अपने में कैसे विकसित करती है, इस बारे में बता रही हैं सिस्टर नीलिमा प्रदीपकुमार राणे। वे गोवा स्टेट ब्रांच में नर्सिंग एसोसिएशन (टीएनएआई) की प्रेजिडेंट हैं, और इंडियन नर्सिंग काउंसिल की मेंबर हैं। हाल ही में उनका नाम एस्टर गार्डियंस ग्लोबल नर्सिंग अवॉर्ड्स के लिए भी नामित किया गया था। अपने 37 साल के कैरिअर में इन्होंने ना सिर्फ स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण काम किए हैं, बल्कि नर्सों के हक और बेहतर सुविधाओं के लिए समय-समय पर आवाज उठा कर मुहिम चलायी है। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के अंश-

सिस्टर नीलिमा बताती हैं, ‘‘मैं कोंकण के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखती हूं। जब मैं कॉलेज में थी तो वहां एक मेडिकल कैंप लगा था। कैंप में आए डॉक्टर्स और नर्सों को लोगों की सेवा करते हुए देख कर मुझे बहुत प्रेरणा मिली। 1984 में नर्सिंग डिप्लोमा पूरा किया और मैं गोवा मेडिकल कॉलेज में काम करने लगी।’’

कैसी थीं मुश्किलें

एक नर्स के जीवन में चुनौतियों और मुश्किलों की कमी नहीं होती। जब मैंने काम करना शुरू किया था तो उस समय नर्सों की कमी थी, इस वजह से हायर एजुकेशन के लिए छुट्टी मिलना बहुत कठिन होता था। मेरे प्रयासों से नर्सों को छुट्टी मिलनी शुरू हुई। इसी तरह वेतन को ले कर बहुत सी अनियमितताएं थीं। इन्हें दूर करने के लिए हमने पूरे राज्य की नर्सों से पेटिशन साइन करवाया। यह काम आसान नहीं था। साथी नर्सों को समझाने और एकजुट करने के लिए मैंने कुछ साथियाें के साथ मिल कर मुहिम चलायी और पूरे राज्य से 3 हजार नर्सों के साइन ले कर पेटिशन दी। इसके कारण सरकारी दफ्तरों में बेइज्जती और बहस भी सही।’’

क्या बदलाव देखे

सरकारी अस्पतालों में तो नर्सों को लंच तो दूर की बात है, कई बार चाय पीने की भी फुरसत नहीं मिल पाती है। ओटी में भी लंबे समय तक खड़ा रहना पड़ता है और शिफ्ट में काम करने की वजह से घर संभालने में भी दिक्कतें आती हैं। मरीजों की देखभाल करने वाली कुछ नर्सें मानसिक तनाव की शिकार होती हैं, लेकिन अपने पेशे के प्रति समर्पण और सेवा की यह भावना हमारे पेशे की जरूरत है, जिस वजह से नर्स मानसिक रूप से ज्यादा मजबूत होती हैं। हां, लगातार मरीजों के संपर्क में रहने से इन्फेक्शन का सबसे ज्यादा खतरा नर्सों को रहता है। 

इस पेशे में आने वाले पुरुषों को साथी नर्सें ब्रदर कह कर पुकारती हैं। इनकी संख्या अभी भी महिलाओं के मुकाबले कम ही है, फिर भी ये मेल नर्स अपनी साथी महिलाओं की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। इनकी मौजूदगी में महिलाओं को मरीजों को उठाने, बिठाने, बेड ऊपर-नीचे करने के काम में बहुत मदद मिलती है। नर्सिंग के पेशे में आने वालों के मन में सेवा और सहायता की भावना अपने आप ही आ जाती है।

सेफ्टी भी जरूरी है

अब नर्सों की सेफ्टी के लिए काफी कोशिश की जा रही है। नर्सों के लिए अलग से रेस्ट रूम, चेंजिंग रूम, वॉशरूम, सिक्योरिटी आदि की व्यवस्था सुनिश्चित करने के अलावा शिफ्ट ड्यूटी में काम करने के लिए ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था की गयी है, लेकिन अभी भी इस पर बहुत काम करना बाकी है, ताकि युवा महिलाएं इस पेशे में आने से ना कतराएं।

इसके अलावा कई बार नर्सों को पेशेंट्स और उनके परिजनों के गुस्से और आक्रामकता का सामना भी करना पड़ता है। सिस्टर नीलिमा बताती हैं कि हमें ऐसी स्थितियों से डील करने के लिए यही सिखाया जाता है कि पेशेंट से लड़ाई या बहस करने के बजाय चुपचाप अपना काम करें और शांत रह कर उन्हें समझाएं। कई बार पेशेंट्स खाने को ले कर, सुविधाओं को ले कर शिकायत करते हैं, ऐसी स्थिति में उन्हें जिस कुशलता से नर्सें संभालती हैं, वह वाकई काबिलेतारीफ है।

इस सबके बावजूद सिस्टर नीलिमा का अपने पेशे के प्रति सम्मान कम नहीं हुआ है। वे आज भी यह कहती हैं कि नर्सिंग बहुत नोबल प्रोफेशन है और अपनी साथी नर्सों को उनका सिर्फ इतना ही संदेश है कि कभी अपने पेशेंट के साथ बहस मत करो, बल्कि एक अच्छी और समझदार नर्स बनो।