चूल्हे की आग की लपटों पर रोटियों को सेंकने वाली महिलाएं हम सबने देखी है। लेकिन आग में कूद कर दूसरों की जान बचाने वाली महिला से कुछ दशक पहले तक किसी का परिचय नहीं हुआ था। आज ऐसी ही एक स्त्री के जोशभरे जज्बे का पूरा देश कायल है। यहां बात हो रही है देश की पहली महिला फायर फाइटर हर्षिणी कान्हेकर की। हर्षिणी कहती हैं कि जब मैं छोटी थी, तभी से पुलिसवालों की यूनिफॉर्म खूब आकर्षित करती थी। मैं ऐसी जॉब में जाना चाहती थी, जहां ऐसी ही यूनिफॉर्म पहनने को मिले। वे कहती हैं, जब मैं एनसीसी में थी, तो मैंने इंडियन एअरफोर्स की पहली महिला पायलट शिवानी कुलकर्णी के बारे में पढ़ा। तभी से मैं इस तरह के यूनिफॉर्म और बहादुरीभरे काम को करने के लिए रोमांचित हो गयी।
फाइटर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट तक सफर

नागपुर की हर्षिणी ने अपनी पढ़ाई एक गर्ल्स स्कूल से पूरी करने के बाद लेडी अमृताबाई डागा कॉलेज से बैचलर ऑफ साइंस किया। कॉलेज के दिनों में ही उन्होंने नेशनल कैडेट कॉप्स जॉइन किया। वे कहती हैं, इन्हीं दिनों मेरी फ्रेंड ने मुझे बताया कि अगर मैं पुलिस की तरह की युनीफॉर्म पहनना चाहती हूं, तो एक मौका है। नागपुर स्थित नेशनल फायर सर्विसेज कॉलेज के फॉर्म्स निकले हुए हैं। फिर हम दोनों ने उसका फॉर्म भर दिया। जब हम कॉलेज पहुंचे, तो किसी ने तंज किया कि यह काम लड़कियों के वश का नहीं। उसने कहा, दिस इज नॉट फॉर यू। सच कहिए, तो उसकी यही बात दिल में टीस बन कर लग गयी और तभी ठान लिया कि अब तो यहीं आना है। आवेदन करने के दौरान तो फैकल्टी के स्टाफ भी हम पर हंस रहे थे। उन्होंने मेरा फॉर्म दूसरे फॉर्म्स से अलग रख दिया। वहां मौजूद एक सज्जन ने कहा कि महिलाएं, तो अभी भी 33 प्रतिशत आरक्षण के लिए लड़ रही है। उसका कहने का मतलब था कि यहां दाखिला पाना असंभव है। मैंने भी उसे करारा जवाब दिया, मैं, 33 में नहीं फिफ्टी फिफ्टी में बिलीव करती हूं। खैर परीक्षा के बाद मैं चुन ली गयी। अब मेरे सामने एक नयी चुनौती थी कि लडक़ों से भरे इस कॉलेज में मैं एकमात्र लडक़ी थी। पेरेंट्स भी थोड़े सशंकित हुए पर मैंने उन्हें मना लिया। उन्हें भी पता था कि मैंने ठान लिया है, तो करके ही मानूंगी।

खैर 1956 में बने इस कॉलेज में अभी तक किसी लडक़ी ने एडमिशन नहीं लिया था। मेरे मन में एक ही बात थी कि यहां बिताए गए मेरे कामों के हिसाब से ही आने वाले समय में और भी लड़कियों को जज किया जाएगा। यही वजह थी कि इस कोर्स को करने के दौरान मैंने एक भी छुट्टी नहीं ली। ड्रिल और परेड के समय मैं हमेशा समय पर पहुंचती। कई बार सबसे पहले पहुंच कर स्टोररूम में प्रैक्टिस करती ताकि किसी भी साथी(लड़के) से कम नहीं आंकी जाऊं। मैं जानती थी, मेरी एक कमी पकड़े जाने की स्थिति में इस कॉलेज में आने वाली अगली महिला पीढ़ी को आंका जाएगा।
एक ही सवाल बार बार
एडमिशन के बाद मेडिकल टेस्ट देने के दौरान उनसे डॉक्टर्स की टीम ने पूछा, तुम श्योर हो कि तुम इस जॉब को कर पाओगी। बकौल हर्षिणी, मैंने हां में जबाव दिया। उसके बाद भी अलग-अलग टास्क के दौरान मुझसे कइयों ने कई मर्तबा यही पूछा। मुझे यह बात बुरी लगती थी, कि महिला होने के कारण मेरे से या दूसरे महिलाओं से उनकी क्षमताओं को ले कर ऐसा सवाल क्यों पूछा जाता है। उनकी साहस को ले कर प्रश्नचिह्न क्यों लगाया जाता है।

आज भी कई बार मुझसे पूछा जाता है कि क्या मैं फील्ड में आग के बीच घिर कर लोगों की जान बचाती हूं, यह बात थोड़ी असहनीय हो जाती है। जबकि मेरे घर में मेरे और मेरे भाई के साथ कभी भेदभाव नहीं किया गया। मेरे पापा गर्ल्स एजुकेशन को ले कर बेहद सजग थे। मेरी मां की शादी कम उम्र में हो जाने की वजह से उनकी स्टडी कम्पलीट नहीं हो पायी थी। मेरे पापा ने उनको ओपन यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन कराया। जब मैं पढ़ रही थी, तो मेरे लिए कई तरह की प्रतियोगिताओं के फॉर्म लाते। मुझे लगता है कि हर बेटी को ऐसा पिता मिले, तो देश में महिलाओं की तसवीर ही बदल जाए।

क्या सकारात्मक बदलाव आए है लड़कियों को ले कर : बाइकिंग में रुचि रखनेवाली हर्षिणी के जीवन में भी दूसरे फायर फाइटर के रूप में ढेरों चुनौतियां आयी। गिटार बजाने की शौकीन हर्षिणी कहती हैं कि एक साल दीवाली में आग लगने के 6 मामले आए। मैंने सबको सॉल्व किया। मेरे लिए यह चैलेंज था। केवल मुंबई फायर ब्रिगेड में आज सौ के करीब फायर वुमन है। यह देख कर अच्छा लगता है। वाकई समाज बदल रहा है। ओएनजीसी के फायर सर्विसेज में डिप्टी मैनेजर के तौर पर तैनात हर्षिणी की इस बात में क्या आपको अभी भी कोई शक है।