मां ! एक शब्द नहीं, पूरी कायनात है, जिसने ना जाने कितनी बड़ी-बड़ी हस्तियों को अपने स्नेह और मातृत्व से गढ़ा है। चाहे आम इंसान हो या सेलेब्रिटीज, मां की ममता के सभी कायल हैं। जानते हैं बॉलीवुड की कुछ नामचीन अभिनेत्रियों की जबानी, उनकी मांओं की कहानी-
बेटी की मां होना है सुखद - आलिया भट्ट
आज मैं खुद एक बेटी राहा की मां बन चुकी हूं आैर यह महसूस कर रही हूं कि एक बेटी की मां होना कितना अनोखा-कितना सुखद, अलग अनुभव है। साथ में बेटी की मां होना बड़ी जिम्मेदारी का अहसास भी दिलाता है। यह सच है कि हर दूसरा शख्स आज स्त्री और पुरुष समानता की बात करता है, लेकिन क्या यह वास्तविकता नहीं कि एक मां को अपनी बेटी की सुरक्षा का खास तौर पर ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है। स्त्री-पुरुष दोनों को एक समान मैं भी मानती हूं, लेकिन लड़के जिस तरह आजाद पंछी बन कर कहीं भी, कभी भी घूम सकते हैं, क्या लड़कियों को यह आजादी है? आजादी तो है, लेकिन उनकी सेफ्टी बहुत मायने रखती है। यह कैसे नजरअंदाज कोई करे? लड़कियों की सुरक्षा के लिए माता-पिता को ज्यादा सतर्क होना पड़ता है।
मेरे डैड की 4 संतान हैं। सबसे बड़ी पूजा, फिर राहुल, मैं और शाहीन। पूजा और मैं एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में हैं, इसलिए मुझ पर और पूजा पर हमेशा से फोकस ज्यादा रहा। मेरे डैड और मेरी मॉम दोनों स्वभाव से उत्तर-दक्षिण हैं, बावजूद उनमें एक अच्छी अंडरस्टैंडिंग मैंने महसूस की है। मैं भी सोचती हूं कि अगर रणबीर (कपूर) और मेरे स्वभाव में फर्क हुआ, तो एक-दूसरे की बुराइयों के बजाय अच्छाइयों पर ध्यान देना होगा, ताकि हमारे बीच मतभेद ना हो। वैवाहिक रिश्ते में एक-दूसरे को आदर देने की यह आदत मुझे बहुत कुछ सिखाती है।
मेरी मां कश्मीरी, तो मेरे नाना जी जर्मन थे। मेरे डैड गुजराती, उनके डैड यानी मेरे दादा जी गुजराती थे, तो दादी मुस्लिम थीं। एक मिक्स्ड कल्चर में मैं पली-बढ़ी। मेरे परिवार में सभी सेलेब्रिटी हैं, लेकिन मेरी परवरिश सामान्य मिडिल क्लास के बच्चों की तरह हो, यही मम्मी चाहती थीं। मुझे फिल्मों के माहौल से दूर रखा जाए, यह उनकी इच्छा थी। मम्मी कहती हैं, आलिया ने बचपन में कभी भी कोई जिद नहीं की, बहुत प्यारी बच्ची थी। ऐसा जब मम्मी कहती थीं, मुझे खुद पर ताज्जुब होता था कि क्या मैं वाकई इतनी गुड गर्ल थी?
मम्मी मुझे उनकी दोस्तों के घर किटी पार्टी के लिए ले जाया करती थीं। तब
मैं टीवी पर चित्रहार, छायागीत देखा करती थी। उन्हीं दिनों मुझे फिल्मी गीत देख कर फिल्मों में जाने की इच्छा हुई। फिर मैंने मम्मी को छोड़ कर डैड को पकड़ा। मुझे एक्टिंग करनी है, मैंने डैड से कहा और उन्होंने मुझे उनकी फिल्म संघर्ष में प्रीति जिंटा के बचपन का रोल करने दिया, जिसके लिए मुझे मम्मी की नाराजगी सहनी पड़ी। मुझे स्कूल तभी अच्छा लगता था, जब ड्रॉइंग, पीटी, क्राफ्ट के पीरियड हों। मुझे कभी पढ़ाई अच्छी नहीं लगी, इसी बात को ले कर मम्मी की नाराजगी मैंने हमेशा सही। डैड ने मुझे फिल्मों में कैरिअर बनाने की आजादी दी। मेरे दिमाग से एक्टिंग का भूत उतर जाए, इसलिए मम्मी ने मुझे पोर्टेबल टीवी ला कर दिया, ताकि घर बैठे-बैठे मेरा मनोरंजन हो, मैं फिल्मों के सेट पर जाना भूल जाऊं। ऐसा मम्मी को लगता था, लेकिन वक्त के साथ मेरे अंदर एक्टिंग का कीड़ा बढ़ता ही गया।
मेरे व्यक्तिगत जीवन में डैडी को मैंने कभी हारते-टूटते, तो कभी निराशा से घिरे देखा। उन्हें कर्जा हुआ, कुछ अभिनेत्रियों के करीब जाने से और रिश्ता टूटने से आनेवाले डिप्रेशन, कई तरह की समस्याओं से पारिवारिक जीवन 360 डिग्री बदलता रहा। डैड को शराब की लत लगी, जिसका असर हम सभी बच्चों की परवरिश पर होना स्वाभाविक था। एक मम्मी ही थीं, जिन्होंने घर को टूटने नहीं दिया, हर हाल में बिखरने नहीं दिया, इसलिए मेरी मम्मी के पास सब्र-धीरज का जो बांध है, किसी के पास नहीं है। विवादों के साये से बच्चों को जितना हो सके दूर रखा। खुद धूप में तपती रहीं, लेकिन हम बच्चों को छांव दी। डैड का कैरिअर और जीवन दोनों हमेशा कॉम्प्लेक्स रहे, लेकिन बच्चों को हर हाल में विवादों से दूर, शांतिपूर्ण जीवन देने के पीछे सिर्फ मम्मी हैं। मम्मी (मां) को लोग ईश्वर का दर्जा क्यों देते हैं, यह मेरी मां को देख कर पता चलता है।
मां ने सिखाया हारना भी जरूरी है- तारा सुतारिया
मैं यह कहूं कि मेरी मम्मी मेरी बेस्ट फ्रेंड हैं, तो आपको मेरा कहना स्टीरियोटाइप लगेगा। लेकिन यही सच है। मेरी जुड़वां बहन पिया सुतारिया और मेरी परवरिश मां ने एक साथ कैसे की होगी, यह मैं आज सोचती हूं, तो मुझे इस सवाल पर कोई जवाब नहीं मिलता। मां मेरी और पिया की पढ़ाई के अलावा एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज पर भी ध्यान देती रहीं। मां का कहना है कि मुझे डांस के साथ सिंगिंग में भी दिलचस्पी थी। स्कूल में जब सिंगिंग कॉम्पिटीशन हुआ, तो मैं सेमीफाइनल में जीत गयी, पर फाइनल में फर्स्ट राउंड हारी ! मुझे लगा नहीं था कि मैं हार भी सकती हूं ! मैंने अपने आपको कमरे में बंद कर लिया, खेलना बंद किया और मम्मी से कहा कि मैं स्कूल नहीं जा सकती ! मम्मी के सामने यह बड़ा चैलेंज था कि कैसे वे मुझे समझाएं। मम्मी ने मेरी खूब मिन्नतें कीं, ताकि मैं बंद दरवाजा खोलूं और खाना खाऊं ! मां को कन्विंस करने में वक्त लगा, उन्होंने कई मिसालें दीं। उन्होंने बताया कि श्रीराम राजा हो कर भी कैसे वनवास गए और रावण से युद्ध उन्हें करना पड़ा। जीवन में इतनी सारी लड़ाइयां उन्हें लड़नी पड़ीं, जबकि वे राजकुमार थे। दशरथ राजा के बाद बहुत बड़े सम्राट बने, लेकिन जीवन के संघर्ष में उनका आधे से अधिक जीवन खत्म हुआ, पर बिना कोई शिकायत-शिकवा किए जीवन की जंग प्रभु श्रीराम लड़ते रहे !
आगे चल कर पोगो चैनल ने जब बच्चों के लिए सिंगिंग कॉम्पिटीशन आयोजित किया, उसमें मैं फाइनलिस्ट रही और फिर अपना ममताभरा हाथ मेरे सिर पर फेरते हुए मां ने कहा, ‘हार के बाद जीत मिली तुम्हें, अब यह जरूरी नहीं तारा कि जीवनभर तुम ही अव्वल आओगी। कोई दूसरा आएगा, तो बुरा ना मान कर उसे बधाई देना तुम्हारा फर्ज बनता है।’ मैं जब बॉलीवुड में गयी, तो यही उसूल मैंने याद रखा। नॉन फिल्मी बैकग्राउंड होने से फिल्मी तौरतरीकों से मैं अनजान थी। फिल्म में कभी इन, तो कभी आउट का सिलसिला होता रहा, लेकिन मैंने डट कर सामना करना सीखा और आगे बढ़ते गयी, सिर्फ मां के कारण। यह मां ने बताया ना होता, तो शायद आज मैं यहां ना होती। हमारी दादी और नानी भी असीम ऊर्जा से भरी हैं, सकारात्मकता कूट-कूट कर भरी है उनमें।
सिंगल मदर बनना आसान नहीं- पूजा बेदी
मातृत्व दुनिया की हर स्त्री चाहती है। जो महिलाएं कैरिअर में, उच्च शिक्षा में व्यस्त हो जाती हैं, कुछ समय बाद मां बनने की आरजू उनके दिल में भी जग जाती है ! शायद विधाता ने कुछ सोच-समझ कर ही स्त्री को बनाया होगा। हर स्त्री मां तो बन सकती है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर मां अच्छी-आदर्श हो। बच्चे के जन्म के बाद मां का भी पुनर्जन्म होता है, बच्चे की परवरिश में खुद का अस्तित्व तक भूल जाती हैं मांएं ! जैसे वक्त आगे बढ़ता गया, मां और उसके बच्चे के परवरिश की परिभाषा सब कुछ बदलता गया ! अधिकतर महिलाएं अब कैरिअर ओरिएंटेड होती गयी हैं, लेकिन आज भी बच्चे को संभालना, परवरिश करना जैसी सारी जिम्मेदारियां मां पर होती हैं। मां बनना किसी चुनौती से कम नहीं होता !
यदि मैं अपने बारे में बात करूं, तो मैंने अपने बच्चों की परवरिश वैसे की, जैसे मेरी मां प्रोतिमा बेदी ने मेरी और और मेरे भाई सिद्धार्थ की थी ! मेरी मां भी सिंगल मदर थीं, और मैं भी सिंगल मदर हूं! मां बनने में स्वर्गिक सुख है, जिसे परिभाषित नहीं किया जा सकता, लेकिन इसकी चुनौतियों के बारे में जितनी बातें करें, उतना ही कम होगा। मां कहा करती थीं, बच्चों का स्कूल जाना निहायत जरूरी है, लेकिन जीवन के अनुभव, जिंदगी की पाठशाला हर इंसान को बेहतर और सच्चे अनुभवों से रूबरू कराती है ! नेचर के साथ वक्त बिताया करो, धरती, आसमान, पानी सब कुछ बिना किसी उम्मीद के प्रकृति हम इंसानों पर न्योछावर कर देती हैं, बिना किसी उम्मीद! यह गुण अपनाना होगा... मां हम दोनों बच्चों को घुमाने ले जाती थीं, हम तीनों की एक खूबसूरत दुनिया थी ! हम बच्चों को अपनी जिंदगी माननेवाली मां ने मेरे 17वें जन्मदिन पर एक शॉक दिया, ‘‘बेटा, आई एम लिविंग यू ! आई एम लिविंग होम !’’
मां मुझे और घर छोड़ कर जाना चाह रही थीं! मैंने मां को उनके अटल इरादे से रोकने की बड़ी कोशिश की, लेकिन उन्होंने निर्णय ले लिया था। मां का जवाब था, पूजा, तुम 17 साल की हो गयी हो, यही वक्त है तुम अपने जीवन और कैरिअर की सही दिशा चुन लो। जीवन के किसी भी पल तुम्हें मेरी और मेरे मार्गदर्शन की जरूरत पड़ेगी, तो मैं उपलब्ध रहूंगी !’’ मां मुझे और सिद्धार्थ को छोड़ कर ओडिशा चली गयीं। आप सभी जानते होंगे कि ओडिशा जाने के बाद मेरी मां विश्व स्तर की ओडिशी नृत्यांगना बन गयीं। दो बच्चों की मां हो कर भी मां ने जो मेहनत, जद्दोजेहद, संघर्ष किया और खुद को ओडिशी डांसर के रूप में स्थापित किया, वह आसान बात नहीं थी ! मां ने ओडिशा में नृत्यग्राम की स्थापना की और पूरी दुनिया में इस तरह का यह एकमात्र भारतीय डांस संस्थान है !
मैंने बड़ी हो कर अभिनय, लेखन, एंकरिंग, मॉडलिंग जैसे हर क्षेत्र में खुद को आजमाया और अपने बलबूते पर कामयाब हो गयी ! मेरी कामयाबी देख कर मां जब भी मिलती थीं, कहा करती थीं, यदि मैं तुम्हारे साथ होती, तो तुम आत्मनिर्भर ना बन सकती, मुझे तुम्हारी कामयाबी पर नाज है ! मां के मूल्यों के कारण ही मैं जीवन समझ सकी !
1994 में मेरी शादी फरहान फर्नीचरवाला के साथ हुई और 1997 में प्यारी बेटी आलिया की मां बनी। 2000 में मैंने बेटे ओमर को जन्म दिया। आज मेरे दोनों बच्चे बड़े हो गए हैं, लेकिन फरहान और मैं तब अलग हो गए, जब मेरा बेटा 4 साल का था ! महीने के 2 संडे फरहान बच्चों से मिलने-ब्रंच के लिए मेरे घर आया करता था। बच्चों के दिल में अपने पिता फरहान के प्रति कोई कड़वाहट नहीं, बल्कि फरहान ने जब दूसरी शादी की, मैंने बच्चों के साथ फरहान की शादी तक अटेंड की।
हमारे रिश्ते में ही मैंने और बच्चों ने जाना कि मां बच्चों की बेस्ट फ्रेंड होती है ! स्कूली शिक्षा हर अभिभावक अपने बच्चों को देते हैं, लेकिन बिना कुछ कहे अपने बच्चों को जीवन मंत्र देना हर मां का फर्ज हैं, जो आजकल बच्चों में कम नजर आता है ! लिविंग लाइफ टू द फुलेस्ट यह मेरा जिंदगी का फलसफा है, शायद यही प्रतिबिंब मेरे बच्चों में आप पाएंगे !
मां ने सिखाया पेशेंस- रिचा चड्ढा
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा होगा, जो अपने माता-पिता से, खासकर अपनी मां से प्यार ना करता हो ! मेरे पिता जी सोमेश चड्ढा और मां कुसुम चड्ढा मेरे जीवन के सर्वेसर्वा हैं। बहुत कम लोग जानते होंगे कि मैंने इन दोनों के नाम का टैटू अपने राइट हैंड पर लिखवाया है। मैं मानती हूं मेरे डैड मेरी सोल-मेरी आत्मा हैं, तो मेरी मां मेरी रीढ़ की हड्डी हैं। मैं रहती हूं मुंबई में, और मेरे पेरेंट्स दिल्ली में, जब भी मैं लो फील करती हूं, अगर फोन पर बात नहीं कर सकी, तो उनका नाम मेरे साथ हमेशा के लिए जुड़ने पर मुझे धीरज मिलता है, इसीलिए मैंने अपने पेरेंट्स का नाम मेरे हाथों पर टैटू करवाया।
देखा जाए, तो मेरे मेरे माता पिता का अभिनय से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। दोनों प्रोफेसर हैं, लेकिन बचपन से मेरा झुकाव कला, डांस की तरफ ज्यादा और लिटरेचर की तरफ कम था। मेरी मां ने मुझे हमेशा मेरी चाहत के प्रति प्रोत्साहित किया। मेरे स्कूल से लौटने के बाद वे थोड़ी देर में कॉलेज से आती थीं। मुझे खाना खिला कर, मेरा ड्रेस चेंज कर वे मुझे कथक क्लासेस ले जाया करती थीं, ताकि मेरी हॉबी, मेरा रुझान पूरा हो सके। मैंने कई बार देखा, इस भागदौड़ में उन्हें लंच सही समय पर करने का वक्त नहीं मिला करता था !
ऐसा मैंने देखा है, जब माता-पिता अपनी बेटियों को कथक क्लासिकल डांस सिखाते हैं, खासकर वे पेरेंट्स, जो प्रोफेसर्स हैं या डांस के पेशे से नहीं, उन्हें छिछोरा माना जाता है, लेकिन मां डटी रहीं। मुझे हर कला से प्यार करना सिखाया, वह आजादी दी कि मैं खुद को एक्सप्रेस कर सकूं। उसके विश्वास के कारण ही मैंने बॉलीवुड में कदम रखा। मैंने मां को हमेशा शांत चित देखा। जब मैं कभी निराश होती थी, उन परेशान घड़ियों में मेरा साथ दिया ! मां के ये हमेशा धीरजभरे अल्फाज होते हैं, ‘‘बेटा, रात के बाद उजाला आना ही है ! परेशानियां आती जरूर हैं, पर खत्म भी होती हैं !’’ मेरी मां बॉलीवुड को बबल कहती हैं। मैंने अगर जीवन में पेशेंस सीखा है, तो वह अपनी मां से।
मेरी मां बहुत सच बोलनेवाली हैं। मैंने अपनी मां से सीखा है लोगों की मदद करना। उनका सभी को मदद करनेवाला स्वभाव है। उनका दिल बहुत बड़ा है। हर संडे के दिन मां मेड के बच्चों को पढ़ाती हैं और ब्लाइंड्स को भी पढ़ाती हैं। मुंबई में मेरी मेड को उसका अल्कोहलिक पति जब पीटता था, मैंने उसे ऐसे डांट लगायी कि उसके व्यवहार में फर्क आ गया। उस मेड का मैंने हमेशा साथ दिया। हालांकि मेरी यह मदद सामान्य बात है, पर यह सामाजिक सरोकार की भावना मुझे मां से ही विरासत में मिली है। मां के बारे में जितना कहा जाए, वह कम होगा। जो भी सीखा है, उन्हीं की देन है।
मां से मिली रिलेशनशिप एडवाइज- शनाया कपूर
संजय कपूर और महीप कपूर की प्यारी सी बिटिया शनाया कपूर ना सिर्फ अपने पेरेंट्स, बल्कि पूरे परिवार की लाड़ली हैं। अकसर अनिल और बोनी कपूर शनाया के साथ फोटो खिंचवाते दिख जाते हैं। सोशल मीडिया पर शनाया की अच्छी-खासी फैन फॉलोइंग है। अपनी मम्मी महीप कपूर के साथ शनाया बेहद मजबूत बॉन्डिंग शेअर करती हैं। वे दोनों सोशल मीडिया पर एक-दूसरे की पोस्ट पर तुरंत रिएक्ट करती हैं और समय-समय पर एक-दूसरे के लिए इमोशनल और प्यारभरे मैसेजेस भी लिखती हैं। युवाओं में प्रसिद्ध एक डेटिंग साइट के लिए खासतौर से शूट किए एक वीडियो में दोनों मां-बेटी खुल कर रिलेशनशिप, डेटिंग और अपने क्रशेज पर बात करती हुई दिखीं। शनााया का कहना है, ‘‘मुझे अच्छा लगता है, जब लोग अपने मॉम के साथ रिलेशनशिप पर खुल कर बात कर पाते हैं।’’ वहीं महीप अपनी बेटी को स्वीट, फनी, रात को देर तक जागने और सुबह देर से उठने वाली लड़की कहती हैं।