Wednesday 23 September 2020 05:47 PM IST : By Meena Pandey

पत्तलों में खाएंगे तो इन बीमारियों से बचे रहेंगे

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पहले शादी-पािर्टयों में पत्तलों पर ही खाना परोसा जाता था, लेकिन अाज थर्मोकोल अौर प्लास्टिक की प्लेटों का बोलबाला है। इकोफ्रेंडली पत्तलों का इस्तेमाल कर समझदार बनें।
किसी जमाने में बड़ी-बड़ी दावतों में पत्तलों पर पकवान परोसे जाते थे। कुछ जातियों में पत्तल बांधना एक रिवाज हुअा करता था। यह रस्म वर-वधू  पक्षों के बीच चुहलबाजी अौर हंसी-मजाक का एक हिस्सा थी। भारत में पत्तल पर खाने की परंपरा सदियों से चली अा रही है। तब हमारे यहां 2000 से ज्यादा किस्म के पत्ते व पत्तियों से पत्तलें बनती थीं, लेकिन जिस पत्तल को हिंदुस्तानियों ने विवाह, पार्टी, समारोहों में लगभग तिलांजलि दे दी, उसी पत्तल का यूरोप में डंका बज रहा है। जर्मनी में तो लोग पत्तल को अाराम से इस्तेमाल रहे हैं। उनकी देखादेखी अौर पर्यावरण को बचाने के फायदे की वजह से विदेशों में पत्तल का अाकर्षण काफी बढ़ रहा है, जबकि बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड अौर राजस्थान जैसे पत्तल प्रेमी राज्यों में इनका प्रयोग अौर महत्व दोनों ही घटते जा रहे हैं।
पत्तल एनवॉयरमेंट को नुकसान नहीं पहुंचातीं। प्लास्टिक व थर्मोकोल की प्लेट नष्ट नहीं होतीं, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं।
फायदे ही फायदे ः दो हजार पत्ते-पत्तलों का इतिहास अाज कुछ किस्म की पत्तलों तक ही सिमट कर रह गया है। जानते हैं, उनमें खाना खाने के क्या फायदे हैं?
केले के पत्ते ः फाइव स्टार होटलों अौर रिसॉर्ट अादि में दक्षिण भारतीय भोजन पारंपरिक तौर से केले के पत्ते पर ही परोसा जा रहा है। यह अलग बात है कि इसकी हेल्थ वैल्यू को नजरअंदाज किया जाता है, लेकिन केले के पत्ते या इससे बनी पत्तल में खाना चांदी के बरतन में खाने जितना ही सेहतमंद है।
करंज की पत्तल ः पहले जमाने में जोड़ों में दर्द के मरीजों को करंज की पत्तियों से तैयार पत्तल में भोजन कराया जाता था। अाज भी यह माना जाता है कि करंज की पत्तल में खाना खाने से जोड़ों के दर्द में अाराम मिलता है। खासकर अगर वह पत्तल पुरानी पत्तियों से तैयार की गयी हो, तो ज्यादा फायदेमंद होती है।
पलाश की पत्तल ः पलाश की पत्तल में रोज भोजन करने से खून साफ होता है अौर खून की खराबी से होनेवाली बीमारियां भी दूर होती हैं। इससे हाजमा दुरुस्त रहता है। सफेद फूलवाले पलाश के पत्तों की पत्तल में खाने से पाइल्स के मरीजों को अाराम मिलता है अौर इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। इसीलिए कहा जाता है कि पलाश के पत्तल में भोजन करने से सोने के बरतनों में खाना खाने जितना फायदा मिलता है। 
अमलतास की पत्तल ः इसमें खाने से पैरालिसिस के मरीजों को फायदा मिलता है।
सुपारी के पत्तों की पत्तल ः सुपारी के पत्तों की पत्तल केरल में अाज भी बड़ी तादाद में बनती है। उसके दोने भी बनाए जाते हैं।
मालू के पत्तों की पत्तल ः उत्तराखंड में दोना-पत्तल लघु उद्योग कर्णप्रयाग में शुरू किया गया है। ये पत्तल मालू के पत्तों से तैयार किए जाते हैं अौर इसमें भोजन करना सेहत के लिए अच्छा माना गया है।
माहुल के पत्तों की पत्तल ः मध्य प्रदेश में महिलाएं ग्रुप्स में जा कर जंगल से माहुल के पत्ते इकट्ठा करती है। इन पत्तों की मशीन से सिलाई करके पत्तल तैयार करती अौर बेचती हैं। 
टौर की पत्तल ः हिमाचल के कई इलाकों में टौर नाम की बेल में लगे पत्तों से यह पत्तल बनायी जाती है। यहां अाज भी ज्यादातर शादी-समारोहों में टौर की पत्तल में ही खाना परोसा जाता है।
पीपल की पत्तल ः पीपल के पत्तों से तैयार पत्तल में भोजन कराने से मंदबुद्धि बच्चों के इलाज में काफी मदद मिलती है।
शाल के पत्तों की पत्तल ः शाल के पत्तों से बनी पत्तल के कारोबार को बचाने की गुहार लगायी गयी है। यह सस्ती व सेहत के लिए फायदेमंद है।

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पत्तलों से बचाएं एनवॉयरमेंट ः इनको कचरे की तरह फेंक कर गंदगी फैलाने के  बजाय गड्ढे में दबाया जा सकता है। पत्तल में खाने का फायदा यह भी बताया जाता है कि  पत्तल में खाने से बरतन धोने के लिए केमिकल का कम प्रयोग होता है अौर नदी-नालों का पानी साफ रहता है। पत्तलों को खाना खाने के बाद कंपोस्ट पिट में डाला जा सकता है। पत्तल को रोजगार का साधन बनाने से ज्यादा संख्या में पेड़-पौधे लगाए जाएंगे, जिससे पॉल्यूशन कम होगा। लोगों को अॉक्सीजन मिलेगी। बरतन धोने का पानी बचेगा। थर्मोकोल व प्लािस्टक की प्लेट में मौजूद केमिकल पाचन तंत्र पर गलत असर डालते हैं, जिससे कैंसर भी हो सकता है। डिस्पोजेबल प्लेट्स व गिलास में पाए जानेवाले केमिकल छोटी अांत पर बुरा असर डालते हैं। जब विदेश में एनवॉयरमेंट बचाने के लिए पत्तल को अपनाया जा रहा है, तो हम अपनी उस परंपरा को क्यों भूलते जा रहे हैं?