Friday 27 May 2022 03:40 PM IST : By Pooja Samant

मैं दर्शकों को सपनों की दुनिया की सैर कराता हूं- संजय लीला भंसाली

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बॉलीवुड की लगभग हर अभिनेत्री की चाहत होती है कि वह कम से कम एक बार निर्देशक संजय लीला भंसाली के साथ काम करे ! आलिया भट्ट के साथ उनकी फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी को दर्शकों ने खूब सराहा है। प्रस्तुत हैं संजय लीला भंसाली से हुई बातचीत के चंद अंश- 

प्रश्नः गंगूबाई पर फिल्म बनाने के पीछे क्या वजह है?

उत्तरः गंगूबाई काठियावाड़ी गुजरात के काठियावाड़ की एक मासूम युवती थी, जिसे प्यार व शादी का झांसा दे कर उसके प्रेमी रमणीकलाल ने मुंबई में बेच दिया। ऐसी अनगिनत युवतियां कोठे पर रोजाना बेची-खरीदी जाती हैं। उनकी जिंदगी तबाह हो जाती है, लेकिन गंगूबाई ने इस पेशे को अपना कर एक ऐसी जिंदगी जी, जो दूसरों के लिए मिसाल बन गयी। वे अपने जैसी महिलाओं के हक के लिए लड़ीं। यहां तक कि अपने सवालों के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से भी मिलीं। नर्क से बदतर जिंदगी को भी कैसे जीवन के उत्सव में बदला जा सकता है, गंगूबाई के इस गुण ने मुझे छू लिया। लगा कि इस स्त्री की जिंदगी को परदे पर दिखाया जाना चाहिए।

प्रश्नः आलिया भट्ट को इस किरदार के लिए क्यों चुना, जबकि दीपिका पादुकोण के साथ आपने लगातार 3 फिल्में बाजीराव मस्तानी, रामलीला और पद्मावत की हैं?

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उत्तरः दीपिका बेहतरीन कलाकार हैं, इसमें तो कोई शक ही नहीं, लेकिन आलिया को लेने के पीछे 2 मुख्य वजहें रहीं-गंगूबाई की यह बायोपिक जब वे 16 साल की थीं और उनकी वह कहानी जो उनकी जिंदगी के 70 सालों तक चलती है। आलिया अभी 29 वर्ष की है, लेकिन वह 16 की दिख सकती है और दूसरी ओर 70 की उम्रवाला किरदार भी निभा देती है। दूसरी ठोस वजह है- मैंने 2018 में फिल्म इंशाअल्लाह के लिए सलमान खान व आलिया भट्ट को साइन किया। मेहबूब स्टूडियो में एक विशाल सेट लगाया था। आलिया के शानदार कॉस्ट्यूम बने, उसके डांस की रिहर्सल शुरू हुई, लेकिन दुर्भाग्यवश मुझे यह फिल्म शुरू होते ही बंद करनी पड़ी, सेट्स तोड़ने पड़े ! (सलमान खान के साथ अनबन होने के कारण) खैर, मैं निराश था। इसी उधेड़बुन में मुझे आलिया भट्ट के साथ यह फिल्म करने का फैसला लेना पड़ा, ताकि उसकी डेट्स जाया ना हों। मेरा मानना है कि हर फिल्म इंसानों की तरह अपनी किस्मत ले आती है, इंशाअल्लाह फिल्म नहीं बननी थी शायद, लेकिन उस फिल्म के बंद होने के 16वें दिन ही मैंने गंगूबाई... की शूटिंग शुरू कर दी। कोरोना काल में भी शूटिंग चलती रही और अब 2 साल बाद फिल्म दर्शकों के सामने है। यह फिल्म मूल रूप से हुसैन ज़ैदी की किताब माफिया क्वींस ऑफ मुंबई पर आधारित है। शुरू में आलिया ने सेक्स वर्कर के रोल के बारे में सुना, तो वह ऑफिस से निकल ही गयी ! मैंने उससे कहा कि एक बार कहानी को शांति से सुनो, अच्छी लगेगी, तब दूसरे दिन उसने कहानी सुनी और उसे वह किरदार भाया। यह कहानी महज सेक्स वर्कर की नहीं, एक जुझारू महिला की है, जिसने गरिमा के साथ जिंदगी जी और दूसरी औरतों के लिए लड़ी।

प्रश्नः हुसैन ज़ैदी की मूल कहानी में आपने सिनेमैटिक लिबर्टी ली?

उत्तरः खास बदलाव नहीं किए, लेकिन गंगूबाई के धोखेबाज पति रमणीकलाल को ज्यादा फुटेज नहीं दिया। गंगूबाई पर हुए शारीरिक अत्याचार को भी महत्व नहीं दिया, मुझे उनकी आत्मा पर अब ज्यादा अत्याचार नहीं करने थे ! 

प्रश्नः आपकी हर फिल्म नायिका प्रधान होती है, कोई खास वजह?

उत्तरः मैं किरदार के हिसाब से अभिनेत्रियों का चुनाव करता हूं। मैंने बाजीराव के रोल के लिए सलमान खान, काशीबाई के लिए ऐश्वर्या और मस्तानी के लिए करीना कपूर को साइन किया था, लेकिन फिर इन किरदारों में बदलाव होते गए। एक वजह ऐश्वर्या और सलमान के संबंधों में खटास आना भी था। फिर मैंने बाजीराव के रोल में रणवीर सिंह को साइन किया। उस समय वे लेडीज वर्सेस रिकी बहल कर रहे थे। वह फिल्म तो नहीं चली, लेकिन बाजीराव ने रणवीर के कैरिअर को नयी बुलंदी पर पहुंचा दिया। हां, यह सचाई है कि मेरी हर फिल्म नायिका प्रधान होती है। आप फिल्मों का इतिहास देखिए- सत्यजीत रे, मेहबूब खान, के. आसिफ, गुरुदत्त, ऋत्विक घटक, राज कपूर, विजय आनंद जैसे सभी दिग्गज मेकर्स की फिल्मों के स्त्री पात्र बहुत सशक्त हैं। राज कपूर साहब ने अपने बेटे (ऋषि कपूर) को लॉन्च करने के लिए फिल्म बॉबी बनायी, जिसने डिंपल का कैरिअर बना दिया। दूसरे बेटे राजीव कपूर के लिए राम तेरी गंगा मैली बनायी, जिससे मंदाकिनी का कैरिअर चल निकला। विजय आनंद साहब ने गाइड बनायी, जो नायक प्रधान फिल्म थी, लेकिन उसमें रोजी यानी वहीदा रहमान का किरदार कोई नहीं भुला सकता।

प्रश्नः आपकी हर फिल्म में भव्य सेट्स बनाए जाते हैं। क्या आपको रियल लोकेशंस पर शूटिंग करना क्यों पसंद नहीं?

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उत्तरः मेरी फिल्म मनोरंजक, बायोपिक या ऐतिहासिक होती हैं। मैं दर्शकों को एंटरटेन करना चाहता हूं, लिहाजा भव्य सेट्स, आलीशान माहौल, खूबसूरत कॉस्ट्यूम के जरिये उन्हें सपनों की दुनिया की सैर कराता हूं। मेरी फिल्में दर्शकों के लिए ‘विजुअल ट्रीट’ होती हैं। पद्मावत, बाजीराव मस्तानी जैसी ऐतिहासिक फिल्म के लिए 500-600 साल पुराना माहौल कहां मिलेगा? गंगूबाई भी 1960 के दौर की कहानी है, तब का कामाठीपुरा अलग था। 2022 की मुंबई बहुत अलग है। रियल लोकेशन पर शूटिंग करना कैसे संभव था? मैं जब स्कूल में था और तब मुझे कामाठीपुरा जैसा दिखता था, मैंने अपनी फिल्म के लिए वैसा ही सेट तैयार किया। यह मेरे बचपन का नॉस्टैल्जिया है। जब कभी जरूरत पड़ी, तो रियल लोकेशन पर भी जरूर शूट करूंगा। 

प्रश्नः आपकी फिल्मों में संगीत की बड़ी भूमिका रहती है। अब तो गीतों का महत्व ही कम होता जा रहा है। क्या कहना चाहेंगे इस पर? 

उत्तरः मैं म्यूजिकल इंसान हूं। आज की पीढ़ी ईरानी, कोरियाई और पश्चिम की फिल्मों से प्रभावित है। वहां की फिल्मों में गानों की जगह नहीं होती, लेकिन यही एक बात बॉलीवुड को उनसे अलग करती है। हमारे यहां तो हर भाव के लिए गाना है। राज कपूर, मेहबूब खान, नौशाद साहब और शंकर जयकिशन के काम को किस आधार पर तौलेंगे? क्या उन्हें आप खारिज कर देंगे? मेरी फिल्में गानों के बिना नहीं बन सकतीं। गंगूबाई लिखते समय ही मेरे मन में झूमे रे गोरी... गाना आ गया था। जाहिर है, मुझे उसे फिल्माना ही था। मैं राज कपूर, विजय आनंद, के. आसिफ़, गुरु दत्त जैसे गाने शूट करना चाहता हूं। ऐसा काम ढूंढ़ रहा हूं जैसे मेरी जान... गाड़ी में शूट हुई थी, गुरु दत्त साहब एक बिस्तर पर पूरा गाना शूट कर लेते थे, जैसे विजय आनंद साहब दिल का भंवर... एक सीढ़ी में शूट कर लेते थे। जीनियस थे वे लोग। जब तक मुगले आजम का प्यार किया तो डरना क्या... जैसा गाना ना शूट कर लूं, मुझे तसल्ली नहीं मिलेगी। यही तो संगीत का जादू है।