Monday 17 July 2023 04:24 PM IST : By Pooja Samant

देवआनंद और राजेश खन्ना के साथ काम को ले कर अनुभवों पर क्या बोलीं आशा पारेख, यह भी जानें कि पहली फिल्म से किस वजह से आउट हो गयी थी यह अदाकारा

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सितंबर महीने की 30 तारीख को प्रख्यात अभिनेत्री आशा पारेख को फिल्म इंडस्ट्री का सर्वोच्च दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दिल्ली में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों दिया गया। आशा जी ने 2 अक्तूबर 2022 को 80 वर्ष की आयु पूरी की है, लेकिन वे आज भी पूरी तरह सक्रिय हैं, रियलिटी शोज में नजर आती हैं। वहीदा रहमान, हेलन जैसी करीबी दोस्तों के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताती हैं। मुंबई के जुहू स्थित उनके फ्लैट में उनसे मुलाकात हुई, तो कई मुद्दों पर बात हुई।

प्रश्नः आशा जी, क्या दादा साहेब पुरस्कार मिलने की उम्मीद थी आपको?

उत्तरः कोविड के कारण 2 वर्ष तक ये पुरस्कार वितरित नहीं हुए और जब यह पुरस्कार मुझे प्राप्त हुआ, तो सचमुच वे पल मेरे लिए सम्मानित महसूस करनेवाले थे। मैंने इस बारे में कभी नहीं सोचा था ! जब मुझे यह सूचना मिली, तब मैं बोस्टन में थी और मेरे पास पुरस्कार समारोह का आमंत्रण पहुंचा, तब भी मुझे यकीन नहीं था। खुशी तो है, साथ ही जिम्मेदारी का अहसास भी है। पुरस्कार किसी भी एक्टर का उत्तरदायित्व बढ़ा देते हैं।

प्रश्नः फिल्म इंडस्ट्री से आपको कैसा रिस्पॉन्स मिला?

उत्तरः जबर्दस्त...। 300 से ज्यादा तो वॉट्सऐप मैसेज ही आए। वहीदा रहमान और हेलन ने मुझे सम्मानित करने का मन बनाया और कहा कि मैं मेहमानों की लिस्ट तैयार करूं, ताकि एक समारोह हो सके। हालांकि मैं सिर्फ सहेलियों के साथ ही इस मोमेंट को सेलिब्रेट करना चाहती थी। बॉलीवुड ही नहीं, दक्षिण फिल्म इंडस्ट्री से महेश बाबू का भी एक बड़ा सा पत्र आया, बहुत से बुके भेजे साथियों-प्रशंसकों ने। यह सब पाकर गदगद हुई, अभिभूत हुई!

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प्रश्नः इतना लंबा समय आपने इस इंडस्ट्री में बिताया। आप फिल्मों में आयीं कैसे? हमारे पाठक यह जरूर जानना चाहेंगे।

उत्तरः मेरे पिता बच्चू भाई और मां सुधा बेन पारेख की मैं इकलौती संतान हूं, तो जाहिर सी बात है कि उनकी आंखों का तारा रही। हालांकि उन्होंने कभी लाड़-प्यार को हावी नहीं होने दिया मुझ पर, अनुशासन का पालन करने की हिदायत थी। वक्त पर सोने-जागने का नियम था घर में, कभी भी स्कूल का होमवर्क ना मिस करूं, इसका ध्यान रखा पेरेंट्स ने। बचपन में मुझे डांस करना भाता था, तो मां ने मुझे डांस स्कूल में भेजना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगी। फिर सोलो परफॉर्म करने लगी। एक बार स्टेज पर डांस करते देख नामचीन फिल्ममेकर बिमल रॉय ने मेरे पिता जी से रिक्वेस्ट की कि वे मुझे अपनी फिल्म बाप बेटी में लेना चाहते हैं। हालांकि यह फिल्म चली नहीं। इसके बाद एकाध फिल्में और कीं, मगर वे भी नहीं चलीं, तो मैं मायूस हो गयी और फिर से अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया।

प्रश्नः बतौर मुख्य अभिनेत्री कब फिल्मों में आयीं? किस तरह की चुनौतियां आपके सामने आयीं?

उत्तरः चुनौतियां तो बहुत रहीं। फिल्म गूंज उठी शहनाई का प्रस्ताव मेरे पास आया, सलेक्शन हुआ लेकिन फिल्म शुरू होते ही निर्देशक विजय भट्ट ने मुझे इस फिल्म से आउट कर दिया। यह जरूरी नहीं कि हर मेकर मेरे परफॉर्मेंस से संतुष्ट हो। विजय भट्ट ने हर मेकर से यह कहना शुरू किया कि मेरे पास स्क्रीन प्रेजेन्स नहीं है ! पता नहीं, इतना नकारात्मक प्रचार क्यों किया गया। मेरा कैरिअर शुरू होने से पहले ही खत्म होने के कगार पर था, लेकिन फिल्मालय स्टूडियो के सर्वेसर्वा और मशहूर फिल्ममेकर एस. मुखर्जी (काजोल के दादा जी) ने मुझे अपनी फिल्म दिल देके देखो में कास्ट करना चाहा। तब मैं 16 साल की थी। स्कूल खत्म हो चुका था और कॉलेज की तैयारी चल रही थी कि मेरे पास यह फिल्म आ गयी। फिल्म के लेखक नासिर हुसैन थे, निर्देशक जसवंत लाल जी ने मेरा स्क्रीन टेस्ट लिया, मेरा एक क्लोज अप उन्होंने मुखर्जी साहब और नासिर हुसैन को भेजा, जो दोनों को पसंद आया। अगले सप्ताह शम्मी कपूर का एक दिन फ्री था। तय हुआ कि इसी सप्ताह में एक शॉट साधना और एक शॉट मेरे साथ होगा। जो भी स्क्रीन पर शम्मी कपूर के साथ जंचेगा, उसे फाइनल कर लिया जाएगा। जब शम्मी आए, मैं वहां मौजूद थी लेकिन साधना आंखों की किसी तकलीफ के कारण नहीं आ सकीं। शम्मी के साथ पूरे दिन मेरी शूटिंग चली। मेरा काम, लुक, स्क्रीन प्रेजेंस नासिर हुसैन और एस मुखर्जी दोनों को पसंद आ गए। इस तरह मुझे अपने कैरिअर की पहली फिल्म दिल देके देखो मिली, जो सुपरहिट साबित हुई।

प्रश्नः आपकी फिल्में खूब चलती थीं। कहा जाता था कि आप अपने दौर की सबसे महंगी एक्ट्रेस थीं।

उत्तरः हां, यह बात सच है कि मेरी ज्यादातर फिल्मों ने सिल्वर-गोल्डन जुबली मनायी है। मेरी लगभग सभी फिल्में हिट रहीं। लेकिन फिल्म की सफलता में पूरी टीम का हाथ होता है। बस बात यह है कि निर्देशक, निर्माता और कलाकारों को श्रेय ज्यादा मिलता है। फिल्में चलीं, लेकिन मुझे नहीं पता कि मैं तब सबसे ज्यादा पैसा लेती थी या नहीं। हालांकि तमाम पत्र-पत्रिकाओं में मेरे कॉलम्स छपते थे। मेरी हेअर स्टाइल्स, डांस, अभिनय पर खूब लिखा जाता था। मैं स्टार तो बन चुकी थी।

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प्रश्नः जिंदगी के 80 साल पूरे करने के बाद आप अपने बारे में क्या सोचती हैं। कभी क्या पाया-क्या खोया, जैसी फीलिंग्स भी आयीं?

उत्तरः मुझे लगता है, मैंने खोया कुछ नहीं, सिर्फ पाया है। अब आगे की जिंदगी भी मुझे शांति-सुकून के साथ बितानी है। अभी पूरी दुनिया घूमनी है, अपने देश के कई ऐसे पर्यटन स्थल हैं, जहां जाने की इच्छा है। ढेर सारी किताबों की सूची है, जो पढ़नी हैं। सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रह सकूं, यह प्रयास है। पिछले कई वर्षों से मैं फिल्म इंडस्ट्री वेलफेयर फंड की अध्यक्ष हूं और फिल्म इंडस्ट्री के कई मेहनतकश वर्कर्स को इस वेलफेयर संस्था से लाभ हो, मेरी कोशिश यही रहेगी। हां, इस सफर में अपने माता-पिता को खोया, जिसका दर्द तो ताउम्र रहेगा। मां मेरी फ्रेंड, फिलॉसफर और गाइड थीं। मैं उन्हें ज्यादा वक्त नहीं दे सकी। अपने अस्पताल आशा पारेख हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के लिए चंदा एकत्र करने के लिए कई स्टेज शो करती थी, हॉस्पिटल का सेटअप तैयार करने में काफी वक्त मैनेजमेंट के साथ जाता था। साथ ही साथ फिल्मों की शूटिंग, स्क्रिप्ट रीडिंग, कॉस्ट्यूम ट्रायल्स भी होते। सुबह 8 बजे घर से निकलती, तो रात के 10 बजे घर में घुसती। मां कई बार कहतीं, ‘आशा घर क्यों आती हो? हॉस्पिटल में ही रहा करो !’ तब मां मुझे मिस करती थी, अब मैं उन्हें मिस करती हूं।

प्रश्नः जीवन में कभी निराशा से घिरीं, तो कैसे उबरीं?

उत्तरः कुछ घटनाओं से मैं आहत हुई। मैं सेंसर बोर्ड के लिए काम करती थी। जब कुछ फिल्मों को मैंने यू सर्टिफिकेट नहीं दिया, तो उनके मेकर्स खफा हुए। फिल्म इंडस्ट्री वेलफेयर ट्रस्ट के लिए काम करना भी कांटों भरी कुर्सी पर बैठने जैसा था। लेकिन अब उन घटनाओं को दोहराने का कोई लाभ नहीं। मैंने कई संस्थाओं के लिए दिन-रात काम किया। संस्था को फायदा हुआ, लेकिन मुझे क्रेडिट देना तो दूर, मेरा नाम तक नहीं लिया गया ! खैर... ऐसे कड़वे अनुभवों के बाद भी मैं फिल्म इंडस्ट्री के लिए काम करते रहना चाहूंगी। मलाल को दिल में नहीं, दिल के बाहर रख कर जीने में मजा है।

पिछले 2-3 वर्षों में कई उभरते कलाकारों, मॉडल्स, एक्टर्स की आत्महत्या की खबरों ने मुझे परेशान किया। निराशा से उबरने की कला सीखनी होगी। हर दिन एक जैसा नहीं हो सकता। जो कलाकार इंडस्ट्री में कैरिअर बनाने के लिए आते हैं, उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि सफलता चार दिन की चांदनी है, हमेशा नहीं टिकती। सफलता-विफलता को निरपेक्ष भाव में देखना सीखना चाहिए।

प्रश्नः आपने इंडस्ट्री के नामी हीरो देव आनंद, शम्मी कपूर, राजेश खन्ना, धर्मेंद्र, मनोज कुमार, जितेंद्र... के साथ काम किया। किन के साथ आपकी दोस्ती स्क्रीन के बाहर भी थी?

उत्तरः मेरे बहुत से रिश्ते आगे पारिवारिक बन गए। शम्मी कपूर के साथ फिल्मों में रोमांटिक जोड़ी बनती थी, जबकि असलियत में मैं उन्हें चाचू कहा करती थी। उनकी पत्नी नीला देवी को चाची कहती हूं। अब चाचू तो हैं नहीं, मगर नीला जी संपर्क में हैं। वे मेरा जन्मदिन कभी नहीं भूलतीं, हमेशा फोन करती हैं।

प्रश्नः देव आनंद और राजेश खन्ना से जुड़ी कुछ यादें साझा करना चाहेंगी?

उत्तरः देव साहब मस्तमौला शख्स थे। उनकी अपनी दुनिया थी। उन्हें अपनी पर्सनेलिटी और इमेज पर बड़ा नाज था। उनसे प्रोफेशनल रिश्ते थे। राजेश खन्ना तो मुझसे थोड़ा डरते थे, वैसे भी वे इंट्रोवर्ट थे। दरअसल उनकी डेब्यू फिल्म बहारों के सपने के लिए एक बड़ी अभिनेत्री को उनके अपोजिट साइन किया गया था, लेकिन उसने फिल्म करने से मना कर दिया। नासिर हुसैन जी ने मुझे कहा कि यह फिल्म तुम कर लो। मेरे पास डेट्स नहीं थीं, फिर नासिर साहब ने कहा, तुम्हारी डेट्स मैं एडजस्ट कर लूंगा, प्लीज फिल्म कर लो। उनके कहने पर मैंने यह फिल्म की। मैं तब स्थापित अभिनेत्री थी और काका डेब्यू कर रहे थे। चूंकि मैं सीनियर थी, तो थोड़ा लिहाज रखते थे वह।

प्रश्नः सुना है मनोज कुमार ने फिल्म दो बदन का क्लाइमेक्स चेंज किया था, क्या यह सच है?

उत्तरः जी ! राज खोसला निर्देशित फिल्म दो बदन 1966 में रिलीज हुई थी। मनोज कुमार मेरे अपोजिट थे। हुआ यों कि कहानी के एंड में हीरोइन (फिल्म में भी मेरा नाम आशा था) आशा की मौत होती है ! स्क्रिप्ट के हिसाब से मुझ पर डेथ का सीन राज खोसला जी ने शूट करवाया। मनोज सेट पर आए, तो उन्हें यह बात पता चली। वे नाराज हुए और बोले कि यह तो नाइंसाफी है ! हीरोइन को फिल्म में मार दिया, तो फिल्म कैसे चलेगी? हीरो को भी मारना होगा, तभी कहानी कन्विंसिंग लगेगी। तब दोबारा क्लाइमेक्स शूट किया गया। कहने की जरूरत नहीं कि फिल्म सुपरहिट थी।

प्रश्नः फिल्म इंडस्ट्री में पिछले 60 वर्षों में आए बदलावों के बारे में क्या सोचती हैं?

उत्तरः फिल्म इंडस्ट्री ने टेक्निकली बहुत प्रगति की है। चाहे मेकअप हो, एडिटिंग, म्यूजिक, वीएफएक्स कुछ भी हो। भारतीय फिल्मों ने दुनिया को दिखाया है कि हमारी फिल्में किसी भी तरह हॉलीवुड से कम नहीं है। बाहुबली, आरआरआर, ब्रह्मास्त्र कितने नाम लिए जा सकते हैं! एअरकंडीशंड स्टूडियोज आ चुके हैं, पहले गरमी में इनडोर स्टूडियोज में काम करना आसान नहीं था। पोशाक बदलना मुश्किल टास्क था। आउटडोर शूट में बाथरूम नहीं जा सकते थे, पेड़ों के पीछे कपडे़ बदलने पड़ते थे ! अब तो 20-25 सालों से वैनिटी वैन आ गयी हैं। सारे एक्टर्स शॉट दे कर वैन में बैठ जाते हैं। इस कारण कलाकारों की आपसी बॉण्डिंग कम हो गयी है। कमर्शियल माहौल बन चुका है। अभिनेत्रियां एक जैसी दिखती हैं। नेचुरल मेकअप होता है, लगभग एक जैसी हेअरस्टाइल होती है। कुछ अलग स्टाइल रेखांकित नहीं की जा सकती। फिर भी कुछ बदलाव अच्छे हैं, जैसे टेक्निकली फिल्में बहुत बेहतर हुई हैं।

प्रश्नः आप सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं आजकल?

उत्तरः मेरी मैनेजर ने मेरा इंस्टा अकाउंट खोला है, पर मुझे यह पसंद नहीं। मेरे समय में सोशल मीडिया नहीं था, फिर भी फिल्में चलती थीं ना ! मेरी मैनेजर अब पीछे पड़ी है ट्विटर अकाउंट खोलने के लिए, मैंने साफ मना कर दिया उसे !