Wednesday 05 July 2023 11:30 AM IST : By Sushma Tripathi

पंकज त्रिपाठीः मैं फौजियों के बीच काफी लोकप्रिय हूं

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कोविड महामारी के बाद हिंदी फिल्में लगातार बॉक्स ऑफिस पर धराशायी हो रही हैं। इतना ही नहीं, ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी दर्शक हिंदी फिल्मों से दूरी बनाने लगे हैं। इसके बावजूद हिंदी भाषी क्षेत्र बिहार के एक गांव से आने वाले अभिनेता पंकज त्रिपाठी अपनी सफलता का डंका ओटीटी के साथ-साथ सिनेमाघरों में भी लगातार बजा रहे हैं। उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार, फिल्मफेअर पुरस्कार, आइफा अवार्ड, स्क्रीन अवार्ड आदि से नवाजा जा चुका है। प्रस्तुत हैं पंकज त्रिपाठी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

प्रश्नः बचपन में खेतों में पिता का हाथ बंटाते-बंटाते अभिनेता कैसे बन गए?

उत्तरः मैंने अभिनय को नहीं चुना, बल्कि अभिनय ने मुझे चुना है। स्नातक तक की पढ़ाई करने तक मैं नहीं जानता था कि कभी मैं अभिनय करूंगा। वास्तव में मेरे गांव में छठ पूजा या कोई दूसरा त्योहार हो, तो उस दिन नाटक करने की परंपरा है। इस नाटक में गांव के लोग ही अभिनय किया करते हैं। एक बार यह हुआ कि नाटक में लड़की का किरदार निभानेवाला लड़का छठ के अवसर पर गांव नहीं पहुंच पाया, तब मैंने लड़की बन कर लौंडिया डांस किया था। यह नाटक तो मजाक में ही किया था, लेकिन हालात मुझे रंगमंच से जोड़ते गए और मैंने 1996 से 2001 तक पटना में रहते हुए नाटकों में अभिनय किया। फिर मैंने दिल्ली के नेशनल स्कूल आफ ड्रामा से ट्रेनिंग ली। ट्रेेनिंग पूरी होते ही मुझे घर बैठे फिल्म रन में छोटा सा किरदार निभाने का अवसर मिल गया था। फिर 16 अक्तूबर 2004 को मैं मुंबई आ गया और स्ट्रगल का दौर चला। ऑडीशन का संघर्ष फिल्म न्यूटन तक चला, लेकिन अब मेरा अभिनय कैरिअर सरपट दौड़ रहा है।

प्रश्नः अब आपका कैरिअर किस दिशा में जाता नजर आ रहा है?

उत्तरः अच्छी स्थितियां हैं, एक संतुलन बन रहा है। अब इस स्थिति में पहुंच गया हूं कि सही किरदार ना होने पर फिल्में मना कर देता हूं। पिछले दिनों मेरे पास एक फिल्म का ऑफर आया था। यदि मैं उस फिल्म को करने के लिए हामी भरता, तो अच्छे पैसे मिल जाते, पर मुझे कहानी व किरदार पसंद नहीं आया, अतः मना कर दिया। अब दर्शकों का मुझ पर जो भरोसा बना है, उसे टूटने नहीं दे सकता। अब तक के मेरे कैरिअर की खासियत रही है कि जिन फिल्मों में भी मैंने अभिनय किया, उनमें लोगों को मेरा काम पसंद आया। अब इसे आप मेरी तकदीर कहें या मेरा अपना अभिनय का तजुर्बा कहें या ईश्वर का आशीर्वाद कहें।

प्रश्नः क्या किसी किरदार ने जिंदगी पर असर किया?

उत्तरः फिल्म गुड़गांव के किरदार ने थोड़ा सा असर किया था। बहुत ही काॅम्पलेक्स किरदार था। इस फिल्म को करते हुए और उसके बाद भी 15 दिनों तक मैं परेशान रहा था।

प्रश्नः कहा जाता है कि आपको कमर्शियल सफलता ओटीटी से मिली?

उत्तरः जी हां ! मुझे कमर्शियल सफलता ओटीटी की वेबसीरीज मिर्जापुर से ही मिली। इसके बड़े-बड़े पोस्टर व होर्डिंग्स लगे, जिसमें मेरी तसवीर प्रमुखता से छायी रही। इसके बाद फिल्मों में स्त्री भी कमर्शियली सफल फिल्म रही। ओटीटी पर मिर्जापुर के बाद गुंजन सक्सेना, लूडो, कागज, मिमी सफल रहीं। ये सभी फिल्में ओटीटी पर देखी गयी टॉप फाइव में रहीं। डिज्नी हाॅट स्टार पर क्रिमिनल जस्टिस काफी लोकप्रिय है।

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प्रश्नः तो अब आप स्टार कलाकार बन गए हैं?

उत्तरः नहीं... मैं खुद को स्टार नहीं समझता और स्टार बनने की इच्छा भी नहीं है। मैं तो अपनी पहचान एक कलाकार के रूप में ही चाहता हूं। व्यस्तता बढ़ गयी है। अब आलम यह है कि पिछले 4 माह के अंदर मैंने 30 फिल्मों के ऑफर ठुकराए। अब मुझे अपनी पसंदीदा फिल्में चुनने का अवसर मिल रहा है। पर यह भी सच है कि कुछ अच्छी फिल्में शूटिंग की तारीखों की समस्या के चलते छोड़नी पड़ीं।

प्रश्नः वेबसीरीज मिर्जापुर ने ही आपको स्टार बना दिया था। अब तीसरा सीजन बन रहा है। कभी सोचा कि इसे क्यों सफलता मिली?

उत्तरः इसकी 2 ही वजहें हो सकती हैं- रिलेटीबिलिटी और मनोरंजन। जब दर्शक किसी किरदार से रिलेट करता है या उसकी भावनाओं को समझता है और मनोरंजन पाता है, तभी दर्शक उसे देखना पसंद करता है। मुझे लगता है कि रिलेटीबिलिटी और मनोरंजन ही फैक्टर रहा होगा।

प्रश्नः ओटीटी से सिनेमा को फायदा होगा या नुकसान?

उत्तरः नुकसान नहीं होगा। वेबसीरीज में कंटेंट पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है, क्योंकि बटन दर्शक के हाथ में है। उसे पसंद नहीं आएगा, तो तुरंत बंद कर देगा। जबकि सिनेमा हॉल में टिकट खरीद कर पहुंच गए, तो बात खत्म।

प्रश्नः आपके अनुसार ओटीटी की ताकत क्या है?

उत्तरः ओटीटी की ताकत यह है कि स्कॉटलैंड के गांव में बैठा हुआ इंसान भी फिल्म/ कंटेंट देख सकता है। पिछले दिनों मैं लेह में था, जहां सियाचीन की बटालियन आती-जाती है। उस वक्त तक सियाचीन में इंटरनेट नहीं था, तो उन सैनिकों ने बताया था कि वे यहां से कंटेंट अपने मोबाइल पर डाउनलोड करके ले जाते हैं। वहां पर एक यूनिट 3 माह रहती है, तो उन दिनों में कंटेंट देखने के लिए ले जाते हैं। उन्होंने बताया कि वे मोबाइल पर हमारा कंटेंट काफी देखते हैं, तो मुझे पता चला कि मैं फौजियों के बीच काफी लोकप्रिय हूं। मैं जब एअरपोर्ट पर जाता हूं, तो सीआईएसएफ वाले भी बताते हैं कि मैं उनके बीच काफी लोकप्रिय हूं।

प्रश्नः आपको नहीं लगता कि सोशल मीडिया से कलाकार और सिनेमा दोनों को नुकसान हो रहा है?

उत्तरः सोशल मीडिया दोधारी तलवार है। इसके फायदे व नुकसान दोनों हैं। यदि इसका रचनात्मक उपयोग किया जाए, तो यह शानदार प्लेटफाॅर्म है। पर यह भी सच है कि सोशल मीडिया पर भ्रम और झूठ भी बहुत तेज गति से प्रसारित होता है। तो गलत उपयोग भी होता है।

प्रश्नः अब आप किस तरह की फिल्में करने को प्राथमिकता दे रहे हैं?

उत्तरः अब मैं यथार्थवादी कहानी वाली फिल्मों को प्राथमिकता देता हूं। लेकिन साथ ही साथ कलाकार और कहानीकार के लिए बहुत बड़ी शक्ति एक अभिनेता की कल्पना है। हम इसका इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि अगर कहानी सुनाने में हम कल्पना का उपयोग नहीं करेंगे, तो फिर उस कहानी में मजा भी नहीं आएगा। अगर आपके अंदर कल्पनाशीलता अच्छी है, तो उसका असर यथार्थ से भी कहीं ज्यादा हो सकता है।

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प्रश्नः अभिनय में सबसे ज्यादा मदद किससे मिलती है?

उत्तरः जिंदगी के अनुभवों से। मैंने तो अपने जीवन के 25 वर्ष गांव और बाकी के 23 वर्ष दिल्ली व मुंबई जैसे महानगरों में गुजारे हैं। मैं एक ऐसा कलाकार हूं, जिसने दसवीं कक्षा की पढ़ाई तक खेतों में भी काम किया है। मेरे गांव में बिजली नहीं थी। जब मैंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई शुरू की, तब मेरे गांव में बिजली आयी। मैं इकलौता कलाकार हूं, जिसने गांव की नदी में तैरना सीखा। इन अनुभवों की वजह से ही मेरे अंदर कल्पनाशक्ति भी सबसे अधिक है।

प्रश्नः इन दिनों नया क्या कर रहे हैं?

उत्तरः फुकरे 3 और मिर्जापुर 3 की शूटिंग खत्म की है। जल्द ही एक नयी फिल्म व एक नयी वेबसीरीज की शूटिंग करूंगा। इसी साल पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेयी की बायोपिक फिल्म की शूटिंग शुरू करूंगा।