सारा अली खान अभिनीत फिल्म अतरंगी रे दिसंबर में रिलीज हो चुकी है। इसमें सारा अली के अपोजिट अक्षय कुमार और साउथ सुपर स्टार धनुष मुख्य भूमिकाओं में थे। उनकी आने वाली फिल्मों में नखरे वाली और अश्वथामा प्रमुख हैं। सारा की कई सारी विशेषताएं हैं- खूबसूरती और प्रतिभा के साथ सारा बहुत ही जिंदादिल, हंसमुख और उतनी ही बातूनी भी हैं। सारा जैसे कलाकार बहुत कम नजर आते हैं, जो फर्राटेदार अंग्रेजी के साथ हिंदी भी अच्छा बोलते हैं।
प्रस्तुत हैं सारा अली खान के साथ हुई बातचीत के मुख्य अंश-
प्रश्नः आपकी फिल्म अतरंगी रे रिलीज हो चुकी है, आपने बिहार की युवती रिंकू का किरदार निभाया है। किस तरह की प्रैक्टिस की आपने रिंकू बनने के लिए?
उत्तरः मेरी दादी (अभिनेत्री शर्मिला टैगोर) का निक नेम था रिंकू। उनका विवाह मेरे दादा जी मंसूर अली खान से होने के बाद उनका नाम बेगम आयशा सुलताना खान हुआ, जबकि फिल्मों के लिए नाम शर्मिला हुआ। जब मुझे अतरंगी रे फिल्म का ऑफर आनंद राय जी ने दिया और कहा कि मेरे किरदार का नाम रिंकू है, जो बिहार की है, तो मुझे खुशी हुई। मेरी फिल्म केदारनाथ में मेरे ऑनस्क्रीन हीरो (सुशांत सिंह राजपूत) का नाम मंसूर था, जो मेरे दादा (मंसूर अली खान पटौदी) का नाम है। जहां तक बिहार की युवती का प्रश्न है, मुझे बिहार के लोग जिस तरह बोलते हैं, वैसे टोन में बोलने की प्रैक्टिस करनी पड़ी।
प्रश्नः क्या सारा अली खान और आपके किरदार रिंकू में कोई समानता या फर्क है?
उत्तरः सारा अली खान और किरदार रिंकू की दुनिया बहुत अलग है। रिंकू हमेशा बगावत पर उतर आती है, जबकि मेरी दुनिया में बहुत सपोर्ट है, अम्मी मेरे जीवन का सबसे बड़ा पिलर हैं, डैड और मेरा भाई इब्राहिम हैं, मैं दादी के भी बहुत करीब हूं। रिंकू बिहार से है, मैं मुंबई की हूं। हम दोनों की दुनिया पूरी तरह से अलग है। जहां तक रिंकू और सारा में समानता की बात है, हम दोनों में गजब का बिंदासपन है और उतना ही कॉन्फिडेंस भी !
प्रश्नः आपकी डेब्यू फिल्म केदारनाथ 2018 में रिलीज हुई थी। आपके कैरिअर को 4 वर्ष हुए, खुद में क्या बदलाव देखती हैं आप?
उत्तरः मेरी पहली फिल्म केदारनाथ से ही मैं बहुत ईमानदारी, शिद्दत, चाहत से काम कर रही हूं। वह जज्बा 4 साल बाद भी कायम है, माशाल्लाह हमेशा रहेगा। बस जैसे-जैसे मैं उम्र, कैरिअर में आगे बढ़ रही हूं, खुद में संतुलन लाने की कोशिश कर रही हूं। मेरा निभाया हर किरदार खास बने, उसके लिए मैं भरसक प्रयास करती हूं।

प्रश्नः आपके माता-पिता, दादी सभी अभिनय से जुड़े हैं। क्या किसी ने आपको अपने स्वभाव में परिवर्तन लाने के लिए नसीहत दी?
उत्तरः जब तक मैं परिवार में, अपनों में, दोस्तों में बातूनी थी, किसी ने ध्यान नहीं दिया। लेकिन अब मुझे लगता है कि मुझे खुद में संतुलन लाना होगा। अभी घर वालों को अंदाजा नहीं कि मैं मेरे वर्किंग प्लेस पर कितना मस्ती-मजाक करती हूं !
प्रश्नः आप अपनी डेब्यू फिल्म से ही स्टारडम की सीढि़यां चढ़ गयीं, अब स्टारडम को आप किस तरह लेती हैं?
उत्तरः मैंने अपने बचपन से स्टारडम देखा है। सच तो यह है कि मैं खुद के स्टारडम को कभी महसूस ही नहीं कर सकी। मैं खुद को सामान्य युवती मानती हूं, मैं बस अभिनेत्री हूं और क्या ! मेरे पेरेंट्स और दादी का जमाना कुछ और था, जब सोशल मीडिया मौजूद नहीं था, आजकल सोशल मीडिया के जरिये स्टार्स के अपडेट्स पता चलते हैं सभी को। लिहाजा स्टारडम मायने नहीं रखता। स्टारडम पाना मेरी कभी एस्पिरेशन भी नहीं रही।
प्रश्नः क्या सफलता और असफलता के चलते फिल्म इंडस्ट्री के मापदंड बदल जाते हैं?
उत्तरः सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं, यह सफलता-असफलता का खेल हर क्षेत्र में मौजूद है, तभी तो उगते सूरज को सलाम वाली कहावत सार्थक हुई। केदारनाथ रिलीज होने से पहले जो मेकर्स मुझे आजमा रहे थे, उनका मेरे प्रति नजरिया केदारनाथ की सफलता के बाद बदल गया। मेरी पहली फिल्म से पहले मैं उनके लिए बंद मुट्ठी थी, जाहिर सी बात है मेरे प्रति उनका नजरिया भिन्न था। अगर मेरी केदारनाथ,सिम्बा, लव आजकल और कुली नंबर वन नहीं चलती, तो क्या आप मेरा इंटरव्यू करती? मीडिया और जनता दोनों की निगाहें बदल जाती हैं, कोई हमें नजरअंदाज करे, तो दिल पर लग जाती है !
प्रश्नः दादी, मम्मी-डैडी से आपने सफलता-विफलता को किस तरह स्वीकारना सीखा?
उत्तरः मम्मी ने सिखाया कि अगर तुम्हारी फिल्म फ्लॉप होती है, तो आंखों से आंसू ना गिराओ और फिल्म हिट होते ही बदलना नहीं। दादी का कहना है कि अभिनय की आग कायम रखना, कभी कोई फिल्म का अभिनय बेमन से नहीं करो। डैड कहते हैं, यह ध्यान रखो कि लोगों को क्या अच्छा लगता है और यह भी नहीं भूलना कि उन्हें क्या अच्छा नहीं लगता ! मेरे डैड ने लाइन से 17 फ्लॉप फिल्में दीं और 18वीं फिल्म की सफलता के बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा ! मैंने अपने परिवार के मेंबर्स से सीखा है कि कभी हार ना मानो !
प्रश्नः आपके माता-पिता के बीच काफी पहले अलगाव हुआ। क्या सीखा इस अलगाव से आपने? आपने पिता को कितना मिस किया?
उत्तरः मेरे मॉम-डैड में अलगाव काफी पहले हुआ। मैं और इब्राहिम तब काफी छोटे थे। शायद ये दोनों एक-दूसरे के लिए नहीं बने थे ! खैर,मेरी अम्मी बड़ी हिम्मत वाली हैं, जो उन्होंने हम दोनों को अकेले संभाला है। डैड ने उनकी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ा। डैडी और हम सभी चूंकि मुंबई से हैं, लिहाजा उनका साथ मिलता रहा। हम दोनों दादी के भी टच में रहे हैं, कभी उनके साथ दिल्ली में भी रहे हैं।
प्रश्नः कोविड महामारी से क्या पाठ पढ़ा आपने?

उत्तरः जान है तो जहान है, यही सीखा हम सभी ने ! इस महामारी ने गरीब और अमीर में कोई भेदभाव नहीं रखा। बस, खुद का और अपनों के स्वास्थ्य का खयाल हमेशा रखना होगा। जिंदगी में खुशियां पाने के लिए हवाई जहाज से घूमना, फाइव स्टार में खाना खाना, पार्टियां करना जरूरी नहीं, बल्कि अपने करीबी दोस्तों के साथ चाय के ठेले पर कटिंग चाय और खूब गप्पें मारने में भी बहुत खुशियां मिलती हैं, जिंदगी जीने के लिए खुशियां निहायत जरूरी हैं।
प्रश्नः आपके लिए पसंदीदा परिधान क्या हैं?
उत्तरः सिर्फ इंडियन परिधान ! खासकर कुरता और सलवार ! मैं इन कपड़ों में सबसे ज्यादा खुश और कंफर्टेबल महसूस करती हूं। हालांकि मेरे किरदार के अनुसार मुझे स्क्रीन पर हर तरह के फैंसी कपड़े पहनने पड़ते हैं। फैशन में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं ऐसा फैशन करने में यकीन करती हूं, जो मुझे कंफर्ट दे।
प्रश्नः आपका लकी कलर?
उत्तरः आपने शायद यह बात नोटिस नहीं की होगी कि जब भी मैं फिल्म की ऑडिशन देती हूं, किसी मेकर से मिलने जाती हूं, तो वाइट सलवार-कमीज पहन कर जाती हूं। सिम्बा फिल्म के लिए मैं निर्देशक रोहित शेट्टी से मिलने वाइट सलवार-कुरते में गयी थी और सिम्बा फिल्म मुझे मिली। ऐसा ही अतरंगी रे फिल्म के समय हुआ। वाइट कलर मुझे एनर्जी देता है।
प्रश्नः आपकी प्रिय एक्सेसरी?
उत्तरः अम्मी ने मुझे एक ताबीज पहनाया था, अम्मी के प्रति मेरा प्यार और श्रद्धा है, इसे मैं पहने रखती हूं। बाकी मुझे एक्सेसरीज में खास दिलचस्पी नहीं।
प्रश्नः आपका प्रिय व्यंजन?
उत्तरः सरसों का साग और मक्के दी रोटी, चॉकलेट सुफले।