Thursday 10 December 2020 04:21 PM IST : By Pallavi Pundir

मेरी आरुणि (भाग-4)

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शाम के 8 ही बजे थे, लेकिन लग रहा था कि आज की रात कभी खत्म नहीं होगी। जंगल के बीचोंबीच इस बंगले तक पहुंचने में डॉक्टर और एंबुलेंस को बहुत समय लग गया। घाव अधिक गहरा नहीं था। इसलिए रवि को अस्पताल ले जाने की जरूरत नहीं पड़ी। पुलिस भी आयी। जब यह घटना घटी, उस समय कमरे में रवि के साथ स्वर्णा भी थी। स्वर्णा का कोई पुराना दोस्त पहले से उस कमरे में छुपा हुआ उनका इंतजार कर रहा था। मौका मिलते ही उसने रवि पर हमला किया और भाग खड़ा हुआ। जब स्वर्णा ने पुलिस को उसका हुलिया बताया, तब मृणाल की आंखों के सामने कुछ समय पहले टकराए उस आदमी का चेहरा घूम गया। पुलिस ने मृणाल का भी बयान लिया। पुलिस इस घटना को अरुणिमा वाले हादसे के साथ जोड़ कर देख रही थी। सभी औपचारिकताएं निबटाते-निबटाते काफी रात हो गयी। उस रात घर में किसी ने भी डिनर नहीं किया। मृणाल भी जब देर रात कमरे में लौटा, उसे बिस्तर पर गिरते ही नींद आ गयी।

बाहर बारिश नहीं हो रही थी। लेकिन रह-रह कर बिजली चमक उठती और गड़गड़ा कर बादल गरजते। तेज हवा के कारण कमरे की खिड़कियां लगातार आवाज करने लगीं। इस शोर ने मृणाल को जगा दिया। मृणाल की आंखें ज्यों ही खुली कि अचानक बिजली चली गयी। बाहर के लैंपपोस्ट से कमरे में आने पीली रोशनी के बंद होते ही गहरा अंधेरा हो गया।

छन्न-छन्न-छन्न, छन्न-छन्न-छन्न, मृणाल को लगा कि छत से घुंघरुओं को आवाज आयी हो। टैरेस के ठीक नीचे होने के कारण इस कमरे में कई तरह की आवाजें आना सामान्य बात थी। लेकिन इतनी रात को घुंघरू पहन कर कौन घूम रहा होगा। फिर मृणाल को पिछली रात की बात याद आ गयी। उसने तुरंत अपने हाथ पर चिकोटी काटी और दर्द से कराह उठा। इस बात से यह तो साफ हो गया कि वह सपना नहीं देख रहा। उसने टेबल पर हाथ टटोल कर अपना लाइटर उठा लिया। लाइटर की रोशनी को छत की तरफ किया कि तभी फिर छन्न-छन्न-छन्न की आवाज आयी। बिना एक पल गंवाए मृणाल ने अपनी जैकेट पहनी और ऊपर की तरफ चल दिया।

टैरेस का दरवाजा खोलते ही मृणाल की नजर अरुंधती पर पड़ी और वह चौंक उठा। वह टैरेस की दीवार से पीठ टिकाए, अपने एक पैर को दूसरे पैर पर चढ़ा कर पतली रेलिंग पर बैठी आकाश को निहार रही थी। उसके लंबे बाल हवा में लहराते और अंधेरे में खो जाते। पैरों में बंधे घुंघरू रह-रह कर बज उठते। मृणाल दबे कदमों से चल कर उसके पास खड़ा हो गया। उसे डर था कि कहीं उसके कदमों की आहट से अरुंधती चौंक पड़ी, तो नीचे गिर सकती है। अरुंधती ने उसकी तरफ देखा भी नहीं।

मृणाल कुछ कहने को हुआ कि वह बोल पड़ी, “वह यहां से ही गिरी थी। वह तड़पती रही और उसके पैरों के घुंघरू बजते रहे!” इतना कहते ही उसने अपना पैर उठाया और जमीन पर धीरे से पटका। छन्न-छन्न की आवाज फिर गूंज गयी। “इस तरह हिल-हिल कर बैठोगी, तो नीचे गिर जाओगी!”

“फिर क्या होगा!”

मृणाल माहौल को हल्का करते हुए बोला, “हड्डी-पसली टूट जाएगी।”

“जैसे उसकी टूट गयी थी!” यह सुन कर मृणाल कुछ बोल ही नहीं पाया। बोलता भी क्या!

अरुंधती ने मृणाल का हाथ पकड़ कर और उसे अपनी तरफ खींच लिया। मृणाल को वहां एक अजीब सी कंपकपी महसूस हुई। कल्पा का तो मौसम ही ठंडा है। लेकिन इस कोने की ठंड कुछ अलग थी।

वह बोली, “हड्डियों में ठंड महसूस हुई?” मृणाल ने बिना कुछ बोले ‘हां’ में सिर हिला दिया।

“मेरे पास आओ, मृणाल!” मृणाल बिना कुछ बोले उसके करीब चला आया। वह फिर बोली, “और पास!” मृणाल उसके करीब गया और उसे अपनी बांहों में भर कर रेलिंग से नीचे उतार लिया।

“मिस्टर मृणाल, आप इस समय यहां क्या कर रहे हैं!” रात की खामोशी में रानी मां की गंभीर आवाज तेज लगी। रानी मां को वहां देख कर मृणाल थोड़ा असहज हुआ, लेकिन अरुंधती को जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ा। वह मृणाल के गालों को छू कर बोली, “मेरे घुंघरू उतार दो प्लीज! अरुंधती अब सोएगी!” मृणाल ने रानी मां की तरफ देखा। वे कुछ बोलीं तो नहीं पर उनकी आंखों में गुस्सा उतर आया। मृणाल ने झुक कर अरुंधती के पैरों से घुंघरू खोल दिए। घुंघरू खोलते ही अरुंधती जैसे नींद से जागी। बोली, “थैंक्स मृणाल!” फिर रानी मां की तरफ पलट कर बोली, “आई एम सॉरी नानी मां, आज फिर आपकी नींद खराब कर दी।”

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“तुम्हें समय का कुछ ख्याल भी है! तुरंत नीचे चलो!” रानी मां की आवाज गुस्से से कांप गयी।

उन दोनों के जाने के बाद मृणाल भी अपने कमरे में आ कर सो गया। लेकिन अरुंधती का चेहरा सपने में भी उसका पीछा करता रहा। अगले दो दिन तक अरुंधती उसके सामने नहीं आयी। मृणाल का मन उसे देखने के लिए बेचैन हुआ, लेकिन उसने किसी से कुछ नहीं पूछा। वह अपना काम करता रहा। तीसरे दिन जब मृणाल अपने कमरे में बैठा पोट्रेट पर काम कर रहा था, तभी घर की नौकरानी ने आ कर उसे बताया कि अरुंधती लॉन में उसका इंतजार कर रही है। लॉन में ही पोट्रेट बनाने का सब इंतजाम हो गया। ना अरुंधती ने कुछ कहा और ना ही मृणाल कुछ बोला। वह चुपचाप अपना काम करता रहा। अरुंधती भी उसे एकटक देखती रही।

थोड़ी देर बाद वह बोली, “तुम कुछ पूछोगे नहीं!”

अरुंधती की आवाज पर मृणाल ब्रश नीचे रखते हुए बोला, “क्या?”

“यही कि मैं उस रात छत पर क्या कर रही थी?”

“मैं जानता हूं!”

“क्या जानते हो?”

“तुम मुझे डराने के लिए कत्थक कर रही थी।”

“तो तुम डरे?”

“हां भी और ना भी!”

“मतलब?”

“अब इतनी सुंदर चुड़ैल के हाथ से मरना कितनों को नसीब होता है।” उसके इतना कहते ही अरुंधती जोर से हंस पड़ी। मृणाल ने पहली बार अरुंधती को इतना हंसते देखा। वह अपलक उसे देखता रह गया।

“क्या देख रहे हो?”

अरुंधती के सवाल पर मृणाल बोला, “यही कि तुम कौन हो!”

“और क्या पता चला?”

“तुम एक पहेली हो, जिसको सुलझाने में मैं खुद उलझता जा रहा हूं!” मृणाल की नजरों को खुद पर टिकी देख कर बात बदलने की लिहाज से अरुंधती बोली, “क्या वे घुंघरू तुम्हारे पास हैं?”

“हां!”

“थैंक गॉड! मैं तो डर ही गयी थी!”

“डर क्यों गयी?”

“मुझे लगा, मैंने उन्हें खो दिया!”

मृणाल ने पूछा, “तो तुम डांसर हो?”

“मैं नहीं। अरुणिमा भरतनाट्यम की ट्रेंड डांसर थी। मैं तो बस कभी-कभी यों ही!”

अरुंधती का उदास चेहरा देख कर मृणाल ने बात बदली, “इसका मतलब दोनों बहनों की पसंद एक है।”

“शाबाश मृणाल!” अचानक आयी स्वर्णा की आवाज ने मृणाल और अरुंधती दोनों को हैरत में डाल दिया। वह ताली बजाती सामने आ कर खड़ी हो गयी। मृणाल ने कंधे उचका कर स्वर्णा से इसका कारण पूछा।

वह बोली, “तुमने ठीक पहचाना, दोनों बहनों की पसंद एक ही है और उस पसंद का नाम है, शांतनु!”

“मां!” अरुंधती चीख पड़ी। मृणाल की स्थिति उस समय अजीब हो गयी। वह बस दोनों मां-बेटी को देखता रह गया।

“डोंट शाउट ऑन मी। तुम्हें क्या लगा कि यह बात सिर्फ तुम्हें पता है! यू सिली गर्ल। यह बात मुझे भी पता थी!” फिर थोड़ा रुक कर मृणाल की तरफ मुड़ कर बोली, “यू नो मृणाल, मुझे वह लड़का शांतनु कभी पसंद नहीं आया। उसके पास पैसा बहुत है, लेकिन कैरेक्टर नहीं है। असल में, ही इज ए क्रुक। एक बहन से शादी, तो दूसरी से अफेयर। मैंने तो रानी मां को इस शादी के लिए मना भी किया था। पर मेरी सुनता कौन है? अब भुगतो!”

इससे अधिक अरुंधती नहीं सुन पायी। अपनी मां का हाथ पकड़ कर खींचते हुए बोली, “जिंदा लोगों की इज्जत तो आपने कभी नहीं रखी। कम से कम अपनी मरी हुई बेटी की इज्जत तो मत उछालिए। शांतनु और अरुणिमा के बीच कुछ नहीं था।” स्वर्णा अपने दोनों हाथ मृणाल की गरदन में डाल कर बोली, “हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन, दिल बहलाने को गालिब ये ख्याल अच्छा है!” और फिर बिना जवाब का इंतजार किए वहां से निकल गयी।

स्वर्णा के जाने के कुछ देर बाद तक अरुंधती रोती रही। मृणाल ने भी उसे रोने दिया। आंसू बड़े से बड़े घाव का दर्द कम कर देते हैं। मृणाल उसके पास खड़ा आंसुओं के थमने का इंतजार करता रहा। थोड़ी देर बाद जब वह चुप हुई तब भी मृणाल ने बस इतना कहा, “कॉफी पिओगी अरुंधती?” उसके इस मासूम सवाल का जवाब अरुंधती ने भी मुस्करा कर दिया। थोड़ी देर बाद दोनों मृणाल के कमरे की बालकनी में बैठे गरम कॉफी और ठंडे मौसम के साथ एक-दूसरे की कंपनी एंजॉय कर रहे थे।

अरुंधती बोली, “इस कमरे को अरुणिमा यूज करती थी?”

“अच्छा, तो यह उसका कमरा था?”

“नहीं-नहीं। उसका कमरा तो दूसरा था। लेकिन वह इस कमरे में रहना अधिक पसंद करती थी। जंगल में घूम-घूम कर पेंटिंग बनाती रहती। फिर बिना किसी को कुछ बताए चुपके-चुपके सीढ़ियों से ऊपर आ जाती। किसी को पता ही नहीं चलता कि वह कब आयी और कब गयी। उसे अपने में गुम रहना पसंद था।”

बोलते-बोलते अरुंधती की आवाज कांप गयी, जिसे मृणाल ने भी महसूस किया। बोला, “तुम मुझे डरा तो नहीं रही?”

“ऐसा कोई इरादा तो नहीं था!”

“फिर यह बात क्यों बतायी। कहीं फिर छन्न-छन्न बजा कर डराने का इरादा तो नहीं है? है तो बता दो। मैं लॉन में टेंट लगा कर रह लूंगा, पर यहां नहीं सोऊंगा!”

अरुंधती को तेज हंसी आ गयी। बोली, “तुम रूहों पर भरोसा करते हो?”

“अब तक तो नहीं करता था। पर तुमसे मिलने के बाद लगता है, जल्दी ही करने लगूंगा!”

“मृणाल, तुम भी ना!”

“मैं भी क्या?” मृणाल ने अरुंधती की आँखों में झांका, तो वहां चाहत दिखाई पड़ी।

वह बोला, “तुम अगर बुरा ना मानो, तो एक बात पूछूं?”

“पूछो?”

“तुम शांतनु से प्यार करती हो?”

“नहीं जानती!”

“तो शादी क्यों कर रही हो?”

“तुम सवाल बहुत करते हो?”

“तुम जवाब जो नहीं देती!”

वह अचानक खड़ी हो कर बोली, “चलो, तुम्हें अपना कमरा दिखाऊं।” मृणाल समझ गया कि वह जवाब नहीं देना चाह रही। इसके बाद फिर उसने भी कुछ नहीं पूछा। बस इतना बोला, “तो फिर क्या हम क्या दोस्त हो गए?” अरुंधती अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए बोली, “नाऊ वी आर फ्रेंड्स!”

मृणाल ने अपना हाथ बढ़ा कर फिर पीछे कर लिया और बोला, “पहले ठीक से सोच लो। तुम्हारा कोई भरोसा नहीं है!” अरुंधती उसका पीछे गया हाथ अपनी तरफ खींचते हुए बोली, “जो कह दिया, समझो पत्थर की लकीर!” उसके इतना कहते ही दोनों एक साथ हंस पड़े। अरुंधती ने उसे चलने का इशारा किया और मृणाल उसके साथ चल पड़ा।

अरुंधती का कमरा टैरेस के सामने था। कमरे के पास पहुंच कर उसने दरवाजा खोलने के लिए ज्यों ही हाथ बढ़ाया, तो देखा कि कमरा पहले से ही खुला हुआ है। अरुंधती थोड़ी हैरान हुई, क्योंकि उसके कमरे का दरवाजा हमेशा बंद रहता है। कमरे में अंदर घुसते ही उसने लाइट जलाने के लिए स्विच पर हाथ रखा, तो कुछ गीला सा महसूस हुआ। कमरे की लाइट नहीं जली, लेकिन बरामदे में रोशनी थी।

मृणाल ने पूछा, “क्या हुआ?”

“शायद फ्यूज की प्रॉब्लम होगी।’’

“हां, वह मैं समझ गया। पर तुम अपने हाथ ऐसे क्यों देख रही हो?”

“स्विच पर कुछ गीला सा था, जो मेरी उंगलियों पर लग गया है!”

मृणाल बोला, “बाहर चलो जरा!”

बरामदे में आ कर अपना हाथ देखते ही अरुंधती डर गयी। उसकी उंगलियों पर खून लगा हुआ था। तुरंत मृणाल और अरुंधती पीछे पलटे। बरामदे की धुंधली रोशनी में कमरे का नजारा देखते ही उनकी हालत खराब हो गयी। कमरे के अंदर छत की कुंडी में फंदे से लटकती एक लाश दिखी।

रवि के हमलावर को मृणाल ने देख तो लिया था, पर वह पुलिस को कुछ बताने में नाकामयाब रहा। उधर स्वर्णा ने अरुणिमा पर जो इल्जाम लगाया, वह अरुंधती को बर्दाश्त नहीं हुअा। क्या वाकई अरुणिमा शांतनु को चाहती थी, जिस वजह से उसकी जान गयी ? और किसकी थी वह लाश, जो अरुंधती के कमरे से लटकी हुई मिली थी ?

इन सारे सवालों के जवाब मिलेंगे अगली किस्त में