नूरजहां जहां सोलर लालटेन किराए पर दे कर घरों को रोशन कर रही हैं, वहीं गुड़िया सोलर मेकेनिक बन कर उसे संजोने का काम कर रही हैं। उनके घर के एकदम बगल में सोलर कम्युनिटी रेडियो स्टेशन है। कानपुर के मैथा ब्लॉक के गांव बैरी दरियाव में नूरजहां जैसी 41 महिलाएं हैं।
सोलर मेकेनिक गुड़िया
मिलिए, बीए पास सोलर दीदी गुड़िया से, जो सोलर मेकेनिक हैं। वे अपने मेकेनिक बनने का श्रेय श्रमिक भारतीय संस्था को देती हैं, जिन्होंने उनको सोलर मेकेनिक की ट्रेनिंग करायी और शॉप भी दी है। किसी महिला के मेकेनिक होने की बात शहरों में कल्पना से परे हैं, गुड़िया तो गांवों में घूम-घूम कर लोगों की सोलर लाइट ठीक करती है। इधर फोन आया, उधर अपनी स्कूटी पर सवार हो कर वे निकल जाती हैं, मीलों दूर। सोलर लाइट का 2420 रुपए का पूरा सेट होता है, जिसमें 1 कंट्रोलर, 10 वॉट का पैनल, 2 बल्ब और एक मोबाइल चार्जर होता है। गुड़िया को गांव कनेक्शन फाउंडेशन द्वारा स्वयं अवॉर्ड से नवाजा गया, जिसमें उन्हें 5 लाख रुपये का चैक भी मिला है।
पहला सोलर रेडियो स्टेशन
वक्त की आवाज यूपी का पहला रेडियो स्टेशन है, जो सोलर एनर्जी से चलता है। कानपुर की रहनेवाली राधा शुक्ला कोऑर्डिनेटर के तौर पर इससे शुरू से जुड़ी हुई हैं। श्रमिक भारती के संयोजक राकेश कुमार पांडेय का यह सपना था कि गांव वालों के लिए एक कम्युनिटी रेडियो स्टेशन बनाया जाए। इसका कोई प्रोजेक्ट भी नहीं था।
जब उन्होंने राधा से इस पर काम शुरू करने को कहा, तो शुरू में तो उन्हें लगा कि चूंकि इस काम की कोई जानकारी नहीं है, इसलिए वे इसे कैसे कर पाएंगी। लेकिन राकेश कुमार को उनकी संवाद करने की क्षमता पर पूरा भरोसा था, इसीलिए उन्होंने राधा को ही इसकी जिम्मेदारी दी। राधा ने बताया, ‘‘हमने शुरूआत नेरो कास्टिंग से की। हमारे पास ब्रॉडकास्टिंग के लिए कुछ नहीं था, कोई टावर नहीं था। कोई ट्रांसमीटर तक नहीं था। तब हमने एक स्कूल में कमरा लिया और वहां एग ट्रे लगा कर उसे रेडियो स्टेशन की शक्ल दी। हम गांव वालों की किसी समस्या पर प्रोग्राम तैयार करके व एमपी3 में अपलोड करके चाइनीज स्पीकर लगा कर उन्हें सुनाते थे। यह 2009 की बात है। हमने अक्तूबर में यह रेडियो स्टेशन शुरू किया।’’ राधा रोज स्कूटी से 30 किलोमीटर तय करके रेडियो स्टेशन पहुंचती है।
नूरजहां ने दी रोशनी
आज से 35 बरस पहले 6 बच्चों की मां नूरजहां जब वैधव्य से गुजर रही थीं, तब उनके पास आमदनी का कोई जरिया नहीं था। उस पर वे पढ़ी-लिखी भी नहीं थी। बच्चों को पढ़ाने की बात तो दूर उनको क्या खिलांए इसके भी लाले थे। दूसरों के खेतों में सुबह से शाम तक निराई करके किसी तरह इसका इंतजाम करती थीं। सोलर लालटेन का आइडिया कैसे आया पूछने पर वे अपने घर के बगल में बने वक्त की आवाज रेडियो स्टेशन की ओर इशारा करती। यहां की मैडम मेरा हाल देख रही थी। उन्होंने कहा कि रात दिन काम करती हो, तुम्हारे यहां हम सोलर लालटेन चार्ज करने वाला पैनल लगवा देते हैं, तुम सोलर लालटेन चार्ज करने का काम करो। उन्होंने हमें सोलर लालटेन भी दीं। धीरे-धीरे नूरजहां का काम चल निकला। अब उनकी 40 लालटनें 5 गांवों के लोगों के घरों में उजाला कर रही हैं। लालटेनों से अच्छा किराया मिलता है। वे प्रति लालटेन 100 रुपए तक कमा लेती हैं।