Wednesday 18 August 2021 04:44 PM IST : By Ruby Mohanty

रीयूजेबल सैनिटरी पैड्स बना कर महिलाओं को मेंस्ट्रुअल वेस्ट मैनेजमेंट सिखा रही हैं स्मिता कुलकर्णी

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आईटी प्रोफेशनल स्मिता कुलकर्णी इन दिनों सैनिटरी पैड वेस्ट मैनेजमेंट करना सिखा रही हैं। डिस्पोजेबल पैड्स क्यों हानिकारक है और क्लॉथ पैड्स व मेंस्ट्रुअल कप क्यों फायदेमंद हैं? स्मिता के बनाए क्लॉथ पैड्स किस तरह अलग हैं? इनके साथ कौन सी महिलाएं जुड़ी हैं, सभी महिलाएं कैसे काम करती हैं? जानें और भी बहुत कुछ - 

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पहले समय में पीरियड्स के दिनों में कपड़े का इस्तेमाल किया जाता था। उसके बाद स्त्रियों की दुनिया में सैनिटरी पैड एक तरह से रेवोल्यूशन ले कर आया। माना जाता था कपड़ों की वजह से कई तरह के संक्रमण होते हैं, इसीलिए सभी स्त्रियों ने अपनी इस जरूरत को डिस्पोजेबल पैड्स पर शिफ्ट कर लिया। सोच कर देखें कि आखिर पैड्स में ऐसा क्या है, जो हेवी फ्लो को भी सोख लेता है? पिछले 15-20 सालों में पैड्स ने कई तरह के रूप बदले हैं। विद विंग्स, लीक प्रूफ, ड्राई फील कवर, विद फ्रेगरेंस, लॉन्ग एब्जॉर्ब्शन। अब लेटेस्ट हैं अल्ट्रा थिन और सेंटेड पैड्स। सोचने वाली बात है कि सामान्य कॉटन के पैड्स की तुलना में ये पैड्स ज्यादा सोखने वाले कैसे होते हैं?

 बंगलुरु की आईटी प्रोफेशनल स्मिता कुलकर्णी, जो आजकल पैड्स की वेस्ट मैनेजमेंट और क्लॉथ पैड्स को ले कर अपने शहर में शोहरत पा रही हैं, का मानना है, ‘‘आजकल पैड्स में पॉलिएक्टिवेटेड जैल, प्रोपलिन, साइडीन जैसे केमिकल होते हैं। ये सुपर एब्जार्बेंट होते हैं,जिससे पैड ज्यादा से ज्यादा कंफर्टेबल और लॉन्ग लास्टिंग साबित हो। फ्रेगरेंस के लिए एसिटोन जैसे केमिकल डाले जाते हैं। ऐसा नहीं कि पैड्स सिर्फ ब्लड एब्जॉर्ब करते हैं। पैड में मौजूद केमिकल त्वचा भी एब्जॉर्ब कर लेती है। इसी वजह से कुछ महिलाओंको रैशेज और ईचिंग होती हैं। लंबे समय तक इस तरह के पैड का इस्तेमाल खतरनाक साबित हो सकता है। इनसे हारमोनल असंतुलन और इन्फर्टिलिटी ही नहीं, सर्वाइकल कैंसर भी हो सकता है।’’ गौर करें कि जब भी आप कोई फूड प्रोडक्ट खरीदते हैं, तो उसके पैकेट पर उसमें मौजूद चीजों, उसकी फूड वेल्यू के बारे में जानकारी होती है। पर पैड बनाने वाली कंपनियां इसकी जानकारी नहीं देतीं कि पैड्स में क्या-क्या केमिकल इस्तेमाल हुए हैं । स्मिता बताती हैं कि इन केमिकल्स के बारे में पता करें, तो पता चलता है कि ये कैंसर की वजह बन सकती हैं। 

सैनिटरी पैड्स का कूड़ा 

sanitary-4 स्मिता कुलकर्णी के साथ 8 प्रदेशों की महिलाएं जुड़ी हैं, जो साथी के नाम से जानी जाती हैं। ये पैड बनाने का काम करती हैं। ये पैड्स ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स पर उपलब्ध हैं।

पैड के इस्तेमाल के बाद इसे कैसे डिस्पोज करें, इस ओर कम ही युवतियों का ध्यान जाता है। यह ना तो गीले कूड़े में आता है और ना सूखे में। ना इससे कंपोस्ट खाद बना सकते हैं और ना हीइसे रिसाइकिल कर सकते हैं। ये कूड़ेदान में जाते हैं, जहां ये ऐसे ही पड़े रहते हैं। तकरीबन 40 साल से कंपनियां पैड्स बना रही हैं। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि 4-5 घंटे का इस्तेमाल करने के बाद कूड़े का रूप लेते ये पैड्स 400 साल तक यों ही पड़े रहेंगे। आज की तारीख में पर्यावरणविदों के लिए पैड्स के डिस्पोजल की भी समस्या है।

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शहर में तो ये फिर भी कूड़ेघर में पहुंच जाते हैं, पर गांवों में तो इन्हें जला दिया जाता है या फिर नाली में डाल दिया जाता है। बंगलुरु जैसे मॉडर्न शहर में भी 80 प्रतिशत नालियां पैड्स की वजह से ब्लॉक होती हैं। कोई भी चीज जिसमें ब्लीच मौजूद हो, उसे जलाने पर धुएं से डाईऑक्सिन जैसी विषैली गैसें रिलीज होती हैं। पैड्स को एक्स्ट्रा वाइट रखने के लिए ब्लीच का इस्तेमाल किया जाता है। ये कैंसर भी पैदा कर सकते हैं। आजकल स्कूल और कॉलेज में छोटे-छोटे इंसुलेटर का इस्तेमाल हो रहा है। इन मशीनों में यूज्ड पैड्स डाले जाते हैं। वे जल जाते हैं और इस तरह जहरीली गैस की परेशानी नहीं होती। जबकि सचाई यह नहीं है। ये मशीनें 800 डिग्री में नहीं, बल्कि 200-300 डिग्री में ही ऑपरेट होती हैं, जिसमें डाइऑक्सिन जैसी कैंसरकारक गैसों के हवा में घुलने का खतरा बढ़ जाता है। 

इकोफ्रेंडली क्लॉथ पैड्स 

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स्मिता कुलकर्णी का कहना है, ‘‘पहले कपड़े से बने पैड के साथ सबसे बड़ी समस्या थी कि उन्हें धो कर कहां सुखाएं। इनमें बैक्टीरिया पनपने का खतरा रहता था। लेकिन अभी जो कॉटन क्लॉथ पैड्स आ रहे हैं, वे सभी विंग्स वाले और लीकप्रूफ हैं। इसमें बहुत सारे खूबसूरत डिजाइन भी हैं, जिससे युवतियों को अच्छा फील हो। जैसे हम अपनी ड्रेस चूज करते हैं वैसे ही हम अपने पैड्स भी पसंद कर सकते हैं। ये रीयूजेबल हैं। इन पैड्स की स्पेशियलिटी है कि ये अंदर से कॉटन के हैं और बाहर लीक प्रूफ क्लॉथ लगा है। इनका इस्तेमाल 4 से 6 घंटे तक किया जा सकता है। ये पैड्स ऑनलाइन मिलते हैं। एक जोड़ी कपड़े का पैड खरीदेंगे, तो 3-4 साल चलेंगे।’’

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