Monday 14 February 2022 03:51 PM IST : By Pooja Samant

सेलेब्रिटी दंपतियों की प्यार की कहानी

सेलेब्स की लव स्टोरीज के बारे में जानने की उत्सुकता सभी को होती है। फिजा में प्यार की खुशबू घुली है, ऐसे में कुछ सेलेब्रिटी कपल्स से सुनें उनके इश्क की दास्तां। कैसे बने वे एक-दूजे के हमसफर और किन पड़ावों को पार कर हासिल की उन्होंने प्रेम की मंजिल...


भाग्यश्री और हिमालय दासानी का क्लासरूम वाला इश्क

दिल दीवाना बिन सजना के माने ना...  सूरज बड़जात्या के निर्देशन में बनी फिल्म मैंने प्यार किया को रिलीज हुए 32 वर्ष पूरे हो चुके हैं, लेकिन इस गीत का सुरीला जादू आज भी कायम है। फिल्म की अल्हड़ सुमन यानी भाग्यश्री ऑफ स्क्रीन जीवन में भी आदर्श पत्नी, बहू, मां, और बेटी हैं। हाल-फिलहाल उनकी फिल्म थलाइवी रिलीज हुई। यही नहीं, उनके बेटे अभिमन्यु दासानी की फिल्में मर्द को दर्द नहीं होता व मीनाक्षी सुंदरेश्वर रिलीज हो चुकी हैं। उनकी बेटी अवंतिका यूएस में पढ़ाई कर रही हैं। फॉरएवर यंग भाग्यश्री से बात हुई उनके प्रेम और शादी के बारे में।

डेब्यू फिल्म से ही छा गयीं राजघराने की भाग्यश्री

भाग्यश्री के पिता जी श्रीमंत विजयसिंघ राजे माधवराव पटवर्धन महाराष्ट्र के सांगली विरासत के राजा हैं। उनकी बड़ी बेटी श्रीमंत राजकुमारी भाग्यश्री विजयसिंघ राजे पटवर्धन तथा इनके पूरे परिवार ने सांगली के शाही महल में अपने पुरखों के साथ जिंदगी बितायी। जब मुंबई के जुहू में इनका बंगला बना, तो उसका नाम भी सांगली विला रखा गया। पटवर्धन परिवार के जुहू स्थित बंगले में पड़ोसी थे अभिनेता, निर्माता-निर्देशक अमोल पालेकर, जो तब दूरदर्शन के सीरियल कच्ची धूप का निर्माण कर रहे थे, लेकिन लीड अभिनेत्री का अता-पता नहीं था। तब अमोल पालेकर ने भाग्यश्री के पिता जी की रजामंदी ले कर भाग्यश्री को अपने धारावाहिक में साइन कर लिया। डेब्यू फिल्म सूरज बड़जात्या की मैंने प्यार किया थी और इसकी सफलता के बारे में कोई विवाद नहीं है। 

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हिमालय से मुलाकात 

भाग्यश्री बताती हैं, ‘‘मैं शायद क्लास 6 में थी। पढ़ने में अव्वल थी और क्लास की मॉनिटर भी थी। मेरी क्लास में सबसे शरारती बच्चे हिमालय थे, जिन्हें अकसर पनिशमेंट मिलती रहती थी। वैसे वे संकोची स्वभाव के थे, लड़कियों से दूरी बना कर चलते थे, मगर 3-4 साल हमारे बीच चूहे-बिल्लीवाला खेल चलता रहा। मैं शरारती लड़के की शिकायतें टीचर से करती रही। पढ़ाई की बात करूं, तो इंग्लिश मेरी अच्छी थी, पर मैथ्स कमजोर, जबकि हिमालय की मैथ्स अच्छी थी, अंग्रेजी कमजोर। धीरे-धीरे हम दोनों ने एक-दूसरे को ट्यूशन देने शुरू कर दिए। यहीं से हमारी दोस्ती शुरू हुई। दसवीं के बाद हमारा कॉलेज बदलना था, तो एक बेचैनी थी कि ना जाने दोबारा कब मुलाकात होगी। मन ही मन में मुझे लगता था कि हिमालय भी मुझे प्यार करते हैं, तो प्यार के वे तीन अल्फाज बोल तो दें। वो उम्र भी नासमझ-कच्ची थी ना। आखिरकार सेंड ऑफ के समय मैंने ही हिमालय से कहा, ‘‘तुम्हारे दिल में मेरे लिए कुछ फीलिंग्स हैं तो बता दो !’’ हिमालय ने कहा, ‘‘तुम घर जाओ, मैं तुम्हें फोन करूंगा।’’ घर पहुंचते ही हिमालय का फोन आया और उनके आई लव यू बोलते ही मेरी बोलती बंद गयी। 

हम तीनों बहनों (भाग्यश्री, पूर्णिमा, मधुवंती) ने मम्मी-पापा से कभी कोई बात छुपायी नहीं। फिर क्या था, मैं भागी उन्हें इस छोटी सी लव स्टोरी के बारे में बताने के लिए। शायद उन्हें तब गुस्सा भी आया होगा, क्योंकि मैं अल्हड़ उम्र की थी, पर वे मेरी ईमानदारी पर शक नहीं करते थे। उन्होंने मुझे समझाया, ‘‘बेटा, उस लड़के को कह दो कि अभी पढ़ाई करने का समय है, प्यार के लिए उम्र बहुत पड़ी है! उसे कह दो कि तुम इस सबमें दिलचस्पी नहीं रखतीं...।’’ मैंने हिमालय से माता-पिता का संदेशा कह सुनाया, लेकिन जो भी हो, हम एक-दूसरे के टच में बने रहे। 

कॉलेज की मुलाकातें

मुंबई में जुहू, अंधेरी, पार्ले इलाके में रहने वाले अधिकतर बच्चे मीठीबाई या एनएम कॉलेज में पढ़ते है। मैं जुहू में थी, हिमालय इर्ला में रहा करते थे। हम मीठीबाई में भी साथ थे और तब हमारी दोस्ती प्रगाढ़ होने लगी। हालांकि हिमालय मेरी तुलना में ज्यादा सीरियस थे रिलेशनशिप को ले कर। हमारा कल्चर, भाषा, खानपान-संस्कृति, पारिवारिक परिवेश सब अलग था, ऐसे में शादी की बात सोचना भी मेरे लिए थोड़ा मुश्किल सा था। बड़ी हुई, तो घर में शादी को ले कर बातचीत चलने लगी। एक दिन पापा ने कहा, ‘‘तैयार हो जाओ, शाम को घर में कुछ मेहमान आनेवाले हैं।’’ मैंने सोचा, जरूर कोई लड़का देखने आ रहा होगा। लेकिन शाम हुई, तो राजश्री प्रोडक्शंस के सूरज बड़जात्या अपने पेरेंट्स के साथ घर पधारे थे। मैंने प्यार किया की कहानी उन्होंने सुनायी, तो मेरी आंखें ही बरसने लगीं। दरअसल उस समय हिमालय और मेरे बीच दूरियां बढ़ गयी थीं, हमारा ब्रेकअप हो गया था। मैं अमेरिका में आगे की स्टडी करना चाहती थी, लेकिन पापा ने समझाया, तो मैंने फिल्म में काम करना मंजूर कर लिया। 

फिल्म ने समझाया प्यार का मतलब 

मैं सुमन के किरदार को खुद से रिलेट करने लगी थी। फिल्म की एक महीने की शूटिंग ऊटी में थी, जिसमें मैं अपने घर और हिमालय को मिस कर रही थी। सलमान ने एक बड़ा प्रैंक किया। जैसे ही ब्रेक होता, सलमान मेरा हाथ पकड़ कर मेरे कानों में गाने लगते, दिल दीवाना बिन सजना के माने ना...। एक-दो बार ये सब हुआ, तो मुझे लगा, सलमान मेरे साथ फ्लर्ट कर रहे हैं ! मैंने डरते हुए उन्हें मना किया, तो वे हंसने लगे। तब उन्होंने बताया कि उनका एक फ्रेंड है, जो हिमालय का भी दोस्त है और वे हमारी लव स्टोरी से वाकिफ हैं। 

शादी में नहीं शरीक हुए माता-पिता

वह मोबाइल फोन का दौर नहीं था। मेरे राजसी खानदान के कुछ प्रोटोकॉल्स थे, हमें पब्लिक प्लेसेज में जाने की इजाजत लेनी होती थी। ऐसे में मैंने पेरेंट्स से सीधे बात करनी चाही कि मैं हिमालय से बात करना चाहती हूं, तो उसे घर बुला लूं। इस पर वे दंग थे कि क्या मजाक कर रही हूं। मैंने उन्हें साफ बता दिया कि अगर मुझे शादी करनी है, तो सिर्फ हिमालय से। पेरेंट्स ने खूब समझाया, लेकिन मैंने उनकी बात नहीं मानी। तब हमने आर्य समाज मंदिर में शादी की, जिसमें हिमालय के परिवार वाले तो थे, लेकिन मेरे घरवाले नहीं। इस बात का मलाल मुझे हमेशा रहेगा। हालांकि बाद में उन्होंने मुझे माफ किया, लेकिन दिल के घाव भरने में खासा वक्त लगा। 

बेटे अभिमन्यु का जन्म और परिवार में तालमेल 

फिल्म के पब्लिसिटी पोस्टर्स बनाने के लिए जाने-माने फोटोग्राफर गौतम राजाध्यक्ष नियुक्त किए गए थे। सलमान ने तब मुझसे कहा, ‘‘भाग्यश्री, शादी के बाद तुम मोटी हो गयी हो !’’ दरअसल मैं तब 5 महीने की प्रेगनेंट थी, अभिमन्यु आनेवाला था। गौतम समझ गए और उन्होंने इस तरह शूट किया कि किसी को भी मेरा बढ़ा हुआ पेट नजर नहीं आया। फिल्म रिलीज होने तक बेटे अभिमन्यु भी दुनिया में आ चुके थे। 

जैसा मैंने कहा कि हिमालय मारवाड़ी हैं और हमारे घरों की संस्कृति बिलकुल अलग है। उनके परिवार में डिनर शाम को साढ़े 6 बजे तक हो जाता है, मेरे घर में वह वक्त ईवनिंग स्नैक्स का होता है। शादी के बाद मैंने बहुत कोशिश की कि शाम को खाना तैयार करूं, लेकिन हो नहीं पाया। मुझे तो रात में भूख लगती थी। मेरे हाव-भाव देख कर सासू मां ने प्यार से समझाया कि अगर मैं शाम को खाना नहीं खाना चाहती, तो कोई बात नहीं, रात में खा लूं, बस भूखी ना रहूं। मां ने जिस तरह मुझे समझाया, उसके बाद उस घर में मुझे कभी कोई समस्या नहीं आयी। 

अभिमन्यु के बाद बेटी अवंतिका का जन्म हुआ। बच्चों की परवरिश के दौरान मैंने इक्का-दुक्का प्रोजेक्ट्स ही किए। मुझे कोई शायद ओल्ड स्कूलवाली स्त्री कहे, लेकिन मैंने कैरिअर से ज्यादा तवज्जो बच्चों को दी। इसके लिए मेरे मन में कोई रिग्रेट भी नहीं है। अब मैं फ्री हूं, तो फिल्म्स और वेब शोज कर रही हूं। 

60 साल हो गए यों ही साथ चलते-चलते - फिल्म निर्माता ए. कृष्णमूर्ति व के. मथुरम

मशहूर फिल्म निर्माता ए कृष्णमूर्ति और के. मथुरम के विवाह को 60 वर्ष हो चुके हैं। इनके बड़े बेटे के रविशंकर भी नामी निर्देशक हैं। ए. कृष्णमूर्ति ने टीना फिल्म्स इंटरनेशनल के बैनर तले घर एक मंदिर, सिंदूर, घराना, मेहरबान, आग और मेरे दो अनमोल रतन जैसी कई फिल्मों का निर्माण किया। इनमें अधिकतर फिल्मों का निर्देशन उनके बेटे के रविशंकर ने किया था। 94 वर्षीय कृष्णमूर्ति जी और उनकी 86 वर्षीय पत्नी के. मथुरम के चेहरों पर उम्र का असर नहीं दिखता। इनमें जिंदगी जीने का हसीन जज्बा है। 

रिश्तेदारी तब्दील हुई विवाह में 

ये दंपती चेन्नई के हैं। कृष्णमूर्ति के मामा की बेटी हैं मथुरम। दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में ममेरे भाई व बुआ की बेटी से शादी हो सकती है। इनका विवाह 1956 में हुआ। शादी से पहले कृष्णमूर्ति फिल्म इंडस्ट्री में प्रोडक्शन मैनेजर थे। 1982 में उन्होंने खुद निर्माता बनना चाहा। तब तक बेटे के रविशंकर का जन्म हो चुका था। मथुरम बताती हैं, ‘‘मैं मुंबई की फास्ट जीवनशैली और भाषा से अपरिचित थी। राज कपूर के प्रोडक्शन मैनेजर रामन से इनकी दोस्ती थी। राज कपूर ने कई बार हमें पार्टियों में आमंत्रित किया, लेकिन मैं बच्चों की परवरिश में ही व्यस्त रहती थी।’’ 

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इस तरह रिश्ता संवरता रहा 

इस दंपती की गृहस्थी सायन के एक कमरे से शुरू हुई। चेन्नई में बड़े से घर में रहनेवाली मथुरम के लिए मुंबई में एडजस्ट करना आसान नहीं था। एक बार कृष्णमूर्ति काम से घर लौटे, तो खाना नहीं बना था। जीवन में पहली और आखिरी बार उन्होंने उस दिन पति से डांट खायी। कृष्णमूर्ति साहब बताते हैं कि पैसा ज्यादा नहीं था, लेकिन मुंबई में एक घर लिया। फिर लैंडलाइन फोन भी आ गया, तो फोन लगातार बजने लगे। लड़कियों के फोन आते, तो मथुरम को अजीब लगता। तब उन्हें समझाया कि फिल्म इंडस्ट्री में काम पाने के लिए लोग बहुत जद्दोजहद करते हैं। इसी चक्कर में वे फोन करते हैं। 

वेलेंटाइन डे और 60 साल का सफर

कृष्णमूर्ति जी का कहना है, ‘‘प्यार के सफर में 60 वर्ष कब बीते, मुझे पता ही नहीं चला। हमारे समय में वेलेंटाइन जैसा कोई डे कहां मनाया जाता था। मेरी पत्नी 17 की थीं, जब उनकी मां गुजर गयीं। पत्नी की 4 बहनों, एक भाई को सेटल करना, उनकी शादी करवाना हमारी जिम्मेदारी थी। हमने बिना एक-दूसरे से यह बात जाहिर किए दोनों परिवारों की जिम्मेदारियों का निर्वाह किया। मथुरम ने कभी कोई शिकायत नहीं की, कभी कोई ख्वाहिश जाहिर नहीं की, जबकि तब मेरी कई फिल्में सुपरहिट हो रही थीं। फिर एक बार मैं मथुरम को पहली बार उदयपुर के लेक पैलेस होटल में होलीडेज पर ले गया। इसी तरह अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म महान की शूटिंग नेपाल में होनेवाली थी, निर्माता सत्यनारायण ने पूरे परिवार के साथ नेपाल में आमंत्रित किया। संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लंदन में शो हुए, तो हमें भी बुलावा आया और हम उसमें शरीक हुए।’’ 

मथुरम कहती हैं, ‘‘मेरे पति सेल्फ मेड हैं। एक फिल्म से जो भी मुनाफा होता, दूसरी फिल्म में लगा देते। मुझे फख्र है कि मैं इनकी पत्नी हूं। शादी की 25वीं सालगिरह पर इन्होंने मुझे डायमंड रिंग दी, यही मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार था।’’ 

कुछ मजेदार वाकये

कृष्णमूर्ति जी कुछ मजेदार वाकये सुनाते हैं, ‘‘राजेश खन्ना की फिल्म अपना देश का प्रोडक्शन मैं देख रहा था। मथुरम ने एक बार राजेश खन्ना को देखा था। एक सीन के अनुसार राजेश खन्ना मॉब से नजरें बचा कर एक इमारत में छुपते हैं। शूटिंग चल रही थी और राजेश खन्ना छुपते-छुपते हमारी इमारत में आए। दरअसल वे राजेश नहीं, उनके डुप्लीकेट थे। मेरी पत्नी ने जैसे ही नकली राजेश खन्ना को देखा, वह घबरा कर चिल्लायीं, ‘‘अरे, देखो तो आपकी फिल्म का हीरो यहां छुपा हुआ है। इस पर सब हंस पड़े। बाद में उन्हें असलियत पता चली।’’ 

श्रीमती कृष्णमूर्ति कहती हैं कि पति बहुत व्यस्त रहते थे। शुरू में उन्हें थोड़ी मुश्किल होती थी, बाद में आदत पड़ गयी। पति ने उन्हें कभी कोई कॉम्प्लिमेंट भी नहीं दिया। एक बार फिल्मफेयर अवॉर्ड में जब संजीव कुमार ने इस दंपती को पहली बार साथ देखा, तो देखते ही श्रीमती मूर्ति को कॉम्प्लिमेंट देते हुए कहा, ‘‘आप तो नेचुरल खूबसूरत हैं!’’ मूर्ति जी के बेटे कहते हैं, ‘‘तब अप्पा (पिता जी) जेलस हो गए थे। ’’ 

दो घंटे की मुलाकात में हो गया जन्मों का साथः शिल्पा शिरोडकर-अपरेश रणजीत

1990 से 2000 के बीच अभिनेत्री शिल्पा शिरोडकर ने गोविंदा, सुनील शेट्टी, अनिल कपूर, मिथुन चक्रवर्ती, चंकी पांडे, नागार्जुन, सैफ अली खान और कई बड़े-बड़े सितारों के साथ मल्टी स्टारर फिल्मों में मुख्य अभिनेत्री की भूमिका निभायी। उनकी प्रमुख फिल्मों में आंखें, खुदा गवाह, गोपीकिशन, पहचान, हम, त्रिनेत्र, जुआरी, स्वर्ग यहां नर्क यहां आदि हैं। उनकी शादी 8 जुलाई 2000 को मुंबई में अपरेश से हुई। शिल्पा की छोटी बहन मिस इंडिया और नामी अभिनेत्री नम्रता शिरोडकर हैं, जिनकी शादी साउथ फिल्मों के सुपर स्टार महेश बाबू से हुई है। दिलचस्प बात यह है कि शिल्पा ने इन्वेस्टमेंट बैंकर अपरेश रणजीत से अरेंज्ड मैरिज की। अब उनकी शादी को 21 साल हो चुके हैं। उनकी बेटी अनुष्का पढ़ाई और स्पोर्ट्स, दोनों में अव्वल हैं। पिछले 2 वर्षों से शिल्पा अपने परिवार के साथ दुबई में रहती हैं। 

पहली अरेंज्ड मुलाकात

शिल्पा बताती हैं, ‘‘मेरे दौर में स्टार्स एक साथ 10-12 फिल्में करते थे और दिन में 3 शिफ्ट्स में शूटिंग करते थे। मैंने भी एक साथ 7-8 फिल्मों में अभिनय किया। लेकिन जैसे ही मैं 25 की हुई, मम्मी-पापा ने शादी को ले कर बात करनी शुरू कर दी। मम्मी की एक पारिवारिक मित्र के जरिये अपरेश का रिश्ता आया। सिंपल, विनम्र और ऑनेस्ट अपरेश घर में सभी को अच्छे लगे। मैंने अपरेश से पूछा कि क्या वे जानते हैं कि मैं अभिनेत्री हूं ! उन्होंने हां में जवाब दिया और कहा कि मैं शादी के बाद भी काम जारी रख सकती हूं। हम किसी स्ट्रेंजर्स की तरह मिले और दो घंटों की बातचीत के बाद ऐसा लगा, मानो जन्मों के साथी हों। मैंने सोच लिया कि आगे की जिंदगी इन्हीं के साथ तय करनी है। 

शहर दर शहर घूमे

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अपरेश तब नीदरलैंड में थे। वहां हम एक साल तक रहे, इसके बाद न्यूजीलैंड गए। मैं तब मां बनने वाली थी। बेटी अनुष्का का जन्म यहीं हुआ। आसपास के भारतीय परिवारों से मैंने दोस्ती कर ली थी और हमारा एक ग्रुप बन गया था। यहां एडजस्ट हो गयी थी कि पता चला, अपरेश का ट्रांसफर लंदन हो गया। बेटी के एडमिशन का वक्त आ रहा था और बार-बार ट्रांसफर से काफी मुिश्कल होती थी। 

लौटे हिंदुस्तान अपने वतन 

अपरेश ने 2010 की शुरुआत में ही मुझे खुशखबरी सुनायी कि हमें सामान पैक करना है, क्योंकि अब हम इंडिया लौट रहे हैं। मेरी खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था। उसी दिन मैंने सबको फोन कर दिया कि मैं भारत वापस आ रही हूं। 2010 के मार्च महीने में हम भारत वापस आ गए। लौटते ही फिल्मों और टीवी के प्रस्ताव आने लगे। एक मुट्ठी आसमान शो से मैंने एक्टिंग में कमबैक किया। 2016 में सिलसिला प्यार का शो शुरू हो गया। अपरेश ने कहा कि मैं फिल्में ही करूं, लेकिन तब फिल्में नायक प्रधान ज्यादा थीं। वो दौर वेबसीरीज का होता, तो मुझे यकीन है कि बहुत अच्छे किरदार निभाने का मुझे मौका मिलता। 

अपरेश से शिकायत

अपरेश ना तो झगड़ालू हैं ना डिमांडिंग, बस मुझे उनसे यह शिकायत है कि उन्होंने कभी मेरे लुक्स, स्टाइल या खाने की तारीफ नहीं की। वक्त के साथ मुझे समझ आया कि ज्यादातर पति ऐसे ही होते हैं। मुझे लगता है कि वैवाहिक रिश्तों में मधुरता बनाए रखने के लिए छोटे-छोटे विवाद भुलाने होते हैं, ईगो को दरकिनार करना होता है। कई बार ऐसा होता है कि अपरेश ऑफिस से देर से लौटनेवाले हों, तो मुझे बताना भूल जाते हैं। फिर मैं फोन करती हूं, तब वह सॉरी बोलते हैं। छोटी-छोटी बातों को हम दिल से नहीं लगाते। मैंने अपरेश और उनके परिवार को सम्मान दिया, बदले में मुझे यह सब दुगना हो कर लौटा। हमने कभी पारंपरिक तरीके से वेलेंटाइन डे नहीं बनाया, लेकिन जन्मदिन, वेडिंग एनिवर्सरी, बेटी का जन्मदिन हम धूमधाम से मनाते हैं। हमारा मानना है कि हम जीवनभर अपनों से प्यार करते हैं, इसके लिए कोई खास दिन क्यों तय हो।