हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष के 16 दिन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं हैं, बल्कि इनका गहरा ज्योतिषीय और आध्यात्मिक महत्व भी है। इस अवधि को पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का अत्यंत उपयुक्त समय माना जाता है, क्योंकि इस दौरान आकाशीय ग्रह-नक्षत्रों का विशेष

हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष के 16 दिन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं हैं, बल्कि इनका गहरा ज्योतिषीय और आध्यात्मिक महत्व भी है। इस अवधि को पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का अत्यंत उपयुक्त समय माना जाता है, क्योंकि इस दौरान आकाशीय ग्रह-नक्षत्रों का विशेष

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हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष के 16 दिन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं हैं, बल्कि इनका गहरा ज्योतिषीय और आध्यात्मिक महत्व भी है। इस अवधि को पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का अत्यंत उपयुक्त समय माना जाता है, क्योंकि इस दौरान आकाशीय ग्रह-नक्षत्रों का विशेष

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हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष के 16 दिन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं हैं, बल्कि इनका गहरा ज्योतिषीय और आध्यात्मिक महत्व भी है। इस अवधि को पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का अत्यंत उपयुक्त समय माना जाता है, क्योंकि इस दौरान आकाशीय ग्रह-नक्षत्रों का विशेष संयोग बनता है जो जीवित प्राणियों को दिवंगत आत्माओं से जुड़ने में सहायक होता है। इस बारे में जानकारी दे रही हैं  द सीकियर की सीईओ और फाउंडर और सर्टिफ़ाइड ज्योतिषी, न्यूमरोलॉजिस्ट और मल्टी-मोडैलिटी हीलर अक्कशिता-

पितृ पक्ष शुरू होते ही सूर्य कन्या राशि में गोचर करता है। यह स्थिति व्यक्ति को अनुशासन, सम्मान और सेवा भाव से युक्त बनाती है — जो श्राद्ध जैसे अनुष्ठानों को सही विधि से सम्पन्न करने के लिए अत्यावश्यक गुण हैं। साथ ही, इस समय आने वाला कृष्ण पक्ष व्यक्ति को अंतर्मुखी बनाता है, सांसारिक आसक्तियों से थोड़ी दूरी देकर स्मृति को गहन करता है, जिससे वह अपने पूर्वजों को मन, वचन और कर्म से श्रद्धांजलि अर्पित कर पाता है।

इस अवधि का एक और विशेष महत्व राहु और केतु जैसे ग्रहों से जुड़ा है, जिन्हें कर्मबंधन और पितृ संबंधों का प्रतीक माना जाता है। इस समय इनके सूक्ष्म प्रभाव से व्यक्ति की आध्यात्मिक चेतना प्रबल होती है, जिससे वह पितृ तर्पण, श्राद्ध और अन्य अनुष्ठानों से गहराई से जुड़ पाता है। इसी प्रकार, शनि ग्रह का कर्तव्य और उत्तरदायित्व पर बल देना भी इस काल को विशेष बनाता है, क्योंकि यह व्यक्ति को अपने पितृ ऋण (पूर्वजों का ऋण) स्मरण कर उसे चुकाने की प्रेरणा देता है।

साथ ही, बृहस्पति (गुरु) — जो ज्ञान और आशीर्वाद के कारक ग्रह माने जाते हैं — इस काल में शुभ स्थिति में होते हैं, जिससे किए गए पितृ कार्यों के फल अनेक गुना बढ़ जाते हैं। जब ग्रहों का ऐसा समन्वय बनता है, तो यह वातावरण को ऐसा बनाता है कि हमारी श्रद्धा पूर्वजों तक सहजता से पहुंचती है और उनके आशीर्वाद के रूप में समृद्धि, स्वास्थ्य और पारिवारिक सौहार्द का वरदान प्राप्त होता है।

इस प्रकार, पितृ पक्ष केवल अतीत को याद करने का अवसर नहीं है, बल्कि यह वर्तमान को सुदृढ़ और भविष्य को सुरक्षित करने की भी प्रेरणा देता है। इसकी ज्योतिषीय गहराई यह स्पष्ट करती है कि यह काल आध्यात्मिक दृष्टि से इतना शक्तिशाली क्यों माना गया है — क्योंकि यह हमें ग्रहों की अनुकूल ऊर्जा के साथ सामंजस्य स्थापित करने और पूर्वजों से मार्गदर्शन पाने का दुर्लभ अवसर प्रदान करता है