ना हंसो तो भी फंसो
हमारी एक भाभी जी हैं, बात के ही नहीं, अकसर बिना बात के भी हंसती रहती हैं। एक दिन उनकी नॉनस्टॉप हंसी सुन कर हमारे भैया को स्कूल की किताब में पढ़ा द्रौपदी की किस्सा याद आ गया। उनको लगा कि इन मोहतरमा की हंसी किसी दिन महाभारत पार्ट टू ना करवा दे, सो प्यार से उनको समझाया कि इस तरह हंसोगी तो किसी दिन
हमारी एक भाभी जी हैं, बात के ही नहीं, अकसर बिना बात के भी हंसती रहती हैं। एक दिन उनकी नॉनस्टॉप हंसी सुन कर हमारे भैया को स्कूल की किताब में पढ़ा द्रौपदी की किस्सा याद आ गया। उनको लगा कि इन मोहतरमा की हंसी किसी दिन महाभारत पार्ट टू ना करवा दे, सो प्यार से उनको समझाया कि इस तरह हंसोगी तो किसी दिन
हमारी एक भाभी जी हैं, बात के ही नहीं, अकसर बिना बात के भी हंसती रहती हैं। एक दिन उनकी नॉनस्टॉप हंसी सुन कर हमारे भैया को स्कूल की किताब में पढ़ा द्रौपदी की किस्सा याद आ गया। उनको लगा कि इन मोहतरमा की हंसी किसी दिन महाभारत पार्ट टू ना करवा दे, सो प्यार से उनको समझाया कि इस तरह हंसोगी तो किसी दिन
हमारी एक भाभी जी हैं, बात के ही नहीं, अकसर बिना बात के भी हंसती रहती हैं। एक दिन उनकी नॉनस्टॉप हंसी सुन कर हमारे भैया को स्कूल की किताब में पढ़ा द्रौपदी की किस्सा याद आ गया। उनको लगा कि इन मोहतरमा की हंसी किसी दिन महाभारत पार्ट टू ना करवा दे, सो प्यार से उनको समझाया कि इस तरह हंसोगी तो किसी दिन फंसोगी ! कभी अपनी हंसी पर ब्रेक भी लगा लिया करो।
मगर भाभी ना तो बुरा मानने वालों में थीं, ना ही बुरा मनाने वालों में, सो भैया की नसीहत ने उनकी हंसी के गुब्बारे में हवा भरने का काम किया। कहने लगीं, ‘‘ना हंसो तो भी फंसो, तो क्यों ना हंस कर फंसा जाए। हमारी हंसी तो उसी दिन रुकेगी, जब हम इस दुनिया से हंसते-हंसते रुखसत होंगे।’’
अब इस बात पर तो भैया जी के इमोशन का आइसबर्ग पिघल गया, उन्होंने फौरन कहा, ‘‘अरे रुखसत हों तुम्हारे दुश्मन, हंसो तुम जितना तुम्हें हंसना है। देखते हैं कौन उदासी का पैरोकार तुम्हारी हंसी पर पहरा लगाता है।’’ और उस दिन से भाभी जी की हंसी ने बुलेट ट्रेन की रफ्तार पकड़ ली।
आप खुशी के मौके पर हंसें तो जंचता है, लेकिन गमी के मौके पर हंसना लोगों को नागवार गुजर सकता है। पड़ोस के मनोहर चाचा की तेरहवीं पर जब मोहल्ले भर के लोगबाग इकट्ठा हुए थे तो भाभी जी भी वहां पधारी थीं। अब पंडित जी बेचारे थोड़े पोपले थे तो संस्कृत के कुछ शब्द अपनी पहचान उनके मुंह में ही घोल कर बाहर नया चोला पहन कर निकलने लगे तो भाभी जी फिस्स से नहीं, ठहाका मार कर हंस पड़ीं। यकीन मानिए, अगर मनोहर चाचा की मृत देह वहां होती तो उनकी हंसी सुन कर कैडबरीज के एड वाली डेड बॉडी की तरह झट से उठ कर बैठ जाती, लेकिन वे तो पर्मानेंटली जा चुके थे, अलबत्ता वहां बैठे लोग उन्हें घूर कर देखने लगे। हालांकि पंडित जी के उच्चारण से वे भी कम गुदगुदाए नहीं बैठे थे, बस कलाकार थे, अपनी असली भावनाएं छुपाना जानते थे।
हंसी एक दोधारी तलवार है, यह हमें समझ में तो आ गया, लेकिन भाभी जी को कौन समझाए ! भैया के चचेरे भाई की शादी में वे बड़े अरमानों के साथ गयीं और मेहंदी की सेरेमनी के दौरान किसी बात पर आदतन इतनी जोर से ठहाका लगाया कि वहां मौजूद लोगों के चेहरे का और लुगाइयों की मेहंदी का रंग खिल गया। लेकिन भाभी की ठहाकेदार हंसी ने उनकी चचिया सास के सासत्व को इतना सक्रिय कर दिया कि वे उनके मायके की बखिया उधेड़ने से बाज नहीं आयीं, कहा, ‘‘क्या बहू, तुम्हारी अम्मा ने तुमको नहीं सिखाया कि हंसते कैसे हैं। ऐसे ठहाका मार कर हंसना भले घर की बहू-बेटियों को शोभा देता है क्या।’’
अब ‘शोभा’ किसी को कुछ दे या ना दे, हमारी बला से, लेकिन चचिया सास की बातों ने भाभी को इतना दुख दिया कि भाभी पूरी शादी में अपनी हंसी का ब्रेक दबाए रहीं और उधर दुलहन अपने घर से विदा हुई और इधर भाभी भैया सहित अपने घर को कूच कर गयीं। आपको भी हमारी तरह लगा ना कि भाभी नाराजगी में दुलहन के आने से पहले ही विदा हो गयीं ! अरे नहीं, भाभी कई दिनों तक हंस नहीं पायी थीं, यो उन्हें हंसी का कब्ज हो गया था, जिसे दूर करना उनके लिए बहुत जरूरी था। और इस कब्ज का इलाज हंसना-हंसाना ही है, कोई आयुर्वेदिक चूरन काम नहीं करता।
शादी वाले घर से निकलते ही भैया ने भाभी से पूछा, ‘‘तुम्हें चाची की बात का बुरा तो लगा होगा।’’
भाभी जी ने बिंदास हंस कर कहा, ‘‘कैसी बात करते हैं आप वे हमारी बड़ी हैं, आदरणीय हैं, उनकी बात का बुरा क्या मानना ! फिर गलती तो मेरी ही थी, मुझे ठहाका लगा कर नहीं, धीमे-धीमे फिस्स-फिस्स करके हंसना चाहिए था।’’
हरदम हंसने वाले अपने संस्कार की हंसी नहीं उड़वाते, उन्हें आगे की पीढि़यों के लिए भी सहेज कर रखते हैं। वे देर तक किसी चुभती बात को दिल से लगा कर नहीं रखते। वे बात को हंसी में उड़ाते नहीं, हंस कर टालना जानते हैं। हंसी इंसान के लिए कितनी जरूरी है, यह प्राचीन काल से हमारे मनीषियों को मालूम था, तभी तो हंसी पर इतने मुहावरे-लोकोक्तियां गढ़ी गयी हैं। जैसे कुछ लोग बात को हंसी में उड़ा देते हैं, वहीं राज खुलने पर लोग खिसियानी हंसी हंसने लगते हैं। हंसी में हर बात को लेने वाले पर कोई कैसे यकीन करे, वहीं किसी पर पीठ पीछे हंसने वालों से जरा दूर ही रहिए। हो सकता है आपकी गैर मौजूदगी में वे आप पर भी ऐसे ही हंसते हों। किलकारी मार कर हंसते बच्चे को देख कर किसका मन नहीं खुश होता। कुछ लोग अपनी हरकतों की वजह से हंसी के पात्र बन जाते हैं, तो कुछ लोग दिल ही दिल में हंसते हैं। कई आशिक अपनी माशूका से कहते हैं कि तुम हंसती हो तो फूल झड़ते हैं। हालांकि यही आशिक शादी के बाद अपनी पत्नी से कहने की असफल कोशिश करते हैं कि तुम्हारी हंसी से शूल चुभते हैं।
हंसी पर इतना ज्ञान मेरा नहीं, भाभी जी का बघारा हुआ था, जिसे उन्होंने भैया जी के कानों में तब छौंका था, जब भैया जी ने उनसे पूछने की गलती कर ली थी कि इतना हंसने से तुम्हें मिलता क्या है। भैया जी ने अपना दर्दे-गम दूर करते हुए यह सारा ज्ञान मुझ पर ट्रांसफर कर दिया। हम हंसी के कायल हुए ना हुए, भाभी की अदभुत प्रतिभा के आगे जरूर नतमस्तक हो गए।
भाभी जी की हंसी पर पूरी पीएचडी थी, यह हमें तक पता लगा जब उन्होंने बताया कि हंसने के कितने फायदे हैं। हम तो अब तक अखबारों-पत्रिकाओं में छपने वाले चुटकुले और वॉट्सएप के लतीफों और मीम्स पर ही गुदगुदाते थे, लेकिन जबसे भाभी जी की बात सुनी तो हम भी बात-बेबात पर हंसने की कोशिश करते रहते हैं।
उन्होंने बताया कि मेडिकल साइंस का कहना है कि जब हम हंसते हैं तो हमारे चेहरे की 30 मांसपेशियां सक्रिय होती हैं, जबकि रोने से महज 7-8 मसल्स की ही कसरत हो पाती है। यही नहीं, हंसने से पेट की मांसपेशियां भी चुस्त होती हैं। बात तो सही है, जब कोई स्थूलकाय इंसान हंसता है तो उसका पेट बहुत उछल-कूद मचाता है। हंसने से हमारे मस्तिष्क में एंडोर्फिन नाम का द्रव रिलीज होता है, जिससे फील गुड होता है। हंसने से ना केवल पूरे शरीर को भरपेट ऑक्सीजन मिलता है, बल्कि इससे हार्ट का पंपिंग रेट भी अच्छा रहता है।
तो तनाव से राहत चाहिए तो दिल खोल कर हंसिए। हां, किसी पर हंसना हो तो सामने वाले का डीलडौल देख कर ही हंसिए, क्योंकि ऐसे में हाथ-पैर टूटने के चांस रहते हैं और मेडिकल साइंस इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता। वैसे किसी पर हंसने से पहले खुद को भी इस बात के लिए तैयार कर लीजिए कि कोई आप पर भी हंस सकता है। एक बात बताऊं, जो खुद पर हंस सकता है, वह बड़े जिगर वाला होता है, क्योंकि खुद पर हंसना कोई हंसी-खेल नहीं है।
गंभीरता का लबादा ओढ़ कर नाक सिकोड़ते लोगों से भाभी जी अकसर कहती रहती हैं कि भाई उतार फेंको इस मनहूसियत को और कलेजा फाड़ कर हंसो। अकेले ना हंस पाते हों तो कोई लाफ्टर क्लब के मेंबर बन जाइए या पार्क में जा कर हंसोड़ लोगों के ग्रुप में यों ही हाथ उठा-उठा कर हंसते रहिए।
भाभी जी की बात को चाहे हंसी में उड़ा दें, लेकिन कुछ शायरी पर गौर फरमाएं तो आप कलेजा फाड़ कर चाहे ना हंसें, हल्की सी मुस्काराहट का उजाला जरूर आपके चेहरे को रोशन करेगा-
जिनके होंठों पे हंसी पांव में छाले होंगे,
हां वही लोग तुम्हें चाहने वाले होंगे।
वहीं एक शायर ने कहा-
हर मर्ज का इलाज नहीं दवाखाने में,
कुछ दर्द चले जाते हैं मुस्कराने में।
जो लोग गलती से भी नहीं हंसते, उनके लिए एक शायर ने लिखा है-
मुस्कराने के मकसद न ढूंढ़ो,
वरना जिंदगी यूं ही गुजर जाएगी
कभी बेवजह भी मुस्करा के देखो,
संग तुम्हारे जिंदगी भी मुस्कराएगी।