श्रुति के सपने उसे परेशान करते थे, लेकिन क्या ये उसके भावी जीवन के संकेत थे। सपनों की बिखरी कड़ियों को उसने कैसे जोड़ा?

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श्रुति के सपने उसे परेशान करते थे, लेकिन क्या ये उसके भावी जीवन के संकेत थे। सपनों की बिखरी कड़ियों को उसने कैसे जोड़ा?

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सरसों के खेतों के बीच खड़ी युवती ने अपने कमर तक लहराते काले बालों को समेटा और अपनी पीले रंग की लहरिया चुन्नी को कमर के दाहिने हिस्से से बांध कर खेतों के बीच से गुजर रही पगडंडी पर एक नजर डाली। तभी एक सफेद घोड़े पे सवार युवक को अचानक अपने समीप पा कर वह घबड़ा गयी। उसकी धड़कन तेजी से चलने लगी। वह तेज सांस लेती हुई झटके से उठ बैठी। उसने अपने सिरहाने पर रखे मोबाइल पर नजर डाली, रात के 2 बज रहे थे।

“ये सपना मेरा हार्ट फेल करवा कर ही बंद होगा,” श्रुति बुदबुदायी।

पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था।
इस डुप्लेक्स घर में मम्मी-पापा का बेडरूम नीचे की मंजिल में है। श्रुति और उसके छोटे भाई का बेडरूम ऊपरी मंजिल में अगल बगल में हैं। उसने भाई के कमरे में झांका। हमेशा की तरह ही लापरवाह विजितेश ने कमरे का दरवाजा खुला छोड़ रखा था। उसका तकिया, चादर, बिस्तर के नीचे और कुछ किताबें बिस्तर में, उसके इर्दगिर्द बिखरी हुई थीं। श्रुति ने नाइट बल्ब की धीमी रोशनी में उसका कमरा व्यवस्थित किया और बाहर आ कर कमरे की बालकनी से पूरी सोसाइटी का नजारा देखने लगी।

इस डुप्लेक्स सोसाइटी में सड़क के दोनों तरफ अशोक के पेड़ों की कतार हैं। लोग भी पेड़-पौधों के बहुत शौकीन हैं। सभी ने अपने घर के आंगन, बरामदे से ले कर छत तक बोगनबेलिया, मधुमालती की बेलें चढ़ा रखी हैं, जिनके फूलों की मादक सुगंध हवा में तैर रही हैं। भीगी सड़कें बरसात का कहर चुपचाप झेल जाने का संकेत दे रही थीं। तभी उसे सीटी बजाने और लाठी ठकठकाने की आवाज नजदीक आती सुनायी दी। सोसाइटी के चौकीदार के आने की आहट ने उसे बालकनी से हट कर कमरे में जाने को मजबूर कर दिया है। वह पहले भी उसके पिता से श्रुति की आधी रात को बालकनी में खड़े होने की शिकायत कर चुका है।

श्रुति अपने बेडरूम में आ कर बिस्तर पर लेट गयी और दोबारा सोने की नाकाम कोशिश करने लगी।

सुबह सबसे पहले रसोई में पहुंच कर चाय बनाने लगी। मां रीना जब रसोई में पहुंची, श्रुति सबकी पसंद के अनुसार ब्लैक चाय, काॅफी और बनाना मिल्कशेक तैयार कर चुकी थी। विजितेश सीढ़ियों से तेजी से उतरता हुआ आया और शेक को लपक कर उठा लिया।

“थैंक्स दी,” वह मुस्कराया।

“कल रात फिर से वही सपना देखा क्या? कितनी बार कहा है सिरहाने लोहे का चाकू रखा करो,” रीना उसे ब्लैक काॅफी थमा कर चाय की ट्रे उठा कर अपने कमरे में चली गयी।

सभी के लिए यह एक आम बात बन कर रह गयी थी, मगर श्रुति के लिए वही तीन-चार तरह के सपने घूमफिर कर आना परेशानी का सबब बन चुके हैं। श्रुति बीकाॅम की छात्रा है। उसने अपनी घनिष्ठ सहेलियों, ईशिता और ज्योति से भी इसका कारण पूछा तो किसी ने बचपन की पुरानी घटना से जुड़ा होना बताया तो किसी ने इसे पुनर्जन्म से भी जोड़ दिया।

“तू पक्का पिछले जन्म में किसी किसान की बेटी रही होगी,” ईशिता ने कहा।

“और तुझे देख कर गांव के जमींदार का दिल तुझपे आ गया होगा। वही तुझे घोड़े पे बैठा कर ले उड़ा होगा,” ज्योति ने कहा।

“या फिर वही सरसों के खेत में... वो गाना तो सुना हैं ना? हुई चोरी चने के खेत में...” ईशिता ने मजाक बनाया।

“हां, फसल का ही तो अंतर है। मुझे भी यही लगता है,” ज्योति भी मजाक बनाती हुई बोली।

उस दिन से उसने उन दोनों से इस विषय में फिर दोबारा चर्चा नहीं की।

श्रुति को कालेज के लिए तैयार होता देख कर मां ने चिंतित स्वर में कहा, “मैं तेरे लिए काले घोड़े की नाल से अंगूठी बनवा दूंगी, फिर देखना ये सपने आने बंद हो जाएंगे।”

“ये गारंटी किसने दी है?” श्रुति ने पूछा।

“मैंने यूट्यूब में इसका उपाय देखा है,” मां ने पूरे विश्वास से कहा।

“मैं नहीं पहनूंगी।”

“क्यों नहीं पहनेगी?”

“पता चला सफेद घोड़े की जगह काले घोड़े के सपने आने लगे,” श्रुति ने चिढ़ कर कहा।

“अरे, यह तो मैंने सोचा ही नहीं। तुम परेशान मत हो बेटा, मैं बड़े मंदिर के पुजारी को तेरी कुंडली दिखा कर आऊंगी। फिर उसी के अनुसार अनुष्ठान कर लेंगे,” रीना ने कुछ देर सोच कर कहा।

“टिफिन तैयार है? नहीं तो मैं काॅलेज कैंटीन से कुछ ले लूंगी,” श्रुति ने स्कूटी की चाबी उठाते हुए पूछा।

“ये ले टिफिन, तेरी पसंद की भिंडी फ्राई और परांठे रखे हैं,” मां ने टिफिन थमाते हुए कहा।

श्रुति मुस्करा दी, किंतु उसकी आंखों के कोर आंसुओं से भीग गए। पिछले 3 सालों से यही सिलसिला चला आ रहा है। जब भी उसे सपने परेशान करते हैं, मां उसका मूड फ्रेश करने के लिए उसकी मनपसंद सब्जी बनाती हैं। आज सुबह नाश्ते से ले कर डिनर तक उसी की पसंद का भोजन होगा। उसने एक नजर मां पर डाली और सोचने लगी कि मां भी क्या करें? वे भी उसके ऊटपटांग सपनों के लिए अब तक ना जाने कितने उपाय कर हार चुकी हैं।

काॅलेज गेट पर ही उसे ऋषभ मिल गया।

“ये मुंह क्यों लटका रखा है?”

“यों ही...”

“तुम्हें कितनी बार कहा है कि तुम मुस्कराती हुई सुंदर लगती हो। तुम्हारे गालों के ये डिंपल, ये काली कजरारी आंखें, सच कहूं तो तुम्हारी सुंदरता का अंशमात्र भी मैं बखान नहीं कर पाता। कवि तो हूं नहीं। तुम्हारी तरह कॉमर्स का छात्र हूं,” ऋषभ ने फ्लर्ट करते हुए श्रुति से कहा।

श्रुति भी यह बात जानती थी कि ऋषभ उसके इर्दगिर्द ही नहीं घूमता, बल्कि काॅलेज से जुड़े उसके सारे कामों को उसने अपने कंधों पर ले रखा है। ऋषभ और श्रुति की दोस्ती सभी को पता थी।

कैंटीन में अपना टिफिन ऋषभ के साथ शेअर करते हुए श्रुति ने पूछा, “दो महीने में एग्जाम्स हो जाएंगे, फिर क्या इरादा है?”

“एमबीए करूंगा, फिर पापा के बिजनेस को संभालूंगा,” ऋषभ ने लापरवाही से कहा।

“उसे अभी संभाल लो, एमबीए की क्या जरूरत?” श्रुति ने चिढ़ाया।

“हां, पापा तो हमेशा से यही चाहते हैं। लेकिन जैसे ही बिजनेस को हाथ लगाया तो तुरंत छह महीने में शादी कर देंगे कि बेटे के हाथ में पैसा आने लगा है, कहीं बिगड़ ना जाए।”

ऋषभ की बात सुन कर ज्योति बोल उठी, “सच मेरे घर में भी भइया का यही हाल है। वह भी आलतू-फालतू कोर्स में नाम लिखा कर काॅलेज दौड़ता रहता है। उसे भी पता है, काॅलेज बंद तो ट्रैक्टर की एजेंसी को संभालने को बोल देंगे। फिर वही शादी और नून-तेल का चक्कर।”

“श्रुति, तुम भी एमबीए जॉइन कर लेना,” ऋषभ ने कहा।

“हां, मुझे बैंक की प्रतियोगिता के एग्जाम्स देने हैं। मैं बैंक या एमएनसी में काम करना चाहती हूं,” श्रुति ने कहा।

“ओह फिर मैं अपने पापा का बिजनेस कैसे संभाल पाऊंगा? तुम्हारी महानगर में जॉब लग गयी तो,” ऋषभ ने चिंतातुर हो कर कहा।

“तुम तो ऐसे परेशान हो रहे हो जैसे श्रुति तुम्हारी बीवी हो,” ईशिता ने हंसते हुए कहा।

श्रुति ने शर्म से नजरें झुका ली। उसके गाल आरक्त हो उठे। उसने पहले इस विषय में कुछ सोचा ही नहीं था। ऋषभ खिसिया कर अपनी गरम चाय के घूंट तेजी से भरने लगा और उठ कर चला गया।

ज्योति ने ईशिता को डपटा, “क्या यार, तूने उसे एंबेरेस कर दिया।”

श्रुति चुपचाप अपने टिफिन को समेटती रही।

उस दिन के बाद से श्रुति की सोच बदल गयी। उसे रात-दिन ऋषभ की नयी-पुरानी हर बात याद आती गयी। अब उसे अहसास होने लगा था कि ऋषभ तो हमेशा से उसके इर्दगिर्द ही पृथ्वी की तरह परिक्रमा कर रहा था। उसने खुद पर ध्यान देना शुरू कर दिया। नया-नया हेअर स्टाइल ट्राई करना शुरू कर दिया। जब ऋषभ प्रशंसात्मक नजरों से उसे देखता तो वह भी मुस्करा देती।

काॅलेज की विदाई पार्टी में जब वह पीले रंग की लहरिया साड़ी में काॅलेज पहुंची तो ऋषभ उसके कानों में आ कर बुदबुदाया, “सूरजमुखी का फूल लग रही हो।”

“तुम्हें तो उपमा देनी भी ठीक से नहीं आती,” श्रुति ने कहा।

“कहा ना कवि नहीं हूं, कॉमर्स का छात्र हूं। मैं सपाट बात करता हूं। मुझसे शादी करोगी?”

श्रुति अचकचा गयी। फिर मुस्करा कर बोली, “सोच कर बताती हूं।”

शाम को पार्टी के बाद ऋषभ ने कहा, “आज ही मैं अपनी नयी कार लाया हूं। चलो कहीं घूम कर आते हैं।”

“पंद्रह दिन बाद से फाइनल एग्जाम हैं। आज वैसे भी लेट हो गए हैं, एग्जाम खत्म होने पर घूमने चलेंगे,” ज्योति ने कहा।

“हां, यह सही कहा,” ईशिता और श्रुति ने भी सहमति प्रदान की।

“चलो, आज तुम सबको घर ड्रॉप कर देता हूं। आज तो तुम लोग बहुत सजधज कर आयी हो,” ऋषभ के इस प्रस्ताव को सबने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

कार से उतरकर श्रुति अपने घर के गेट को खोलने के लिए बढ़ी तो देखा उसके पड़ोस के मकान में नए किरायेदार का सामान उतर रहा है, जिसकी वजह से उनकी गाड़ी और मोटर साइकिल उसके गेट से चिपक कर खड़ी है। किसी तरह जगह बनाते हुए उसने अपना गेट खोला तो उसकी साड़ी का आंचल मोटर साइकिल से उलझ गया।

“ओ मेरी नयी साड़ी,” बुदबुदाते हुए उसने सावधानी से मोटरसाइकिल के हैंडल से पल्लू छुड़ाया तो उसकी नजर हेडलाइट के कवर पर पड़ी, जिसमें सफेद दौड़ते हुए घोड़े का स्टीकर चिपका हुआ था।

“ओह तो ये था मेरे सपने का राज, लहरिया दुपट्टा और सफेद घोड़ा। मां ने ठीक कहा था कि सपने भावी जीवन के संकेत भी देते हैं। ये आज के दिन का संकेत था मेरा प्रपोज डे,” वो खुशी से उछलती हुई घर में दाखिल हो गयी।

पूरा महीना कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। एग्जाम्स बहुत अच्छे गए थे। श्रुति भी अब चैन की नींद सो रही थी।

श्रुति जल्दी से सीढ़ी उतरती जा रही थी कि अचानक धक्का लगा और वह मुंह के बल नीचे गिर गयी। उसकी कुहनी और घुटने छिल गए। एक तीखी लहर के साथ दर्द का सैलाब उठा। वह झटके से उठ बैठी।

आज कितने महीने के बाद फिर से वही सपना आया था। श्रुति बिस्तर से उठ कर बालकनी में आ गयी। उसने बालकनी से चारों तरफ देखा। अचानक वह चौंक उठी। उसके बगल के डुप्लेक्स की बालकनी में खड़ा युवक उसी को घूर रहा है। श्रुति हड़बड़ा कर बालकनी से अंदर आ गयी।

अपने कमरे में बैठ कर वह सोच-विचार में पड़ गयी। एक सपने का अर्थ तो समझ आ गया। इस सपने का अर्थ भी समझ आ जाए तो फिर सपनों से भयभीत होना बंद हो जाएगा। श्रुति ने एक गहरी सांस भरी और दोबारा सोने की कोशिश करने लगी।

सुबह ऋषभ का फोन आ गया कि काॅलेज कैंटीन में आ कर मिलो। आज काॅलेज से एनओसी भी लेनी है।

घर से बाहर निकलते ही बगल के घर से उसकी स्कूटी के आगे लगभग 3 साल का बच्चा दौड़ता हुआ आ गया। बच्चे को बचाने के चक्कर में वह स्कूटी ले कर लुढ़क गयी। फिर भी उसने तुरंत उस बच्चे को जमीन से उठाया और अपने नए पड़ोसी के घर में ले कर चली गयी।

सामने बरामदे में वही कल रात वाला युवक खड़ा था।

“इस तरह से गेट खुला मत रखिए। ये भागती हुई मेरी स्कूटी से टकरा गयी। अच्छा हुआ कि इसे चोट नहीं लगी,” श्रुति बच्ची को गोद से नीचे उतारते हुए एक सांस में कह गयी।

“सॉरी, हमारी गलती की सजा आपको मिली है। देखिए आपकी कुहनी से खून निकल रहा है,” युवक ने शर्मिंदा हो कर कहा।

श्रुति का ध्यान अपनी कुहनी पर गया, जो सड़क में रगड़ खा कर छिल गयी थी। उसे अपने घुटनों में भी जलन का अहसास होने लगा।

श्रुति का दर्दभरा चेहरा देख कर युवक ने उसे डॉक्टर के पास चलने का प्रस्ताव देते हुए कहा, “आपको टिटनेस का इन्जेक्शन लगवाना चाहिए। आप मेरे साथ चलिए।”

बरामदे से आ रही आवाजों को सुन कर अंदर से युवक के माता-पिता भी निकल कर आ गए।

“क्या हुआ अनुज?” उन्होंने अपने बेटे से पूछा।

मनु दौड़ कर मम्मा-मम्मा करती हुई उनसे लिपट गयी।

“मां, ये मनु बाहर निकल गयी और इनकी स्कूटी से टकरा गयी। ये इसके चक्कर में गिर कर चोटिल हो गयी हैं,” अनुज ने पूरी बात बतायी।

“अच्छा हुआ मुझे ही चोट लगी, मैं तो बर्दाश्त कर सकती हूं। मनु ठीक है, यही मेरे लिए काफी है,” कह कर श्रुति जाने के लिए मुड़ी तो अनुज
की मां ने कहा, “ठहरो बेटी, तुम हमारे पड़ोस में
ही तो रहती हो। तुम्हारी मां से परिचय हो चुका है मेरा। बैठो बेटा, मैं अभी फर्स्ट एड बॉक्स ले कर आती हूं।”

“नहीं मां, मैं इन्हें डिस्पेंसरी ले जा कर फर्स्ट एड और टिटनेस टीका लगवा कर लाता हूं,” फिर अनुज पूरे अधिकार से उससे बोला।

“आप अपनी स्कूटी की चाबी मुझे दीजिए और चलिए मेरे साथ।”

श्रुति उसे मना ना कर सकी और यंत्रवत उसके पीछे चल पड़ी।

श्रुति काॅलेज देर से पहुंची। उसे देख कर ऋषभ ने हंस कर कहा, “ये तोड़फोड़ कहां से करके आ रही हो?”

“एक बच्ची बच गयी, मेरे लिए यही काफी है। वह बच्ची बहुत प्यारी सी है गोरी, गोलमटोल, घुंघराले बालों वाली।”

“तुम भी बचपन में ऐसी ही प्यारी लगती होगी,” ऋषभ ने कहा।

“सच कहा तुमने, तभी मैं कहूं कि वह चेहरा पहले भी कहीं देखा है। घर जा कर अपनी पुरानी अलबम से वह फोटो निकालूंगी और मनु की मम्मी को दिखाऊंगी। वे भी चौंक जाएंगी। वैसे हमारे पड़ोसी हैं बड़े मजेदार, एक बच्चा 25-26 का, दूसरा ढाई साल का।”

“कमाल है, उनकी जवानी की दाद देनी पड़ेगी,” ऋषभ की बात सुन कर श्रुति की हंसी छूट गयी।

तभी ईशिता ने आ कर धमाका कर दिया, “रिजल्ट आ गया है और श्रुति ने काॅलेज टॉप किया है।”

“झूठ मत बोल, अभी तो नेट पे चेक किया, कोई रिजल्ट नहीं है।”

“सर्वर डाउन हो गया है, अब शाम तक रिजल्ट अपलोड होंगे। मैं नोटिस बोर्ड देख कर आ रही हूं।”

“सच,” श्रुति खुशी से नोटिस बोर्ड की तरफ दौड़ पड़ी।

“चलो पार्टी करते हैं,” ऋषभ ने कहा।

“नहीं मेरे घर चलो, मैं अपने परिवार के साथ इस खुशी को शेअर करना चाहती हूं। पार्टी मेरे घर में होगी।” श्रुति की बात से सभी सहमत हो गए।

गेट पर श्रुति के साथ 3-4 लोगों को आते देख कर रीना आशंका से भर उठी। सोचने लगी कि मैंने इसे सुबह ही काॅलेज जाने से मना किया था कि आज तेरा दिन ठीक नहीं है, मगर नहीं मानी। ये सब लोग इसे घर पहुंचाने आए हैं, कहीं काॅलेज में इसे चक्कर तो नहीं आ गए?

“मम्मी, मेरा रिजल्ट आ गया, मैंने टॉप किया है,” श्रुति मां के गले लिपट कर चहकी।

देर रात तक पार्टी की धूम मची। ईशिता, ज्योति, ऋषभ के अतिरिक्त अन्य सहपाठी भी इस पार्टी में फोन कर बुला लिए गए।

सबके जाने के बाद श्रुति ने अपनी मां से कहा, “मां, अब आपको मेरे सपनों के लिए किसी ज्योतिषी के चक्कर काटने की जरूरत नहीं है। मुझे पता चल गया है कि ये सपने मेरे जीवन के शुभ संकेत हैं और मुझे इनसे भयभीत होने की जरूरत नहीं है।”

“तुझे कैसे पता चला?”

“कब से सीढ़ी से गिर कर चोटिल होने का सपना देख रही थी और आज स्कूटी से गिर कर जब चोटिल हुई तो आज ही मुझे टॉपर बनने का सौभाग्य मिल गया,” श्रुति ने कहा, “पता है पिछले 2 सालों से मैं 4, 5 नंबरों से दूसरे स्थान पर रह जाती थी।”

“वैसे मैं तेरी कुंडली दिखा चुकी हूं, उन्होंने कहा है तेरा भविष्य बहुत उज्ज्वल है, विवाह की चिंता ना करें, घर बैठे रिश्ता आएगा,” रीना ने बताया।

“मुझे पहले एमबीए करना है, जॉब करनी है। उसके बाद ही विवाह करूंगी,” श्रुति की बात सुन कर रीना मुस्करा कर रह गयी, वह आज के दिन उसकी खुशी को कम नहीं करना चाहती थी।

श्रुति अनुज के साथ मौसी को लाने जा रही थी तो रास्ते में क्या हुआ? जिस मनु को श्रुति अनुज की बहन समझ रही थी, वह दरअसल कौन थी? मौसी के आने से क्या राज खुला, इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए इंतजार करें कहानी की अगली किस्त का...