ट्रेन में जिस लड़की से मुलाकात हुई थी, लाख चाहने पर भी अमित उसे ढूंढ़ नहीं पाया, लेकिन उस पर धुन सवार हो गयी थी कि वह शादी तो उसी से करेगा। क्या गौरव उसकी इस समस्या का कोई हल निकाल पाया?

ट्रेन में जिस लड़की से मुलाकात हुई थी, लाख चाहने पर भी अमित उसे ढूंढ़ नहीं पाया, लेकिन उस पर धुन सवार हो गयी थी कि वह शादी तो उसी से करेगा। क्या गौरव उसकी इस समस्या का कोई हल निकाल पाया?

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ट्रेन में जिस लड़की से मुलाकात हुई थी, लाख चाहने पर भी अमित उसे ढूंढ़ नहीं पाया, लेकिन उस पर धुन सवार हो गयी थी कि वह शादी तो उसी से करेगा। क्या गौरव उसकी इस समस्या का कोई हल निकाल पाया?

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अमित समझ गया कि वह शर्त हार गया। शर्त के मुताबिक अब उसके पास गौरव की बात मान लेने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। उसके दिमाग ने दोस्त की तर्कशीलता का लोहा मान लिया। दिल का क्या है? वह सुबके तो सुबके। वैसे भी बतौर अमित अब दिल उसके पास रहा ही कहां। उसे तो वह लड़की ले गयी।

गौरव ने उसे महीने-दो महीने का समय दिया और कहा-

‘‘तू इतने दिन कुछ भी मत सोच। ना उस ट्रेन वाली लड़की और उसके कहे के बारे में। ना मम्मी-पापा द्वारा बतायी जा रही लड़कियों के बारे में। हां, मैं उन्हें यह जरूर समझा दूंगा कि वे तुझे तभी लड़कियों के फोटो दिखाएं, जब तू चाहे। ओके।’’

यों कैफे में 3 घंटे साथ बिताने और तीसरे राउंड की कॉफी खत्म करने के बाद दोनों दोस्तों ने एक-दूसरे से विदा ली।

दो के बजाय तीन महीने बीतने को आए। अमित के माता-पिता के फोन गौरव के पास जल्दी-जल्दी आने लगे। वे यह जानने को बैचेन थे कि अमित का मन नयी लड़कियां देखने के लिए बन पाया या नहीं? गौरव ने कुशल मध्यस्थ की तरह दोनों से इस ढंग से बातचीत की कि अमित लड़कियों के उपलब्ध प्रस्तावों में से तीन को देखने जाने के लिए तैयार हो गया। पर उसने यह भी कहा कि-

‘‘लड़की देखने पहले मैं और गौरव ही जाएंगे। अगर मुझे जमी और उसकी तरफ से भी मेरे लिए हां हुई, तो ही मम्मी-पापा आप लोग उसके पेरेंट से मिलिएगा।’’

अमित के पापा को यह बात बहुत नागवार गुजरी। कहने लगे-

‘‘हद हो गयी। पहले परिवार के बड़े मिलें कि सीधे लड़का-लड़की? आखिर अनुभव भी कोई चीज होती है। संस्कार भी देखने होते हैं। मुझे साथ जाना ही होगा।’’

बड़ी मुश्किल से उन्हें मम्मी ने मनाया।

‘‘सुनो जी, अमित लड़कियां देखने के लिए तैयार हो गया, यह क्या कम है? नहीं तो ट्रेनवाली लड़की की याद में कुंअारा बैठा रहता। क्या वह आपको अच्छा लगता? शादी उसे करना है। वह देख ले पहले क्या फर्क पड़ता है? इसमें आप ख्वाहमख्वाह कोई अड़चन ना डालें। प्लीज।’’

‘‘मम्मी सही कह रही हैं पापा जी। मैंने कैसे टेक्टफुली अमित को राजी किया है, यह मैं ही जानता हूं। कभी वह फिर बिदक गया तो? अपन काम को बस आगे बढ़ाने की सोचें,’’ गौरव ने भी पापा को समझाया। वे बड़ी मुश्किल से मन मार कर राजी हुए।

दो लड़कियां देख चुकने और वहां रिश्ता नहीं जम पाने के बाद अमित का उत्पन्न करवाया गया उत्साह बुझ सा गया। उसने गौरव से कहा-

" ऐसा कर इस तीसरी लड़की को तू ही देख आ। मैं हुआ, तो फिर बाद में मैं देख लूंगा।"

‘‘नहीं यार। तेरी खातिर मैंने पापा जी को जाने से रोका। तुझे चलना ही होगा।’’

दोनों जब लड़की के घर पहुंचे, तो उसके पिता जी बाहर ही मिल गए। ‘आइए आइए’ के बाद सीधे गौरव की ओर मुखातिब हो कहने लगे-

‘‘आप अमित जी के दोस्त हैं ना? चलो, मैं आपको कॉलोनी की सैर करवा के लाता हूं। यहां बहुत बढ़िया गणेश मंदिर है। अब ये दोनों एक-दूसरे को देख-समझ
लें। मैंने वाइफ को भी उसकी सिस्टर के यहां भेज दिया। आजकल जमाना यही करने का है।’’

अमित ने सोचा, ये मुझसे भी बड़ेवाले निकले। खैर, दोनों ने लड़की के पिता की बात मान ली। और कर भी क्या सकते थे। अब ड्रॉइंगरूम में केवल अमित ही बैठा बचा। लड़की अंदर से आने वाली है।

जैसे ही वह आयी अमित को लगा पूरी दुनिया तेजी से लट्टू की तरह घूम रही है। हर चीज घूम रही है। ...क्या मुझे चक्कर आ रहा है? ...या कि मैं सपना देख रहा हूं। उसने अपने आपको चिकोटी काटी। ओ माई गाॅड, यह मैं किसे देख रहा हूं? वही गुलाबी परिधान में स्मार्टली ड्रेस्डअप होना। ...वही रेशमी, काले और लंबे बाल होना। ...वही बड़ी-बड़ी और कजरारी चमकती आंखें। ...हवा में घुलती वही बहुत महीन, प्यारी और भीनी-भीनी सी सुगंध...

दोनों एकटक एक-दूसरे को देखते रह गए। अपलक निहारते रहे। कोई बातचीत नहीं। बस नैनों से प्यार की भाषा में आलाप लेते रहे। एक-दूसरे की नजरों के जादू से बिंधते रहे। दोनों को लगा कुछ तो है ऐसा अदृश्य शक्ति से तरंगित तार के बंधन जैसा, जिसका गुरुत्व हमें करीब ला रहा है। नहीं ला चुका है। भौतिक रूप से हम आज आमने सामने हैं। पर आत्मिक रूप से शायद उसी दिन से एक पाश में बंध चुके हैं, जब निजामुद्दीन एक्सप्रेस में टकराए थे। एक-दूजे के लिए बने होने का अहसास दोनों को बराबरी से महसूस हुआ। दोनों जैसे मूर्तिवत हो गए।

काफी देर बाद अमित ने बेहद मुलायम स्वर में कहा-

‘‘तुम वही हो ना, जो उस दिन मैं तुम्हें फिर मिलूंगी। कहां और कैसे, मैं नहीं जानती कह कर ट्रेन से उतर गयी थीं।’’

लड़की आपादमस्तक शरम से लाल हो गयी। और बोली-

‘‘हां याद है मुझे, कहा था मैंने कि मैं तुम्हें फिर मिलूंगी। कहां और कैसे मैं नहीं जानती, पर अपने ही कहे की अतल गहराई को मैं आज समझी हूं।’’

तब तक गौरव लड़की के पिता के साथ कॉलोनी और मंदिर घूम कर वापस आया। उसने दोनों की बात सुनी, तो मन ही मन बोल उठा, ‘कहते हैं मैरिजेज आर मेड इन हेवन, पर अब कहना होगा मैरिजेज आर मेड इन ट्रेन !’