सरिता को जो सुख जीवन में मिला, वह शायद उसकी बहन की किस्मत में नहीं लिखा था। ऐसी क्या विशेषता थी सरिता में, जो उसे राजीव जैसा सर्वगुण संपन्न पति मिला?

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सरिता को जो सुख जीवन में मिला, वह शायद उसकी बहन की किस्मत में नहीं लिखा था। ऐसी क्या विशेषता थी सरिता में, जो उसे राजीव जैसा सर्वगुण संपन्न पति मिला?

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आज सरिता की शादी की सालगिरह है और सीमा सुबह से तैयारियों में सरिता का हाथ बंटा रही थी। सरिता और सीमा अच्छी सहेलियां ही नहीं पड़ोसिनें भी हैं। करीब सालभर पहले सीमा अपने पति संकेत के साथ फरीदाबाद के सेक्टर 16 की इस खूबसूरत सोसाइटी आनंद विले के टावर नंबर 7 में रहने आयी थी। सुबह दूध के पैकेट अपने दरवाजे से उठाते समय पहली बार उसका सरिता से सामना हुआ था। सरिता उसी टावर में सीमा के सामने वाले अपार्टमेंट में रहती थी। एक मीठी सी मुस्कान का आदान-प्रदान और धीरे से गुड मॉर्निंग।

यही थी उनकी पहली मुलाकात। मुलाकात का ये नन्हा सा बीज जल्द ही एक मजबूत दरख्त बन गया। दोनों ही उम्र के तीसवें दशक में थीं और दोनों के पति कॉरपोरेट वर्ल्ड में काम करते थे, लेकिन दोनों का स्वभाव एक-दूसरे से पूर्णतः विपरीत। जहां सरिता सरल, शांत और गंभीर व्यक्तित्व की स्वामिनी है, वहीं सीमा चुलबुली, चंचल और हर वक्त हंसने-हंसाने वाली नटखट सी लड़की। विविधता में एकता जैसी उनकी यह दोस्ती दिनोंदिन गहराती जा रही थी।

इन दोनों महिलाओं के दिल की भांति इनके अपार्टमेंट भी जैसे नजदीक आ कर ‘एक घर’ जैसे बन गए थे। दोनों बचपन की सहेलियों की तरह हर काम में एक-दूसरे की मदद करतीं या कहो कि सब काम मिलजुल कर करतीं, हर बात शेअर करतीं और सुख-दुख में एक-दूसरे के साथ खड़ी रहतीं।

सरिता ने अपनी शादी की सालगिरह के मौके पर बिल्डिंग के पीछे बने बड़े से लॉन में अपने परिवारजनों और कुछ खास दोस्तों के लिए एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया था। उसका कहना था कि होटल में पार्टी देने से पार्टी में पर्सनल टच नहीं रहता। सब कुछ एक फिल्म के सेट जैसा लगता है और आप अपनी ही पार्टी में मेहमान जैसा महसूस करने लगते हैं। इसीलिए वह घर में दी जानेवाली पार्टियां ज्यादा एंजॉय करती है।

सीमा तैयार हो कर अपने पति के साथ समय से कुछ पहले ही सरिता के घर पहुंच गयी, ताकि लास्ट मिनट की तैयारियों में उसकी मदद कर सके।

सरिता और सीमा की निगरानी में बने स्वादिष्ट भोजन और हल्के-फुल्के खेलों ने पार्टी में रंग जमा दिया। पार्टी में हुई ढेर सी मस्ती और हंसी-मजाक के बाद सभी मेहमान सरिता और उसके पति राजीव को धन्यवाद देते हुए लौट गए।

लेकिन सीमा को सरिता ने यह कह कर रोक लिया, ‘‘अरे चली जाना, कौन से दूर जाना है। जरा देर और बैठ ना,’’ और फिर नौकरानी को 2 कॉफी बनाने के लिए कह कर दोनों सहेलियां बालकनी में आ बैठीं। कॉफी के साथ गपशप करते हुए सीमा ने कहा, ‘‘सरिता यार, अपनी शादी की अलबम तो दिखा। शादी कैसे हुई? कहां हुई ?अरेंज थी या लव? आज शादी की सालगिरह के मौके पर मुझे तेरी शादी की पूरी आत्मकथा सुननी है।’’

‘‘बहुत लंबी कहानी है यार,’’ सरिता ने टालने के अंदाज में कहा।

‘‘मुझे भी कहां जल्दी है। आज की पूरी शाम यों भी तेरे नाम थी, अब रात भी सही,’’ सीमा आराम से कुर्सी के सामने रखे स्टूल पर पैर फैलाते हुए बोली।

‘‘ठीक है फिर फोटोज के साथ शुरू करती हूं,’’ कह कर वह अंदर जा कर एक छोटी सी फोटो अलबम उठा लायी और सीमा को दिखाने लगी।
फोटोज को देख कर सीमा को लगा कि शादी कुछ ज्यादा ही साधारण तरीके से हुई थी। शादी में सिर्फ सरिता के माता- पिता, भाई-बहन और उसके पति राजीव की तरफ से सिर्फ उसकी एक मौसी दिखायी दे रही थीं। दुलहन ने एक साधारण सी साड़ी पहनी हुई थी। ना कोई मेकअप, ना दुलहन वाला कोई तामझाम। शादी जैसा कुछ भी नहीं दिख रहा था। फोटो भी शायद परिवार के किसी सदस्य ने ही खींचे थे। सरिता के घर के दरवाजे पर खड़े हो कर वर-वधू दोनों एक-दूसरे को अपने बगीचे के फूलों से बनी वरमाला पहना रहे थे। फिर घर के आंगन में ही बने छोटे से मंडप में हुए फेरों के कुछ फोटो थे।

सीमा जानती थी कि राजीव और सरिता दोनों के ही परिवारों की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी है। ‘‘फिर शादी इतनी साधारण तरीके से क्यों हुई?’’ उसने पूछा।

‘‘वो क्या है ना, हमारी शादी बहुत जल्दी में हुई थी,’’ सरिता थोड़ी असहज हो कर बोली।

‘‘वो क्यों?’’ सीमा ने हैरानी से पूछा।

‘‘क्योंकि राजीव को शादी की जल्दी थी,’’ सरिता ने एक वाक्य में बात खत्म करते हुए नजरें चुरा लीं।

‘‘राजीव को शादी की इतनी जल्दी क्या थी कि वह ठीक से तैयार भी नहीं हो सका? उसने तुम्हें भी दुलहन की तरह कोई साज-सिंगार करने का भी वक्त नहीं दिया,’’ सीमा ने सरिता की टांग खींची।

‘‘राजीव के भाई और पापा राजीव की शादी उसकी भाभी की बहन से करवाना चाहते थे। वह लड़की बहुत सुंदर, पढ़ी-लिखी और अमीर भी थी,’’ सरिता धीरे-धीरे प्याज की परतों की तरह खुलने लगी।

‘‘ओह अच्छा, और राजीव तुझसे प्यार करता था इसीलिए उसने अपने मां-बाप से छुप कर तुझसे शादी कर ली होगी,’’ सीमा ने जैसे सारा मामला समझते हुए कहा।

‘‘अरे नहीं यार, तू अपनी कल्पना की उड़ान को जरा ब्रेक तो लगा, हमेशा जल्दी में रहती है। अरे बुद्धू ऐसा कुछ भी नहीं था। मुझे तो राजीव ने शादी वाले दिन पहली बार देखा था।

‘‘भई, यह कहानी तो दिलचस्प होती जा रही है। अब तू जरा शुरू से सुना,’’ सीमा ने आराम से पालथी मार कर बैठते हुए कहा।

‘‘हां तो सुन। बात यह थी कि राजीव की भाभी बहुत ही सुंदर, पढ़ी-लिखी और अमीर खानदान की बेटी थी। लेकिन उसका व्यवहार राजीव की सीधी-सादी मां के साथ अनुकूल नहीं था,’’ सरिता ने कहानी का सिरा पकड़ते हुए कहा।

‘‘अरे यार, अब तू आम के पेड़ पर अमरूद मत उगा। मैं तेरी शादी की बात कर रही हूं और तू राजीव की भाभी के कसीदे पढ़ रही है,’’ सीमा के हवाई घोड़े फिर दौड़े।

‘‘थोड़ा सफर का भी मजा लीजिए जनाब, मंजिल तो आनी ही है। कहानी को जरा धीमी आंच पर पकने दे, धीरे-धीरे सिंकने दे, उसकी खुशबू को हवाओं में घुलने दे, फिर देख मजा,’’ सरिता ने लंबी सांस ले कर जैसे खुशबू लेते हुए कहा।

‘‘ठीक है सुनाइए, कथावाचक सरितानंद जी,’’ सीमा ने हाथ जोड़े और दोनों हाथ अपने दोनों गालों पर रख कर भोली सी सूरत बना कर बैठ गयी।

‘‘हां तो, भाभी के परिवार और अपने परिवार के रुतबे की समानता को देखते हुए राजीव के पिता ने वह रिश्ता तय किया था। उनका कहना था कि सास-बहू के झगड़े तो हर घर में होते हैं। यह कोई बड़ी बात नहीं है। असल बात यह है कि रिश्ते बराबर वालों में करने चाहिए और हर नए जुड़ते हुए रिश्ते के साथ परिवार के सामाजिक और आर्थिक रुतबे में बढ़ोतरी होनी चाहिए। इन सब बातों में वे राजीव की मां की भी नहीं सुनते थे?’’ सरिता ने कहानी की पृष्ठभूमि बनायी।

‘‘फिर क्या हुआ?’’ सीमा ने अनमने भाव से पूछा।

‘‘फिर एक बार जब राजीव छुट्टियों में हॉस्टल से घर आया, तो उसने देखा कि वहां तो उसकी शादी भाभी की बहन से पक्की करने की बातें हो रही थीं। राजीव ने उस शादी से साफ इनकार कर दिया और अपने पिता से नाराज हो कर अपनी मौसी के गांव चला आया,’’ सीमा को कहानी की खुशबू आने लगी थी। परतें खुल रही थीं।

‘‘मौसी के गांव ही क्यों?’’ सीमा की दिलचस्पी बढ़ी।

‘‘क्योंकि वह अपनी मौसी से बहुत अटैच्ड था। उसे विश्वास था कि मौसी उसकी बात जरूर समझेंगी। हमारा घर मौसी के घर के पड़ोस में था,’’ सरिता ने बताया।

‘‘फिर, वहां पर राजीव ने हमारी सरिता को देखा होगा और देखते ही लट्टू हो गया होगा !’’ सीमा ने फिर अपनी तान छेड़ी।

‘‘अरे नहीं रे बाबा। जरा अपनी सोच के घोड़े को कुछ तो आराम दे,’’ सरिता ने फिर टोका और सीमा बच्चे की तरह मुंह पर उंगली रख कर चुपचाप बैठ गयी।

‘‘हां, तो जब राजीव ने अपनी प्रॉब्लम मौसी को बतायी, तो मौसी ने पूछा, ‘‘अरे बेटा, तू मनै यो बता के तू भाभी की बहन से ब्याह ना करना चाहवै के ब्याह ही ना करना चाहवै,’’ सरिता ने मौसी का लहजा पूरी तरह अपने बातचीत में उतारते हुए कहा।

‘‘मौसी, मुझे शादी तो करनी है, लेकिन करूंगा तब, जब मुझे वैसी लड़की मिलेगी जैसी मैं चाहता हूं,’’ राजीव ने बताया।

‘‘तन्ने कोई छोरी पहले से पसंद है के?’’ मौसी की अनुभवी आंखों ने राजीव के चेहरे में कुछ खोजते हुए पूछा।

‘‘नहीं मौसी, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ राजीव ने बताया।

‘‘फेर ठीक है। अब तू मनै ये बता के तू कैसी छोरी चाहवै है?’’ मौसी ने पूछा।

‘‘मौसी, मुझे भाभी जैसी लड़की तो बिलकुल नहीं चाहिए,’’ कह कर वे सब कड़वी यादें उसके सामने चलचित्र सी चलने लगीं, जो उसकी इस सोच का आधार थीं। उसके चेहरे पर एक दर्द उभर आया और उसकी मां का असहाय सा चेहरा उसकी आंखों के सामने आ खड़ा हुआ।

बात राजीव के भाई की शादी के समय की थी।

उसकी नयी नवेली कॉन्वेंट में पढ़ी-लिखी भाभी अपनी शादी के अगले दिन स्किन टाइट जींस-टॉप में आईने के सामने बैठी अपने बाल संवार रही थी, तभी मां ने आ कर कहा, ‘‘बहू, मुहल्ले की औरतें मुंहदिखाई के लिए आयी हैं। तू कोई भारी सी साड़ी पहन कर आइयो।’’

‘‘वो क्यों?’’ भाभी ने एतराज करते हुए पूछा था।

‘‘बेटा, यह गांव-देहात है। यहां औरतें बातें बनाने लगती हैं। हम किस-किस का मुंह बंद करेंगे। फिर कल तुम अपने पति के साथ शहर चली जाओगी। वहां जो मन हो, सो पहनियो,’’ मां ने समझाया।

‘‘लेकिन मैंने अभी तो कपड़े बदले हैं। वैसे भी मुझे साड़ी पहनना नहीं आता,’’ भाभी लापरवाही से बोली।

‘‘कोई बात ना बेटा, मैं पहना दूंगी,’’ फिर बहू का उखड़ा हुआ मूड देख कर मां बोलीं, ‘‘ठीक है बेटा, तुम इन्हीं कपड़ों पर कोई भारी दुपट्टा पहन कर बैठक में आ जइयो।’’

‘‘पर मां, जींस पर भारी दुपट्टा?’’ भाभी तुनक कर बोली।

‘‘अरे बेटा, गांव-देहात के लोगों को क्या पता,’’ मां ने बात संभाली।

फिर भाभी का पैर पटकते हुए बैठक में जाना और मां का भुस पर लीपने की कोशिश करते हुए, हें हें करके भाभी की तबियत खराब का झूठ बहाना बनाना। औरतों की कानाफूसी के बीच मां के चेहरे पर आते-जाते अपमान के भावों ने राजीव को सब बता दिया।

‘क्या हो जाता, अगर भाभी एक बार मां का कहना मान लेतीं। उन्हें सबके सामने यों नीचा दिखाना क्या जरूरी था?’ राजीव ने सोचा।

फिर पिछले 4 सालों में इस तरह के अनगिनत किस्से उसकी आंखों के सामने वीडियो रेकॉर्डिंग से घूम गए। जब भी भाभी गांव आतीं, हर बार घर की शांति की खातिर मां अपना सा मुंह सिल लेतीं और चेहरे पर एक मुस्कान चिपका लेतीं और भाई सब कुछ देखते हुए भी अनदेखा कर देता। यह सब राजीव को बहुत अखरता, लेकिन बड़े भाई से इस बारे में कुछ भी कहने या पूछने की इजाजत उसके संस्कार उसे नहीं देते थे।

घर का छोटा बेटा होने के कारण राजीव हमेशा से मां के बहुत करीब रहा है और मां की हर कही- अनकही बात वह उनके चेहरे को देख कर ही समझ जाता है। कोई मां का दिल दुखाए, उससे बर्दाश्त नहीं होता। इन्हीं सब घटनाओं ने उसके दिल में कहीं ये बीज बहुत गहरे बो दिए कि वह मां को ऐसी बहू ला कर देगा, जो मां को मान-सम्मान दे और मां की बहू नहीं, बेटी बन कर रहे।

तभी मौसी ने उसे झिंझोड़ते हुए कहा, ‘‘कहां खो गया, बेटा?’’

‘‘कहीं नहीं मौसी, हां क्या पूछ रही थीं आप?’’ राजीव जैसे नींद से जागा।

‘‘मैं पूछूं थीं के, कैसी छोरी नहीं चाहिए, यो मत बता। यो बता कैसी छोरी चाहिए,’’ मौसी ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा।

‘‘मुझे तो बस सीधी-सादी और भोलीभाली लड़की चाहिए। वह चाहे ज्यादा पढ़ी-लिखी ना हो, चाहे उसे दुनियादारी की ज्यादा समझ भी ना हो, लेकिन मेरी मां को अपनी मां समझ कर उसे आदर मान दे। भाभी का मां के साथ व्यवहार मुझे बहुत दुख देता है और मैं यह कहानी दोहराना नहीं चाहता,’’ राजीव ने अपना दिल खोल कर मौसी के सामने रख दिया।

‘‘तो क्या तू उस छोरी के मां-बाप नै अपने मां-पिता जी जैसा मान-सम्मान दे पावेगा?’’ मौसी ने राजीव को आईना दिखाया।

‘‘मैं वादा तो नहीं कर सकता मौसी, लेकिन उसके परिवार को अपनाने की दिल से कोशिश करूंगा और इसी कोशिश की उम्मीद उससे भी करूंगा,’’ राजीव ने कहा।

‘‘लेकिन तू तो आईआईटी में पढ़े है, तो फिर कम-पढ़ी लिखी छोरी सै कैसे निभावैगा?’’ मौसी ने अपनी आशंका के बहाने उसका मन टटोला।

‘‘मेरी मां भी तो कम पढ़ी-लिखी हैं, मौसी। भला प्यार की भाषा को जानने-समझने के लिए कितनी डिग्रियों की जरूरत होती है? उसके लिए तो ‘ढाई आखर’ ही काफी होते हैं,’’ राजीव की आंखों में सचाई झलक रही थी।

‘‘और छोरी अगर गांव की हो तो?’’ मौसी हौले से बोलीं। ये शब्द जैसे मौसी के मुंह से अनजाने में ही निकल गए और मौसी की आंखों के सामने सरिता की मनमोहिनी छवि डोलने लगी। सरिता मौसी के पड़ोसी की बेटी जरूर थी, लेकिन वह मौसी के आंगन में ही खेल कर बड़ी हुई थी। उसका मौसी से लगाव अपनी मां से कम नहीं था। वह अभी 17 साल की थी और बारहवीं में पढ़ती थी। लेकिन घर-गृहस्थी के छोटे-मोटे कामों के साथ-साथ मौसी को रामायण पढ़ कर सुनाना, उनके बालों में तेल लगाना, उसके पसंदीदा कामों में से थे। उसका सांवला-सलोना रूप और भोली सी मुस्कान उसे दूसरों से भिन्न बनाती थी। बुजुर्गों का मान-सम्मान करना तो मौसी ने उसे घुट्टी में पिलाया था।

‘‘मौसी, अब आप कहीं खो गयीं लगता है,’’ राजीव की आवाज से मौसी जैसे सोते से जागीं।

‘‘आ हां, क्या कह री थी मैं?’’ मौसी की तंद्रा टूटी।

‘‘किसी गांव की गोरी का जिक्र कर रही थीं आप फिलहाल तो,’’ राजीव ने मौसी को छेड़ते हुए कहा, ‘‘आप क्या मुझे कोई लड़की दिखाने वाली हो?’’

जारी...