फैशन का पैशन जो ना कराए कम है ! लेकिन डॉक्टर साहब तो कुछ अलग ही धुन की बंशी बजाने लगे थे। उनके सिर पर आखिर यह अजीबोगरीब भूत कैसे सवार हुआ था?

फैशन का पैशन जो ना कराए कम है ! लेकिन डॉक्टर साहब तो कुछ अलग ही धुन की बंशी बजाने लगे थे। उनके सिर पर आखिर यह अजीबोगरीब भूत कैसे सवार हुआ था?

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फैशन का पैशन जो ना कराए कम है ! लेकिन डॉक्टर साहब तो कुछ अलग ही धुन की बंशी बजाने लगे थे। उनके सिर पर आखिर यह अजीबोगरीब भूत कैसे सवार हुआ था?

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दो साल पहले की बात है, उस दिन डॉक्टर साहब क्लीनिक से आए, तो बहुत खुश नजर आ रहे थे। ऐसा आमतौर पर होता नहीं है, सो मुझे मन ही मन घबराहट होने लगी कि पता नहीं क्या गुल खिला कर आए हैं, जो मुस्कान इनके होंठों से मानो चिपक ही गयी है। पूछा, तो कहने लगे, ‘‘पता है आज एक समझदार लड़की आयी और उसने ऐसा टॉप पहन रखा था, जिसकी बाजू वहीं से कटी हुई थी, जहां मुझे इन्जेक्शन लगाना था, वरना लड़कियां तो ऐसे टाइट कपड़े पहन कर आती हैं कि पूछो मत। बेचारी गरीब भी लग रही थी, उसने जो जींस पहन रखी थी, वह घुटनों के पास से बुरी तरह से फटी हुई थी, मैंने तो उससे अपनी फीस भी नहीं ली।’’ 

हे भगवान ! मैंने माथा ठाेक लिया, ‘‘अरे, वह आपकी सुविधा के लिए नहीं, फैशन के लिए वैसा टॉप पहन कर आयी होगी। ऐसे टॉप को कोल्ड शोल्डर कहते हैं। और उसकी जिस जींस को आप फटी हुई समझ कर उस पर तरस खा चुके हैं, वह जानबूझ कर फाड़ी गयी होती है, लेटेस्ट फैशन है, डिस्ट्रेस जींस है वो। आप भी ना...’’ मुझे इनकी बातें सुन कर उस दादी की बात याद आ गयी, जो शहर में अपने बेटे के पास कुछ दिन रहने आयी थी। उसने देखा कि पोती की सारी जींस फटी हुई है, तो ना केवल एक-एक करके सारी जींस की तुरपाई करके रख दी, बल्कि बहू को डांट भी पिलायी कि जवान बेटी के कपड़े फटे हुए हैं और तुम्हें सुध ही नहीं है। जब पोती आयी, तो वह डिस्ट्रेस जींस की दुर्गति देख पर डिप्रेशन में चली गयी। 

डॉक्टर साहब का फैशन से कोई वास्ता नहीं था, यह मैं जानती थी। बेचारे आज भी किसी फंक्शन में अपना 30 साल पुराना शादी वाला थ्री पीस सूट पहन कर भरी भीड़ में अलग ही नजर आते हैं। इन्हें आज के फैशन की क्या समझ... 

मेरी बात सुन कर डॉक्टर साहब का चेहरा उतर सा गया। फ्रोजन शोल्डर तो सुना था, यह कोल्ड शोल्डर क्या बला है। वहीं डिस्ट्रेस में तो मन होता है, उसका फैशन से क्या लेना-देना। डाॅक्टर साहब का दिमाग भन्ना गया। लेकिन जो भी हो, उस दिन के बाद से डॉक्टर साहब का फैशन के प्रति रुझान कुछ ज्यादा ही बढ़ गया, ऐसा मुझे लगने लगा। 

एक दिन मैंने उनकी पसंद का मसालेदार मीट और परांठा बनाया था, खाते-खाते कहने लगे, ‘‘आपको पता है ये लेडी गागा कौन है।’’

लेडी गागा, नाम तो सुना हुआ लगता है, पर मैं ठीक से जानती नहीं थी, पूछा, ‘‘क्यों क्या हुआ, आपकी किसी मरीज का नाम है क्या?’’ 

वे ठठा कर हंस पड़े, ‘‘मैडम, अब हमें भी फैशन की समझ आ गयी है। यह लेडी गागा इंटरनेशनल मॉडल है, जिसने कुछ दिन पहले मीट की ड्रेस पहन कर सनसनी मचा दी थी। बताइए भला मीट खाने की चीज है या पहनने की।’’ मैं तो अपने डॉक्टर साहब के फैशन ज्ञान की कायल हो गयी।

अभी हाल की ही बात है, एक दिन कहने लगे, ‘‘संध्या जी, आप सिल्वर फॉइल में रोटी-परांठे लपेट कर उसे जाया कर रही हैं, जबकि इंटरनेट पर एक हसीना को देखिए, उसने तो उसकी ड्रेस ही बना कर फैशन को नयी दिशा दे दी है।’’ तो जनाब अब डॉक्टरी छोड़ कर सोशल मीडिया पर सैर करने लगे हैं, तभी तो कभी उन्हें मीट में लिपटी लेडी गागा दिखती है, तो कभी सिल्वर फॉइल में हसीना। 

सच तो यही है कि चंद सेलेब्रिटीज ने तो हद ही कर दी है। ब्रेसलेट पुराने जमाने की बात हुई, अब मौसम ब्रालेट कर है। एक जरा से पतले धागे पर टिका उनका अधोवस्त्र जरा से झटके से उन्हें वस्त्रविहीन भी कर सकता है ! लेकिन इस बात की फिक्र किसे है, ना तो देखने वालों को, ना ही दिखाने वालों को। हमारे जमाने में स्लीवलेस कपड़े पहनने में झिझक होती थी, अब ब्लाउज ही नहीं है, तो स्लीव्स कहां होंगी। ब्लाउज से जरा सा ब्रा दिख जाए, तो शरम महसूस होती थी। आज इन हसीनाअों का जिगर देखिए, ब्लाउज या टॉप ऐसा बनवा लिया कि नीचे से आधी ब्रा के दर्शन हो गए। वाकई आज की हसीनाअों ने फैशन में जो शरम-हया की झीनी सी दीवार थी, उसे तोड़ कर एक नयी बेशर्म फैशनेबल क्रांति का आगाज किया है। 

फिल्म राम तेरी गंगा मैली की मंदाकिनी को नहाते देख कर नाक-भौं सिकोड़ने वाले आज सोशल मीडिया पर नेट के झीने दुपट्टे में लिपटी कन्याअों को देख कर आहें भरते हैं। मैंने भी डॉक्टर साहब के साथ हॉल में जा कर राम तेरी गंगा मैली देखी थी, तब डॉक्टर साहब कितना कोस रहे थे इन हीरोइनों को। आज उन्हें देखती हूं, तो लगता है इंसान की रुचि का ऊंट कब किस करवट ले कर बैठ जाए, कह नहीं सकते। कभी खुद को फैशन की ज्ञाता मानने वाली मैं आज डॉक्टर साहब के फैशन ज्ञान के आगे नतमस्तक हूं। आज उन्हें टिकटॉक, रील और सोशल मीडिया की बदौलत सब पता है।

लेकिन मेरे लिए उनका फैशन ज्ञान जान का बवाल बन चुका है। उनके साथ मॉल-बाजार जाना दूभर हो गया है। किसी लड़की को देखते ही कहेंगे, वो देखो, कैसे बेबीडॉल शूज पहन अमेरिकन डॉल जैसी घूम रही है। हमने गरीबों को ठंड में फुटपाथ पर कंबल ओढ़ कर बैठे देखा है। उस दिन मॉल में एक मॉडर्न बाला को कंबल जैसी पोशाक में लिपटे देखा, तो कह उठे, वो देखो अब यहां भी ब्लैंकेट ड्रेस आ गयी है। वाकई उस नाशपीटी ने कंबल ड्रेस के सिवा कुछ और धारण नहीं किया था। डॉक्टर साहब ने एक दिन कहा कि जिसे मैं छापे वाली ड्रेस कहती हूं ना, वह दरअसल वॉलपेपर ड्रेस है।

किसी लड़की को जींस पहने देखा नहीं कि इनकी जींस की शब्दावली शुरू हो जाएगी। कहते हैं जींस की 24 से भी अधिक वेराइटी हैं। सीधी है, तो स्ट्रेट लेग, जबर्दस्त टाइट है, तो स्किनी। घुटनों पर फटी है, तो कहेंगे, देखो उसने डिस्ट्रेस जींस पहनी है। किसी ने ऊपर से लूज और बॉटम से टाइट जींस पहन रखी है, तो झट से कहेंगे, कैरेट लेग जींस अच्छी लग रही है ना। एक लड़की को देख कर कहा, देखो, वो लड़की बॉयफ्रेंड जींस में जंच रही है। मैंने कहा, आपको कैसे मालूम कि उसने बॉयफ्रेंड की जींस पहनी हुई है, तो मुस्करा कर कहने लगे, अरे, बॉयफ्रेंड ड्रेस का फैशन की दुनिया में मतलब है, थोड़ी लूज और यूनिसेक्स ड्रेस। किसी को ढीले पाजामे सी जींस में देखेंगे, तो कहेंगे, ये है मॉम जींस। लो राइज, हाई राइज बिल्डिंग्स ही नहीं, जींस भी आती हैं। बूट कट, फ्लेयर्ड, रिप्ड, कफ्ड, काऊबॉय, जी हां, ये सभी जींस के ही नाम हैं, जो मुझे इनसे ही मालूम हुए।

मुझे तो अब सच्ची बताऊं, इनकी फैशन नॉलेज से इनके कॉलेज के किस्से याद आने लगे, जो इनके एक जिगरी यार ने मुझे सीक्रेटली बताए थे। अब तो यह भी शक हाेने लगा है कि क्लीनिक जाने के बहाने ये कोई फैशन क्लास तो अटेंड करने नहीं जाते हैं ! 

फैशन को अदभुत आयाम देती बालाएं चाहें इंटरनेट सनसनी हों, पर डॉक्टर साहब के नए रुझान को देख कर मैं चिंतित हूं। एक दिन उन्होंने बम फोड़ा, ‘‘संध्या जी, देख लीजिएगा, एक दिन सिल्वर फॉइल ही नहीं, ट्रांसपेरेंट फॉइल के टॉप और पेपर नैपकिन की स्कर्ट में ये बालाएं अवतरित होंगी।’’ 

डॉक्टर साहब की फैंटेसीभरी कल्पना से मेरी तो रूह कांप रही है, आपका क्या खयाल है !