मेरी कजिन कुकी अपनी रहस्यमयी पियानो टीचर मिस माया की बातें बड़े उत्साह से बताया करती थी। कौन थी यह मिस माया और उसकी सोहबत में कुकी का क्या अंजाम हुआ?

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मेरी कजिन कुकी अपनी रहस्यमयी पियानो टीचर मिस माया की बातें बड़े उत्साह से बताया करती थी। कौन थी यह मिस माया और उसकी सोहबत में कुकी का क्या अंजाम हुआ?

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बरसों बाद उसी शहर में आना भला-भला सा लग रहा है। इस शहर को कभी भुला कहां पायी, हालांकि अब अपना कहने को ना कोई रिश्तेदार है ना परिचित, फिर भी ऐसा लग रहा है जैसे कितनी ही पुरानी यादें मुझसे गलबहियां करने को बेचैन हैं। सोचा भी ना था कि दोबारा कभी इन रास्तों पर लौटूंगी, पर बेटी ने इस शहर से ही अपना वर चुन लिया। आज टीका करने जा रही हूं। मेरे लंबे चौड़े परिवार के गिनेचुने लोग ही आए हैं।

सड़कें अपनी पुरानी पहचान लगभग खो चुकी हैं। फ्लाईओवर्स के जाल बिछ गए हैं। मैं लगातार खिड़की से बाहर रंगबिरंगे होर्डिंग्स की भीड़ में पुरानी यादों के निशान ढूंढ़ने में लगी हूं। बगल में बैठी जेठानी जी को बताना चाहती हूं कि यह शहर कभी मेरा कितना अपना था, पर देख रही हूं कि मैं स्वयं ही इस शहर के लिए नितांत अजनबी हो चुकी हूं। मेरी कार जो सबसे पीछे चल रही थी एक छोटे से धमाके के साथ थोड़ी दूर घिसट कर रुक गयी। ड्राइवर के बगल में बैठा मेरा बेटा बोला, ‘‘लगता है टायर पंक्चर हो गया।’’ ओफ्फो... यह क्या... मन कुछ आशंकित हो उठा मेरा... वर्षों के दुराग्रह छूटते हैं भला। मैं बेचैनी से भर उठी। भीड़-भड़क्के से निकल गाड़ी अभी-अभी जरा खुले में आयी थी... और...

ड्राइवर ने कहा वह जल्दी ही स्टेपनी बदल लेगा, किंतु तय हुआ कि मुझे और जेठानी जी को अनावश्यक ना रोका जाए अतः बेटे ने फोन करके अगली गाड़ी को रुकवा दिया। गाड़ी की दूसरी तरफ आते ही पेड़ों के झुरमुट में हठात मेरी दृष्टि उस इमारत पर चिपक गयी। सघन पेड़ों के बाद एक बड़ी सी खुली-खुली जगह, वह इमारत वैसे ही खड़ी थी। वही चर्च का घंटा, वही क्रॉस, वही लाल ईंटें और इमारत पर उकेरा कॉन्वेंट का नाम... एकबारगी झुरझुरी सी हो आयी मुझे... किसी गहरे रहस्य को अंक में समेटती यह इमारत मैं कभी नहीं भूल सकती। मैंने जेठानी जी का हाथ पकड़ कर लगभग उन्हें ठेलते हुए गाड़ी में बिठाया और मन ही मन हनुमान चालीसा पढ़ डाली। मन में एक भय उठा। कल्कि को भी लड़का पसंद आया, तो कहां का। दिनभर रस्मों, नए संबंधियों और अपरिचित माहौल में वह इमारत और उससे जुड़ी त्रासद यादें जैसे किसी हिडन आइकन की तरह मेरे दिमागी कंप्यूटर के किसी कोने में दुबक गयी थीं। अच्छे लोग थे। बहुत अच्छा घर-परिवार, सौमित्र और अन्य सभी लोग अभी नीचे हॉल में ही थे। सब गपशप में लगे थे। हमारे संबंधियों का सौजन्यपूर्ण भोज मेरे उदर पर काफी भारी पड़ रहा था, सो सोचा जरा खुली हवा में टैरेस पर चहलकदमी ही क्यों ना कर ली जाए। दिन में अपनी भावी समधिन द्वारा दिखायी गयी सीढि़यां चढ़ती मैं टैरेस पर चली आयी। टैरेस के दूसरे सिरे पर पहुंच कर मुड़ी ही थी कि धक्क से रह गयी।

तो क्या जिस सड़क का गोल चक्कर लगा कर हम इस बिल्डिंग में आए वह कॉन्वेंट के ठीक पीछे ही है? मेरे सामने यूकिलिप्टस के पेड़ों के पीछे दूधिया चांदनी में नहाया हुआ कॉन्वेंट का बड़ा सा घंटा चमक रहा था। मैं उलटे कदमों मेजबानों द्वारा दिए अपने कमरे में चली आयी। ध्यान हटाने के लिए मैंने टीवी तो ऑन कर लिया, लेकिन अनचाहे ही यादों की परतें एक-एक कर टीवी स्क्रीन को ढांपने लगी।

तब इस शहर में मेरा ननिहाल हुआ करता था। खुला-खुला सा शहर, बड़ी-बड़ी सड़कें, विरल आबादी और सघन अपनापन। नानी, मामा-मामी और उनकी इकलौती बेटी। जब भी छुटि्टयां होतीं मैं यहीं बिताती। इसके बावजूद कि वह मुझसे 4 साल छोटी थी उसकी और मेरी खूब जमती।

छुटि्टयां थीं और मैं यहीं थी। मेरी कजिन कुकी उन दिनों रोजाना स्कूल से लौटती, तो कोई ना कोई चॉकलेट लाती और मेरे साथ शेअर करते हुए मुझे मिस माया के किस्से सुनाती। वह 11वीं में थी और अपनी एक टीचर मिस माया की फैन थी।

उसकी मिस माया जो कॉन्वेंट में पियानो टीचर थीं और जो उसी की बस में गेट के पास वाली सीट पर बैठा करती थी। वे हेमिंग्टन रोड के कोने पर बने एक पीले बंगले में रहती थीं। कुकी बड़े उत्साह से बताती कि खूब बड़े उस बंगले में एक खूबसूरत बगीचा भी था, कई रंगों के गुलाबों से भरा। कुकी के कथनानुसार उनके ड्रॉइंगरूम में बड़ी-बड़ी अलमारियों में विचक्राफ्ट से संबंधित देशी-विदेशी साहित्य भरा पड़ा था। मिस माया बंगाली क्रिश्चियन थीं और उन्हें ब्लैक मैजिक आता था। कुकी के अनुसार उनके पास कई तरह के जादुई मुखौटे भी थे। वे बूढ़ी थीं फिर भी गहरा मेकअप किया करतीं, अजीबोगरीब लिबास पहनतीं, वे एक मानी हुई विच थीं। कुकी ने बताया था कि उनके घर में भी गहरे आबनूसी रंग का बड़ा सा पियानो रखा हुआ है। उनके पास वीजा बोर्ड है, जिसके जरिए वे लोगों का भूत और भविष्य बताया करती है। मैं नोटिस करती कि यह सब बताते-बताते वह खो सी जाती। यह मैंने उससे कभी नहीं पूछा कि वह उनसे पहली बार कब मिली थी, पर 12वीं में आने तक उसने कई बार मिस माया की बातें की थीं। एक बार उसने काफी उत्साह से बताया कि मिस माया प्लैंचेट के जरिए मृत आत्माओं का आह्वान करती हैं। मुझे उसकी मिस माया का व्यक्तित्व एकदम रहस्यमयी और काफी हद तक डरावना लगने लगा था सो मैंने उसे धमकाया भी कि वह इस माया से जरा दूर ही रहा करे, नहीं तो मैं मामा से कह दूंगी। मामा की सख्ती से सब डरते थे। इसके बाद कुकी ने मुझसे मिस माया का जिक्र करना छोड़ दिया।

मुझे याद है उस दिन मैं नहा कर आयी, तो कुकी गुनगुनाती हुई अकेली टेबल पर झुकी कुछ कर रही थी। मैंने पीछे से जा कर उसे चौंकाना चाहा था। किंतु आश्चर्य, वह जरा भी नहीं चौंकी और उसी तरह पेंटिंग करती रही। वह एक बड़ा सा रंगबिरंगा किंतु भयावह मानव चेहरा था। मैंने चित्र उसके सामने से खींच लिया था और आश्चर्य में भर कर पूछा था, ‘‘यह क्या पेंट कर रही है तू ?’’अजीब उत्तर था उसका, ‘‘यह मैं हूं।’’

उन छुटि्टयों में मेरी और उसकी ज्यादा बात नहीं हो पाती थी, हम दोनों के ही एग्जाम्स थे और हम एक ही कमरे में रहते हुए भी अपनी किताबों में मुंह गाड़े रहते। मैंने खास गौर ही नहीं किया तब कि वह कुछ ज्यादा ही गंभीर रहा करती और चुप भी।

एक रात वह उठ कर नींद में चलती हुई घर के मेन गेट तक पहुंच गयी थी कि हमारे ड्राइवर ने जो बाहर बरामदे में ही सोता था उसे रोक दिया।

कई महीने बीत गए मुझे वापस आए हुए कि एक दिन बहुत रुंआसी आवाज में मां ने मुझे बताया, ‘‘रावी, आज मामी जी का फोन आया है। कुकी बहुत सीरियस है। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है।’’

मैंने चौंक कर मां से और जानना चाहा कि आखिर अचानक उसे क्या हो गया, किंतु मां को भी इसके अलावा और कुछ ज्यादा मालूम नहीं था कि वह एग्जाम्स के दौरान बेहोश हो गयी। मेरे इंटरनल्स ना चल रहे होते, तो हम तुरंत उसे देखने चले जाते। उसी शाम दोबारा फोन पर पता चला कि अब उसकी हालत सुधर रही है। सप्ताहभर बाद ही मेरी क्लासेज कुछ दिनों के लिए ऑफ हो गयीं। रिशू को पापा के साथ छोड़ मुझे ले कर मां कुकी को देखने गयीं। पता चला कि एक दिन कक्षा में बैठी-बैठी वह जड़वत हो गयी। पहले तो किसी ने ध्यान नहीं दिया, किंतु देर बाद उसकी किसी फ्रेंड के कई बार पुकारने पर भी जब उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, तो उसने आ कर कुकी को कंधे से पकड़ कर हिलाया। लेकिन वह वैसी ही गुमसुम बैठी रही और फिर बेहोश हो गयी। सिस्टर ने फोन पर खबर दी और उसे घर लाया गया। बाद में डॉक्टरों के कहने पर उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। जब कोई फायदा नहीं हुआ, तो डॉक्टरों की राय पर उसे मनोचिकित्सक विभाग में भेज दिया गया। मामा-मामी नहीं चाहते थे कि बात फैले, इसलिए उन्होंने कुकी की हालत के बारे में किसी को कुछ नहीं बताया। मुझे मां से पता चला। डॉक्टर कहते हैं कुकी को एक तरह का सिजोफ्रेनिया है। तब सिर्फ 17 की थी कुकी। मिस माया का जिक्र सामने तब आया जब मैं वहां गयी। कितने ही तो किस्से भी सुनाया करती, कहती मिस माया ने उसे बताया कि एक रोज एक लड़की स्कूल कैंपस में अकेली छूट गयी। वह लाइब्रेरी में सो गयी थी और रात को जब उसकी नींद खुली, तो वह डर के मारे मदद के लिए पुकारती हुई बेसमेंट की तरफ चली गयी, क्योंकि उधर से लाइट आ रही थी। वहां उसे एक सिस्टर खड़ी दिखायी दीं, लेकिन जैसे ही उसने उन्हें पुकारा और वे घूमीं... उनके चेहरे की जगह कंकाल था... वह बेहोश हो गयी। दूसरे दिन उसे लाइब्रेरी में बेहोश पाया गया। बाद में वह पागल हो गयी। मैंने टोका भी था कुकी को कि
झूठी है तेरी मिस माया। जब वह लड़की पागल हो गयी, तो किसी को पता कैसे चल सकता है कि उसके साथ ऐसा कुछ हुआ भी था... मुझे उसकी आंखों में भर आया आक्रोश बता गया कि उसे मेरा इस तरह उसकी मिस माया पर शक करना काफी नागवार लगा।

‘‘वे सारी बातें उसने मेंटल हॉस्पिटल में कही थीं स्टुपिड,’’ वह चिढ़ गयी थी। मैंने तब इतना अंदाजा लगाया था कि जो भी हैं ये मिस माया, कुकी उनसे गहरे जुड़ गयी है।

क्रमश: