गोलमटोल बंटी क्रेश में कमजोर सा हो गया, तो मीनू परेशान हो उठी। क्रेश की मैडम के आश्वासन के बावजूद वह डॉक्टर से मिली, तो क्या राज खुला?

गोलमटोल बंटी क्रेश में कमजोर सा हो गया, तो मीनू परेशान हो उठी। क्रेश की मैडम के आश्वासन के बावजूद वह डॉक्टर से मिली, तो क्या राज खुला?

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गोलमटोल बंटी क्रेश में कमजोर सा हो गया, तो मीनू परेशान हो उठी। क्रेश की मैडम के आश्वासन के बावजूद वह डॉक्टर से मिली, तो क्या राज खुला?

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ना जाने कहां छुपा बैठा है ये, रोज का इसका यह तमाशा है... आवाज लगा-लगा कर तो मेरा गला दुख गया है... मीनू उसे ढूंढ़ते हुए बगीचे तक आ गयी थी। आम के पेड़ के पीछे छुपे बैठे 3 साल के बंटी को देख कर मीनू का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया था। उसने आव देखा ना ताव और एक जोरदार चांटा बंटी के कोमल गाल पर जड़ दिया। जब तक बंटी कुछ समझ पाता तब तक मीनू ने उसे उठा कर कार की पिछली सीट पर बैठाया और अस्सी की स्पीड पर चल दी, उसे क्रेश छोड़ने के लिए।

गाड़ी तो जैसे उसका दिमाग ही चला रहा था, क्योंकि बाएं हाथ की कलाई में बंधी घड़ी पर से वह जैसे अपनी आंखें ही नहीं हटा पा रही थी। रोज उसे ऑफिस में सबके सामने इस बंटी के कारण डांट खानी पड़ती है। उसे याद आया कि थाेड़े दिनों पहले तक बंटी कितना हंसता-मुस्कराता रहता था।

इसी बंटी ने ना जाने कितने बेबी कॉन्टेस्ट जीते। गोलमटाेल बंटी को देखते ही सब उसे हाथों में लेने के लिए मचल उठते थे, पर जैसे ही उसने बंटी की दादी को गांव भेज कर उसे शहर के सबसे महंगे क्रेश में डाला, ये दिनबदिन और फूहड़ और उज्जड होता चला जा रहा है। इतने सारे बादाम-काजू खिलाने के बाद भी आंखों के नीचे एेसे गड्ढे हैं, मानो शरीर में कुछ लगता ही नहीं है।

यही सब सोचते हुए ना जाने कब बंटी का क्रेश आ गया, मीनू को पता ही नहीं चला। जैसे ही उसकी कार बरामदे में पहुंची, वहां खड़े अर्दली ने उसे सलाम ठोंकते हुए एक चिरपरिचित मुस्कान दी।

कार एक पेड़ के नीचे पार्क करके उसने बंटी को गोद में उठाया और साथ में उसका बड़ा सा बैग, जिसमें ढेर सारे चिप्स, बिस्किट, बर्फी, चॉकलेट, उसकी पसंद का कढ़ी-चावल और हमेशा की तरह उसके भालू वाले डिब्बे में काजू और किशमिश थे।

जैसे ही वह क्रेश के अंदर दाखिल हुई, वहां का साफसुथरा माहौल देख कर उसका मन खिल उठा। अगर सफेद कपड़ा ले कर भी फर्श पर लोट जाओ, तो कहीं धूल का एक कण नहीं मिलेगा। पर उसके बाद भी पता नहीं बंटी को हर समय क्यों हल्का बुखार रहता है। उसने सोचा, आज वह यह बात वहां बैठने वाली मैडम से पूछ ही लेगी। पर वह जानती है कि उनके यहां हमेशा एक डॉक्टर रहते हैं, जो सिर्फ बच्चों की देखभाल के लिए है और इसीलिए तो वह महीने के 6000 रुपए सिर्फ बंटी की अच्छी परवरिश की वजह से अपने ऊपर कटौती करके दे रही है। वह कमरे के अंदर जाने ही वाली थी कि तब तक हमेशा की तरह हंसती-मुस्कराती शर्मा मैडम आ गयीं और बंटी को देखते ही खुशी से उछल पड़ीं। बंटी मीनू के सीने से और जोर से चिपक गया। शर्मा मैडम बंटी को जितना अपनी तरफ खींच रही थीं, वह मीनू का पल्ला उतने ही जोर से पकड़ रहा था।

‘‘ओफ्फो,’’ झुंझलाते हुए मीनू सारी सभ्यता भूल कर चिल्ला पड़ी और चीखी, ‘‘देखा आपने, कितना बदतमीज बच्चा है। मैंने अभी इसे घर में एक जोरदार चांटा मारा था तब भी यह मुझसे चिपका पड़ा है। और एक आप हैं, जो इसके पीछे जान दिए हुए हैं तब भी यह आपके पास नहीं जा रहा।’’

यह सुन कर शर्मा मैडम की आंखों में आंसू छलछला उठे और वे अपनी साड़ी के पल्लू से उन्हें पोंछते हुए बोलीं, ‘‘क्या करें मैडम, हमारी तो किस्मत ही ऐसी है। मैंने तो इन बच्चों के पीछे शादी भी नहीं की। मुझे लगा, कहीं मेरी ममता बंट ना जाए और ये बच्चे जब ऐसा व्यवहार करते हैं, तो बहुत दुख होता है।’’

मीनू उनकी बात सुन कर दंग रह गयी। पसंद तो वह उन्हें पहले से करती थी, पर आज उनके जीवन की यह सचाई सुन कर उसका मन उनके प्रति असीम श्रद्धा से भर उठा और वह बंटी को उन्हें देते हुए सिर्फ इतना ही कह सकी, ‘‘कृष्ण को भी तो मां यशोदा ने जन्म नहीं दिया था, पर थीं तो वे उनकी मां से भी बढ़ कर।’’

‘‘अरे आपने इतना सम्मान दे कर मुझे अभिभूत कर दिया मैडम...’’ शर्मा मैडम उन्हें एकटक देखते हुए बोलीं।

मीनू ने मुस्कराते हुए बंटी के खाने-पीने का बैग उन्हें पकड़ाया और मुस्करा कर बाहर निकल गयी। दिनभर की ऊहापोह में कब शाम के 6 बज गए, उसे पता ही नहीं चला। क्रेश का टाइम तो केवल 5 बजे तक का था, पर शर्मा मैडम ने कभी भी इस बात काे ले कर कोई शिकायत कभी नहीं की, बल्कि वह जब भी वहां पहुंचती थी, तो एक कप गरमागरम कॉफी से ही उसका स्वागत हाेता था।

भागती-दौड़ती जब वह क्रेश पहुंची, तो 7 बजने वाले थे और शर्मा मैडम बंटी को लिए टीवी देख रही थीं।

‘‘माफ कीजिएगा, बंटी के पापा अमित एक साल के लिए ऑफिस के काम से विदेश क्या गए, मैं सब काम संभालते हुए पागल सी हुई जा रही हूं।’’

‘‘कोई बात नहीं... आप नाहक ही संकोच करती हैं। मैं तो कहती हूं, आज देखिए पूरा 1 महीना हो गया बंटी को हमारे यहां आए हुए, आपको जरा भी पता लगा।’’

‘‘हां, यह बात तो है, पर आपसे एक बात कहनी थी...’’ मीनू ने आंखें झुकाते हुए कहा। उसे लग रहा था शर्मा मैडम कहीं उसकी बात सुन कर नाराज ना हो जाएं या फिर वे बंटी को रखने से मना ना कर दें, इसलिए वह संकोच के मारे कुछ कह नहीं पा रही थी।

‘‘नहीं-नहीं, आप बताइए, क्या बात है। आखिर सुबह तो आपने मुझे यशोदा मां कहा है ना,’’ कहते हुए सुर्ख लाल साड़ी का पल्ला ठीक करते हुए शर्मा मैडम ने उसकी आंखों में सीधा झांकते हुए पूछा।

‘‘देखिए, आपसे तो कुछ छिपा नहीं है, जब अमित विदेश गए थे, तो उन्होंने गांव से अपनी मां को बुला लिया था,’’ कहते हुए मीनू का चेहरा ना चाहते हुए भी विद्रूप हो उठा, ‘‘पर इसकी दादी का व्यवहार मुझसे बिलकुल बर्दाश्त नहीं हो रहा था। घर में कहीं भी जमीन पर बंटी को सुला देना, खुद भी इसके बगल में नंगी फर्श पर लेट जाना। ना तो इसको टाइम से सोने देना और ना इसके जागने पर दूध कॉर्नफ्लेक्स देना, बस आलू के परांठे मक्खन के साथ चाय की कटोरी पकड़ा देना।

‘‘यह कोई भी शैतानी करता था वे अपने सिर पर ले लेती थीं। उनकी संगत में तो पता है यह झूठ बोलना भी सीख गया था।’’

‘‘ओह माई गॉड... क्या कह रही हैं आप, क्या हुआ था,’’ शर्मा मैडम ने एक 3 साल के बच्चे के झूठ बोलने पर इतने आश्चर्य से मुंह फैलाते हुए पूछा, मानो पहली बार इस संसार में किसी बच्चे ने झूठ बोला हो, क्योंकि बाकी सब तो हरिश्चंद्र ही हैं।

मीनू को शर्मा मैडम की अपने प्रति सहानुभूति देख कर बहुत अच्छा लगा, इसलिए वह बिना रुके आगे बोली, ‘‘इसकी दादी के हाथ से मेरा क्रिस्टल का बोल गिर कर टूट गया, पता है पूरे 12 हजार थी उसकी कीमत... और जब मैंने उनको थोड़ा सा ऊंची आवाज में कहना क्या शुरू किया, तो उनकी आंखों में घडि़याली आंसू आ गए और ये मेरा बेटा, मेरा अपना खून दादी के सामने जा कर खड़ा हो गया और कहने लगा, ‘‘दादी को कुछ मत बोलो। मुझे माराे, मैंने तोड़ा है इसे।’’

शर्मा मैडम ने तुरंत बंटी की तरफ ममताभरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘मासूम बच्चों का क्या है, जैसा सिखा दो वैसा ही सीख जाते हैं। आपने बहुत अच्छा किया, जो इसे हमारे यहां डाल दिया।’’

मीनू बोली, ‘‘जी, पर मैं आपसे पूछना चाहती थी कि यह इतना कमजोर क्यों होता जा रहा है। क्या यह ठीक से खाता-पीता नहीं है?’’

‘‘आप विश्वास नहीं मानोगी मैडम, आप जो खाना देती हैं उसके अलावा मैं इसको दाल-चावल भी बना कर देती हूं। पर जैसा अभी आपने बताया ना कि यह अपनी दादी के बिना पलभर भी नहीं रह पाता था, तो शायद उनकी चिंता में अभी भी यह बहुत दुखी है। कुछ समय बाद जब यह धीरे-धीरे उन्हें भूल जाएगा, तो अपने आप ही आपको पहले की तरह गोलमटोल नजर आने लगेगा।’’

तभी वहां बैठी नर्स बोली, ‘‘गरमी का भी मौसम है मैडम, देखिए सारे ही बच्चे थोड़े से दुबले हो रहे हैं।’’

‘‘अच्छा-अच्छा, मैंने तो बस ऐसे ही पूछ लिया था,’’ कहते हुए मीनू ने बंटी का हाथ पकड़ा और उसके खाने का खाली बैग ले कर निकल गयी।

रास्ते में देखा, तो बंटी का गाल कुछ लाल दिखा। घबरा कर मीनू ने छुआ, तो बंटी बुखार से तप रहा था। मीनू का गुस्से के मारे खून जल उठा। उसने सबसे पहले वहीं से शर्मा मैडम को फोन मिलाया और अपने गुस्से को संयत करते हुए बोली, ‘‘आपने बताया नहीं कि बंटी को बुखार है।’’

‘‘मैडम, हमारे यहां तो डॉक्टर और नर्स दोनों ही सारे समय रहते हैं। दिनभर तो वह अच्छा-भला था। आप आयीं तब भी मेरी गोदी में आराम से बैठ कर टीवी देख रहा था। अब आप ही ने उसकी दादी की इतनी सारी बातें उसके सामने छेड़ दीं, हो सकता है उसका कोमल मन यह सब बर्दाश्त नहीं कर पाया हाे।’’

मीनू को अपनी ही सोच पर ग्लानि हुई। वह बात बदलते हुए बोली, ‘‘मां हूं ना मैडम... जरा बहक गयी थी। आशा है आप मुझे माफ कर देंगी। हां, कल मेरी बहुत जरूरी मीटिंग है, पर शायद मैं बंटी को कल छोड़ नहीं सकूं।’’ यह सुनते ही शर्मा मैडम रोने लगीं और उनकी सिसकियों की आवाज ने मीनू को विचलित कर दिया। वे बोलीं, ‘‘मैडम, लगता है आपका हमारे ऊपर से भरोसा उठ गया है। अब मैं अपना क्रेश ही बंद कर दूंगी, जब मेरी जिंदगी ही इन बच्चों के नाम है और...’’ आगे के स्वर उनके आंसू के वेग में बह गए।

मीनू बोली, ‘‘नहीं नहीं... अच्छा मैं डॉक्टर को दिखा कर आपके यहां सुबह इसे छोड़ दूंगी और मीटिंग खत्म करते ही इसे ले लूंगी।’’

शर्मा मैडम यह सुन कर ऐसे खुश हो गयीं जैसे उन्हें मुंहमांगी मुराद मिल गयी हो। मीनू ने शाम को जा कर डॉ. मिश्रा को दिखाया। मिश्रा जी एक भरपूर नजर उसके ऊपर डालते हुए थोड़ा तल्खी से बोले, ‘‘खाना-पीना नहीं दे रही हैं क्या आप बच्चे को? अभी करीब महीनेभर पहले यही बच्चा पार्क में अपनी दादी के साथ खेल रहा था, तो इसका वजन आज से चार गुना था। तो अब यह सूख कर कांटा क्यों हो गया।’’

मीनू अब भला दादी के गंवारपन के किस्से डॉ. मिश्रा को कैसे बताती, इसलिए वह चुपचाप बैठी रही।

डॉक्टर ने बड़े ही प्यार से बंटी को गोद में बैठाया और मीनू को कमरे से बाहर जाने का इशारा किया। मीनू ने सोचा अजीब बात है, वह बंटी की मां है और उससे ही डॉक्टर गैरों जैसा व्यवहार कर रहा है। पर मीनू डॉ. मिश्रा की बात काट भी नहीं सकती थी। दूर-दूर से लाेग उनसे इलाज कराने के लिए महीनों अपना नंबर लगवाए रहते थे, वह तो अमित के दोस्त होने के कारण वे उसे बिना किसी नंबर या अपॉइंटमेंट के तुरंत देख लेते थे। मीनू के कमरे से बाहर जाने के बाद करीब 2 घंटे बाद उसे डॉ. मिश्रा ने वापस अपने केबिन में बुलाया।

क्रमशः