बाबू जी मां के जाने के बाद बीमार रहने लगे, तो सबसे ज्यादा व्यस्तता अवनि की बढ़ी। लेकिन मौसी के आने पर बाबू जी को खुश व स्वस्थ देख कर अवनि क्यों परेशान हो उठी?

बाबू जी मां के जाने के बाद बीमार रहने लगे, तो सबसे ज्यादा व्यस्तता अवनि की बढ़ी। लेकिन मौसी के आने पर बाबू जी को खुश व स्वस्थ देख कर अवनि क्यों परेशान हो उठी?

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बाबू जी मां के जाने के बाद बीमार रहने लगे, तो सबसे ज्यादा व्यस्तता अवनि की बढ़ी। लेकिन मौसी के आने पर बाबू जी को खुश व स्वस्थ देख कर अवनि क्यों परेशान हो उठी?

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अपने मोबाइल की स्क्रीन पर घर के लैंडलाइन का नंबर देखते ही अवनि ने झट से फोन उठाया। हेलो कहते ही उधर से मेड की आवाज सुनायी दी, ‘‘दीदी, बाबू जी का बुखार बहुत बढ़ गया है। मैंने खाना खिला कर दवा दे दी थी, पर बुखार उतरा नहीं।’’

वह हड़बड़ा उठी। फिर जल्दी-जल्दी अमित को फोन किया, ‘‘अमित, बाबू जी का बुखार कम नहीं हो रहा है। प्लीज, आज तुम घर चले जाओ ना। आज मेरी एक इंपॉर्टेंट प्रेजेंटेशन है। मैं उसके बाद चली जाऊंगी। वैसे भी कई दिनों से जल्दी घर चली जा रही हूं, वर्कप्लेस पर बुरा असर पड़ता है। सर को क्या जवाब दूं। वे भी नाराज हो सकते हैं।’’

‘‘ओह हो अवनि !’’ झल्ला उठा अमित, ‘‘तुम्हें मालूम है, मैं एक जरूरी प्रोजेक्ट पर काम कर रहा हूं। मुझे अॉफिस में ज्यादा समय देना है और तुम हो कि मुझे जल्दी निकलने को बोल रही हो। पूरी टीम को मैंने काम करने के लिए रोक रखा है, मैं कैसे चला जाऊं? तुम्हें जैसे मैनेज करना है करो,’’ कह कर फोन काट दिया अमित ने।

अवनि का गुस्सा फूट पड़ा। सारा गुस्सा बड़बड़ाते हुए निकाल रही थी, ‘‘तुम्हारा काम काम है और मेरा कुछ नहीं? हम औरतों का कैरिअर मायने नहीं रखता? घर-दफ्तर दोनों जगह हम ही सामंजस्य बिठाते हैं। तुम मर्दों की तो कोई जिम्मेदारी होती ही नहीं?’’ वह सिर पकड़ कर बैठ गयी।

थोड़ी देर में खुद को शांत कर अपने बॉस के केबिन में गयी।

उसे देखते ही सक्सेना साहब बोल उठे,
‘‘आओ अवनि, मैं तुम्हें ही बुलाने जा रहा था। आज की तुम्हारी प्रेजेंटेशन काफी मायने रखेगी। नया क्लाइंट है, उसे इंप्रेस करना होगा, बिलकुल परफेक्शन के साथ !’’

‘‘सॉरी सर, मैं अपनी प्रेजेंटेशन माया को समझा दे रही हूं, वह हैंडल कर लेगी। मुझे थोड़ा जल्दी घर जाना है, बाबू जी की तबीयत ठीक नहीं।’’

‘‘फिर से?’’ सक्सेना साहब के तेवर कड़े हो गए।

‘‘सर प्लीज, मेरी मजबूरी है,’’ रोआंसी हो गयी अवनि।

‘‘देखो अवनि, तुम्हारी काबिलियत देखते हुए मैं तुम्हें कुछ नहीं कहता। मैं एक काबिल एंप्लॉई को खोना नहीं चाहता। लगातार कई दिनों से ऐसा चल रहा है। मैं ऊपर क्या जवाब दूंगा।’’

‘‘सर प्लीज, मैं जल्दी ही कुछ सोचती हूं।’’

‘‘ओके, पर क्लाइंट नया है। तुम माया को सारी डिटेल समझा कर जा सकती हो।’’

‘‘थैंक्यू सर ! थैंक्यू वेरी मच,’’ कहते हुए अवनि केबिन से बाहर आयी। माया को सारी डिटेल समझा कर निकल ही रही थी कि कुछ पुरुष कलीग की आवाज कानों में पड़ी, ‘‘यार, इन शादीशुदा औरतों को काम पर रखना ही नहीं चाहिए। इनके ऊपर घर की जिम्मेदारी इतनी होती है कि दफ्तर के कामों पर ध्यान ही नहीं देतीं।’’

‘‘हां यार ! पर पुरुषों से मुकाबला करने के चक्करों में ये घर पर बैठतीं भी तो नहीं।’’

तिलमिला उठी अवनि। मन तो चाहा मुंहतोड़ जवाब दे, पर वक्त की नजाकत को समझते हुए जल्दी-जल्दी घर के लिए निकल पड़ी।

रास्ते में सोचने लगी, ‘पता नहीं बाबू जी को क्या हो गया ! बुखार उतर ही नहीं रहा ! लगता है किसी बड़े अस्पताल में दिखाना पड़ेगा। इस बार सारे ही टेस्ट करवा दूंगी, जिससे मैं भी निश्चिंत हो पाऊं।

‘जब मां जी थीं, तो बाबू जी कितने स्वस्थ रहते थे। हमेशा चेहरे पर एक मुस्कराहट रहती थी। हमेशा खुश रहनेवाले बाबू जी कभी बीमार नहीं पड़ते थे, पर मां जी के जाने के बाद हमेशा चुप और बीमार रहने लगे। कहने को बाबू जी अमित के पिता थे, पर मुझे हमेशा अपनी बेटी ही माना। मां जी से हमेशा कहते, ‘‘बेटी और बहू में कोई फर्क नहीं होता। बेटी पहले आती है और फिर जल्दी ही विदा हो जाती है, जबकि बहू देर से आती है फिर सारी उमर साथ रहती है।’’ मां जी उनकी बातें सुन कर मुस्करा देतीं। मां जी भी अवनि को बेटी ही मानती थीं। अमित इकलौते थे, तो बेटी और बहू दोनों का प्यार अवनि को ही मिला।

अवनि को अपनी सास की याद आने लगी। मां जी थीं तो उसे घर की जिम्मेदारियों से मुक्त रखतीं। हमेशा प्रोत्साहित करती। कहतीं, ‘‘मैं तुम्हें कामयाब देखना चाहती हूं, इसलिए मन लगा कर दफ्तर में काम किया करो। घर संभालने के लिए मैं हूं ही। वैसे भी तुमने इतनी मेहनत से पढ़ाई की है, उसका फल तो तुम्हें मिलना ही चाहिए। तुम अपने कार्यस्थल पर औरों से पीछे रहो, क्योंकि तुम एक औरत हो, यह मैं सहन नहीं कर सकती। अगर तुम में काबलियत है, तो आगे बढ़ो। जब मां-बाप बेटे-बेटियों को एक समान पढ़ाते-लिखाते हैं, तो फिर औरत समाज में पीछे क्यों रहे। तुम्हारे मां-बाप ने कितने अरमानों से तुम्हें पढ़ाया होगा, इसलिए उनकी उम्मीदों को पूरा करो।’’

मां जी के इन शब्दों ने उसे काफी हौसला दिया और वह आगे बढ़ती चली गयी। दोनों बच्चों के होने पर भी उसने सिर्फ मैटरनिटी लीव ही लिया था। सब कुछ मां जी ही संभालती रहीं। घर और जिंदगी दोनों ही व्यवस्थित चल रही थी। समय पंख लगा कर उड़ रहा था। पर अचानक मां जी के जाने से सब बिखरने लगा। सब कुछ अव्यवस्थित हो गया। घर-आॅफिस दोनों संभालने में अवनि परेशान हो रही थी।

वह जब घर पहुंची, तो देखा बाबू जी कंबल ओढ़ कर लेटे थे। बच्चे पास ही बैठ कर होमवर्क कर रहे थे और मेड खाना बना रही थी।

उसे देखते ही बाबू जी बोल पड़े, ‘‘अरे बेटा, आज तू फिर जल्दी आ गयी?’’

‘‘तो और क्या करती? आपकी तबीयत सुधर ही नहीं रही। चलिए, जल्दी से मैं आप को डाॅक्टर को दिखा दूं।’’

‘‘अरे बेटा, मैं ठीक हो जाऊंगा। मामूली सा बुखार ही तो है !’’

‘‘नहीं, चलिए जल्दी से। बुखार हुए काफी दिन हो गया। मैं कोई लापरवाही नहीं करना चाहती।’’

अवनि बाबू जी को दिखा कर घर ले आयी। ज्यादा कुछ तो डाॅक्टर ने बताया नहीं, बस कुछ दवा बदल दी और कुछ टेस्ट लिख दिया। एक इन्जेक्शन तुरंत लगा, जिससे बाबू जी को थोड़ा आराम हो गया। सारा काम निपटा कर वह बेड पर लेट गयी। थकान के कारण आंख लग गयी।
फोन की आवाज से आंख खुली। मम्मी का फोन था। औपचारिक बातचीत के बाद मम्मी ने कहा, ‘‘बेटा, एक बात कहने के लिए फोन किया था। तुम्हारी शीला मौसी की तबीयत भी ठीक नहीं चल रही, डाॅक्टर ने उसे किसी बड़े अस्पताल में दिखाने को कहा है। मैं तो वहां हूं नहीं इतनी दूर आ गयी। समझ नहीं आ रहा क्या करूं? वैसे हमारे अलावा उसका और तो कोई है नहीं...’’

‘‘तो... मैं क्या करूं?’’ चीख पड़ी अवनि।

‘‘क्या हुआ बेटा, ऐसे क्यों बोल रही है। तू तो उसकी लाड़ली रही है। उसने तुम्हें अपनी औलाद की तरह पाला है। तुझे गोद में ले कर वह अपने गोद का सूनापन भूल गयी। तुम्हें ही अपना सब कुछ मानती रही और तू इस तरह बोल रही है।’’

‘‘हां मां ! पर मैं किस-किसको संभालूं? घर, दफ्तर, बाबू जी कम थे, जो अब ये शीला मौसी?

‘‘अवनि, पहले मन को शांत कर बेटा। समस्या इतनी भी नहीं, जितनी तुम्हें लग रही है। जब मन विचलित हो, तो सारी समस्याएं पहाड़ जैसी लगती हैं। जब शांत मन से उनका निवारण करो, तो एक-एक कर सब हल हो जाती हैं। काश ! मैं इस समय तुम्हारे पास आ सकती, पर घुटनों के दर्द ने ज्यादा चलना-फिरना मुश्किल कर रखा है। तुम पहले अपना मन शांत रखो फिर सोचना कैसे क्या करना है।’’

अवनि को लगा मां सही कह रही हैं। फोन रख कर अवनि आंखें बंद कर लेट गयी। अमित भी आॅफिस से आ गए, पर अवनि का नाराज चेहरा देख कर कुछ कहा नहीं। रात में बिस्तर पर अमित ने प्यार से उसके बालों को सहलाते हुए कहा,‘‘अवनि, बहुत परेशान हो?’’

‘‘क्या करूं, चारों ओर परेशानी ही दिख रही है, कोई हल दिख ही नहीं रहा। अगले महीने से बच्चों के एग्जाम भी शुरू होनेवाले हैं, ऐसे समय में बाबू जी, शीला मौसी, बच्चे, दफ्तर क्या-क्या संभालूं?’’

‘‘कोई बात नहीं, सब हो जाएगा ! अमित ने प्यार से कहा, ‘‘फिलहाल तुम आॅफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले लो, वैसे भी तुम्हारी छुट्टियां बची हुई हैं। एक बार सब मैनेज हो जाए फिर रेगुलर हो जाना।’’

‘‘बात छुट्टियों की नहीं अमित ! बात जिम्मेदारी की है। आॅफिस की भी कुछ जिम्मेदारियां हैं मुझ पर।’’

‘‘ठीक है, पर हालात को देखते हुए 2-3 दिन की ही ले लो। मैं ले सकता तो मैं ही ले लेता, पर तुम जानती हो ना ! मेरे लिए अभी संभव नहीं है। बच्चों के एग्जाम के समय मैं ले लूंगा,’’ अमित ने समझाते हुए कहा।

सुबह अवनि ने दो दिन की छुट्टी ले ली। अमित ने गाड़ी भेज कर मौसी को गांव से बुला लिया। गेस्टरूम में मौसी के रहने की तैयारी कर ही रही थी तभी मौसी ने घर में प्रवेश किया। मौसी के गले लगते ही एक सुखद अनुभव हुआ। ध्यान से देखा अवनि ने मौसी को, काफी कमजोर हो गयी थीं मौसी।

बाबू जी और मौसी दोनों को एक ही अस्पताल में दिखाया गया। सारे टेस्ट करवाए गए। पर दोनों की ही रिपोर्ट नाॅर्मल आयी।

कुछ विटामिन्स की दवा और वायरल की दवाइयां बाबू जी को दी गयीं, जिससे वे ठीक होने लगे। शीला मौसी को भी कुछ दर्द निवारक और ताकत की दवाइयां दी गयीं और वे भी बेहतर होने लगीं।’’

अवनि ने राहत की सांस ली। छुट्टी 2 दिनों की और बढ़ा ली थी। पांच दिनों में जिंदगी थोड़ी-थोड़ी पटरी पर आने लगी।

अगले दिन अवनि काम वाली को सारे काम समझा कर तथा मौसी को भी सारी चीजें समझा कर आॅफिस गयी।

सारा दिन निकल गया लगता है घर पर सब ठीक है, सोचती हुई अवनि ने एक ठंडी सांस ली। घर पहुंची, तो देखा बच्चे अपना होमवर्क कर रहे थे। बाबू जी के कमरे में टीवी चल रहा था। मौसी मेड के साथ खाने की तैयारी कर रही थीं। अवनि के होंठों पर मुस्कराहट तैर गयी।

एक हफ्ते में ही घर का माहौल बदल गया। बच्चे कभी मौसी से कहानी सुनते, तो कभी बाबू जी के साथ खेलते। बाबू जी का स्वास्थ्य भी अब काफी सुधर गया था। कभी-कभी शीला मौसी से बातें करते और मुस्कराते दिखते।

रविवार के दिन अवनि थोड़ा देर तक सोयी। जब जगी तब देखा बाबू जी और मौसी बालकनी में एक साथ चाय पी रहे थे और धीरे-धीरे कुछ बातें भी कर रहे थे। मां जी के जाने के बाद जो बाबू जी चुप हो गए थे, वे अब बातें करने और मुस्कराने लगे थे। कभी बच्चों के साथ खेलते, तो कभी अमित के साथ राजनीति पर चर्चा करते।

बाबू जी में इतना परिवर्तन !

अवनि को कुछ अजीब सा लगा। उधर शीला मौसी ने घर की सारी जिम्मेदारियां उठा रखी थीं।

जारी...