भारत के कुछ राज्य ऐसे हैं, जिनकी दीवाली, खानपान, कला, संस्कृति, साज-सज्जा, परंपरा, पूजा और आस्थाएं बिलकुल अलग हैं। जानिए कुछ ऐसे ही राज्याें के बारे में, जहां दीवाली की रौनक आश्चर्य में डाल देगी और आप कह उठेंगे, क्या वाकई ऐसा होता है?

भारत के कुछ राज्य ऐसे हैं, जिनकी दीवाली, खानपान, कला, संस्कृति, साज-सज्जा, परंपरा, पूजा और आस्थाएं बिलकुल अलग हैं। जानिए कुछ ऐसे ही राज्याें के बारे में, जहां दीवाली की रौनक आश्चर्य में डाल देगी और आप कह उठेंगे, क्या वाकई ऐसा होता है?

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भारत के कुछ राज्य ऐसे हैं, जिनकी दीवाली, खानपान, कला, संस्कृति, साज-सज्जा, परंपरा, पूजा और आस्थाएं बिलकुल अलग हैं। जानिए कुछ ऐसे ही राज्याें के बारे में, जहां दीवाली की रौनक आश्चर्य में डाल देगी और आप कह उठेंगे, क्या वाकई ऐसा होता है?

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दीवाली के दिन असम में अच्छी पैदावार के लिए खेतों में भी होती है पूजा

Hindu Goddess Kali clay sculpture


पारंपरिक नृत्य - असम में टी ट्राइबल के बीच जाहाली/झुमुर नृत्य होता है। यह कार्तिक अमावस्या के दिन यानी दीवाली के दिन होता है। कुछ-कुछ बिहू की तरह यह नृत्य किया जाता है। इस नृत्य को कुहूसोरी कहा जाता है। ढोल (मादोल), नगाड़े (सिंबल) की धुनों पर जाहाली/झुमुर आर्टिस्ट ताली बजाते हुए यह नृत्य करते हैं। नृत्य के बाद ये लोगों के घरों में जाते हैं, जहां उन्हें कुछ नकद राशि के अलावा चावल और पान-सुपारी दान-दक्षिणा में दिए जाते हैं। गांव के सभी लोग नृत्य में रम जाते हैं और अपने परिवारों के साथ मिल कर पर्व का आनंद उठाते हैं।
पूजा - इस दिन खेतों में अच्छी पैदावार, स्वास्थ्य और सुख-समृिद्ध की दुआ मांगने के लिए केले के पत्ते पर दीये जलाए जाते हैं। टी ट्राइबल कम्युनिटी के किसान और उनके घर की महिलाएं खेतों में जा कर विशेष पूजा करती हैं। असम के नलबाड़ी की रहनेवाली प्रोफेसर बंटी रेखा बर्मन के मुताबिक, ‘‘आज भी कुछेक मंदिरों में बकरे और कबूतर की बलि देने की प्रथा है। ज्यादातर घरों में काली पूजा हाेती है और शाकाहार खाया जाता है। कई घरों में मछली और मीट भी बनाया जाता है। दीवाली में फैमिली गेट-टूगेदर में भी नॉनवेज का लुत्फ लेते हैं।
नरक चतुर्दशी - इस दिन को महाकाली पूजा के रूप में मनाया जाता है। पूजा सुबह होती है। पूजा में देवी को फूल, फल, और अन्य चीजें चढ़ायी जाती हैं। इसके अलावा लोग अपने घरों को साफ करते हैं और दीपक जलाते हैं, ताकि नकारात्मक शक्तियों को दूर किया जा सके। रात में लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिल कर पूजा और भजन करते हैं।
फूड - इस दिन तरह-तरह के पीठे बनाए जाते हैं। तिल पीठा और दूध व चीनी से तैयार पीठा बनता है। लक्ष्मी पूजन में खिचड़ी, मिठाई, पूरी जैसी चीजें चढ़ती हैं।

Tarpan - a hindu religious ceremony to worship the departed ancestors

बंगाल में दो तरह की होती है काली पूजा

HYDERABAD,INDIA-NOVEMBER 17:Hindu God Krishna idol dancing on Buffalo in karthika deepam ustav event lighting 1 crore lights on November 17,2016 in Hyderabad,India


रीति-रिवाज और पूजा - दीवाली में काली पूजा होती है। कोलकाता की पब्लिक रिलेशन एग्जिक्यूटिव शर्मीली दास कहती हैं, ‘‘पूजा पंडाल में भक्त एकत्र हो कर मां की आराधना करके प्रसाद ग्रहण करते हैं। काली पूजा मुख्यतः दो प्रकार से होती है।ब्राह्मण विधि से और तांत्रिक विधि से। पहली सामान्य पूजा है और दूसरी में मध्यरात्रि उपासना होती है। मां को गुड़हल के फूल, लाल सिंदूर, नारियल की खोपरी आदि से प्रसन्न किया जाता है। कभी-कभी पशुबलि का भी प्रावधान है, जिसके द्वारा तांत्रिक सिद्धि या परालौकिक शक्तियों का आह्वान किया जाता है। सामान्य पूजा परंपरागत तरीके से होती है।
खास पकवान - काली पूजा में भोजन का एक महत्वपूर्ण स्थान है। खिचुड़ी के परंपरागत भोग के अलावा सब्जियों, चटनी, चावल की खीर, सूजी का हलवा, लूची (पूरी) का भी प्रसाद तैयार होता है। इसमें निरामिष मंगशो या शाकाहारी मटन बिना प्याज-लहसुन के बनता है।’’

happy young Indian woman preparing diwali flower rangoli on floor for pooja or ritual at home - concept of festive celebration, special occasion and traditional culture or wear


ओडिशा में होता है तर्पण और पिंडदान


पूजा - ओडिशा अपनी कला-संस्कृति, नृत्य और मंदिरों की वजह से प्रसिद्ध है। कटक की रहनेवाली लाइफ कोच रश्मि कानूनगो के मुताबिक, ‘‘यहां दीवाली की तुलना में दुर्गा पूजा ज्यादा धूमधाम से मनायी जाती है। दीवाली में बाकी राज्यों की तरह लक्ष्मी पूजन होता है, जो सुख-समृिद्ध के लिए किया जाता है। ओडिशा के कुछ क्षेत्रों में दीवाली की रात काली पूजा की जाती है। काली पूजा में पहले बलि दी जाती थी, लेकिन अब दुर्गा और काली पूजा में पेठा/कद्दू की बलि देते हैं। जो घर या मंदिर में जा कर विशेष काली पूजा करते हैं, वे उपवास रखते हैं। मंदिर में रात भर पूजा होती है और दूसरे दिन प्रसाद वितरण हाेता है। प्रसाद में खीर, पूरी, मिक्स वेजिटेबल और खिचड़ी बनायी जाती हैं।
तर्पण - नदी, तालाब और झील के किनारे लोग अपने पूर्वजों को जल अर्पित करते हैं। रात को दीवाली पूजन होने से पहले भी वे अग्नि से पूर्वजों के लिए प्रार्थना करते हैं। अग्नि से तर्पण के लिए जूट की तीलियां जलायी जाती हैं।
पिंडदान - चावल के आटे के पिंड/गोले बनाए जाते हैं और कौओ के माध्यम में पूर्वजों को अर्पित किया जाता है।
चंडी पूजा - ओडिशा के कुछ क्षेत्रों में चंडी यानी दुर्गा पूजा होती है। विशेषतौर पर पान के पत्ते, कच्ची या पक्की सुपारी, लाल गुड़हल के फूल पूजा में चढ़ाए जाते हैं।
रोशनी की रात - मिट्टी के दीयों से दीवाली मनायी जाती है। सुबह चावल के पाउडर को पानी में घाेल कर अल्पना/ रंगोली बनायी जाती है। शंख, मछली, शुभ लाभ का चिन्ह विशेष तौर पर बनाया जाता है।
दीवाली के व्यंजन - इस दिन पारंपरिक मिठाई खाैजा और पोड़ा पीठा, घुघनी और पूरी आदि भी बनायी जाती है।’’


दीवाली के दिन हैदराबाद में होता है भैंसों का उत्सव


दीवाली की रस्म- हैदराबाद में थलाई दीवाली नामक एक और रस्म है, जिसमें नवविवाहित दुलहन के पैतृक घर में अपनी पहली दीवाली मनाते हैं। इस दिन लोग सत्यभामा की मूर्तियों की पूजा करते हैं। बाजार, आभूषण की दुकानें, फूलों की दुकानें और मिठाई की दुकानें गुलजार होती हैं।
पूजा- हैदराबाद स्थित सेंट जोसफ स्कूल की टीचर ज्योति गोलमुडी के मुताबिक, ‘‘दीवाली हरिकथा या हरि की कहानी के संगीतमय वर्णन के साथ मनायी जाती है। माना जाता है कि कृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने राक्षस नरकासुर का वध किया था, इसीलिए सत्यभामा की विशेष तौर पर पूजा होती है। बहुत सुंदर विशेष मिट्टी की मूर्तियों की पूजा की जाती है। दीवाली के दिन सुबह 4 बजे उठ कर उबटन और तेल का स्नान किया जाता है। फिर परिवार के सभी सदस्य बैठ कर पूजा करते हैं।
पारंपरिक उत्सव- हैदराबाद में यादव कम्युनिटी द्वारा दीवाली में भैंसों का उत्सव भी मनाते हैं, जिसे दुन्नापोथुला पंडुगा के नाम से भी जाना जाता है। भैंसों को बहुत सुंदर तरीके से सजाया जाता है। उन्हें फूलों की माला पहना कर सड़कों में घुमाया जाता है।
पकवान - इस दिन मुरुक्कू, अधिरसम, लड्डू सहित कई तरह के मीठे व नमकीन स्नैक्स तैयार किए जाते हैं। यहां पर दीवाली में विशेष तौर पर लक्ष्मी जी काे खीर चढ़ायी जाती है। चावल की खीर बनाना बहुत जरूरी है। जैसे उत्तर भारत में 5 दिन दीवाली होती है, वैसे आंध्र प्रदेश में सिर्फ 2 दिन मनायी जाती है।’’


जम्मू में बनती हैं मीठी पूरियां


पूजा- जम्मू कश्मीर में खासतौर पर कश्मीरी पंडित दीवाली मनाते हैं। जम्मू के रहनेवाले फाइनेंस एग्जिक्यूटिव अशोक धर के मुताबिक, ‘‘कश्मीर में लक्ष्मी पूजन मंदिर में होता है। कश्मीर में कहीं माता वैष्णो देवी और कहीं देवी दुर्जा की पूजा भी होती है। सुबह उठ कर नहा कर नए कपड़े पहन कर परिवार के लोग मंदिर में जाते हैं। मिठाई और ड्राई फ्रूट्स अपने आसपास पड़ोस, रिश्तेदारों और दोस्तों को दिए जाते हैं। दीवाली में उपवास रखते हैं और दिन ढलने पर मंदिरों और घरों में खास पूजा व हवन भी होते हैं।
पारंपरिक नृत्य - वैसे तो कश्मीरी नृत्य जैसे रोउफ और हफिजा शिवरात्रि में किया जाता है, कुछ लोग सेलिब्रेशन के तौर पर अपने घर परिवार में भी करते हैं। दीवाली को साल के अंतिम फसल से जुड़ा त्योहार भी माना जाता है। रोशनी के इस पर्व को सभी उल्लास से मनाते हैं।
फूड - दीवाली के दिन मीठी पूरी बनती है। इसे पूजा में भी चढ़ाया जाता है और रिश्तेदारों, आसपड़ोस में भी बांटा जाता है।’’