बीके शिवानी का मानना है कि आंतरिक विकास एक सतत प्रक्रिया है। नारी शक्ति पुरस्कार प्राप्त राजयोग मेडिटेशन शिक्षिका बीके शिवानी पिछले 25 वर्षों से लाखों-करोड़ों जीवन की उलझनें सुलझा रही हैं। घर-घर में लोग उनके विचारों, वीडियोज और पॉडकास्ट से अपने जीवन को समृद्ध कर रहे हैं।

बीके शिवानी का मानना है कि आंतरिक विकास एक सतत प्रक्रिया है। नारी शक्ति पुरस्कार प्राप्त राजयोग मेडिटेशन शिक्षिका बीके शिवानी पिछले 25 वर्षों से लाखों-करोड़ों जीवन की उलझनें सुलझा रही हैं। घर-घर में लोग उनके विचारों, वीडियोज और पॉडकास्ट से अपने जीवन को समृद्ध कर रहे हैं।

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बीके शिवानी का मानना है कि आंतरिक विकास एक सतत प्रक्रिया है। नारी शक्ति पुरस्कार प्राप्त राजयोग मेडिटेशन शिक्षिका बीके शिवानी पिछले 25 वर्षों से लाखों-करोड़ों जीवन की उलझनें सुलझा रही हैं। घर-घर में लोग उनके विचारों, वीडियोज और पॉडकास्ट से अपने जीवन को समृद्ध कर रहे हैं।

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बीके शिवानी का मानना है कि आंतरिक विकास एक सतत प्रक्रिया है। अपने 25 वर्षों के अनुभवों के बारे में वह कहती हैं, ‘‘इससे शांति, स्थिरता व स्वीकार्यता बढ़ी, इच्छाएं कम हुईं और प्रेजेंट मोमेंट में रहने की आदत स्वाभाविक बनी है। ब्रह्मा कुमारी में एक खूबसूरत कहावत है कि जब मैं बदलूंगी तो मेरी दुनिया भी बदलेगी। कुछ बदलने के लिए किसी का इंतजार या बाहरी परिस्थितियों के बदलने की प्रतीक्षा किए बिना हमें स्वयं पर ध्यान देना चाहिए कि हम आगे क्या करना चाहते हैं।’’

ध्यान से आत्मा की बैटरी चार्ज रखें

शिवानी कहती हैं, ‘‘हम अमृत वेला के मेडिटेशन व आध्यात्मिक पढ़ाई को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं। शोर बाहर नहीं, अपने भीतर है। सुबह मन की स्थिति ठीक कर लें और पूरे दिन थोड़ा ध्यान रखते रहें तो कैसी भी स्थिति पैदा हो, स्थिरता के साथ उसका सामना कर सकते हैं। बिलकुल वैसे ही, जैसे फोन को सुबह चार्ज करने के बाद लगभग पूरे दिन उसके फीचर्स काम करते रहते हैं। बैटरी चार्ज न हो तो फोन बेकार हो जाता है। वैसे ही आत्मा को भी मेडिटेशन से चार्ज करना होता है।’’

गर्भ से ही दें संस्कार

शिवानी अद्भुत मातृत्व प्रोजेक्ट से जुड़ी हैं। भारत में फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक एंड गाइनीकोलॉजिकल सोसाइटीज ऑफ इंडिया (एफओजीएसआई) ने वर्ष 2018 में इसे शुरू किया। वह कहती हैं, ‘‘तमाम शोधों से पता चला है कि मां-बाप के पास अजन्मे शिशु के संस्कार को प्रभावित करने की शक्ति होती है। नौ महीने की पूरी प्रक्रिया में संस्कारों का बीजारोपण होता है, ताकि आने वाली पीढ़ी स्वस्थ हो। मां को यही सलाह दी जाती है कि वे अपनी दिनचर्या में शांति, प्रेम, करुणा एवं खुशी का समावेश करें, सही व पॉजिटिव सोचें। मधुर व्यवहार रखें। सुबह की शुरुआत मेडिटेशन से करें। गॉसिप, बहस, झगड़ों से दूर रहें, ताकि बच्चा भी शांत व स्थिर बने। सात्विक भोजन को प्राथमिकता दें, ताकि बच्चा भी सात्विक प्रवृत्ति का बने।’’

सशक्तीकरण जरूरी

1936 में ब्रह्मा कुमारीज की स्थापना के बाद से ही लगभग 137 देशों में इसके मेडिटेशन सेंटर्स को महिलाएं ही संचालित कर रही हैं। शिवानी कहती हैं, ‘‘हम आत्मिक सशक्तीकरण पर जोर देते हैं। सदियों से माना जाता रहा है कि पुरुष शारीरिक रूप से सशक्त होते हैं और महिलाएं दयालु, कोमल, सुंदर व क्षमा देने वाली होती हैं। लेकिन हम सभी में स्त्री-पुरुष दोनों के गुण हैं। ये गुण हमारे संस्कारों, अनुभवों व सामाजिक अनुकूलन पर निर्भर करते हैं। कई बार पुरुष भी कोमल, शांत या इमोशनल होते हैं, माफ कर देते हैं जबकि महिलाएं भी महत्वाकांक्षी व साहसी होती हैं। हर आत्मा के पास सभी संस्कार होते हैं। आत्मा जैसे शरीर रूपी वस्त्र धारण करती है, वैसे ही उसके संस्कार बनते हैं। हर जन्म में शरीर बदल जाता है। आत्मा के संस्कार वही रहते हैं।’’

पावर ऑफ पॉजिटिव थॉट

सकारात्मक विचार किसी भी स्थिति को बदलने की क्षमता रखता है। जैसे ही कोई सकारात्मक विचार मन में आता है तो वह ऊर्जा प्रवाहित करने लगता है। जब तक हम दिमाग को स्थिर कर योजनाबद्ध तरीके से नहीं चलाते, तब तक व्यर्थ विचार आते रहेंगे। इसलिए विचारों का सही इस्तेमाल सीखें। दिन में 15 मिनट मेडिटेशन करें, ताकि मन सकारात्मक बना रहे।

नारी शक्ति पुरस्कार प्राप्त राजयोग मेडिटेशन शिक्षिका बीके शिवानी पिछले 25 वर्षों से लाखों-करोड़ों जीवन की उलझनें सुलझा रही हैं। इंटरनेशनल साइकियाट्रिक एसोसिएशन की गुडविल एंबेसेडर के अलावा वह फॉग्सी (एफओजीएसआई) के अद्भुत मातृत्व कार्यक्रम से भी जुड़ी हैं। घर-घर में लोग उनके विचारों, वीडियोज और पॉडकास्ट से अपने जीवन को समृद्ध कर रहे हैं।