सिंगल पेरेंट्स ना सिर्फ दोहरी जिम्मेदारी निभाते हैं, बल्कि कई तरह की चुनौतियों का सामना करते हुए अपने बच्चे के मेंटल और इमोशनल हेल्थ को स्वस्थ रखने की कोशिश भी करते हैं।आइए, इस बार मदर्स डे पर कुछ खास मांओं से एक छोटी मुलाकात करें।

सिंगल पेरेंट्स ना सिर्फ दोहरी जिम्मेदारी निभाते हैं, बल्कि कई तरह की चुनौतियों का सामना करते हुए अपने बच्चे के मेंटल और इमोशनल हेल्थ को स्वस्थ रखने की कोशिश भी करते हैं।आइए, इस बार मदर्स डे पर कुछ खास मांओं से एक छोटी मुलाकात करें।

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सिंगल पेरेंट्स ना सिर्फ दोहरी जिम्मेदारी निभाते हैं, बल्कि कई तरह की चुनौतियों का सामना करते हुए अपने बच्चे के मेंटल और इमोशनल हेल्थ को स्वस्थ रखने की कोशिश भी करते हैं।आइए, इस बार मदर्स डे पर कुछ खास मांओं से एक छोटी मुलाकात करें।

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वजह चाहे कुछ भी रही हो, पति से सेपरेशन या उनकी मृत्यु। एसी स्थिति में जब स्त्री जिंदगी के एक कठिन दौर से गुजर कर, अकेले ही अपने बच्चे की पेरेंटिंग करती है, तब वह खुद मेंटल ट्रॉमा से ही नहीं, बल्कि सामाजिक तौर भी कई चुनौतियों से गुजरती हैं, पर उसकी कोशिश रहती है कि उनका बच्चा हर तरह सामान्य बच्चों की तरह मानसिक रूप से मजबूत और स्वस्थ हो। मिलिए, कुछ एसी मांओं से, जिन्होंने काफी संघर्ष के बाद अपने बच्चों की परवरिश की और उन्हें खुश रखने की कोशिश की।

हेमा राठौर और उनकी बेटी खुशी, काशीपुर, उत्तराखंड

बेटी करती है मुझे सैल्यूट

अल्पना वर्मा और मुनमुन, ग्रेटर नोएडा

बिटिया खुशी सिर्फ 5 साल की थी, जब हेमा ने अपने पति से अलग होने का फैसला लिया था। अपने मायके कालागढ़ (उत्तराखंड के पौड़ी जिले में स्थित) में आने के बाद उनके जीवन का संघर्ष शुरू हुआ। पिता ने खुशी को पढ़ाने में हेमा की मदद की, पर खुद की जरूरतों और खुशी के लिए हेमा ने आत्मनिर्भर बनने की पूरी कोशिश की। इतना ही नहीं, अपनी जैसी अन्य महिलाओं काे भी आत्मनिर्भर बनाया। वह महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई, पार्लर का काम, सॉफ्ट टॉय बनाना और मेंहदी लगाना सिखाने लगीं। बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाया। हेमा की जिंदगी में सबसे खूबसूरत बात यह है कि शादी के समय वे काफी कम पढ़ी-लिखी थीं, पर अपनी मेहनत और अपने पैरों पर खड़े होने की ललक से ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया। बेटी 12वीं तक कालागढ़ में ही पढ़ी। उसके बाद उसने यूपीटैक से एंट्रेस एग्जाम क्लीअर करके गुड़गांव हरियाणा से बीटेक किया। हेमा कहती हैं, ‘‘मेरा एक ही लक्ष्य था कि किसी तरह बेटी अच्छी तरह पढ़-लिख कर अपने पैरों में खड़ी हो जाए। मैं काफी खुश हूं कि वह बीटेक करने के बाद अब बंगलुरु में जॉब करती है। मेरे संघर्ष और मेहनत को वह सैल्यूट करती है।’’ इन दिनाें हेमा काशीपुर में रहती हैं। उनकी कोशिश है कि खुशी की शादी हो जाए अौर वह सफल वैवाहिक रिश्ता जिए।

सोनाली और शारुल, नागपुर

पीड़ा में भी मिली आशा

शशिप्रभा सुंद्रियाल और उनका बेटा शशांक, मथुरा

अल्पना ने उस व्यक्ति से प्यार किया, जिसके साथ वह पढ़ रही थीं। उसकी बुद्धिमानी पर वे रीझ गयी थीं, लेकिन जिंदगी बसर करने के लिए इतना ही काफी नहीं होता। रिश्ते में कई और भी इच्छाओं, जरूरत और एक-दूसरे को समय देने की जरूरत होती है। उस शख्स के साथ अल्पना 13 साल साथ रहीं। अल्पना ने कंसीव किया। उनके रिश्ते का चेहरा बिगड़ चुका था। वे घर से निकाल दी गयीं। बहुत अपमान और पीड़ा के बीच मुनमुन का जन्म हुआ। अल्पना कहती हैं, ‘‘मेरी बेटी मुनमुन मेरे लिए चुनौती नहीं, बल्कि जीवन में उम्मीद ले कर आयी। मैंने चाइनीज भाषा में पीएचडी की। मैं बेटी के साथ खुश हूं। एक विदेशी कंपनी में नौकरी कर रही हूं। चूंकि कंपनी का वर्किंग मोड वर्क फ्रॉम होम है, तो मैं मुनमुन को समय दे पाती हूं। पर मुझे लगता है कि बच्चे की परवरिश के लिए माता-पिता दोनों का होना जरूरी है। बेटी जब पूछती है, पापा कहां हैं? तो उसे समझाना बहुत मुश्किल हो जाता है। मेरी कोशिश है कि मुनमुन अन्य बच्चों की तरह अपना जीवन जिए।’’

 

मेरा बच्चा है ज्यादा प्रैक्टिकल

काफी कम उम्र में सोनाली अपने पति से अलग रहने लगी थीं। जब प्रेगनेंट हुईं, तो अपने मायके आ गयीं। उस समय वे डिवोर्स के लिए अप्लाई कर चुकी थीं। बेटे शारुल का जन्म हुआ। सिंगल पेरेंट होने में उन्होंने कई चुनौतियाें का सामना किया। बेटे की और से थोड़ी निश्चिंत इसीलिए भी थी कि माता-पिता ने उनका साथ दिया। इसीलिए मुश्किल वक्त में बेटे की परवरिश में अासानी हुई। सोनाली कहती हैं, ‘‘मेरे बेटे का मानसिक विकास सही हुआ, क्याेंकि कठिन स्थिति में मेरे पेरेंट्स मेरे साथ रहे। शारुल को लगता था कि पेरेंट में मम्मी और पापा जैसा कुछ नहीं होता, जो होता है, वह सब कुछ मां ही है। जब शारुल बड़ा हुआ, तो उसे मालूम हुआ कि दोस्तों के साथ मां के साथ जो शख्स है, उसे पापा कहते हैं। शारुल ने मुझसे पूछा कि मेरे कोई पापा भी हैं? तब मैंने उसे बहुत प्यार से समझाया कि पापा थे, पर अब हम साथ नहीं रहते। कुछ देर वह गंभीर रहा, पर जल्दी ही समझ गया। मेरे खयाल से जो डिवोर्स्ड पेरेंट्स के बच्चे होते हैं, वे बाकी बच्चों की तुलना में ज्यादा प्रैक्टिकल होते हैं।’’ अगर बच्चे को माता-पिता दोनों से सुरक्षा और प्यार मिलता है, तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन सिंगल पेरेंट हो, तो भी बच्चों के मानसिक विकास में कोई कमी नहीं होती। मुझे लगता है कि एसे बच्चों को मां की और से डबल अटेंशन और अफेक्शन मिलते हैं। उसने कभी पापा से मिलने की जिद नहीं की, क्योंकि उसने उन्हें कभी देखा ही नहीं। मेरे पेरेंट्स काफी सपोर्टिव हैं। घर में कोई परेशानी नहीं हुई, जब शारुल दो साल का था, तब से जॉब शुरू कर दी थी। मेरी नाइट शिफ्ट होती है, उसे स्कूल जाते हुए नहीं देख पायी। संडे को जब मुझे थोड़ा समय मिलता है, मैं अपनी नींद में कटौती कर उसके साथ समय बिताती हूं। कई बार मैंने अपने बच्चे के खास पल या प्रोग्राम भी मिस किए हैं जैसे जब उसने पहली बार चलना सीखा, पहली बार स्कूल जाना या एनुअल फंक्शन।

नौकरी मेरे सामने बड़ी चुनौती

शशिप्रभा सुंद्रियाल के वैवाहिक जीवन की उम्र बहुत छोटी रही, जिसे आज भी वे याद करती हैं, तो आंखें नम हो जाती हैं। शशि कहती हैं, ‘‘मेरी 7 मंथ की फुल प्रेगनेंसी थी, जब पति की मृत्यु की खबर मुझे मिली। मैं उन्हें अंतिम विदाई भी नहीं दे पायी। मायके में शशांक का जन्म हुआ, मैं ना खुश थी, ना उदास। मुझे मालूम ही नहीं हुआ कि आखिर मेरे साथ हुआ क्या? मैं पूरी तरह बेअसर सी थी। सदमे से बाहर निकलने में मुझे 2 साल लग गए। जब होश आया, तब नौकरी के लिए निकली।’’ 24 साल की उम्र में शशि के सामने बच्चे को अकेले संभालने से ज्यादा चुनौती मर्दों के साथ नौकरी करने की थी। वे बचपन में उस मानसिकता के साथ पली-बढ़ी थीं कि पति के घर जाना है, घर संभालना है और बच्चों की परवरिश करनी है। लेकिन जब मर्दों के बीच काम करने की नौबत आयी, तो उन्हें अपने जीवन की बहुत बड़ी चुनौती महसूस हुई। वेे कहती हैं, ‘‘मुझे विधवा जान कर बहुत लोगों ने मुझे तोहफे और खतों के माध्यम से निमंत्रण देने की कोशिश की। लेकिन मैं खामोश रहती थी, जिसे देख कर धीरे-धीरे वे लोग समझ गए कि मैं गंभीर हूं।’’

शशि कभी दूसरी शादी के बारे में नहीं सोच पायीं। सोचा शशांक को पिता की तरह प्यार कौन देगा। यही सोच कर दूसरी शादी का खयाल त्याग दिया। जब नौकरी और समाज में अपनी स्थिति मजबूत महसूस होने लगी, तो जीवन आसान होने लगा। शशांक बड़ा हुआ, पढ़-लिख कर कंपनी में नौकरी की। शशि ने समय पर उसकी भी शादी कर दी। शशांक को ले कर शशि के दायित्व अब हल्के हुए।