नृत्य किसी थेरैपी से कम नहीं। मणिपुरी डांसर श्रवणा नृत्य के माध्यम से दिव्यांग बच्चों का मनोबल बढ़ाने व उनका मानसिक संतुलन बैठाने में मदद कर रही हैं। यह प्रकिया मुश्किल, लेकिन बहुत प्रेरणादायी है।

नृत्य किसी थेरैपी से कम नहीं। मणिपुरी डांसर श्रवणा नृत्य के माध्यम से दिव्यांग बच्चों का मनोबल बढ़ाने व उनका मानसिक संतुलन बैठाने में मदद कर रही हैं। यह प्रकिया मुश्किल, लेकिन बहुत प्रेरणादायी है।

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नृत्य किसी थेरैपी से कम नहीं। मणिपुरी डांसर श्रवणा नृत्य के माध्यम से दिव्यांग बच्चों का मनोबल बढ़ाने व उनका मानसिक संतुलन बैठाने में मदद कर रही हैं। यह प्रकिया मुश्किल, लेकिन बहुत प्रेरणादायी है।

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रियोम सेंटर फॉर मणिपुरी डांस एंड मूवमेंट थेरैपी की फाउंडर और डाइरेक्टर श्रवणा मित्रा दास एक क्लासिकल डांसर के अलावा थेरैपिस्ट भी हैं। उन्हाेंने हांगकांग, मकाओ, मंगोलिया, यूएस जैसे देशों में भी डांस परफॉर्म किया है। दिव्यांग बच्चों को मणिपुरी डांस के माध्यम से थेरैपी देती हैं। जो एनजीओ ऐसे बच्चों के लिए काम कर रहे हैं, श्रवणा और उनकी टीम वहां जा कर सर्विस देती हैं। वर्कशॉप भी कराती हैं। उसके बाद भी कोई सीखना चाहे तो ऑनलाइन क्लासेज के माध्यम से जुड़ सकता है।

वे कहती हैं, ‘‘दिव्यांग बच्चे जब डांस स्टेज पर खड़े हाेते हैं, तब उनमें एक अलग तरह का आत्मविश्वास आता है। ऑडियंस के साथ उनका कनेक्शन बनता है। यह एक तरह का एक्सेप्टेंस प्रोसेस है। हालांकि इन बच्चों को सिखाने में समय लगता है। जो बच्चा स्लो लर्नर है या जिसे डाउन सिंड्रोम है, वे बच्चे म्यूजिक काफी पसंद करते हैं। उनमें रिदम सेंस काफी होता है। मूक और बधिर बच्चे भले ही सुन और बोल नहीं सकते, पर रिदम उनके अंदर है। ऐसे बच्चे स्पर्श की भाषा समझते हैं। उन्हें स्पर्श के माध्यम से अहसास कराया जाता है। स्पेशल बच्चों को कंधे पर 1, 2, 3, 4 की थपकियां देते हुए डांस सिखाते हैं, यह एक तरह से थेरैपी की तरह काम करता है। अगर बच्चे को साइकोलॉजिकल इशू है तो हम मनोचिकित्सक से भी कंसल्ट करते हैं।’’

दरअसल, जब श्रवणा ने डांसर बनने के बारे में सोचा था, तब उनके जीवन के बहुत संघर्षपूर्ण दिन चल रहे थे। बचपन में उनके पिता का देहांत हो गया था। ऐसे में डांसर के तौर पर अपने कैरिअर को चुनना वाकई में काफी चैलेंजिंग था। उनकी मां ने उनका बहुत साथ दिया। श्रवणा ने अपनी नृत्य कला की यात्रा कोलकाता से शुरू की और एडवांस ट्रेनिंग के लिए मणिपुर गयीं। कोलकाता में उनकी मुलाकात गुरु प्रीति पटेल से हुई, जिन्होंने श्रवणा को काफी सपोर्ट किया। चूंकि श्रवणा मणिपुरी क्लासिकल डांसर थीं, इसीलिए मणिपुर जाना भी उनके लिए जरूरी था। श्रवणा के मुताबिक, ‘‘मणिपुर में कला व परंपरा बहुत जीवंत है। मंदिरों में रवींद्र संगीत पर आधारित नृत्य होते हैं, जन्म, विवाह और मृत्यु को नृत्य में विशेष ताल के माध्यम से दर्शाया गया है। मुझे यह नृत्य परंपरा बहुत अच्छी लगी। वहां के 89 वर्षीय पद्मश्री टी एच बाबू से मेरी मुलाकात हुई। उनके पास रह कर मैंने नृत्य की बारीकियां सीखीं। गुरु शिष्य परंपरा को मैंने अनुभव किया।’’

श्रवणा की समय से शादी हुई। उनकी ससुराल की तरफ से भी श्रवणा को काफी सपोर्ट मिला। उनके जुड़वां बच्चे आहान और शायना के जन्म के 10 महीने के बाद वे स्टेज पर परफॉर्म करने आ गयी थीं। एक घंटे तक उन्होंने सोलो डांस परफॉर्म किया। जब उनके बच्चे स्कूल जाते हैं, वे डांस की प्रैक्टिस करती हैं। इतना ही नहीं, वे युवाअों को प्रोफेशनल डांस ट्रेनिंग देने के अलावा स्पेशल बच्चों को मूवमेंट के साथ थेरैपी के तौर पर मणिपुरी डांस सिखाती हैं। मणिपुरी डांस काफी सॉफ्ट मूवमेंट के साथ किया जाता है। भरतनाट्यम और कथक में फास्ट मूवमेंट होता है। लेकिन मणिपुरी डांस में सर्कुलर मोशन होता है। श्रवणा बताती हैं कि जिन बच्चों के अपने बॉडी पार्ट्स के साथ दिमाग के कॉर्डिनेशन में समस्या हाेती है, उन्हें वे डांस के माध्यम से थेरैपी देती हैं। श्रवणा आगे बताती हैं कि यह थेरैपी इतनी असरदार होती है कि ये स्पेशल बच्चे अन्य बच्चों के साथ परफॉर्म करते हैं। इससे उन बच्चों में बातों को समझने और सोचने की क्षमता का विकास होता है।