मुंबई का कम्फर्ट ना मिल पाना और फंड्स की समस्या हमेशा ही रही। बिना फंड्स के आर्टिस्ट का स्टे मैनेज करना मुश्किल है, जिसके लिए तन्वी अभी भी मुंबई जा कर फ्रीलांस प्रोजेक्ट लेती हैं और उससे आए पैसे से कैंप और कई कम्युनिटी प्रोजेक्ट चलाती हैं।

मुंबई का कम्फर्ट ना मिल पाना और फंड्स की समस्या हमेशा ही रही। बिना फंड्स के आर्टिस्ट का स्टे मैनेज करना मुश्किल है, जिसके लिए तन्वी अभी भी मुंबई जा कर फ्रीलांस प्रोजेक्ट लेती हैं और उससे आए पैसे से कैंप और कई कम्युनिटी प्रोजेक्ट चलाती हैं।

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मुंबई का कम्फर्ट ना मिल पाना और फंड्स की समस्या हमेशा ही रही। बिना फंड्स के आर्टिस्ट का स्टे मैनेज करना मुश्किल है, जिसके लिए तन्वी अभी भी मुंबई जा कर फ्रीलांस प्रोजेक्ट लेती हैं और उससे आए पैसे से कैंप और कई कम्युनिटी प्रोजेक्ट चलाती हैं।

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रेश आर्ट गांव और शहर से आए हर तरह के आर्टिस्ट को मिलाता है, साथ रह कर काम करना, एक-दूसरे के तरीकों को समझना दोनों ही जगह से आए आर्टिस्ट के लिए फायदेमंद होता है। फाइन आर्टिस्ट ही नहीं, स्कल्पचर एक्सपर्ट, प्रिंट, स्केच और अलग-अलग शहरों से तजुर्बे ले कर आए आर्टिस्ट यहां एकांत पाते हैं और कला को कमर्शियल बनाने के तरीके सिखाते हैं और बदले में गांव में बसे आर्टिस्ट से कला की जड़ों को समझ कर उसे अलग तरीके से परफेक्ट करना सीखते हैं। रेश आर्ट कम्युनिटी हिमाचल में आर्ट कंजर्वेशन, एंपावरमेंट और ट्रेडिशनल और माॅडर्न आर्ट को डेवलपमेंट में खोने से बचाने का काम कर रही है।

तन्वी ने अक्तूबर साल 2022 में पहले आर्ट कैंप की शुरुआत कसोल से की, जिसमें मुंबई से आए आर्टिस्ट की संख्या बहुत ज्यादा नहीं थी, लेकिन कैंप बहुत पसंद किया गया था। तीन साल बाद आज रेश 5 दिन के छोटे आर्ट कैंप से ले कर 25 से 20 दिन के कम्युनिटी प्रोग्राम और 2 से 3 महीने चलने वाले रेसिडेंसी प्रोग्राम भी चलाता है।

कम्युनिटी प्रोजेक्ट तन्वी की बदलाव लाने की मुहिम का हिस्सा है। सिर्फ कला ही नहीं, जरूरी स्किल बेस्ड एजुकेशन जो जीवन में काम आ सके, अपनी कला को बेचने की समझ और आसपास मौजूद प्रकृति में पाए जाने वाले सामान का सही इस्तेमाल भी सिखाया जाता है। कम्युनिटी प्रोजेक्ट में आर्टिस्ट सोशल वर्क करते हैं, जैसे दीवारों पर म्यूरलस बनाना, लकड़ी से लैंप बनाना सिखाना और इसी तरह की कई छोटी-बड़ी चीजों के इस्तेमाल से कुछ नया और बेचने लायक सामान बनाना।

रेश महिलाअों के लिए भी कुछ खास कर रहा है। चंबा में बनाए जाने वाले ट्रेडिशनल रूमाल उस जगह के सबसे खास आकर्षण हैं। महिलाअों को चंबा में रहने वाले मिनिएचर आर्टिस्ट से कांगड़ा स्टाइल की मिनिएचर पेंटिंग भी सीखने का मौका मिलता है।

तन्वी आर्ट और सस्टेनेबल लिविंग को अपना गोल मानते हुए डेवलपमेंट के लिए भी काम शुरू कर रही हैं। रेश के कैंप कुडी गांव के सोनारा सेकेंडरी स्कूल में भी लगे, जहां बच्चों को क्ले के स्कल्पचर बनाने सिखाए गए। कैंप में आए आर्टिस्ट ने गांव की दीवारों को पेंट कर नया रंग दिया और वहां भट्टी भी बनायी, जिससे बनाए गए काम को पक्का करके बेचा जा सके और रोजगार पैदा हो सके।

तन्वी के आने वाले प्रोजेक्टस सस्टेनेबल घर बनाने और वहां की कला को लोगों तक पहुंचा कर रोजगार दिलाने पर फोकस करेंगे। घरों को पक्के सीमेंट से बनाने की जगह उन्हीं पुराने तरीकों से मजबूत बनाना और सारी सुविधाएं लाना भी उनके प्रोजेक्ट का हिस्सा है। तरह-तरह के आर्ट फाॅर्म और कला को बेचने की तैयारी भी चल रही है, जैसे चंबा के रूमाल, कांगड़ा की मिनिएचर पेंटिंग, भुट्टे की घास से बने मैट, मोड़ा, चप्पल जैसे प्रोडक्ट्स को बेचना। महिलाअों द्वारा बनायी गयी और भी चीजों जैसे क्रोशिया मैट, सॉक्स, ग्लव्स और टोपी आदि को बेचने के लिए रेश वेबसाइट भी तैयार कर रहा है। पूरी तरह से कंजर्वेशन और सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए काम करती तन्वी की यह कम्युनिटी नॉन प्रॉफिट है। शहर के शोर और पैसे की भागदौड़ छोड़ कर आयी तन्वी के लिए पैसा बनाना लक्ष्य नहीं है।

आज 40 से 50 आर्टिस्ट हर शहर से आते हैं, जो कैंप में रेगुलर जाना पसंद करते हैं और बदलाव का हिस्सा बनना चाहते हैं। गांव के कई बच्चों को उनके बनाए सामान और आर्टवर्क के लिए ऑर्डर्स भी आने शुरू हुए हैं।