पद्मश्री प्रशांति सिंह पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं, जिन्होंने 2006 के कॉमनवेल्थ गेम्स एवं 2010 व 2014 के एशियन गेम्स में टीम का प्रतिनिधित्व किया और देश को मेडल दिलाए।

पद्मश्री प्रशांति सिंह पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं, जिन्होंने 2006 के कॉमनवेल्थ गेम्स एवं 2010 व 2014 के एशियन गेम्स में टीम का प्रतिनिधित्व किया और देश को मेडल दिलाए।

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पद्मश्री प्रशांति सिंह पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं, जिन्होंने 2006 के कॉमनवेल्थ गेम्स एवं 2010 व 2014 के एशियन गेम्स में टीम का प्रतिनिधित्व किया और देश को मेडल दिलाए।

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वाराणसी के एक मध्यवर्गीय परिवार से आने वाली प्रशांति ने खुद को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतरीन बास्केटबॉल खिलाड़ी के तौर पर स्थापित किया। वे पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं, जिन्होंने 2006 के कॉमनवेल्थ गेम्स एवं 2010 व 2014 के एशियन गेम्स में टीम का प्रतिनिधित्व किया और देश को मेडल दिलाए। प्रशांति कहती हैं, ‘‘हमारे यहां शाम के बाद लड़कियों का घर से निकलना तक असुरक्षित माना जाता था। मैं खुशनसीब हूं कि मेरे परिवार ने कभी बेटियों को बोझ नहीं समझा। हम चारों बहनों ने बास्केटबॉल में कैरिअर बनाया। ‘सिंह सिस्टर्स’ के नाम से हमें पहचान मिली।’’

लड़कियों की बनीं रोल मॉडल, बदला समाज का नजरिया

वर्ष 2009 में पहली बार विदेशी धरती वियतनाम में हुए तीसरे एशियन इंडोर गेम्स में भारतीय टीम ने सिल्वर मेडल प्राप्त किया। 2011 में श्रीलंका में साउथ एशियन बीच गेम्स में भी टीम ने गोल्ड मेडल हासिल किया। नेशनल चैंपियनशिप्स में सीनियर लेवल पर सबसे ज्यादा मेडल्स लेने का राष्ट्रीय रिकॉर्ड इनके नाम दर्ज है। वह कहती हैं, ‘‘पहले के मुकाबले अब जागरुकता अधिक है। लड़कियां खेलों में आगे आ रही हैं। खेलो इंडिया योजना के जरिए शहरी, ग्रामीण एवं कस्बाई क्षेत्रों की लड़कियों को आगे बढ़ने का मौका मिल रहा है। मुझे लगता है कि जिन बाधाओं एवं संघर्षों से मुझे गुजरना पड़ा, उनका सामना दूसरी खिलाड़ियों को न करना पड़े। खेल की दुनिया बदल रही है। नयी-नयी तकनीक का समावेश हो रहा है। प्रतिस्पर्धा बढ़ने से डोपिंग की समस्या गंभीर हो रही है। खिलाड़ियों को जितना ज्यादा एक्सपोजर दिया जाएगा, उतना अच्छा होगा।’

टीम स्पोर्ट्स पर कोविड महामारी का प्रभाव

2007 के बाद आठ साल तक फीबा विश्व रैंकिंग में पांचवें पायदान पर रहने वाली भारतीय महिला बास्केटबॉल टीम की रैंकिंग लगातार नीचे गिरी है। प्रशांति कहती हैं, ‘‘कोविड महामारी ने टीम स्पोर्ट्स को काफी नुकसान पहुंचाया। एकल स्पोर्ट्स में खिलाड़ी खुद ट्रेनिंग कर सकते हैं, जबकि टीम स्पोर्ट्स में सिस्टम के तहत सब चलता है। टूर्नामेंट्स नहीं हुए, कई युवाओं ने खेल छोड़ दिया। इसके अलावा सोशल मीडिया के दौर में आइडेंटिटी क्राइसिस भी हुआ है। छोटे-छोटे लाइक्स से लोग खुश होने लगे हैं। एक खिलाड़ी के लिए यह स्थिति काफी खतरनाक है, जब उसमें खुद को चुनौती देने की भूख खत्म हो जाए। इन सबका असर रैंकिंग पर पड़ा। हालांकि, उम्मीद है कि आने वाला समय बेहतर होगा।’’

बढ़ाने होंगे घरेलू टूर्नामेंट्स

बास्केटबॉल इंडोर एवं आउटडोर दोनों तरह से खेला जाता है। विदेशी टूर्नामेंट्स इंडोर ज्यादा होते हैं लेकिन भारत में कुछ इंडोर स्टेडियम में ही ऐसी विश्वस्तरीय सुविधाएं उपलब्ध हैं। इससे खिलाड़ियों के चोटिल होने की आशंका अधिक रहती है। प्रशांति का कहना है कि, ‘‘अगर हम रैंकिंग सुधारना चाहते हैं तो सुविधाएं बढ़ानी होंगी। घरेलू टूर्नामेंट्स बढ़ाने होंगे। लीग्स शुरू करने होंगे। यहां कई तरह की असुरक्षा है। आर्थिक सुरक्षा भी जरूरी है। नौकरी नहीं होती तो कैरिअर दांव पर लग जाता है।’’

भारतीय महिला बास्केटबॉल टीम को प्रशांति सिंह के रूप में ऐसी उम्दा खिलाड़ी मिलीं, जिन्होंने टीम का नेतृत्व संभालने के बाद महिला बास्केटबॉल को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उन्हें अर्जुन पुरस्कार व पद्मश्री से नवाजा गया। 2017 में उन्होंने सक्रिय खेल से विदाई ले ली, लेकिन खिलाड़ियों के चयन से लेकर उन्हें तराशने तक की बड़ी जिम्मेदारी संभाल रही हैं। वे बतौर एक्सपर्ट खेलो इंडिया, ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ स्पोर्ट्स में सेवाएं प्रदान कर रही हैं।

खेल ने बनाया परिपक्व इंसान

मेरे जीवन में खेल की वजह से ही स्थिरता आयी। एथलीट वही बनता है, जिसमें जुनून और दृढ़ निश्चय हो, क्योंकि यह एक अनिश्चित फील्ड है। लक्ष्य होता है, लेकिन उसके लिए बहुत प्रयास करने होते हैं। रास्ते में बहुत से उतार-चढ़ाव आते हैं, उनके लिए मन को तैयार रखना होता है। कौन जाने, कब यहां जीरो से शुरुआत करनी पड़े। मैं महिला खिलाड़ियों से यही कहना चाहती हूं कि पूरा फोकस खेल पर रखें। भावनात्मक दृढ़ता जरूरी है।’’ -