प्लानेट एबल्ड की फाउंडर नेहा अरोड़ा विश्व की पहली महिला हैं, जो दिव्यांगों को सामान्य लोगों की तरह टूरिज्म कराती हैं। जानिए उनसे उनकी बातें, विचार और उत्साह के दो बोल।

प्लानेट एबल्ड की फाउंडर नेहा अरोड़ा विश्व की पहली महिला हैं, जो दिव्यांगों को सामान्य लोगों की तरह टूरिज्म कराती हैं। जानिए उनसे उनकी बातें, विचार और उत्साह के दो बोल।

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प्लानेट एबल्ड की फाउंडर नेहा अरोड़ा विश्व की पहली महिला हैं, जो दिव्यांगों को सामान्य लोगों की तरह टूरिज्म कराती हैं। जानिए उनसे उनकी बातें, विचार और उत्साह के दो बोल।

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दिव्यांग लोगों को भी घूमने और खुश रहने का पूरा हक है, पर हमारे समाज में ऐसे लोगों के सपने सहज नहीं होते। समाज उन्हें अकसर बेचारगी, नाराजगी, हिकारत और कई बार तो नफरत के साथ देखता है। लेकिन सभी लोगों की तरह उन्हें भी जीने, घूमने औार खुश रहने का हक है। नेहा अरोड़ा ने बारीकी से ऐसे लोगों के दर्द, उनकी हिचक और इच्छाओं को देखा, महसूस किया और ठाना कि वे भी अपनी मनपसंद जगहों में आसानी से जा सकें-घूम सकें। ट्रेवल कंपनी प्लानेट एबल्ड नॉर्मल और डिसेबल, दोनों तरह के लोगों के लिए है, जो लोगों के लिए यादगार ट्रिप ऑर्गेनाइज कराती है।

यह कैरिअर आसान नहीं

नेहा कहती हैं, ‘‘जब प्लानेट एबल्ड बनाने का फैसला किया ताे मुझे एहसास हुआ कि यह आसान ना सही मगर नामुमकिन भी नहीं होगा। मैंने पर्यटन को शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए आसान और आनंददायक बनाने के लिए एक आकर्षक बहुराष्ट्रीय कंपनी की नौकरी छाेड़ दी। यह मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती थी कि नौकरी छोड़ने के बाद मैंने 1 जनवरी, 2016 को प्लानेट एबल्ड लॉन्च की। मैं जानती थी यह काम लीक से हटकर है। पर मैं सोचती थी कि मेरा यह प्रोजेक्ट सफल जरूर होगा। सच पूछा जाए, ताे पैसा सब कुछ नहीं होता पर बहुत कुछ होता है। मैं चैरिटी नहीं करती, पर उन दिव्यांगों को टूरिज्म में मदद करती हूं, उन्हें सहज महसूस कराती हूं। वे अपनी ट्रिप उतनी ही एंजॉय करते हैं जितना कि सामान्य लोग करते हैं।’’

सोच और दुनिया बदली

नेहा के लिए अपने पेरेंट्स के साथ कहीं घूमने जाना एक मिशन जैसा था क्योंकि उन्होंने अपने परिवार के साथ घूमने के दौरान कई चुनौतियों का सामना किया। वे कहती हैं, ‘‘मेरे पिता नेत्रहीन और मां व्हीलचेयर पर हैं। मुझे याद है, गरमी की छुटि्टयों में मैं और मेरी बहन अकसर घूमने के नाम पर दादी-नानी के घर ही जाते थे क्योंकि अपने शारीरिक रूप से अक्षम पेरेंट्स के साथ कहीं बाहर घूमने जाना हमारे लिए बहुत चैलेंजिंग था। मैं छोटी थी तो लगता कि फाइनेंशियल कारणों से हम बाहर नहीं जा रहे लेकिन फिर बड़ी हुई तो महसूस हुआ कि डिसेबल लोगों के लिए सुविधाएं बहुत कम हैं, जिस कारण वे कहीं घूमने नहीं जा पाते। इसके अलावा समाज में संवेदनशीलता की भी कमी है, कहीं जाने पर आसपास के लोग ताने देने से बाज नहीं आते कि इतनी समस्या है तो क्यों जाते हो घूमने? घर पर ही रहो। मैंने संकल्प लिया कि ऐसा कुछ करूंगी कि सिर्फ अपने माता-पिता को ही सैर नहीं कराऊंगी बल्कि कोई भी दिव्यांग चाहे तो दुनिया के किसी भी हिस्से में घूमे। जनवरी 2016 में पहली प्लानेट एबल्ड यात्रा मेरी अब तक की सबसे यादगार यात्रा है। दिव्यांगों की सुविधा को ध्यान में रख कर सारा ट्रिप ऑर्गेनाइज किया जाता है। वे लोग खुश होते हैं तो लगता है कि मेहनत सफल हो गई।’’

यादगार ट्रिप्स

दिल्ली के ऐतिहासिक पर्यटन स्थल पर हमारी पहली यात्रा हुई, जिसमें 20 विकलांग और 20 सामान्य यात्री थे। सोचा था कि कठिन होगा, पर अपेक्षा से कहीं बेहतर अनुभव था। ज्यादातर लोगों ने हमारे काम की सराहना की। इसके बाद एक 70 वर्षीय बुजुर्ग, जो 11 साल से व्हीलचेयर पर थीं, उन के अनुरोध पर उन्हें राफ्टिंग का अनुभव दिलाया।

मिले कई अवार्ड

दिव्यांग माता-पिता को कहीं भी ले जाते हुए नेहा अरोड़ा को कई असुविधाओं का सामना करना पड़ता था। उन्हें लगा कि हर किसी को घूमने का अधिकार है, इसके लिए उन्होंने प्लानेट एबल्ड की स्थापना की। उन्हें भारत सरकार के टूरिज्म मंत्रालय द्वारा नेशनल अवॉर्ड मिला। देश-विदेश के कई पुरस्कारों सहित उन्हें WTM रिस्पॉन्सिबल टूरिज्म अवॉर्ड- बेस्ट इनोवेशन इन ट्रेवल एंड ओवरऑल विनर भी मिला।