जैसे हम किसी जमाने में लाइब्रेरी से किताबें इशू करवाते थे और फिर तय वक्त में उन्हें लौटा दिया करते थे, वैसे ही जरूरत पड़ने पर अब साड़ियां भी इशू करवा सकेंगे।

जैसे हम किसी जमाने में लाइब्रेरी से किताबें इशू करवाते थे और फिर तय वक्त में उन्हें लौटा दिया करते थे, वैसे ही जरूरत पड़ने पर अब साड़ियां भी इशू करवा सकेंगे।

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जैसे हम किसी जमाने में लाइब्रेरी से किताबें इशू करवाते थे और फिर तय वक्त में उन्हें लौटा दिया करते थे, वैसे ही जरूरत पड़ने पर अब साड़ियां भी इशू करवा सकेंगे।

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पिछले दो सालों ने लोगों की सोच और लाइफस्टाइल दोनों में जबर्दस्त परिवर्तन किया है। खासकर मध्यम और निम्न मध्यमवर्गीय वर्ग के लोगों के जीवन में। इसी बदलाव ने जन्म दिया है हर क्षेत्र में अनूठी पहल और काम को। यहां बात हो रही है वडोदरा की अष्ट सहेली लाइब्रेरी की, जिसे 8 महिलाओं के ग्रुप ने शुरू किया है। इस साड़ी लाइब्रेरी की खासियत है कि परिवार में शादी, पार्टी या कोई और फंक्शन होने पर आप इस लाइब्रेरी से मनपसंद साड़ी सलेक्ट कीजिए और पहनने के बाद लाइब्रेरी को लौटा दीजिए, वह भी सिर्फ ड्राईक्लीनिंग का खर्चा दे कर। 

कैसे आया आइडिया

विदेशों से भी डोनेट की जाती हैं ड्रेसेज

अष्ट सहेली ग्रुप की फाउंडर हेमाबेन चौहान के घर में काम करने वाली मेड के परिवार में एक शादी थी। उसके पास पहनने के लिए कोई साड़ी नहीं थी। हेमाबेन ने उसे अपनी एक साड़ी पहनने को दे दी। तब उन्हें आइडिया आया कि ऐसी कितनी ही महिलाएं होंगी, जो पैसों की तंगी की वजह से शादी या पार्टी में जाने से पहले तनाव की शिकार होती होंगी। तो क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए, जिससे महिलाओं की इस समस्या का हल निकाला जा सके। सहेलियों के बीच साड़ियों की अदलाबदली भी एक आम बात है। यानी एक साड़ी को कम से कम 10 महिलाएं पहन सकती हैं। इसी आइडिया ने अष्ट सहेली ग्रुप की साड़ी लाइब्रेरी की शुरुअात कर दी। शुरू में ग्रुप की महिलाओं ने लाइब्रेरी में अपनी पुरानी साड़ियां डोनेट कीं। 

ग्रुप की मेंबर नीला शाह का कहना है, ‘‘इस लाइब्रेरी से कोई भी महिला अपनी पसंद की साड़ी 5 दिनों के लिए ले जा सकती है। बदले में उसे एक सिक्योरिटी डिपॉजिट और आधार कार्ड की कॉपी जमा करनी होती है। अगर साड़ी को कोई नुकसान होता है, तो हर्जाने के तौर पर रकम अदा करनी होती है। आज हमारी लाइब्रेरी में 400 से ज्यादा साड़ियां, सलवार सूट, लहंगे और ड्रेसेज हैं।

साड़ियां पसंद करती महिलाएं

विदेशों में भी हैं ग्रुप के मेंबर्स

सिर्फ ड्राईक्लीनिंग का खर्च दे कर ले सकते हैं साड़ी

हेमा चौहान, नीला चौहान, रीता विठलानी, टि्वंकल पटेल, स्मृति पटेल, पारुल पारिख, साधना शाह, हिना रावल, नीलिमा शाह को मिला कर ग्रुप की 9 मेंबर्स हैं, लेकिन चूंकि यह ग्रुप 8 महिलाओं द्वारा शुरू किया गया था, इसलिए इसका नाम अष्ट सहेली ग्रुप ही कायम है। कुछ सहेलियां हालांकि विदेशों में रहती हैं, लेकिन वहां से रह कर भी इस ग्रुप से जुड़ी हुई हैं और लाइब्रेरी के लिए साड़ियों का इंतजाम करती रहती हैं। ग्रुप की फाउंडर हेमा बेन का कहना है, ‘‘आज हमारे पास अलग-अलग जगहों से महिलाएं जो साड़ियां भेज रही हैं, उनमें से कई ऐसी हैं, जिनके टैग भी नहीं हटे, वहीं कुछ महिलाएं शादी का जोड़ा भी हमें डोनेट कर गयी हैं। एक महिला ने अपनी बहू का शादी का गाउन गिफ्ट किया है, जिसकी कीमत कम से कम सवा लाख रुपए होगी। जब हमने इस लाइब्रेरी के बारे में अपने फेसबुक पेज पर अनाउंसमेंट डाली थी, तो 2 महीनों में ही मेरा पूरा कमरा साड़ियों से भर गया था, फिर मेरे हसबैंड ने अपनी खाली पड़ी दुकान लाइब्रेरी बनाने के लिए दे दी। जब यह लाइब्रेरी शुरू हुई थी, तो अगले दिन से ही हमारे पास महिलाएं साड़ी मांगने के लिए आने लगी थीं। कुछ लड़कियां भी हमारे पास आयीं, जो अपनी शादी के लिए चनिया चोली उधार लेना चाहती थीं, उनके लिए भी हमने अपने फेसबुक पेज पर मेंबर्स से मदद मांगी और कुछ ही दिनों में वह भी हमें मिल गयी थी। अष्ट सहेली लाइब्रेरी में आपको हर कीमत और हर मौके लिए साड़ियां मिल जाएंगी, वह भी सिर्फ 500 रुपए के सिक्योरिटी डिपॉजिट पर। साड़ी वापस करने पर इन 500 रुपयों से ड्राईक्लीनिंग के 250 रुपए काट लिए जाते हैं। 

लॉकडाउन में हर व्यक्ति ने अपने सामर्थ्य के मुताबिक दूसरों की मदद की, किसी ने राशन बांटा, तो किसी ने खाना बना कर बांटा, गरम कपड़े और घर पहुंचाने का इंतजाम भी बहुतों ने दूसरों के लिए किया। पर महिलाओं की इस समस्या का जो निदान लॉकडाउन के समय खोजा गया, वह वाकई अनूठा है।