अनूठी है पहाड़ों की रानी सुरभि चावड़ा के संघर्ष व सफलता की दास्तान। जानें कैसे इंजीनियरिंग करने के बाद भी सुरभि ने अपने शौक को अंजाम तक पहुंचाया।

अनूठी है पहाड़ों की रानी सुरभि चावड़ा के संघर्ष व सफलता की दास्तान। जानें कैसे इंजीनियरिंग करने के बाद भी सुरभि ने अपने शौक को अंजाम तक पहुंचाया।

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अनूठी है पहाड़ों की रानी सुरभि चावड़ा के संघर्ष व सफलता की दास्तान। जानें कैसे इंजीनियरिंग करने के बाद भी सुरभि ने अपने शौक को अंजाम तक पहुंचाया।

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29 वर्षीय सुरभि चावड़ा को अपने स्कूली दिनों से पहाड़ों से प्यार रहा। पापा फिजिक्स के टीचर थे। छुटि्टयों में उन्हें जंगल घुमाने ले जाया करते थे। घर में पढ़ने का माहौल था। सुरभि को इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडल मिला। उन्होंने कॉरपोरेट कंपनी में जॉब भी की। पर पहाड़ और जंगलों में घूमने का शौक कम ना हुआ। माउंटेनियरिंग से जुड़े कई कोर्स भी उन्होंने किए। लेकिन यह कभी नहीं सोचा कि वे माउंटेनियरिंग में अपना कैरिअर बनाएंगी। धीरे-धीरे 9 से 5 की नौकरी में उकताहट और पहाड़ों में जीवन महसूस होने लगा। सुरभि कहती हैं, ‘‘जेब की संतुष्टि के लिए नौकरी करें, पर आत्मा की संतुष्टि के लिए पहाड़ों पर जाएं। मैंने रॉक क्लाइम्बिंग और आइस क्लाइम्बिंग जैसे कोर्स भी किए। जॉब में रहते हुए माउंट एवरेस्ट भी अटैंप्ट किया, पर 7,400 मीटर से वापस आ गयी थी। मैं बहुत छोटी थी, जिद थी कि मुझे जाना है वहां, इसीलिए गयी। लेकिन आंखों की परेशानी की वजह से सफलता नहीं मिली। वहां मुझे स्नो ब्लाइंडनेस हो गयी थी। मैंने आ कर अपनी आंखों का ऑपरेशन कराया। फिर मैंने माउंटेनियरिंग को कैरिअर बनाया।’’ 

सुरभि पूरी तरह एडवेंचर फील्ड में हैं। आजकल वे अपने दोस्तों के साथ मिल कर अल्पाइन वंडर्स नाम से कंपनी चला रही हैं। उनका मानना है कि ग्राउंड स्पोर्ट में आप खुद को पुश कर सकते हैं। लेकिन माउंटेनियरिंग में आपको मालूम होना चाहिए कि कहां तक पुश करना है। यह जीवन और मौत का सवाल है। वहां कोई रिश्तेदार और रेस्क्यू टीम भी नहीं होती है। पहाड़ों से तो डेड बॉडी भी वापस नहीं आती। इस दौरान आपको अपने निर्णय खुद लेने पड़ते हैं। 

उपलब्धियां: सुरभि ने कम उम्र में एवरेस्ट अटैंप्ट किया। 2018 में अफ्रीका के किलिमंजारों पर चढ़ी। 2019 में यूरोप के सबसे ऊंचे पहाड़ एलब्रुज पर भी चढ़ीं। आज सुरभि खुद को पूरी तरह से एडवेंचर के फील्ड में समर्पित कर चुकी हैं।