मोबाइल फोन, टैब, कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की स्क्रीन अत्यधिक ऊर्जा वाली कम वेवलेंथ की नीली और बैंगनी रोशनी उत्पन्न करती है। यह रोशनी दृष्टि को प्रभावित करती है। इतना ही नहीं, यह आंखों को समय से पहले बूढ़ा बनाने का कारण भी बनती है। छोटी उम्र से ही बच्चों की आंखों पर अत्यधिक दबाव पड़ने से किशोरावस्था आते-आते इनकी आंखों पर बहुत ही बुरा असर पड़ सकता है।

मोबाइल फोन, टैब, कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की स्क्रीन अत्यधिक ऊर्जा वाली कम वेवलेंथ की नीली और बैंगनी रोशनी उत्पन्न करती है। यह रोशनी दृष्टि को प्रभावित करती है। इतना ही नहीं, यह आंखों को समय से पहले बूढ़ा बनाने का कारण भी बनती है। छोटी उम्र से ही बच्चों की आंखों पर अत्यधिक दबाव पड़ने से किशोरावस्था आते-आते इनकी आंखों पर बहुत ही बुरा असर पड़ सकता है।

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मोबाइल फोन, टैब, कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की स्क्रीन अत्यधिक ऊर्जा वाली कम वेवलेंथ की नीली और बैंगनी रोशनी उत्पन्न करती है। यह रोशनी दृष्टि को प्रभावित करती है। इतना ही नहीं, यह आंखों को समय से पहले बूढ़ा बनाने का कारण भी बनती है। छोटी उम्र से ही बच्चों की आंखों पर अत्यधिक दबाव पड़ने से किशोरावस्था आते-आते इनकी आंखों पर बहुत ही बुरा असर पड़ सकता है।

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मोबाइल, टैब और लैपटॉप पर बच्चों को स्टडी करते देख पेरेंट्स को यह चिंता होने लगी है कि उनके बच्चों की आंखों पर इसका बुरा असर होगा। ऐसे में डॉक्टर्स क्या कहते हैं-

मोबाइल फोन, टैब, कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की स्क्रीन अत्यधिक ऊर्जा वाली कम वेवलेंथ की नीली और बैंगनी रोशनी उत्पन्न करती है। यह रोशनी दृष्टि को प्रभावित करती है। इतना ही नहीं, यह आंखों को समय से पहले बूढ़ा बनाने का कारण भी बनती है। छोटी उम्र से ही बच्चों की आंखों पर अत्यधिक दबाव पड़ने से किशोरावस्था आते-आते इनकी आंखों पर बहुत ही बुरा असर पड़ सकता है। 

दिल्ली के द्वारका स्थित आकाश हॉस्पिटल की नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ. विद्या नायर का कहना है कि स्क्रीन को ज्यादा देर तक देखने से डिजिटल आई स्ट्रेन (आंखों की परेशानी) की समस्या आ सकती है। इससे आंखों में जलन, खुजली या थकावट शुरू हो सकती है। बहुत देर तक मोबाइल में बिजी रहनेवाले बच्चों को सिर दर्द, थकान, धुंधली या दोहरी दृष्टि से पीडि़त भी देखा गया है। डॉ. विद्या बताती हैं कि समस्या बढ़ने पर बच्चों के लिए किसी चीज में खुद को फोकस कर पाना बहुत मुश्किल होता है। सिर के अलावा गरदन में दर्द के मामले भी देखने को मिलते हैं।

दिल्ली के इंडियन स्पाइनल इंजरीज सेंटर की सीनियर डाइटीशियन हिमांशी शर्मा के अनुसार बच्चों के खाने में बचपन से ही उन पौष्टिक चीजों को शामिल करना चाहिए, जो आंखों के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हों। 

- गहरी हरी पत्तेदार सब्जियां आंखों के लिए अच्छी होती हैं। बथुआ, पालक, चौलाई, सोआ को खाने में शामिल करें। गहरी हरी पत्तेदार सब्जियों में ल्यूटिन पाया जाता है। इनमें मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट आंखों के लिए अच्छा होता है। 

- शकरकंदी, गहरे नारंगी रंग के संतरे और विटामिन ए से भरपूर गाजर भी नजर के लिए सही हैं।

- स्टार्ची फूड बच्चों की आंखों के लिए फायदेमंंद माने जाते हैं। वसारहित मीट, मछली, अंडा और योगर्ट इनके खाने में जरूर शामिल करें। 

-  स्ट्रॉबेरी, खट्टे फलों और स्प्राउट्स में विटामिन सी पाया जाता है। इन सबमें प्रचुर मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट्स होते हैं। थोड़ा-थोड़ा करके इसे खाने की आदत डलवाएं। 

- पपीता खिलाएं। सब्जियों में शिमला मिर्च को भी शामिल करें। 

- नाश्ते में अंडे की भुर्जी या पनीर भुर्जी खाने को दें। बच्चे को चिकन पसंद है, तो खिलाएं।

- ब्रोकली में विटामिन सी काफी होता है। बच्चों को यह ज्यादा पसंद नहीं आती, लेकिन इसकी कोई टेस्टी डिश बना कर खिलाएं।

- बींस को खाने में जरूर शामिल करें। ये भी नजर के लिए अच्छी मानी गयी हैं। 

- अंकुरित गेहूं को सलाद में मिला कर खाएं। इसमें मौजूद विटामिन ई आंखों की चमक को बरकरार रखता है। यह आंखों को डैमेज होने से बचाता है। 

बचना ओ बच्चो

डॉ. विद्या नायर के अनुसार 40 प्रतिशत अभिभावक कहते हैं कि उनके बच्चे प्रतिदिन 3 या इससे ज्यादा घंटे मोबाइल फोन या कंप्यूटर पर गुजारते हैं। ऐसा भी पाया गया है कि 60 प्रतिशत बच्चों के पास अपना मोबाइल फोन या टैब है, जिससे बच्चों की आंखों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। ऐसे में आंखों की सुरक्षा के लिए कुछ जरूरी तरकीब आजमाना फायदेमंद हो सकता है। 

- बच्चों को मोबाइल देखते समय विजुअल ब्रेक्स लेना चाहिए। विजुअल ब्रेक्स का मतलब है स्क्रीन को लगातार देखने से बचना चाहिए।

- बच्चों की आंखों का विकास 5 से 13 साल के बीच में होता रहता है, ऐसे में बच्चों का प्रतिवर्ष आई चेकअप कराया जाना चाहिए। दोस्तों के साथ उनकी खेल संबंधी गतिविधियों को बढ़ावा दें।

- नेत्र चिकित्सक से जांच के दौरान यह सुनिश्चित कर लें कि बच्चे की आंखों की पूरी जांच हो रही है। इससे पता चल सकेगा कि डिजिटल डिवाइस के कारण आंखों को किसी तरह की परेशानी तो नहीं हो रही है। 

- विजन और आंखों की सेहत का बच्चे के सीखने की क्षमता से गहरा संबंध है। इसलिए मोबाइल से बच्चों को जितना दूर रखना संभव हो,रखें। 

आंखों का अलार्म टाइम 

चिकित्सक के पास जाने की नौबत ही ना आए और आपके बच्चों को नाजुक आंखों पर चश्मा ना चढ़े, इसके लिए अभिभावकों को सचेत होने की सबसे ज्यादा जरूरत है।

- मोबाइल गेम खेलने के बजाय बच्चों को आउटडोर गेम खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। उन्हें खुद पार्क में ले कर जाएं। 

- स्कूल से छूटने के बाद या स्कूल बंद होने पर ही बच्चे सबसे ज्यादा समय मोबाइल पर बिताते हैं। बेहतर हो कि बच्चों को क्रिएटिव वर्क कराएं या म्यूजिक क्लासेज में भेजना शुरू करें। उनकी रुचि देख कर ही निर्णय लें। 

- बच्चे अगर लगातार स्कूल प्रोजेक्ट के लिए भी डिजिटल स्क्रीन पर लंबा समय बिता रहे हैं, तो उनको बीच-बीच में घर के छुटपुट कामों में हाथ बंटाने को कहें, ताकि उनकी आंखों को थोड़ी-थोड़ी देर के बाद ब्रेक मिले।

साइकोलॉजिस्ट की नजर से गुरुग्राम स्थित पारस हॉस्पिटल की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और साइकोथेरैपिस्ट डॉ. प्रीती सिंह के अनुसार स्क्रीन टाइम के ज्यादा होने से कुछ मनोवैज्ञानिक भी समस्याएं भी उभरती हैं-

- ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान बच्चे सही संतुलन और तालमेल नहीं बना पाते हैं, इससे उनमें उत्साह की कमी पायी जाती है।

- घर पर पढ़ाई के दौरान बच्चे के आसपास का माहौल आरामदायक और सहज होना चाहिए, ताकि परिवारजनों या भाई-बहनों के आसपास रहने के कारण बच्चे की एकाग्रता कम ना हो।

- ऑनलाइन क्लास के दौरान इंटरनेट कनेक्शन में खराबी के कारण बच्चा चिड़चिड़ा हो सकता है। जरूरी सेशन के दौरान सिस्टम शटडाउन हो कर रीस्टार्ट होने लगे, तो भी बच्चे का तनाव बढ़ता है।

- मौजूदा स्थिति में परिवार के किसी सदस्य के आइसोलेशन में रहने, फाइनेंशियल प्रॉब्लम या जीवनशैली में बदलाव के चलते तनाव हो सकता है। 

- अभिभावकों को चाहिए कि ऑनलाइन लर्निंग के नए तरीके को समझें, बच्चों से मीठा व्यवहार करें। कभी-कभी बच्चे को ब्रेक की जरूरत हो सकती है। परिवार या माता-पिता ही अपने बच्चे की जरूरतों को सबसे अच्छी तरह समझ सकते हैं, बच्चे की बात सुनें।

- रुटीन बना कर आप हर काम को बेहतर तरीके से कर सकते हैं। सुनिश्चित करें कि बच्चा दिनभर एक ही जगह पर ना बैठा रहे, घर में ही चले-फिरे।

- सेहतमंद आहार, नींद और व्यायाम, ये सभी मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। चूंकि इस समय बच्चे स्कूल की दिनचर्या से दूर हैं, ऐसे में अपने कौशल, रुचि या शौक के काम भी कर सकते हैं।

- बच्चे को प्रोत्साहित करें कि वह अपनी भावनाओं को व्यक्त करे। धैर्य रखें, उसे समझने की कोशिश करें। उससे कहें कि कोई भी परेशानी होने पर आपसे बात करे। उसकी भावनाओं को समझें।