महिलाओं के हक में कानून बरसों से बने हुए हैं, लेकिन उन पर कितना अमल होता है, यह विचारणीय प्रश्न है। इन कानूनों में वक्त के साथ कुछ बदलाव भी हुए हैं। आइए, नजर डालते हैं-

महिलाओं के हक में कानून बरसों से बने हुए हैं, लेकिन उन पर कितना अमल होता है, यह विचारणीय प्रश्न है। इन कानूनों में वक्त के साथ कुछ बदलाव भी हुए हैं। आइए, नजर डालते हैं-

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महिलाओं के हक में कानून बरसों से बने हुए हैं, लेकिन उन पर कितना अमल होता है, यह विचारणीय प्रश्न है। इन कानूनों में वक्त के साथ कुछ बदलाव भी हुए हैं। आइए, नजर डालते हैं-

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हिंदू एक्ट 1955 में महिलाओं के कानूनी हकों में बदलते समय के हिसाब से कई परिवर्तन किए गए हैं। यहां यह स्पष्ट कर देना उचित रहेगा कि हमारे यहां हिंदू और मुस्लिम लॉ अलग-अलग हैं। मुस्लिम महिलाओं को विवाह व जायदाद संबंधी मामलों में शरियत, हदीसों और आयतों के अनुसार उनके हक मिलते हैं। तीन तलाक कानून की कुछ रूपरेखा तय की गयी है, लेकिन तलाक के बाद उनको भरण-पोषण प्राप्त नहीं होगा। तलाक के बाद एकबारगी मेहर की तय रकम पति चुका देगा, उसके बाद उसकी पत्नी के प्रति कोई जिम्मेदारी या जवाबदेही नहीं रहेगी। आइए, जानते हैं सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट कमलेश जैन से हिंदू धर्म के तहत आने वाली हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, आर्यसमाजी, ब्रह्मसमाजी आदि महिलाओं के कानूनी हकों के बारे में।

घरेलू हिंसा के खिलाफ

‘डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005’ के तहत महिला को अधिकार है कि यदि पति या ससुराल वाले शारीरिक, मानसिक, इमोशनल,सेक्सुअल या फाइनेंशियल शोषण करते हैं, तो वह इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है। यानी इंडियन पीनल कोड की धारा-498 के तहत पत्नी के ससुराल का कोई सदस्य किसी तरह की हिंसा नहीं कर सकता। पत्नी के शिकायत दर्ज कराने पर पति व उसके घर वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी। यदि कोई महिला लिव इन में रह रही है और उसके साथ उसका पार्टनर किसी तरह की हिंसा करता है,तो शिकायत दर्ज कराने पर उसके खिलाफ भी एक्शन लिया जाएगा। यह कानून भी सभी धर्मों पर समान रूप से लागू है।

संपत्ति का अधिकार

अकसर महिलाओं को लगता है कि शादी के बाद उनके मायके की पैतृक संपत्ति में उनका अधिकार नहीं रह जाता। पर 2005 में ‘हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956’ में संशोधन करके बेटी शादीशुदा हो या गैरशादीशुदा, विधवा हो या तलाकशुदा, वह पिता की संपत्ति को पाने का बराबर का हक रखती है। यह हिस्सा पीढ़ियों से चली आ रही संपत्ति में प्राप्त होगा। लेकिन माता-पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति में वसीयत के अनुसार ही हिस्सा मिलेगा या नहीं मिलेगा। यदि माता-पिता बिना वसीयत किए ही गुजर चुके हैं, तो दावा करने पर बेटियों को भाइयों के साथ बराबर का हिस्सा प्राप्त होगा। 

अबॉर्शन का अधिकार

पहले पत्नी पति की सहमति के बगैर अपनी मर्जी से अबॉर्शन नहीं करा सकती थी। लेकिन अब पति या घर वालों की सहमति के बिना भी बच्चा ना चाहने पर ‘द मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी’ के तहत अबॉर्शन करा सकती है। प्रेगनेंसी 24 हफ्ते से कम होनी चाहिए, पर स्पेशल केस (बलात्कार से प्रेगनेंसी होने या प्रेगनेंसी से मां के जीवन को खतरा होने या गर्भस्थ शिशु में खराबी आने जैसी समस्याएं) में 24 हफ्ते के बाद भी अबॉर्ट कराया जा सकता है। 

बच्चे की कस्टडी

अकसर डाइवोर्स के बाद पति-पत्नी में बच्चे की कस्टडी विवाद का बड़ा कारण बन जाती है। तब वे कोर्ट की शरण में जाते हैं। अगर महिला का बच्चा 5 वर्ष से छोटा है, वह ससुराल में नहीं रह रही है, तो बिना लीगल आॅर्डर के अपने बच्चे को साथ ले जा सकती है। यदि बच्चा 5 वर्ष से बड़ा है, पर मां के ही साथ रहना चाहता है, तो भी मां को ही उसकी कस्टडी मिलेगी। कोर्ट के लिए बच्चे का हित सर्वोपरि होता है। यदि कोर्ट को लगता है कि बच्चे का हित पिता के साथ ज्यादा बेहतर है, तो पिता को उसकी कस्टडी मिलेगी।

स्त्री धन पर अधिकार

हिंदू लॉ के तहत महिलाओं को स्त्री धन का पूरा अधिकार है। शादी में या उपहार में जो आभूषण व कीमती सामान स्त्री को मिलते हैं, उन पर पूरी तरह से उसका ही अधिकार होता है। यदि विवाह में पति-पत्नी को संयुक्त रूप से कोई उपहार मिला है, तो भी पत्नी को उसमें हक मिलेगा। शादी से पहले की पत्नी की संपत्ति पर सिर्फ उसका ही अधिकार होगा। पति पत्नी की संपत्ति का उपयोग कर सकता है, पर विवाद या अलगाव होने पर उसे वह संपत्ति पत्नी को लौटानी होगी। स्त्री धन में चल-अचल संपत्ति, सोना-चांदी, वाहन, कलाकृतियां,उपकरण, फर्नीचर आदि शामिल हैं। 

दहेज उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार

इंडियन पीनल कोड की धारा 498 ए के तहत यह एक संगीन अपराध है। यह कानून हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब पर समान रूप से लागू होगा। दहेज के लिए शादी के पहले, शादी के समय या शादी के बाद उत्पीड़न करने वाले पति व उसके रिश्तेदारों को 3 साल की कैद व जुर्माना हो सकता है। दहेज लेनदेन में सहयोग करने पर 5 साल की सजा व 15000 रुपए जुर्माना होगा। वधू व उसके परिवारवालों से संपत्ति या कीमती सामान की मांग करना और दबाव बनाना कानूनन जुर्म है, भुक्तभोगी लड़की खुद पुलिस को इत्तिला दे कर रिपोर्ट दर्ज करा सकती है।

पति की संपत्ति में हक

यह एक भ्रामक धारणा है कि शादी के बाद पत्नी को पति की अर्जित संपत्ति पर हक प्राप्त हो जाता है। सचाई यह है कि पति की स्व-अर्जित संपत्ति पर पत्नी का अधिकार नहीं होता। जब तक पति सह स्वामी के रूप में कानूनी तौर पर कागजातों में पत्नी का नाम दर्ज नहीं कराएगा, पत्नी को कोई हक नहीं मिलेगा। पति दानपत्र या उपहार के रूप में अपनी संपत्ति में पत्नी को हिस्सेदार बना सकता है। पति की मौत के बाद ससुराल की पैतृक संपत्ति में पति का पूरा शेअर उसे मिलेगा, तो साथ ही ससुराल में रहने का हक भी मिलेगा। यदि पति अपनी स्व-अर्जित संपत्ति की वसीयत कराए बिना गुजर गया हो, तो पत्नी के साथ पति के माता-पिता अगर जीवित हों, तो उनको भी समान रूप से अधिकार मिलेगा। यदि पत्नी के नाम संपत्ति है, तो भी सास-ससुर के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पत्नी यानी बहू की रहेगी। पति के भाई-बहन को उसकी संपत्ति में हक नहीं होगा। डाइवोर्स होने पर पति सिर्फ गुजारा भत्ता ही देगा या समझौते के तहत पत्नी एकमुश्त एल्यूमनी भी प्राप्त कर सकती है।

अनुकंपा पर नौकरी का हक

पिता यदि सरकारी नौकरी में हैं और सेवाकाल के दौरान उनकी मृत्यु हो जाती है, तो ऐसी स्थिति में बेटी को अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने का हक है, चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित। चाहे सिर्फ बहनें हों या भाई-बहन, जो भी सेवा शर्तों की योग्यताएं पूरी करेगा, नौकरी उसी को मिलेगी।

एफआईआर कराने का हक

महिला का उत्पीड़न जिस थाना क्षेत्र में हुआ हो, वहीं के थाने में एफआईआर दर्ज कराना जरूरी नहीं। वह इसकी एफआईआर जहां वह रहती है, उस थाने में भी करा सकती है। यदि वह थाने तक जाने में सक्षम नहीं है, तो फोन, ईमेल या पत्र के जरिए अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है। 

यौन उत्पीड़न के मामले में

अगर कार्यस्थल पर महिला का उत्पीड़न होता है, तो ‘सेक्सुअल हैरेसमेंट प्रीवेंशन एक्ट 2013’ के तहत वह कंपनी में शिकायत कर सकती है और पुलिस स्टेशन में एफआईआर भी लिखवा सकती है। कंपनी में लिखित शिकायत करने पर ऑफिस या कंपनी को एक आंतरिक जांच कमेटी बनानी होगी, जिसमें एक महिला सदस्य का होना जरूरी है। यह कमेटी 3 महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट देगी, जिस पर कंपनी को एक्शन लेना होगा। ऐसा ना करने पर कंपनी के खिलाफ एक्शन लिया जाएगा। यह अधिनियम सन 2013 से प्रभावी है।

इसी एक्ट के तहत किसी लड़की का रोज पीछा करने (स्टॉकिंग) पर लड़के को जेल हो सकती है। यदि वह लड़की की मर्जी के बिना संपर्क बनाने की कोशिश करता है, मना करने पर भी बातचीत के लिए दबाव बनाता है, तो वह लड़की पुलिस में सीधे मामला दर्ज करा सकती है। महिला इंटरनेट पर क्या करती है, उसकी चैट पर नजर रखना, उसकी तसवीर खींचना, उसका वीडियो बनाना अौर सोशल मीडिया में अपलोड करना भी स्टॉकिंग की श्रेणी में आता है।

समान वेतन का हक

समान पारिश्रमिक अधिनियम के तहत अब लिंग के आधार पर वेतन, भत्ते और भुगतान के मामलों में भेदभाव नहीं किया जा सकता। स्त्री को पुरुषों जितने ही वेतन का हक है। मैटरनिटी बैनिफिट एक्ट 1961 के तहत नौकरीशुदा महिलाओं को 12 हफ्ते का मातृत्व अवकाश प्राप्त होता था, लेकिन मातृत्व लाभ संशोधन अधिनियम 2017 में उसे बढ़ा कर 24 हफ्ते कर दिया गया है, ताकि महिला कर्मचारी के रोजगार की गारंटी के साथ बच्चे को मां की देखभाल भी मिल सके। प्रेगनेंट वर्किंग वुमन को सुविधा व लाभ पहुंचाने की दृष्टि से इसे लागू किया गया। यह कानून सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह की नौकरियों में लागू है। इसके तहत फैक्टरियों, खानों, दुकानों, सरकारी व सरकार द्वारा रजिस्टर्ड प्रतिष्ठानों में काम करनेवाली महिलाओं को शामिल किया गया है। लेकिन महिला का तीसरा बेबी होने को है, तो उसे 12 हफ्ते का ही मातृत्व अवकाश मिलेगा। महिला डिलीवरी डेट से 8 सप्ताह पहले और बाकी छुट्टियां डिलीवरी के बाद ले सकती है। अवकाश की अवधि पूरी होने पर अगर महिला छुट्टी जारी रखती है, तो फर्म लॉस ऑफ पे या नो वर्क नो सैलरी की नीति अपना सकती है। यदि वर्क फ्रॉम होम का प्रावधान है, तो वह घर से काम जारी रख सकती है। इस बीच उसकी जॉब खत्म नहीं की जा सकती। फिर भी ऐसा होने पर 2017 के एक्ट के तहत कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

महिला ने बच्चा गोद लिया है, जो 3 महीने से छोटा है, तो उसे 12 हफ्तों की छुट्टी मिलेगी। वहीं सेरोगेसी से बच्चा प्राप्त करनेवाली महिला बच्चा मिलने की तारीख से 12 हफ्तों की छुट्टियों के लिए अप्लाई कर सकती है। ये छुट्टियां तभी मिलेंगी, जब वह महिला उस संस्थान में न्यूनतम 12 महीनों से कार्यरत हो और इस दौरान कम से कम 160 दिन काम किया हो।

बच्चा गोद लेने का अधिकार

हिंदू दत्तक अधिनियम 1956 के तहत पहले कुंआरी स्त्रियां बच्चा गोद नहीं ले सकती थीं। पर अब शादीशुदा, कुंआरी, विधवा हर महिला बच्चा गोद ले सकती है। इसके लिए पति की रजामंदी जरूरी नहीं। गोद लेने के बाद बच्चे के दत्तक माता-पिता जन्म देनेवाले पेरेंट्स की स्थिति में आ जाएंगे। बच्चे के प्रति हर जिम्मेदारी व हक निभाना उनका कानूनी दायित्व होगा। उनकी संपत्ति में बच्चे को पूरा अधिकार मिलेगा। मुस्लिमों में बच्चा गोद लेने की अनुमति नहीं है। यदि फिर भी किसी मुस्लिम ने बच्चा गोद लिया, तो मुस्लिम कानून के तहत दंपती दत्तक के माता-पिता नहीं माने जाएंगे और उनकी संपत्ति पर भी बच्चे को हक नहीं मिलेगा। हाल ही में ऐसे एक मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने पर कोर्ट ने इस तरह के एडॉप्शन को बेबुनियाद और अनुचित करार दिया।