आज भी महिलाओं को लगता है कि उनको अपने शरीर पर पूरा अधिकार नहीं है। विदेशों में भी अबॉर्शन के नियम ने उनको बांध रखा है। सदियों से समाज में किसी ना किसी वजह से गर्भपात विवाद का मुद्दा रहा है। कभी स्त्री, तो कभी अजन्मे शिशु के अधिकार की बात को ले कर यह मुद्दा हमेशा संवेदनशील रहा है। यह विषय धर्म,

आज भी महिलाओं को लगता है कि उनको अपने शरीर पर पूरा अधिकार नहीं है। विदेशों में भी अबॉर्शन के नियम ने उनको बांध रखा है। सदियों से समाज में किसी ना किसी वजह से गर्भपात विवाद का मुद्दा रहा है। कभी स्त्री, तो कभी अजन्मे शिशु के अधिकार की बात को ले कर यह मुद्दा हमेशा संवेदनशील रहा है। यह विषय धर्म,

Want to gain access to all premium stories?

Activate your premium subscription today

  • Premium Stories
  • Ad Lite Experience
  • UnlimitedAccess
  • E-PaperAccess

आज भी महिलाओं को लगता है कि उनको अपने शरीर पर पूरा अधिकार नहीं है। विदेशों में भी अबॉर्शन के नियम ने उनको बांध रखा है। सदियों से समाज में किसी ना किसी वजह से गर्भपात विवाद का मुद्दा रहा है। कभी स्त्री, तो कभी अजन्मे शिशु के अधिकार की बात को ले कर यह मुद्दा हमेशा संवेदनशील रहा है। यह विषय धर्म,

Want to gain access to all premium stories?

Activate your premium subscription today

  • Premium Stories
  • Ad Lite Experience
  • UnlimitedAccess
  • E-PaperAccess

आज भी महिलाओं को लगता है कि उनको अपने शरीर पर पूरा अधिकार नहीं है। विदेशों में भी अबॉर्शन के नियम ने उनको बांध रखा है। सदियों से समाज में किसी ना किसी वजह से गर्भपात विवाद का मुद्दा रहा है। कभी स्त्री, तो कभी अजन्मे शिशु के अधिकार की बात को ले कर यह मुद्दा हमेशा संवेदनशील रहा है। यह विषय धर्म, राजनीति और भावनाओं से जुड़ा होने के कारण और भी गंभीर हो जाता है। ऐसे विषय पर जब सरकार कोई कदम उठाना चाहती है, तो महिला संगठनों की यह पहली दलील होती है कि अपने शरीर पर पहला हक स्त्री का ही है, इसलिए उनके पक्ष को सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए। विश्व के सभी देशों के कानून इस विषय पर अलग हैं। करीब 26 देशों में सभी तरह के अबॉर्शन को गैरकानूनी माना गया है। इसमें रेप के बाद हुई प्रेगनेंसी या परिवार के भीतर  बने अनैतिक संबंधों के बाद की प्रेगनेंसी का अबॉर्शन भी शामिल है। भारत में जनवरी 2020 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 1971 के मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट में सुधार किए। इसके अनुसार महिलाओं को रिप्रोडक्टिव राइट्स और जेंडर जस्टिस के मामलों में गर्भपात कराने का अधिकार दिया है। इस सुधार के अनुसार एमटीपी की ऊपरी सीमा को 20 सप्ताह से बढ़ा कर 24 सप्ताह कर दिया गया है। इसमें रेप, घरेलू अनैतिक संबंधों, दिव्यांग महिलाओं और गर्भावस्था में भ्रूण के विकास से जुड़ी बीमारियां शामिल हैं। गर्भनिरोध की असफलता को भी इसी दायरे में रखा गया है। पुराने कानून में केवल शादीशुदा महिला और उसके पति को शामिल किया गया था, जबकि नए नियम के अनुसार कोई भी महिला और उसका साथी इस दायरे में आ जाता है।

सविता को सलाम

आयरलैंड में अबॉर्शन को ले कर बड़े सख्त नियम रहे हैं। वहां के  गर्भपात के सख्त नियमों में बदलाव करने के लिए महिलाओं ने लंबी लड़ाई लड़ी। नए कानून के मुताबिक 12 हफ्ते तक के गर्भ को खत्म करने की अनुमति है। गर्भवती महिला की जान को खतरा होने या सेहत को गंभीर नुकसान पहुंचने की स्थिति में ऐसा करने की छूट होगी। आयरलैंड में अबॉर्शन की मांग उस समय तेज हुई जब वहां भारतीय मूल की महिला सविता की अबॉर्शन ना कराए जाने की स्थिति में मृत्यु हो गयी। सविता एक डेंटिस्ट थीं। सविता को जब यह पता चला कि उनका अबॉर्शन हो सकता है, तो उन्होंने डॉक्टर्स से इसकी मांग की। लेकिन कैथोलिक देश होने के कारण चिकित्सकों ने इनकार कर दिया। इसके बाद वहां विद्रोह की स्थिति हो गयी। हजारों लोग सड़कों पर निकल आए। इनका कहना था कि चर्च को यह निर्णय लेने का अधिकार नहीं कि एक अजन्मे शिशु का जन्म का अधिकार एक महिला की जिंदगी से बड़ा है। सविता के पोस्टर के साथ प्रदर्शन हुए करते हुए संविधान में संशोधन की मांग की गयी।

पड़ोसी का हाल

पड़ोसी मुल्क चीन का रुख करें। सन 1950 में चीन में अबॉर्शन लॉ में ढील दी गयी। देश में एक बच्चे के जन्म की नीति को बढ़ावा देने के लिए ऐसा किया गया। इस पॉलिसी का एक दुष्परिणाम जबर्दस्ती कराए जाने वाले अबॉर्शन के रूप में सामने आया। बाद में नीति में बदलाव किए गए।   

दिल की सुनो

अजन्मे बच्चे के दिल की धड़कन यही संकेत देती है कि वह भी दुनिया में आने को बेचैन है। ऐसे में उसे  इस दुनिया में आने से रोकने का अधिकार किसी को भी नहीं है। हाल में पारित कानून से ऐसा ही लगता है। साफ कहें तो, एक बार मां के गर्भ में बच्चे का दिल धड़कना शुरू कर दे, तो ऐसे गर्भ को खत्म करना कानूनन अपराध माना जाएगा। दुनिया के छल-प्रपंच से नावाकिफ मासूम गर्भ का नन्हा दिल प्रेगनेंसी के साढ़े 5 से 6 सप्ताह में धड़कना शुरू कर देता है। अमेरिका के कई राज्यों में अबॉर्शन से जुड़ा बिल 2019 में से पारित किया गया। अमेरिका के जॉर्जिया, केंटुकी, मिसीसिपी और ओहियो ने भी इसी तरह के ‘हार्टबीट बिल’ को पास किया। हालांकि कुछ विशेष परिस्थितियों में इसको ले कर छूट दी गयी है जैसे गर्भवती की सेहत बेहद गंभीर हो या फिर अजन्मे बच्चे को कोई जानलेवा बीमारी हो। फिलहाल अभी भी यह बहस का विषय है।

यूरोपीय देशों का हाल

यूरोप के ज्यादातर देशों में बिना किसी खास रोक के अबॉर्शन की इजाजत है। बशर्ते गर्भ की उम्र 10 से 14 सप्ताह तक ही हो। हां कुछ खास मामलों में समय सीमा की छूट दी गयी है जैसे ग्रीस में रेप पीडि़त युवतियों को 19 सप्ताह का गर्भ होने तक गर्भपात कराने की आजादी है। वहीं गर्भवती स्त्री की सेहत या जीवन को किसी तरह का खतरा हो या फिर भ्रूण में किसी तरह का जन्मजात विकार होने का डर हो, तो इन मामलों में गर्भपात कराने की समय सीमा 24 सप्ताह कर दी गयी है। यूरोपीय देश पोलैंड में भी गर्भपात को ले कर बहुत बड़ा बवाल सामने आया। वहां के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार स्त्रियां अपनी मर्जी से अबॉर्शन नहीं करा सकती हैं। कुछ ही स्थितियों में ऐसा करने की छूट होगी। अबॉर्शन के नियमों को सख्त करने पर हजारों की संख्या में महिलाएं सड़कों पर आ गयीं। उनका कहना था कि हमारे शरीर पर फैसला देने का हक किसी भी संस्था को नहीं है। पोलैंड में प्रेगनेंसी के दौरान अजन्मे शिशु में किसी तरह की दिक्कत होने पर महिलाओं को गर्भपात का अधिकार था। नए नियम के अनुसार अबॉर्शन पर पूरी तरह रोक लगा दी गयी। विरोध करनेवाली महिलाओं की दलील है कि अगर भ्रूण में दिक्कत होने पर भी अबॉर्शन की अनुमति नहीं है, तो वे बच्चे को जन्म देने की ही नहीं सोचेंगी। हालांकि फिलहाल रेप पीडि़ता को छूट दी गयी है।

परदे के पीछे का सच

क्या मिडिल ईस्ट की महिलाओं को अपने शरीर से जुड़े गर्भपात के अधिकार को ले कर आजादी है? टर्की में गर्भपात कानूनी है। यहां तक कि गर्भ के पहले 3 महीने में गर्भपात की मुफ्त सुविधा दी जाती है। एक युवती के जीवन पर खतरा होने की स्थिति में भी यह छूट है। सऊदी अरब में भी स्त्री की जिंदगी खतरे में होने की दिशा में गर्भपात की छूट होती है, ताकि उसके शरीर और मन पर पड़नेवाले दुष्प्रभाव को रोका जा सके। मुस्लिम बहुसंख्यक कई देशों में प्रेगनेंसी को कुछ विशेष परिस्थितियों में खत्म करने की इजाजत दी गयी है जैसे घरेलू अनैतिक संबंधों में, बलात्कार के मामलों में, भ्रूण में किसी तरह के विकार की स्थिति में या महिलाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर होने की दशा में। हालांकि मुस्लिम बहुल मध्य पूर्व के देशों इरान, सीरिया, फिलिस्तीन और इराक में तो गर्भपात पर पूरी तरह रोक है।

आंकड़ों की स्टोरी

डब्लूएचओ के आंकड़ों पर विश्वास किया जाए, तो गर्भपात के कुल 100 मामलों में से 45 असुरक्षित होते हैं। असुरक्षित गर्भपात के ज्यादातर मामले विकासशील देशों के हैं। एक अनुमान के अनुसार असुरक्षित गर्भपात के 100 में से 97 मामले अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों के हैं। इसके ठीक विपरीत अमीर देशों में अबॉर्शन के मामले में बहुत गिरावट पायी गयी। अध्ययनों के अनुसार पिछले 25 सालों में उनकी गिनती आधी हुई। 2013 में विकसित देशों की सरकार ने आर्थिक या सामाजिक कारणों से अपने देशों में अबॉर्शन को वैध किया। कुल मिला कर देखा जाए, तो विकसित व विकासशील देशों में कारणों और मामलों में बहुत अंतर है।

सच सामने

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में हर साल 73.3 मिलियन सुरक्षित और असुरक्षित गर्भपात होते हैं। असुरक्षित गर्भपात से सबसे अधिक मौत के मामले अफ्रीका में पाए गए। एक नए अध्ययन के अनुसार जिन देशों ने कानूनी रूप से गर्भपात पर रोक लगा रखी है, वहां पर अबॉर्शन की दर अधिक है ।

पास-पड़ोस की झलक

सबसे अधिक गर्भपात होनेवाले देशों में पाकिस्तान का भी स्थान है। वहां भी लड़के की ख्वाहिश में कन्या भ्रूण हत्या होती रही है। लाखों की संख्या में पाकिस्तानी औरतें इस डर से गर्भपात करा लेती हैं कि बार-बार लड़की होने की वजह से उनका शौहर उन्हें छोड़ देगा।

कारण की कमी नहीं

विदेश में हुए शोध से यह जानने की कोशिश की गयी कि अबॉर्शन की वजहें क्या हैं। 100 में से 40 युवतियों ने माना कि वे आर्थिक रूप से तैयार नहीं हैं, 100 में से 36 के लिए अनचाही प्रेगनेंसी एक वजह थी। 100 में से 31 ने अपने जीवनसाथी और पार्टनर को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। इनके अनुसार या तो रिश्ते बुरी स्थिति में होते हैं या फिर नए रिश्ते बन जाते हैं। इसके अलावा वे सिंगल मदर बनने को तैयार नहीं होतीं। वे महसूस करती हैं कि उनका पार्टनर सपोर्टिव नहीं है या वह बेबी नहीं चाहता। कभी-कभी पार्टनर के खराब व्यवहार से दुखी होने से या गलत पार्टनर का चुनाव के कारण भी वे गर्भपात कराती हैं।