एकादशी अर्थात पक्ष का ग्यारहवां िदन। एक मास में दो पक्ष होते हैं, शुक्ल पक्ष अौर कृष्ण पक्ष। हर पक्ष में एक एकादशी होती है। इस प्रकार हर मास में 2 एकादशी होती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष में 24 एकादशी होती हैं। प्रत्येक तीसरे वर्ष अधिकमास होता है, िजसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं, तब 26 एकादशी

एकादशी अर्थात पक्ष का ग्यारहवां िदन। एक मास में दो पक्ष होते हैं, शुक्ल पक्ष अौर कृष्ण पक्ष। हर पक्ष में एक एकादशी होती है। इस प्रकार हर मास में 2 एकादशी होती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष में 24 एकादशी होती हैं। प्रत्येक तीसरे वर्ष अधिकमास होता है, िजसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं, तब 26 एकादशी

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एकादशी अर्थात पक्ष का ग्यारहवां िदन। एक मास में दो पक्ष होते हैं, शुक्ल पक्ष अौर कृष्ण पक्ष। हर पक्ष में एक एकादशी होती है। इस प्रकार हर मास में 2 एकादशी होती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष में 24 एकादशी होती हैं। प्रत्येक तीसरे वर्ष अधिकमास होता है, िजसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं, तब 26 एकादशी

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एकादशी अर्थात पक्ष का ग्यारहवां  िदन। एक मास में दो पक्ष होते हैं, शुक्ल पक्ष अौर कृष्ण पक्ष। हर पक्ष में एक एकादशी होती है। इस प्रकार हर मास में 2 एकादशी होती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष में 24 एकादशी होती हैं। प्रत्येक तीसरे वर्ष अधिकमास होता है, िजसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं, तब 26 एकादशी हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी एक नाम से जानी जाती है। उनके नाम के अनुसार ही पूजन विधान होता है। इनमें से ज्येष्ठ मास (जेठ) के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे िनर्जला एकादशी या महा एकादशी भी कहते हैं। केवल इस एक निर्जला एकादशी का व्रत करने से पूरे वर्ष की एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है।
जैसा कि इसके नाम से प्रतीत होता है निर्जला अर्थात जल रहित। ऐसे में भी ज्येष्ठ मास की भयंकर गरमी में व्रती के िलए जल ग्रहण करना वर्जित होता है। इस व्रत को रखना मुश्किल है। ऐसी मान्यता है िक इस व्रत को रखने से अायु व अारोग्य की वृद्धि होती है।
एकादशियों के व्रत में विश्वास रखनेवाले श्रद्धावान प्रत्येक एकादशी को व्रत-पूजा करते हैं। यह व्रत पूरी तरह से फलाहारी होता है। अगले िदन यानी द्वादशी के िदन सूर्योदय के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करना होता है। व्रत यानी संकल्प लेना, िनश्चय करना। मन की िदशा अौर दशा को दृढ़ता देने को संकल्प ही व्रत है। हमारी संस्कृति में व्रतों की लंबी शृंखला है। सभी व्रतों का विधान अलग-अलग होते हुए भी ध्येय सबका एक ही होता है - मन अौर तन की शुद्धि। अात्मशुद्धि के िलए व्रत की भूिमका बहुत महत्वपूर्ण है। व्रत के अनुसार लंघन (भोजन को लांघना या त्याग करना) फलाहार व अल्पाहार से अांतों को विश्राम िमलता है। अांतरिक सफाई होने के साथ-साथ अांतें अधिक सक्रिय होती हैं, जो स्वास्थ्य के िलए िहतकारी है।


ऐसी भी मान्यता है िक एकादशी के दिन जो सूर्य की िकरणें पृथ्वी पर पड़ती हैं, उन िकरणों से अनाज दूषित हो जाता है, िवशेष रूप से चावल तो कीड़े के समान हो जाते हैं। यही वजह है िक इस व्रत में फलाहार िकया जाता है। एकादशी की पूजा में भी चावल चढ़ाया नहीं जाता। इस िदन जल का दान करना उत्तम माना जाता है। लोग जगह-जगह शरबत के प्याऊ लगवाते हैं। घड़े, सुराही, पंखे, छतरी अािद चीजों का दान करते हैं। इस िदन िवष्णु भगवान की पूजा करने अौर ‘अोम नमो भगवते वासुदेवायः’ का जप करने का िवधान है। िवष्णु जी को तुलसी के पत्तों की माला पहनाएं।
कहा जाता है कि महाभारत काल में निर्जला एकादशी का व्रत रखने की सलाह स्वयं वेद व्यास ने भीम को दी थी। उन्होंने कहा था कि इस दिन व्रत रखने से पूरे वर्ष की एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इसी वजह से यह भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जानी जाती है।
मलमास कैसे बना पुरुषोत्तम मास
अधिक मास यानी अतिरिक्त महीना। चंद्रमा पर अाधािरत 354 िदनों के कैलेंडर के अनुसार हर 32 महीने, 16 दिन अौर 8 घड़ी (एक घड़ी यानी 24
िमनट की इकाई) में मलमास अाता है। सूर्य पर अाधािरत कैलेंडर में 365 िदन होते हैं। इस मास में सूर्य की कोई संक्राति नहीं होती व इस मास का कोई स्वामी भी नहीं होता। इसमें शुभ कार्य जैसे विवाह, भवन निर्माण, मुंडन अादि नहीं कराए जाते। देव पितर अािद की पूजा भी वर्जित मानी गयी है।
किंवदंतियों के अनुसार इन सब बातों से दुखी हो कर मलमास भगवान िवष्णु की शरण में गए, तब भगवान ने कहा, ‘मैं तुम्हें अपना नाम देता हूं। अब तुम पुरुषोत्तम मास कहलाअोगे। अब मैं ही तुम्हारा अधिपति हूं। यह मास 12 महीनों में श्रेष्ठ मास यानी पुरुषोत्तम मास माना जाएगा।’ यही वजह है िक इस मास के दौरान जप, तप, दान अािद करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।