सोनिया को बैंक वालों ने बुलाया था, क्योंकि उसके चेक सिग्नेचर मैच ना होने से बाउंस हो रहे थे। वह बैंक गयी और बैंक में उसका नया सिग्नेचर रजिस्टर किया गया। आखिर किस तरह एक्सपर्ट व्यक्ति की लिखावट की पहचान करते हैं। क्या किसी का सिग्नेचर उम्र के साथ बदल जाता है? क्या आपकी हैंडराइटिंग से आपके स्वभाव का

सोनिया को बैंक वालों ने बुलाया था, क्योंकि उसके चेक सिग्नेचर मैच ना होने से बाउंस हो रहे थे। वह बैंक गयी और बैंक में उसका नया सिग्नेचर रजिस्टर किया गया। आखिर किस तरह एक्सपर्ट व्यक्ति की लिखावट की पहचान करते हैं। क्या किसी का सिग्नेचर उम्र के साथ बदल जाता है? क्या आपकी हैंडराइटिंग से आपके स्वभाव का

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सोनिया को बैंक वालों ने बुलाया था, क्योंकि उसके चेक सिग्नेचर मैच ना होने से बाउंस हो रहे थे। वह बैंक गयी और बैंक में उसका नया सिग्नेचर रजिस्टर किया गया। आखिर किस तरह एक्सपर्ट व्यक्ति की लिखावट की पहचान करते हैं। क्या किसी का सिग्नेचर उम्र के साथ बदल जाता है? क्या आपकी हैंडराइटिंग से आपके स्वभाव का

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सोनिया को बैंक वालों ने बुलाया था, क्योंकि उसके चेक सिग्नेचर मैच ना होने से बाउंस हो रहे थे। वह बैंक गयी और बैंक में उसका नया सिग्नेचर रजिस्टर किया गया। आखिर किस तरह एक्सपर्ट व्यक्ति की लिखावट की पहचान करते हैं। क्या किसी का सिग्नेचर उम्र के साथ बदल जाता है? क्या आपकी हैंडराइटिंग से आपके स्वभाव का पता चल सकता है? क्या किसी की लिखावट की नकल करना आसान है और इससे किस तरह का खतरा पैदा हो सकता है, इन सब सवालों के जवाब दे रहे हैं दिल्ली स्थित फोरेंसिक हस्तलेख प्रश्नांकित दस्तावेज व फिंगरप्रिंट विशेषज्ञ मानस मिश्रा।

क्या है ग्राफोलॉजी

किसी की लिखावट का विश्लेषण करने को ग्राफोलॉजी कहा जाता है। हैंडराइटिंग एक्सपर्ट पर्सनेलिटी असेसमेंट करते हैं। जैसे आपकी लिखावट या सिग्नेचर को देख करके वे आपकी पर्सनेलिटी का विश्लेषण करते हैं कि आपका किस तरह का मिजाज है, आपकी क्या व्यक्तिगत पसंद-नापसंद है, आपका कैरिअर कैसा रहेगा? आप गुस्सैल हैं या सीधे हैं? वे यह भी बताते हैं कि आपकी पर्सनेलिटी और बेहतर कैसे हो सकती है? यह सब ग्राफोलॉजी के अंतर्गत आता है। लेकिन आमतौर पर इसमें कुछ चीजें तो हैं, जो समझ में आती हैं, लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं, जो सब्जेक्टिव हैं, हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकती हैं। यह कहें कि राइटिंग से एक आदमी का पूरा व्यक्तित्व बताया जा सकता है तो यह पूरी तरह सही नहीं है। हालांकि कई लोग बड़े-बड़े दावे करते हैं। अगर अगर आपसे कहा जाए कि आपकी राइटिंग में तो आप बहुत कॉन्फिडेंट नजर आ रहे हैं, या लगता है आपकी लाइफ में कोई बहुत बड़ा उतार-चढ़ाव हुआ है। बस आप खुश हो जाते हैं, सोचते हैं बात तो सही है, उतार-चढ़ाव तो आए हैं। अब ऐसा कोई इंसान नहीं है, जिसकी लाइफ में उतार-चढ़ाव नहीं आए होंगे। व्यक्ति सोचता है कि अरे, इन्होंने तो सच बता दिया।

मानस मिश्रा कहते हैं कि ग्राफोलॉजी प्योर साइंस नहीं है, क्योंकि इसका कोई पैरामीटर नहीं है। हमारा काम फॉरेन्सिक क्वेश्चन डाक्यूमेंट्स एंड फिंगर प्रिंट्स में है। जहां पर भी कागजी जालसाजी होती है, जहां पर अंगूठे के निशान गलत लगा कर प्रॉपर्टी हड़प ली जाती है या निशान में मिलाना होता है कि अंगूठे का निशान यह है कि नहीं है, सिग्नेचर फर्जी है कि असली है, वहां हम काम आते हैं। कई लोग अपने ही सिग्नेचर्स करके मुकर जाते हैं कि हमारे नहीं हैं। हम सिग्नेचर को बड़ा करके अलग-अलग एंगल, अलग-अलग लाइटिंग में उसकी फोटो लेते हैं और कोर्ट में बतौर सबूत पेश करते हैं। हम लोग कोर्ट में एक्सपर्ट विटनेस होते हैं।

नेचुरल वेरिएशंस आते हैं

राइटिंग में नेचुरल वेरिएशंस आते हैं। अगर कोई व्यक्ति एक ही समय में 10 बार सिग्नेचर करेगा तो हर बार उसमें थोड़ा-बहुत अंतर आएगा ही। यह वेरिएशन कई वजहों से होती है। उम्र के साथ हाथ की मसल्स थोड़ी शिथिल पड़ जाती हैं, जिससे हस्ताक्षर में अंतर आ जाता है। हाथ में चोट लगने की वजह से, नशे की हालत में या चलती गाड़ी में या खुरदरी सतह पर साइन करने पर भी वेरिएशन आता है। वसीयत के मामले में सिग्नेचर की पहचान करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि लोग नकली वसीयत बना कर दावे करते हैं। हम कई तरीकों से असेसमेंट करके असली हस्ताक्षर की पहचान करते हैं।

ग्राफोलॉजिस्ट कुछ हद तक पर्सनेलिटी का असेसमेंट कर सकते हैं। जो बड़े ही चियरफुल हैं, हर काम करीने से करते हैं, परफेक्शनिस्ट होते हैं, उनका साइन बड़ा ही नपातुला होगा। उनके साइन में फिक्स मैनेरिज्म होगा, उनमें नेचुरल वेरिएशन कम होंगे। कुछ लोग अंग्रेजी के आई के ऊपर डॉट लगाते हैं, वहीं कुछ लोग सर्कल बनाते हैं। सर्कल बनाने वाले हर काम को संजीदगी से काम करते हैं, लापरवाही पसंद नहीं करते, सर्कल बनाने में डॉट लगाने से अधिक समय लगता है, लेकिन उनको इस बात की परवाह नहीं होती कि कितना समय लग रहा है, बल्कि वे हर काम काम को अच्छे से करते हैं।

कुछ लोग अपना साइन करने के बाद उसे अंडरलाइन कर देते हैं। ऐसे लोग बहुत सावधानी से काम करते हैं। वे सुरक्षात्मक कवच डालने वाले होते हैं। ये लोग घर से बाहर निकलने पर सोचते हैं कि कहीं ताला खुला तो नहीं रह गया, गैस तो खुली नहीं छोड़ दी। अंडरलाइन साइन का आखिरी स्ट्रोक होता है, यह एक तरह से सिगनल है कि हमने साइन कर दिया है। वहीं लापरवाह व्यक्ति के हस्ताक्षर ऐसे होंगे, जो आपकी समझ में नहीं आएंगे, आड़ी-तिरछी लाइनें खींच देंगे। वे सामने वाले में इतना इंटररेस्ट नहीं लेंगे। उन्हें अपने काम से ज्यादा लगाव भी नहीं होगा। उन्हें परवाह नहीं होगी कि उसके सिग्नेचर का क्या किया जाएगा।

जो लोग सिग्नेचर में अपना पूरा नाम लिखते हैं, वे हर काम में पूरा समय देते हैं। वे लाइफ को पूरा एंजॉय करते हैं। काम चाहे छोटा हो या बड़ा, हर काम को पूरे मन से करते हैं। उन्हें अच्छा लगता है वे पेज पर अपनी निशानी छोड़ रहे हैं। वे दूसरों के बारे में इंटरेस्टेड रहते हैं। वहीं जो लोग छोटे साइन करते हैं, वे उतना ही जानना चाहेंगे, जितना आप बताएंगे। वे दूसरों के बारे में अधिक जानने को उत्सुक नहीं रहते।

लंबे सिग्नेचर करने वाले होते हैं मजबूत पर्सनेलिटी के

यहां एक बात महत्वपूर्ण है कि जो लोग लंबे हस्ताक्षर करते हैं, उनकी नकल करना छोटे साइन वालों के मुकाबले मुश्किल होती है। क्योंकि जालसाज के लिए छोटा सिग्नेचर कॉपी करना आसान हो जाता है। इस तरह लंबे साइन करने वाले पर्सनेलिटी के तौर पर स्ट्रॉन्ग होते हैं और उनका सिग्नेचर सुरक्षित भी होता है। हैंडराइटिंग एक्सपर्ट के लिए भी छोटे साइन या लकीरों वाले हस्ताक्षर को पहचानने में मुश्किल होती है, क्योंकि उनमें अक्षर होते ही नहीं, जिन्हें मिलाया जा सके।

मानस मिश्रा कहते हैं कि हर इंसान को सिग्नेचर करने के बाद उस दिन की तारीख जरूर डालनी चाहिए। इससे जालसाजी मुश्किल हो जाती है। मान लें किसी ने अपने दस्तावेज पर सिग्नेचर के साथ 1.1.25 तारीख डाल दी। अब अगर कोई जालसाजी करना चाहेगा और अगर वह कोई दूसरी तारीख जैसे 7.3.25 डालना चाहेगा तो उसके पास 1, 2 और 5 अंक के पैटर्न तो होंगे, लेकिन 7 और 3 अंक वह अपने स्टाइल का डालेगा। उसे पता ही नहीं होगा कि व्यक्ति 3 और 7 किस तरह लिखता है। इससे जालसाजी पकड़ में आ जाती है।