व्रत व त्योहारों के मनाने के पीछे कोई ना कोई तर्कसंगत व वैज्ञानिक कारण जरूर होता है। जानें क्यों मनाते हैं निर्जला एकादशी।

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एकादशी का हिंदू धार्मिक मान्यताओं में एक महत्वपूर्ण स्थान है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। पंडित प्रभाकर मिश्र के अनुसार, ‘‘एकादशी के दौरान चंद्रमा की कलाएं उतनी प्रभावशाली नहीं होतीं, इसके बाद चंद्रमा की कलाएं तीव्र होने लगती हैं, जिसका वातावरण व हमारे शरीर पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इसलिए एकादशी में यह माना जाता है कि इस दिन अन्न में पाप का वास होता है और इसे खाना वर्जित माना गया है। निर्जला एकादशी को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इसका प्रकृति से तालमेल है। यह ज्येष्ठ महीने में आती है, जो साल का सबसे गरम महीना होता है। इस समय सूर्य वृष और मिथुन राशि के बीच में आता है। हमारे पेट में वृकाग्नि होती है, यह इस समय बहुत एक्टिव रहती है, जो भूख बढ़ाती है। यह शरीर को सबसे ज्यादा ताप देती है। इसी को शांत करने के लिए निर्जला एकादशी का प्रावधान रखा गया था।’’

दरअसल, हमारी हिंदू मान्यताएं व धर्म अपने समय से कहीं ज्यादा आगे थीं। सभी पर्व, त्योहारों व उपवासों के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक तथ्य व तर्क छुपा हुआ है। लेकिन हर किसी को यह तर्क समझ में आए और वह इसे मान ले, यह जरूरी नहीं है, इसलिए इन्हें धर्म व परंपराओं से जोड़ कर आम जनमानस तक पहुंचाने की कोशिश की जाती थी। निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि अमूमन हर एकादशी पर व्रत करने का प्रावधान है। मान्यताओं के अनुसार सारे पांडव एकादशी का व्रत किया करते थे, लेकिन भीम के लिए भूखे रहना मुश्किल था। तब महर्षि व्यास ने भीम को निर्जला एकादशी के बारे में बताया और समझाया कि केवल इस एक एकादशी के दिन व्रत करने से उन्हें साल की 24 एकादशियों के बराबर फल मिलेगा। उसके बाद से भीम ज्येष्ठ माह की एकादशी को निर्जल व्रत करने लगे और यह एकादशी पांडव एकादशी भी कहलायी जाने लगी।

क्या होता है उपवास

उपवास का मतलब है उप + वास। उप अर्थात समीप व वास का अर्थ होता है रहना। इस तरह उपवास का अर्थ है ईश्वर के समीप वास करना। जब हम व्रत में रहते हैं, तो जाने-अनजाने हम ईश्वर के चिंतन में रहते हैं। इससे मन में पॉजिटिविटी भी रहती है। भोजन में राजसिक गुण पाए जाते हैं। भोजन करने से शरीर में आलस आएगा, जिस वजह से आप भगवान का स्मरण नहीं कर पाते। एकादशी व्रत करने से बहुत हद तक आप कैंसर की बीमारी से बच सकते हैं, यह कई अध्ययनों में साबित हो भी चुका है। साल 2016 में जापानी सेल बायोलॉजिस्ट योशिनोरी अोहसुमी को मेडिसिन के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्होंने शरीर की प्रक्रिया अॉटोफेगी पर शोध किया था। इस प्रक्रिया में हमारा शरीर बीमारी फैलाने वाले और मृत सेल्स को या तो खुद ही खत्म करता है या फिर इन डैमेज्ड सेल्स को दोबारा काम करने लायक बनाता है। जब हम भूखे रहते हैं, तो यह प्रक्रिया कुदरती रूप से खुद ही शुरू हो जाती है। आम भाषा में इसे शरीर का सेल्फ हीलिंग प्रोसेस या डीटॉक्सीफिकेशन कहा जाता है। इसीलिए व्रत के लिए पेट को खाली रखने के नियम तय किए गए हैं। इस दौरान पानी, फल, दूध, जूस जैसी चीजों का दिन में एक बार सेवन करने की सलाह दी गयी है, ताकि शरीर से टॉक्सिंस सही से बाहर निकल सकें।

और क्या फायदे हैं व्रत के

हिंदू धर्म शास्त्रों में कही बातों के अलावा वैज्ञानिक रूप से भी व्रत करने के कई फायदे हैं, जो इस प्रकार हैं-

- सेल्स रिपेअर करने के अलावा यह व्रत करने से पाचन तंत्र बेहतर बनता है, लिवर हेल्दी बनता है और टॉक्सिंस बाहर निकलते हैं।

- फास्टिंग यानी व्रत करने से मेटाबॉलिज्म बेहतर होता है और भोजन से पोषक तत्व बेहतर तरीके से एब्जॉर्ब होते हैं। मेटाबॉलिज्म बेहतर होने से वेट लॉस में भी मदद मिलती है।

- हेल्दी डाइट जैसे फल, सलाद, दूध, छाछ आदि जब आप व्रत में लेते हैं, तो शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है।

- बॉडी की क्लींजिंग करने के साथ व्रत करने से पॉजिटिविटी भी बढ़ती है और हमें ज्यादा ऊर्जा महसूस होती है।

क्यों ना खाएं चावल

एकादशी पर बहुत से लोग चावल नहीं खाते। इसके पीछे सिर्फ धर्म ही नहीं, बल्कि साइंस भी है। चावल, चीनी, दूध ये सब चीजें चंद्रमा से जुड़े खाद्य पदार्थ हैं। इसलिए एकादशी पर इन चीजों से परहेज किया जाता है। दरअसल, चंद्रमा जल तत्व का कारक होता है और इस दौरान चंद्रमा का प्रभाव सबसे ज्यादा होता है और चावल या धान पानी में उगता है, जो हमारी पाचन क्रिया को बाधित कर सकते हैं। दोनों ही चीजों में जल तत्व की अधिकता होने से यह आपके दिमाग को अस्थिर कर एकाग्रता में कमी ला सकता है इसीलिए एकादशी पर चावल खाने से मना किया जाता है।