कोरोना के हारे हुए दौर में इनके गीतों ने लोगों में किया आशा का संचार। यूट्यूब के जरिये दीया और जिया के लोकगीतों, भजनों और मोटिवेशनल गीतों को मिली लोकप्रियता-

कोरोना के हारे हुए दौर में इनके गीतों ने लोगों में किया आशा का संचार। यूट्यूब के जरिये दीया और जिया के लोकगीतों, भजनों और मोटिवेशनल गीतों को मिली लोकप्रियता-

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कोरोना के हारे हुए दौर में इनके गीतों ने लोगों में किया आशा का संचार। यूट्यूब के जरिये दीया और जिया के लोकगीतों, भजनों और मोटिवेशनल गीतों को मिली लोकप्रियता-

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यह कोरोना का दौर था, जब निराश लोगों में थोड़ी उम्मीद जगाने के लिए बेंगलुरू की टीनएजर ट्विंस दीया और जिया ने भजन और मोटिवेशनल गाने गाकर यूट्यूब पर डाले। शुरुआत हुई मंगल भवन अमंगलकारी से, यह गीत आते ही वायरल हो गया, फिर तो सिलसिला चल निकला।

बचपन से शौक गाने का

दीया बताती हैं, हमारे घर में सुनने का शौक तो सबको है लेकिन गाता कोई नहीं था। हम दोनों ट्विंस को बचपन से संगीत में रुचि पैदा हो गई। हमने शुरू में खुद ही सीखा, यूट्यूब पर वीडियोज डालते थे। हालांकि अब पिछले चार साल से हम हिंदुस्तानी क्लासिकल में ट्रेनिंग ले रहे हैं। हम लोग गुरुग्राम में रहते थे लेकिन पापा की जॉब के कारण बेंगलुरू आ गए। मम्मी-पापा ने हमेशा गाना सीखने को प्रेरित किया और इसमें हमेशा सपोर्ट किया कि हम संगीत में ही आगे बढ़ें।

कोरोना दौर में संगीत से आस

दीया कहती हैं, बेंगलुरू आने के कुछ ही समय बाद कोरोना वाला दौर शुरू हो गया था। उस वक्त सब घर में रहते थे। हमें सोशल मीडिया के बारे में बहुत पता तो नहीं था लेकिन पेरेंट्स को लगा कि अभी तो हर काम ही फोन पर हो रहा है तो उन्होंने कहा कि हम लोग म्यूजिक वीडियोज बनाएं। चूंकि यह ऐसा वक्त था, जब हर तरफ निराशा फैली थी, ऐसे में हमने डिवोशनल गाने गाए, ताकि लोगों को थोड़ा सकारात्मकता का अहसास हो सके। हम यूट्यूब पर गाने अपलोड करते। कई वीडियोज वायरल हुए, मिलियन्स में व्यूज मिले। धीरे-धीरे हमने लोकगीत और खासतौर पर मैथिली गीत गाने शुरू किए। अब तो बॉलीवुड भी गा रहे हैं। हमने बांग्ला, तमिल, कन्नड़ जैसी भाषाओं में भी गाया है। मैथिली हमारी मातृभाषा है, भोजपुरी में भी गायकी को आजमा रहे हैं।

लिटिल चैंप्स में मिला मौका

दीया और जिया कहती हैं, हमारे वीडियोज के कारण हमें कई मंचों पर गाने का मौका मिला। कई जगह से हमारे पास आमंत्रण आते हैं। पिछले वर्ष सारेगामा लिटिल चैंप्स में भी हमें बुलाया गया। हम दोनों बहनें साथ में तैयारी करते हैं, साथ गाते हैं। हमारे बीच किसी तरह की सिब्लिंग राइवलरी नहीं है। अगर जिया को तारीफ मिलती है तो दीया खुश होती है और दीया के लिए तालियां बजती हैं तो जिया उछलने लगती है। लिटिल चैंप्स में जाने पर हमें लगभग 20 दिन संगीत की ट्रेनिंग मिली। हमें पता चला कि कितनी तरह की प्रतिभाएं हैं। हमारे मेंटर्स बहुत ही गुणीजन थे, जिनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। अभी हम 9वीं क्लास में हैं। बेसिक एजुकेशन पूरी करके हम संगीत में ही आगे बढ़ना चाहते हैं। साउंड इंजीनियरिंग भी करना चाहते हैं लेकिन म्यूजिक तो जीवन में हमेशा रहेगा।