नवरात्रि के मौके पर पूजा व कलश स्थापना सभी करते हैं। इसका सही तरीका क्या है व किन गलतियों से बचना चाहिए, जानें-

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नवरात्रि के मौके पर पूजा व कलश स्थापना सभी करते हैं। इसका सही तरीका क्या है व किन गलतियों से बचना चाहिए, जानें-

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नवरात्र की पूजा में घट स्थापना का विशेष महत्व है। इस दौरान लगभग सभी घरों में देवी का कलश स्थापित करके जौ उगायी जाती है। इसे अलग-अलग क्षेत्रों में अलग नामों से पुकारा जाता है, जैसे जौ, जयंती, खेत्री बीजना या क्षेत्री उगाना कहा जाता है। इसे अन्नपूर्णा का प्रतीक भी माना जाता है। लेकिन बहुत से लोगों को इसका सही तरीका पता नहीं होता। इस बारे में जानें एस्ट्रोलॉजर डॉ. प्रभाकर मिश्र से-

घट स्थापना के लिए आपको मृतिका यानी मिट्टी और थोड़े जौ के दाने भी चाहिए। जौ को एक दिन पहले पानी में भिगो दें, ताकि खोखली जौ को अलग करना आसान हो। खोखली जौ उगाना अच्छा सूचक नहीं माना जाता। यह अन्न का स्वरूप है और इसी रूप में देवी भगवती की उपासना की जाती है। इसलिए सुबह स्थापना से पहले पानी में से खोखली जौ को छान कर अलग कर लें और साबुत जौ को मिट्टी में दबा दें। इसमें रोज पूजा के बाद पानी भी डालना चाहिए। अगर नवरात्र में जौ अच्छी तरह से उग जाए, तो ऐसा माना जाता है कि आपकी पूजा शुद्ध रूप से हो रही है।

जयंती उगाने से पहले एक चौकी पर कपड़ा रखें, फिर उस पर जौ उगाने का पात्र या बरतन रखें। फर्श पर जौ स्थापना कर रहे हों, तो बीच में घट स्थापना के लिए जगह छोड़ कर चारों तरफ जौ डालें। स्थापना के समय इसमें 4 बार जल का अर्घ्य दें। इस दौरान ऊं जयंती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते मंत्र का पाठ करना चाहिए।

इसके बाद मिट्टी या धातु के कलश में कंठ तक साफ व ताजा जल भरें और इसमें थोड़ा सा गंगाजल डालें। अब इसे उठा कर सिर से स्पर्श करें और लक्ष्मी या नवदुर्गा का ध्यान करते हुए स्थापित करें। कलश में सभी देवताओं का पूर्व आह्वान हुआ है। कलश को स्थापित करने के बाद इसमें चार बार जल डालें, फिर एक सुपारी, एक सिक्का, दूर्वा, रोली या चंदन, सर्वोक्धि, सप्त मृतिका, पंच रत्न अपनी सामर्थ्य के अनुसार डालें। इसके बाद आम, अशोक, गूलर या बरगद के पत्ते उपलब्ध हों, तो सभी डालें, वरना जो पत्ते आसानी से उपलब्ध हो जाएं, वही डालें। अगर किसी वजह से ये पत्ते उपलब्ध ना हों, तो पान के 5 पत्ते डंडी के साथ डालें। एक कटोरी या प्लेट में चावल के दाने डाल कर कलश पर रखें और फिर इस पर जटा वाले नारियल में लाल या पीला वस्त्र लपेट कर डालें। अगर वस्त्र ना हों, तो नारियल पर कलावा लपेट दें। नारियल रखते समय लोग अकसर गलती करते हैं, इसलिए इसे रखने का सही तरीका जानना आवश्यक है। नारियल का ऊपरी हिस्सा, जिसमें तीन छेद होते हैं, उस हिस्से की पहचान करें। इसे लिटा कर अपनी तरफ घुमाना है। अगर यह हिस्सा ऊपर की तरफ रहेगा, तो धन की हानि होगी। आगे रहेगा, तो यह रोग कारक होगा। इसलिए खासकर से नवरात्रि में जयंती कलश पर नारियल खड़ा करके ना रखें।

पूजा का सही तरीका

स्थापना के बाद रोजाना इसकी पूजा करनी भी जरूरी है। यह पंचोप्चार या शोडषोप्चार से की जाती है। अगर पूजा के लिए 16 चीजें उपलब्ध ना हों, तो पंचोप्चार से यह पूजा की जा सकती है। पंचोप्चार में गंध, धूप, पुष्प, दीप, तांबूल की जरूरत पड़ती है। पूजा के लिए सबसे पहले कलश में अक्षत अर्पण किया जाता है। ऐसा करने से कलश में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। पूजा का चावल हमेशा साबुत होना चाहिए। फिर जल से 4 बार स्नान कराएं। इसके बाद पंचामृत डालें। अब कलावा या वस्त्र डालें। फिर रोली या चंदन लगाएं। इसे एक फूल में लगा कर कलश पर चढ़ाएं, उंगली से रोली ना लगाएं। इसके बाद अक्षत, पुष्प, पुष्प माला, दूर्वा, बेलपत्र, अबीर चढ़ाएं। इत्र या सुगंधित द्रव्य चढ़ाएं, फिर धूप, दीप दिखाएं। इसके बाद हाथ धो कर फल या मिठाई से भोग लगाएं।

भोग लगाने के लिए आप फल व मिठाई को आगे रखें और हाथ में जल ले कर घंटी बजाते हुए तीन बार भोग के चारों तरफ घुमा कर जल को कलश पर अर्पित कर दें। पूजा के बाद घंटी बजाने से सकारात्मकता फैलती है। इसके बाद कलश पर कुछ दक्षिणा चढ़ा कर दोनों हाथों से पुष्पांजलि दें।

जब तक घर में कलश स्थापना रहती है, उस दिन तक रोज सुबह पुराने फूल, बेल पत्र, दूर्वा को हटा कर दोबारा सामग्री अर्पित करें। अगर रोजाना यह सब करना संभव ना हो, तो भगवान का ध्यान करते हुए जयंती में जल का छिड़काव ही करके धूप, अगरबत्ती जला दें।