मोहब्बत में जब धड़कता है दिल – जानिए क्या है कनेक्शन दिल से मोहब्बत का
हमारी जिंदगियां दिल की धड़कनों की शुक्रगुजार हैं, तो दिल की धड़कनों में हमारी मोहब्बत भी गुलजार है ! दिल को दिल से धड़कने दीजिए !
हमारी जिंदगियां दिल की धड़कनों की शुक्रगुजार हैं, तो दिल की धड़कनों में हमारी मोहब्बत भी गुलजार है ! दिल को दिल से धड़कने दीजिए !
हमारी जिंदगियां दिल की धड़कनों की शुक्रगुजार हैं, तो दिल की धड़कनों में हमारी मोहब्बत भी गुलजार है ! दिल को दिल से धड़कने दीजिए !
प्रेम में डूबे आशिक कहते हैं कि जब उनकी नजरें प्रियतम से दो-चार होती हैं, तो उनके दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं। जवां होती बेटियों की मम्मियां कहती हैं, उनकी बेटी जब तक घर से बाहर रहती है, तो उनके दिल की धड़कनें बढ़ी रहती हैं। स्कूल-कॉलेज में पढ़नेवाले बच्चों की धड़कनों की रफ्तार उनकी परीक्षाएं बढ़ा देती हैं। क्रिकेट के शौकीन दर्शक मैच के आखिरी ओवर में दिल की धड़कनों को थाम कर बैठते हैं। जिंदगी में कुछ उम्मीद से ज्यादा अच्छा हो जाए, तो दिल बल्लियों उछलने लगता है। वहीं कुछ अनहोनी हो जाए, तो दिल डूब जाता है। कुछ कहानियां, घटनाएं दिल को छू लेती हैं, वहीं दिल टूटने के किस्से भी हजार हैं। हमारे त्योहार दिलों को जोड़ने का जरिया हैं, तो कुछ दहशतगर्दों की नापाक हरकतें दिलों में डर बैठा देती हैं। वैसे अपने फायदे के लिए जनता के दिलों के बीच दूरियां बढ़ाने में कुछ नेताओं का भी बड़ा हाथ है। कुछ लोग सुनहरी यादों को दिल में संजो कर रखते हैं, तो कुछ बड़े से बड़ा राज अपने दिल में छुपा कर रखने में माहिर होते हैं। किसी लाचार को देख कर दिल पसीज जाता है, तो दिल की आवाज हमें हमेशा कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित करती है। किसी को देख कर हमारा दिल मचल जाता है, तो कई बार दिल दहल भी जाता है। कुछ लोग बड़े दिलवाले होते हैं, तो काले दिलवाले भी आपको कभी ना कभी मिले ही होंगे। दिल देने-लेने के मामले तो इतने बहुतायत में हैं कि वेलेंटाइन बाबा ने उनके लिए साल में एक खास दिन भी मुकर्रर कर रखा है।
सीधे शब्दों में कहें, तो दिल और उसकी धड़कनें हमारी तमाम उठती-गिरती भावनाओं के तार से बंधी हैं। लेकिन किसी डाॅक्टर से पूछें, तो वे यही कहेंगे कि दिल कुछ और नहीं, महज एक पंपिंग ऑर्गन है, जो खून को हमारे पूरे शरीर के हर हिस्से में पहुंचाने का काम करता है और जिसकी बदाैलत हम जिंदा रहते हैं। भला यह भी कोई बात हुई ! हर इमोशंस के साथ दिल की धड़कनें कम या ज्यादा होती हैं, तो इसे सिर्फ खून पंप करनेवाला अंग मानने का दिल नहीं करता। लो जी, दिल के बारे में बात हो रही है, तो यहां भी दिल के मानने ना मानने की बात उठ ही गयी ! हो भी क्यों ना, दिल है ही इतना खास, इतना पाक ! और उसकी धड़कनों का जीवनदायी संगीत इतना मधुर, इतना सुकूनदेह कि कोई सुने बिना ना रह पाए!
शायरों की नजर में
शायरों का हाल ना पूछिए, दिल खुश हो, उन्हें खुशी के तराने सूझते हैं, वहीं दिल गम से लबरेज हो, तो दर्दभरे नगमे पैदा होते हैं। दिल को हमारे शायरों ने इतना निचोड़ा है, जितना किसी दूसरे अंग को नहीं। आप मोहब्बत की इंतिहा फैज अहमद फैज की नजरों से देखिए, कहते हैं-
और क्या देखने को बाकी है,
आपसे दिल लगा कर देख लिया।
दिल नाजुक और मजबूत दोनों है, कहते हैं दाग देहलवी-
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
वो शीशा हो नहीं सकता, ये पत्थर हो नहीं सकता।
बशीर बद्र साहब ने क्या खूब कहा है-
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में।
आज के हालात को मद्देनजर रखते हुए जिगर मुरादाबादी का शेर देखिए-
आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है।
एक बिछड़े प्रेमी के दिल की दास्तां बयां करता शबनम नकवी का शेर-
दिल की धड़कन भी बड़ी चीज है तनहाई में
तेरी खोयी हुई आवाज सुना करते हैं।
वहीं कुंवर बेचैन आगाह कर रहे हैं कि-
बढ़ रही है दिल की धड़कन आंधियो धीरे चलो
फिर कोई टूटे ना दर्पण आंधियो धीरे चलो।
प्यार में सिर से पैर तक डूबे एक शायर का कहना है-
इश्क ऐसा करो कि धड़कन में बस जाए
सांस भी लो जो खुशबू उसी की आए।
लेकिन बेचारे इस मजबूर शायर को देखिए, जो कहता है-
धड़कन संभालूं या सांस काबू में करूं
तुझे जी भर के देखने में आफत बहुत है।
बेशुमार शायरों ने सैकड़ों शायरी दिल और उसकी धड़कन पर लिख डाली हैं, तो बॉलीवुड फिल्मों में भी ना जाने कितने गीत इस छोटे से दिल और उसकी धड़कन पर बने हैं।
समाजशास्त्री का नजरिया
क्या दिल की धड़कनों को सुनने और मीठे सपने बुनने का दौर खत्म हो चला है? समाजशास्त्री व लेखिका डॉ. ऋतु सारस्वत कहती हैं कि प्रेम एक खूबसूरत अहसास है, जिसे हर दिल जीना चाहता है। लेकिन क्या वाकई आज प्रेम का वो खूबसूरत अहसास दिल की धड़कनों में जिंदा है? आज प्रेम का ज्वर 11-12 वर्ष की उम्र से चढ़ना शुरू हो जाता है। ज्वर इसलिए, क्योंकि कभी चढ़ता है, कभी उतरता है, इसमें स्थायित्व नहीं होता। जिसे आप प्रेम कहते हैं, वह प्रेम नहीं होता, मात्र आकर्षण होता है। इस तरह के दैहिक आकर्षण में किशोर-किशोरी फंसते हैं, क्याेंकि उन्हें अपने पेरेंट्स से, घरवालों से प्रेम नहीं मिलता। उन्हें घर में महत्व नहीं दिया जाता। माता-पिता भौतिक संसाधन जुटाने की फिक्र में जूझते रहते हैं और बच्चा प्रेम की तलाश में बाहर भटकता है। बच्चों को गैजेट्स दे दिए जाते हैं। सोशल मीडिया पर ऊलजलूल कंटेंट देख कर उनके कोमल मन को समझ ही नहीं आता कि उनमें जो भाव पैदा हुआ है, वह प्रेम है या मात्र शारीरिक आकर्षण।
जो माता-पिता अपने बच्चों को समय देते हैं, उनके दिल की बात को सुनते हैं, कम्यूनिकेशन गैप नहीं होता, वे बच्चे प्रेम के सही स्वरूप को भी समझते हैं। लेकिन बच्चे को पेरेंट्स का साथ व समय ना मिले, तो अपनी धड़कनें सुनाने का मौका ना मिले, तो वह अपनी भावनाएं साझा करने के लिए कोई ना कोई साथी ढूंढ़ता है। अपोजिट सेक्स के प्रति शारीरिक आकर्षण तो होता ही है, ईर्ष्या का भाव भी नहीं होता, जिससे सहज मित्रता हो जाती है। फिर मित्रता को प्रेम समझने की भूल होती है। माता-पिता दूसरी गलती यह करते हैं कि जैसे ही उन्हें अपने टीनएजर बच्चे के इस तरह के संबंधों के बारे में पता चलता है, वे हंगामा खड़ा कर देते हैं। वे उन कारणों को जानने और उन्हें दूर करने की कोशिश नहीं करते, जिनकी वजह से बच्चा ऐसा करता है।
15 से 18 साल के युवा आज अधूरे सच के शिकार हैं। वे सोशल मीडिया से जुड़े हैं, फिल्में देखते हैं, जिसमें प्रेम के यथार्थवादी स्वरूप को कम ही दिखाया जाता है। प्रेम जब विवाह में परिवर्तित होता है, तो कितनी तकरार होती है, यह नहीं बताया जाता। बायोलॉजिकल चेंज होते हैं, जिसमें दैहिक आकर्षण सहज है। प्रेम में दिल धड़कता है प्रेमी के स्वभाव से, उसकी इंसानियत से, मानवता से, धीरजता से। प्रेम कभी बुरा नहीं होता, वह वाकई एक ईश्वरीय वरदान है।
परिपक्व उम्र में प्यार होना, दिल का धड़कना बहुत ही सुंदर भाव है। अगर आप प्रेम करते हैं और विवाह हो गया, तो आप अपने प्रेमी को उसी रूप में स्वीकार करें, जिसमें आपने उससे प्रेम किया है। प्रेम आपको मन से खूबसूरत बना देता है, आप सबकी मदद करते हैं। सुंदर प्रेम की पहली शर्त है कि आपका दाेस्त होना जरूरी है। वह दैहिक आकर्षण ना हो, एकतरफा ना हो, यह भी घातक है।
मनोवैज्ञानिक तथ्य
मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. जया सुकुल का कहना है कि कई लेटेस्ट रिसर्च में पता चला है कि हार्ट एक तरह से लिटिल ब्रेन है। हमारे इमोशंस के प्रति हमारे दिल का मैकेनिज्म ब्रेन का मैकेनिज्म थोड़ा अलग होता है। इन्हें हम बॉयो साइको सोशल रिस्पॉन्स कहते हैं। डॉ. जया कहती हैं जब कोई गहरी भावनात्मक ठेस लगती है, तो दिल टूट जाता है। इसे ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम कहते हैं। यह कई बार हार्ट अटैक का करण भी बन सकता है। कोई प्यार में है, किसी की शादी होनेवाली है, इनसे दिल की धड़कन बढ़ जाती है। ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम से बचने के लिए माइंड को इंप्रूव करना जरूरी है। जैसा हम सोचते हैं, हमारी बॉडी भी उसी तरह रिएक्ट करती है। कोई स्ट्रेस हो, तो बीपी की दवा खाने के बजाय हमें स्ट्रेस मैनेजमेंट करना चाहिए। डिप्रेशन जैसे नेगेटिव इमोशंस का हमारी हार्टबीट पर काफी असर पड़ता है।