बेबी नंबर 1 : नन्हा अथर्व अप्रैल के महीने में हॉस्पिटल से घर आया बच्चे के पेरेंट्स भावना और अनिल फूले नहीं समाए और पोते को देख कर दादा-दादी की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। जितने लोग उतने नाम से उसे पुकारा जाने लगा। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था। भावना को आज भी वे दिन याद हैं,

बेबी नंबर 1 : नन्हा अथर्व अप्रैल के महीने में हॉस्पिटल से घर आया बच्चे के पेरेंट्स भावना और अनिल फूले नहीं समाए और पोते को देख कर दादा-दादी की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। जितने लोग उतने नाम से उसे पुकारा जाने लगा। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था। भावना को आज भी वे दिन याद हैं,

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बेबी नंबर 1 : नन्हा अथर्व अप्रैल के महीने में हॉस्पिटल से घर आया बच्चे के पेरेंट्स भावना और अनिल फूले नहीं समाए और पोते को देख कर दादा-दादी की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। जितने लोग उतने नाम से उसे पुकारा जाने लगा। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था। भावना को आज भी वे दिन याद हैं,

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बेबी नंबर 1 ः नन्हा अथर्व अप्रैल के महीने में हॉस्पिटल से घर अाया। बच्चे के पेरेंट्स भावना अौर अनिल फूले नहीं समाए अौर पोते को देख कर दादा-दादी की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। जितने लोग उतने नाम से उसे पुकारा जाने लगा। लेकिन यह सब इतना अासान नहीं था। भावना को अाज भी वे दिन याद हैं, जब कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे थे। ऐसे में गाइनीकोलॉजिस्ट के पास रुटीन चेकअप के लिए जाना पड़ता, तब वह बहुत डर जाती। भावना याद करती हैं, ‘‘प्रेगनेंसी शूट कराने की दिली तमन्ना थी, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग के कारण यह भी संभव नहीं हो पाया। गोदभराई की रस्म भी नहीं हुई। कई ख्वाहिशें अधूरी ही रह गयीं। पहले बेबी को ले कर पूरे परिवार के ढेरों अरमान होते हैं, लेकिन परिस्थिितयों को देखते हुए अथर्व के जन्म के बाद मेरे मायके से कोई अा नहीं पाया, ससुराल की अोर के रिश्तेदारों ने भी फोन पर ही मुबारकबाद दी। यहां तक कि बच्चे के जन्म के लिए रखी गयी विशेष पूजा पर भी गिनेचुने लोग ही बुलाए गए। बिल्डिंग के फ्रेंड्स के घरों में ही प्रसाद भिजवा दिया गया, वह भी दूरी के नियमों को ध्यान में रखते हुए। मजाक में हम अापस में कहते रहे कि अथर्व अाशीर्वाद अौर उपहारों के मामले में कोरोना की वजह से घाटे में रह गया। अथर्व अब 3 महीने का हो गया है। लेकिन उसे कोविड-19 के कारण कभी टेरेस पर भी ले कर नहीं जाते। घर में बेबी को हमेशा बंद रखना भी अच्छा नहीं लगता, लेकिन बाहर निकालने का अपना डर है।’’


बेबी नंबर 2 ः दिल्ली की रूपल खुराना ने जैसे ही हसबैंड गगन को बताया कि जल्द ही एक छोटा गगन या रूपल उनके घर अाने को है, गगन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। दोनों की प्लानिंग की लिस्ट हर दिन बीतने के साथ लंबी होती गयी। बेबी के लिए क्या शॉपिंग करनी है, अपने बेडरूम में क्या नए चेंजेज करने हैं, बेबी के अाने के बाद किस-किस मौके पर पार्टी होगी अौर ना जाने क्या-क्या। रूपल कहती हैं, ‘‘यह दिसंबर 2019 की बात थी लेकिन मार्च 2020 का लॉकडाउन जैसे हमारी खुशियों पर ही ताला लगा गया। बहुत ही डरानेवाले दिन देखने पड़े। बाहर निकलना तो छोड़ दिया था, लेकिन जरूरी जांच के लिए अस्पताल जाना पड़ता था। तब एक दिन पहले से ही स्ट्रेस हो जाता था। लेकिन दूसरी तरफ यह भी एक पॉजिटिव बात थी कि घरवालों से मुझे पूरी अटेंशन मिलती रही थी। मुझे क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, सब मुझे बताते थे। अगर यह अाम दिन होते, तो संभव नहीं हो पाता, क्योंकि मैं एक स्कूल में काउंसलर हूं। दिन का बड़ा समय घर से बाहर ही गुजरता है। इससे पारिवारिक स्नेह का अहसास नहीं हो पाता। इन दिनों सबने मेरा कितना ख्याल रखा। एक जॉइंट फैमिली में रहते हुए सबसे ढेर सारा प्यार पाना एक अाशीर्वाद जैसा होता है।’’
वे यह भी बताती हैं कि इन दिनों का यह एक प्लस पॉइंट था कि बाहर का खाना पूरी तरह से बंद हो गया था, तो मन में इस बात की निश्चिंतता थी कि जो भी खा रही हूं, वह घर का बना है अौर हेल्दी है। इसलिए बेबी पर इसका अच्छा असर होगा। एक अौर बात की खुशी थी कि लॉकडाउन की वजह से हमारा जिम अौर डांस स्कूल बंद था। इसलिए हसबैंड से पूरी अटेंशन मिल रही थी। मेरे खूब नखरे उठाए जा रहे थे। हालात सामान्य होते, तो संभव नहीं हो पाता। वर्किंग हसबैंड-वाइफ को बात करने का वक्त भी नहीं मिल पाता है। इसलिए मैंने इसे खुशकिस्मती ही समझा। हां, गोदभराई की रस्म बहुत सादगी के साथ ही हुई। हमारी जॉइंट फैमिली तक ही सीमित रही। बाहर से किसी को नहीं बुलाया।
 बेबी के अाने के बाद बड़ी पार्टी तो नहीं हो पायी, हमने अपनी जॉइंट फैमिली में ही जरूरी रीतियों को संपन्न किया। गगन बताते हैं, ‘‘मुझे याद है कि एक बार रूपल को टेस्ट कराने को ले गए थे, तो प्रेगनेंसी से जुड़े दूसरे टेस्ट के साथ कोरोना टेस्ट भी हुअा अौर जब रिपोर्ट अायी, तो सबके होश उड़ गए। रिपोर्ट पॉजिटिव थी। हम पैनिक नहीं हुए। घर के सभी लोगों ने खुद को क्वारंटाइन किया। रूपल में किसी तरह का लक्षण नहीं था, इसलिए इतमीनान के साथ हमने दूसरा टेस्ट कराया। जब तक रिपोर्ट नहीं अायी, हम एक-दूसरे को यह समझाते रहे कि हम साथ हैं। शुक्र है रिपोर्ट नेगेटिव अायी। लेकिन हम पहले से ज्यादा सतर्क हो गए। हमने यह ठान लिया कि किसी तरह का कोई रिस्क नहीं लेना है।’’ न्यूली बॉर्न बेबी रूतविक खुराना के मम्मी-पापा को इस बात का मलाल है कि उनकी ख्वाहिशों की लिस्ट तो रखी रह गयी, लेकिन रूतविक के जन्म के बाद हर खास मौके को वे घर में ही ऐसे सेलिब्रेट करते हैं कि जब रूतविक बड़ा हो, तो इन खूबसूरत दिनों की तसवीरें देख कर खुश रहे। जन्माष्टमी को उन्होंने उसे कान्हा की तरह सजा दिया, तो गणेश चतुर्थी पर भी उसकी सुंदर तसवीरें खींची। इस तरह से वे हर मौके को उसके साथ एंजॉय करते हैं।


बेबी नंबर 3 ः दीप जब लखनऊ शिफ्ट हुईं, तो प्रेगनेंट थीं। यह शहर दीप अौर उनके डॉक्टर पति राहुल सिन्हा के लिए नया था। लेकिन अांखों में नए सपने ले कर उन्होंने यहां अपना अाशियाना सजाया। दोनों खुश थे कि कुछ महीनों में नया मेहमान घर अानेवाला है। शुरुअात के दिन तो इस अनजान शहर में अच्छे गुजर रहे थे, लेकिन कोविड-19 संक्रमण के बाद परीक्षा की घड़ी अा गयी। डिलीवरी की डेट जून की थी। दीप बताती हैं, ‘‘मई में मेरी मदर-इन-लॉ हमारे पास अा गयीं, क्योंकि यहां हमारा कोई नजदीकी फैमिली मेंबर नहीं था। वह बिहार से हमारे पास अायी थीं, इसलिए सबने सूझबूझ से काम लिया। उन्होंने अलग रूम में रह कर खुद को क्वारंटाइन किया। पूरा परिवार किसी तरह का रिस्क लेना नहीं चाहता था। वे बताती हैं कि मेरी मेडिकल कंडीशन में थोड़ी दिक्कतें पहले से ही अा रही थीं, इस कारण यह लग रहा था कि शायद डिलीवरी तय तारीख से पहले ही हो जाए। अौर ऐसा ही हुअा, बेबी मिशिका एक महीने पहले ही अा गयी।
‘‘यह समय बहुत ही चैलेंजिंग था। एक तरफ कोरोना के संक्रमण का डर, दूसरा बच्चे का प्री-मैच्योर होना। हर दिन शहर में कोरोना संक्रमण के केसेज बढ़ रहे थे। हॉस्पिटल में भी बहुत एहतियात बरती जाती थी। मेरे हसबैंड के कुछ दोस्त मिलने भी अाए, मगर वे बेबी को देखने के बजाय केवल हालचाल पूछ कर चले गए। संक्रमण के डर से बेबी के पास उसके पापा को भी बार-बार अाने-जाने की इजाजत नहीं थी। बेबी के लिए ड्रेसेज, मैट, मैटरनिटी से जुड़ी चीजों को महीनेभर पहले ही मैंने अॉनलाइन मंगवा लिया था। हर चीज को अच्छी तरह से सैनिटाइज करना पड़ा, कई बार शक होता कि कुछ बिना सैनिटाइजेशन के तो नहीं रह गया, ऐसे में दोबारा से सबको सैनिटाइज करते। बहुत मुश्किल समय था। जब भी डॉक्टर के पास जाती, तो घर लौटते समय यह अहसास होता कि कोई इन्फेक्शन तो साथ नहीं अा गया। वहम भी खूब होता। बेबी के जन्म के बाद कोई भी हमारे पास नहीं अा पाया। इस बात का हमेशा मलाल रहेगा कि बच्चे के जन्म से जुड़े सभी सुंदर रीतिरिवाज छूट गए अौर उनकी कमी भी खली। सच कहा जाए, ये दिन इम्तिहान से भरे अौर इमोशन्स को कंट्रोल करनेवाले रहें।’’