कोरोना वॉरज़ोन की फ्रंटलाइन में काम करनेवाले डॉक्टरों, नर्सों व पुलसि कर्मचारियों ने अपनी जान की परवाह किए बगैर मरीजों का ना सिर्फ इलाज व देखभाल की, बल्कि लोगों को बेवजह घर से बाहर निकलने से भी रोका। रूबरू होते हैं, ऐसे कोरोना वॉरियर्स से

कोरोना वॉरज़ोन की फ्रंटलाइन में काम करनेवाले डॉक्टरों, नर्सों व पुलसि कर्मचारियों ने अपनी जान की परवाह किए बगैर मरीजों का ना सिर्फ इलाज व देखभाल की, बल्कि लोगों को बेवजह घर से बाहर निकलने से भी रोका। रूबरू होते हैं, ऐसे कोरोना वॉरियर्स से

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कोरोना वॉरज़ोन की फ्रंटलाइन में काम करनेवाले डॉक्टरों, नर्सों व पुलसि कर्मचारियों ने अपनी जान की परवाह किए बगैर मरीजों का ना सिर्फ इलाज व देखभाल की, बल्कि लोगों को बेवजह घर से बाहर निकलने से भी रोका। रूबरू होते हैं, ऐसे कोरोना वॉरियर्स से

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कोरोना वॉरज़ोन की फ्रंटलाइन में काम करनेवाले डॉक्टरों, नर्सों व पुलिस कर्मचारियों ने अपनी जान की परवाह िकए बगैर मरीजों का ना िसर्फ इलाज व देखभाल की, बल्कि लोगों को बेवजह घर से बाहर िनकलने से भी रोका। रूबरू होते हैं, ऐसे कोरोना वॉरियर्स से—


परिवार भी टीम है : डॉ परिणीति कौर


दिल्ली के द्वारका में अाकाश हेल्थ केअर हॉिस्पटल की अोपीडी में इंटरनल मेिडसिन की प्रमुख डॉ. परिणीित कौर िपछले 4 महीनों से रोज तकरीबन 30-40 कोिवड-19 मरीजों का अलग-अलग यूिनट में चेकअप कर रही हैं। उनकी यूनिट में सुबह 9 बजे से 7 बजे तक कोिवड मरीजों का तांता लगा रहता है। पूरे परिवेश में एक अजीब सा डर अौर घुटन है।
अस्पताल के इस बदले माहौल में मरीजों अौर उनके परिजनों को डॉ. परिणीित स्वस्थ होने का िदलासा देती हैं। जब वे स्वस्थ हो कर घर जाते हैं, तभी डॉक्टर भी िरलैक्स होते हैं। कोरोना वायरस से इन्फेक्शन उन्हें भी हो सकता है, उनकी वजह से परिवार भी इसकी चपेट में अा सकता है, ऐसी िस्थति में वे अपने परिवार, अपनी अौर अस्पताल की िजम्मेदारी को कैसे पूरा कर पाती हैं? वे बताती हैं, ‘‘यह महामारी का दौर है, िजसने हमारी रुटीन अौर प्राथमिकताअों को बदल िदया है। हम डॉक्टर्स को शुरू में कोिवड के मरीजों को देखने अौर सावधानी बरतने में परेशानी हुई। हमें इस तरह के मरीज को देखने की अादत नहीं थी। कोिवड के मरीजों के देखते समय 200 प्रतिशत सावधानी बरतनी जरूरी है। मेरे पति अभिनव भी डॉक्टर हैं। हम दोनों ही कोिवड मरीजों को देखते हैं। परिवार में सास-ससुर अौर 2 बेटे हैं। बड़ा बेटा 13 साल का अौर छोटा 9 साल का है।’’
इस मुिश्कल वक्त में परिणीता का परिवार एक टीम की तरह काम कर रहा है। वे अौर अभिनव जब हॉिस्पटल से घर जाते हैं, तो बच्चे बहुत िजम्मेदारी के साथ उनकी मदद करते हैं। हाथ धुलवाने, कमरा खोलने, टेबल पर खाना लगाने जैसे काम खुद अागे बढ़ कर करते हैं। सभी मरीज ठीक हो जाएं, इसी पर दोनों का फोकस है। वे मानते हैं िक इलाज करते समय मरीज के साथ उनका िरश्ता जुड़ जाता है। मरीज की मनोदशा को समझना अौर उनके घरवालों को ढांढ़स बंधाना भी उनकी डयूटी है। अाप अपनी इम्युनिटी का कैसे ध्यान रखते हैं? इस पर वे कहती हैं, ‘‘हम घर का बना हल्का अौर न्यूट्रीशन से भरपूर खाना खा रहे हैं। कुछ इम्युिनटी बूस्टर चीजें जैसे हल्दीवाला दूध, िवटािमन सी अौर अायुर्वेदिक नुस्खे भी अपनी डाइट में शािमल िकए हैं।’’

सेवा ही मेरा धर्म ः नर्स डॉली मैसी


िदल्ली के साकेत के मैक्स सुपर स्पेिशअलिटी हॉस्पिटल की सीनियर नर्स डॉली मैसी इस महामारी की वजह से अपने पति कपिल अौर एक साल की बेटी जाइन से िपछले 3 महीने से नहीं िमलीं। डॉली अौर कपिल दोनों ही इस हॉस्पिटल में स्टाफ नर्स हैं अौर दोनों ही इमरजेंसी वार्ड में काम करते हैं। इस पीरियड में दोनों अलग-अलग िशफ्ट में काम कर रहे हैं। कपिल जब नाइट िशफ्ट के िलए अाते, तो डॉली उनको चार्ज हैंडअोवर कर देतीं। पीपीई िकट पहने पति-पत्नी अापस में एक-दूसरे को िकट पर लगी नेम प्लेट से ही पहचान पाते।  कपिल हॉस्पिटल के नजदीक के होटल में रह रहे हैं, तो डॉली घर से हॉस्पिटल अा-जा रही हैं।
डॉली दिल्ली में अपने घर में फर्स्ट फ्लोर पर रहती हैं, तो उनके पेरेंट्स ग्राउंड फ्लोर पर। अाने-जाने के िलए ट्रांसपोर्ट की कोई सुविधा नहीं होने से रात को 2 बजे भाई उन्हें लेने के िलए हॉस्पिटल अाता। कोरोना पेशेंट्स की देखभाल की वजह से वे खुद हाई रिस्क कैटेगरी में अाती हैं, इसलिए छोटी बेटी को संभालने की िजम्मेदारी पेरेंट्स पर अा गयी। घर पर इन सब बातों से झगड़े होने लगे। पेरेंट्स अौर भाई ने डॉली पर नौकरी छोड़ने के िलए काफी दबाव डाला। लेिकन वे इस बात पर डटी रहीं िक सेवा ही मेरा धर्म है। जहां तक होगा इसे िनभाऊंगी।
घर पर परेशानियां बढ़ती जा रही थीं। इसी दौरान बेटी जाइन को डिहाइड्रेशन हो गया। तब नाना-नानी ही उसे दिन में 2 बार हॉस्पिटल ले कर जाते। एक बार तो उसे िड्रप लगवा कर घर ले अाए। कोविड पेशेंट्स की देखभाल में मशगूल डॉली इतनी बेबस थीं िक वे चाह कर भी अपनी बेटी की केअर नहीं कर पायीं। बस उसे दूर से ही देखतीं। डर लगता था िक इसके नजदीक गयीं, तो इसे कुछ हो ना जाए। हालांिक चौथे िदन से जाइन की स्थिति सुधरने लगी, तब उन्होंने अपने को थोड़ा हल्का महसूस िकया।
 हॉस्पिटल में लगातार 14 िदन की ड्यूटी के बाद उन्हें सेफ्टी के मकसद से कई बार क्वांरटीन िकया गया। तब डॉली फर्स्ट फ्लोर पर अकेले ही रहतीं अौर अपना खाना भी खुद बनातीं। वीडियो कॉल से बेटी जाइन से बात करतीं। उसे दूर-दूर से देख कर ही संतोष कर लेतीं। अब वे लगातार ड्यूटी कर रही हैं, तािक अपने पति कपिल के साथ ड्यूटी कर सकें।
 वे बताती हैं, ‘‘मुझे इस बात का संतोष है िक मैंने कोरोना पॉजिटिव एक बुजुर्ग महिला की मौत से एक िदन पहले उसके पति से वीडियो कॉल पर बात करायी थी। उस िदन इस बुजुर्ग महिला ने ना केवल मेरे पैर छुए, बल्कि मुझे बहुत अाशीर्वाद िदए थे। इस बात को शायद मैं िजंदगीभर ना भूल पाऊं।’’

मेरा देश सबसे पहले ः अनीता कुमारी


किसी की धौंस ना सहनेवाली दिल्ली के साउथ कैंपस की चौकी इंचार्ज सब इंस्पेक्टर अनीता कुमारी लॉकडाउन पीिरयड में िबना मास्क लगाए गाड़ी चलाते हुए पकड़े गए कई वीअाईपी से भिड़ीं। िनयमों का पालन ना करने पर गाड़ियां भी बंद करवायीं। दूसरी अोर जरूरतमंदों को खाने के पैकेट व राशन घर-घर जा कर बांटा। लेिकन उन्हें खुद को यह नहीं पता होता था िक घर पर उनके दोनों बच्चों ने सही ढंग से खाना खाया है िक नहीं।
दिल्ली के द्वारका सेक्टर-7 की अनीता कुमारी सुबह सोते बच्चों को छोड़ कर ड्यूटी पर जातीं। अकसर देर रात अाने पर भी बच्चे सोते िमलते। इस तरह कई-कई िदन बच्चों से बात िकए बिना िनकल जाते। उनके हसबैंड भी पुलिस में हैं। कोरोना में सख्त ड्यूटी के कारण उन दोनों की गैरहािजरी में बच्चों की देखभाल करनेवाला कोई नहीं था। बच्चों के िलए अलग से फोन ना होने से उनका हालचाल जानने में परेशानी होती। ड्यूटी पर जाने से पहले अासपड़ोस के लोगों को बच्चों का ध्यान रखने के लिए रिक्वेस्ट करतीं।  
चौकी इंचार्ज होने की वजह से चौकी, िपकेट, कंटेनमेंट जोन, स्लम एरिया व दूसरे एरिया की चेकिंग के काम उनकी देखरेख में होते। ड्यूटी के दौरान अगर थोड़ा समय िमलता भी, तो इस डर से घर नहीं जा पायीं िक कहीं उनका 4 साल का बेटा उन्हें देखते ही गले लगने के लिए ना दौड़ पड़े।
 उनकी 8 साल की बेटी चौथी क्लास में है। बच्चों के पास फोन ना होने से वह अॉनलाइन क्लासेज नहीं अटैंड कर पायी। टीचर को यह समस्या बता दी थी अौर उनसे
अलग से होमवर्क ले लेती थीं। लेिकन ढंग से पढ़ाई नहीं हो पायी। वे बताती हैं, ‘‘यह मेरे िलए बहुत चैलेंजिंग समय था। घर तो बिलकुल निगलेक्ट हो गया था। पर इस समय देश के िलए ड्यूटी िनभाना जरूरी था।’’
फिलहाल अनीता कुमारी की पोस्टिंग सागरपुर थाने में हो गयी है। ऐसे बुजुर्ग लोगों के यहां खाना पहुंचाने का काम वे खुद  करती थीं, िजनकी मदद करनेवाला कोई नहीं था। हर दूसरे-तीसरे िदन िकसी ना िकसी बुजुर्ग का फोन अा ही जाता। एक रात बुजुर्ग महिला को खाना देने के िलए गयीं अौर उन्हें टिफिन से खाना िनकाल कर परोसा। अनीता कुमारी बताती हैं, ‘‘उस समय वह बुजुर्ग महिला बहुत खुश हुईं। उनकी अांखों में अांसू अा गए। अब वे अाए िदन मुझसे फोन पर बात करती हैं। मुझे बहुत अाशीर्वाद देती हैं। यही अाशीर्वाद मेरी पूंजी हैं, वरना मुझे देख लेने की धमकी देनेवाले लोगों की भी कमी नहीं है।’’

जब तक िजंदा हूं इलाज करती रहूंगी ः डॉ. रिचा सरीन

दिल्ली के वसंत कुंज, फोर्टिस हॉस्पिटल की डॉ. िरचा सरीन खुद कोविड पेशेंट रह चुकी हैंं। कोरोना पेशेंट्स का इलाज करते हुए वे इसकी चपेट में अायीं। अब ठीक हैं अौर ड्यूटी जॉइन कर ली है। लेिकन पिछले 3-4 महीने से बेटे अौर हसबैंड से दूरी बना कर रखे हुए हैं। वे पल्मोनोलॉजिस्ट कंसल्टेंट हैं, तो उनके हसबैंड सॉफ्टवेअर कंसल्टेंट। कोविड-19 के शुरुअाती दौर में ही उन्होंने अपने इनलॉज को ब्रदर इन लॉ के यहां शिफ्ट कर िदया। इसके 5 िदन बाद ही उन्हें कोरोना हो गया। वे बताती हैं, ‘‘मुझे तसल्ली है िक हमने उनके बारे में सही फैसला िलया।’’ कोरोना इन्फेक्शन होने पर वे 14 िदन अपने घर में िबलकुल अकेली रहीं। यह उनकी जिंदगी का सबसे मुश्किल दौर था। शुरुअाती दौर में जो व्यक्ति पेशेंट के नजदीक होता है, उसके इसकी चपेट में अाने का खतरा अधिक होता है। इस वजह से बेटे अौर हसबैंड को फरीदाबाद अपने पेरेंट्स के घर भेज िदया। बुखार अाने पर उन्हें पानी पिलाने या खाना देने के िलए कोई उनके पास नहीं था। इन िदनों खाना तक खुद बनाया। बेटे से वीिडयो कॉल पर बातें करके तसल्ली कर लेतीं।
इतना सब कुछ होने पर भी वे घबरायी नहीं अौर ठीक होने पर िफर से ड्यूटी जॉइन की। उनका कहना है, ‘‘यह समय देश सेवा का है। जब तक िजंदा रहूंगी, इलाज करती रहूंगी।’’ अब वे पहले से ज्यादा सावधानी बरत रही हैं। कोविड पेशेंट्स को देखने की ड्यूटी हो, तो घर पर अकेली रहती हैं। नॉन कोविड ड्यूटी होने पर हसबैंड अौर बेटा उनके साथ घर पर तो रहते हैं, पर वे बेटे के िबलकुल नजदीक नहीं जातीं। उनके हॉस्पिटल से घर पहुंचने से पहले कपड़े, टॉवल वॉशरूम में रख िदए जाते हैं। घर का गेट तक खोल िदया जाता है, तािक िकसी चीज को छूना ना पड़े। उनका फोन तक सैनिटाइज होता है। शुरू-शुरू में बेटा उनके पास अाने के िलए िजद करता। अब उसे समझ में अा गया है िक मम्मी हॉस्पिटल में काम करती हैं, इसलिए उनके नजदीक नहीं जाना है। जब वे अपने पेरेंट्स के पास होती हैं, तो उनके घर की छत से बेटे को हंसते-खेलते देख कर तसल्ली कर लेती हैं।
पेशेंट की जान बचाने का मामला हो, तो िरस्क लेने से नहीं घबरातीं। कोिवड की शुरुअात में हॉस्पिटल में उनके पास 28 साल की युवती इलाज के िलए अायी, िजसके लंग्स कोलैप्स्ड थे। इससे पहले दो अन्य हॉस्पिटल्स ने उसका इलाज करने से मना कर िदया था। पेशेंट के नॉन कोविड होने की पुष्टि होने पर ही इलाज िकया जा सकता था। रिपोर्ट अाने में कम से कम 24 घंटे का समय लगता। युवती का तुरंत इलाज ना होता, तो उसकी मौत तक हो सकती थी। डॉ. िरचा ने िरपोर्ट का इंतजार िकए बगैर उस पेशेंट का चेस्ट ट्यूब इन्सर्शन प्रोसिजर िकया। अब वह पेशेंट िबलकुल ठीक है। मरीज की जान बचने पर उन्हें अपने पेशे पर गर्व महसूस होता है। ऐसे पल उन्हें खुशी देते हैं।