मेनोपॉज के बाद शरीर में इस्ट्रोजन ना होने से शरीर पर अनेक प्रभाव पड़ते हैं, जिससे महिलाओं को दिल की गंभीर बीमारियों से पीड़ित होने का जोखिम बढ़ जाता है। मेनोपॉज के दौरान हारमोन का असंतुलन महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है।

मेनोपॉज के बाद शरीर में इस्ट्रोजन ना होने से शरीर पर अनेक प्रभाव पड़ते हैं, जिससे महिलाओं को दिल की गंभीर बीमारियों से पीड़ित होने का जोखिम बढ़ जाता है। मेनोपॉज के दौरान हारमोन का असंतुलन महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है।

Want to gain access to all premium stories?

Activate your premium subscription today

  • Premium Stories
  • Ad Lite Experience
  • UnlimitedAccess
  • E-PaperAccess

मेनोपॉज के बाद शरीर में इस्ट्रोजन ना होने से शरीर पर अनेक प्रभाव पड़ते हैं, जिससे महिलाओं को दिल की गंभीर बीमारियों से पीड़ित होने का जोखिम बढ़ जाता है। मेनोपॉज के दौरान हारमोन का असंतुलन महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है।

Want to gain access to all premium stories?

Activate your premium subscription today

  • Premium Stories
  • Ad Lite Experience
  • UnlimitedAccess
  • E-PaperAccess

डॉ. संजय मित्तल, डाइरेक्टर, क्लीनिकल एंड प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी, हार्ट इंस्टिट्यूट, मेदांता हॉस्पिटल बताते हैं कि मेनोपॉज एक जैविक प्रक्रिया है, जो तब शुरू होती है, जब महिलाओं के अंडाशय प्रजनन हारमोन (इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरॉन) का उत्पादन बंद करते हैं और माहवारी का चक्र समाप्त हो जाता है। मेनोपॉज तब होता है, जब महिला को लगातार 12 बार माहवारी का चक्र नहीं होता। प्राकृतिक मेनोपॉज 45 साल से 50 साल के बीच होता है।

मेनोपॉज के बाद महिलाओं में अनेक शारीरिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तन होते हैं। मेनोपॉज के बाद शरीर में इस्ट्रोजन ना होने से शरीर पर अनेक प्रभाव पड़ते हैं। इस्ट्रोजन युवतियों की दिल के दौरे या हृदयाघात से रक्षा करता है। शरीर में इस्ट्रोजन ना होने से डाइबिटीज, हाइपरटेंशन, हाई कोलेस्ट्रॉल, शिथिल जीवनशैली होने पर महिलाओं को दिल की गंभीर बीमारियों से पीड़ित होने का जोखिम बढ़ जाता
है। मेनोपॉज के दौरान हारमोन का असंतुलन महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है। हारमोन में बदलाव के कारण महिलाओं को तनाव, चिंता, अवसाद और चिड़चिड़ेपन का अनुभव होता है।

उम्र बढ़ने पर दिल की बीमारी का जोखिम भी बढ़ता है। जब मेनोपॉज होता है, तब महिलाओं में दिल की बीमारी के लक्षण और ज्यादा स्पष्ट हो जाते हैं। हालांकि, केवल मेनोपॉज के कारण ही दिल की बीमारी नहीं होती, कई अन्य कारण भी हैं, जो महिलाओं में कार्डियोवैस्कुलर समस्याएं बढ़ाते हैं।

मेनोपॉज के बाद रक्तनलिकाओं की दीवारों में प्लाक जम जाता है। इसके अलावा, खून में लिपिड के स्तर में तेजी से बदलाव आता है, जिसके कारण खून में कोलेस्ट्रॉल और फैट की मात्रा बढ़ जाती है, और रक्तनलिकाओं में ब्लॉकेज होने का जोखिम बढ़ जाता है।

मेनोपॉज के बाद हारमोनल बदलाव के कारण घबराहट हो सकती है, सांस फूल सकती है या थकान हो सकती है। उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं के खून में फाइब्रिनोजन नामक प्रोटीन बढ़ जाता है, जो खून के थक्के बनाता है। खून के ये थक्के दिल का दौरा या हृदयाघात का कारण बन सकते हैं।

मेनोपॉज में हार्ट डिजीज का जोखिम कैसे कम करें

जांचः मेनोपॉज के बाद महिलाओं के लिए दिल की नियमित तौर से जांच कराया जाना बहुत जरूरी है। इससे उनके शरीर में होनेवाला कोई भी परिवर्तन सामने आ जाता है और खून में थक्के जमने, कोलेस्ट्रॉल बढ़ने और कोई भी परिवर्तन आने पर शुरुआत में ही इलाज शुरू किया जा सकता है। डॉक्टर्स परामर्श देते हैं कि कोलेस्ट्रॉल की जांच हर साल करानी चाहिए, ब्लड प्रेशर की जांच साल में एक बार और खून में ग्लूकोज लेवल की जांच हर
3 साल में करानी चाहिए।

Athletic Healthy Asian indian woman in sportswear workout excercise at home in bedroom,Young woman with slim body cardio aerobic exercises healthy lifestyle concept

अस्वास्थ्यकर आदतें त्याग देंः जो महिलाएं स्मोकिंग करती हैं, उन्हें दिल के दौरे का खतरा ज्यादा होता है, क्योंकि इससे खासकर मेनोपॉज के दौरान खून में थक्के जमने और उनकी रक्तवाहिनियों के कठोर होने की आशंका बढ़ जाती है।

शारीरिक चुस्ती बना कर रखेंः महिलाओं को हर हफ्ते कम से कम 150 मिनट व्यायाम करना चाहिए, जिससे शरीर में सर्कुलेटरी सिस्टम में सुधार होता है। साथ ही व्यायाम से हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, तनाव के स्तर में कमी आती है और सेहतमंद वजन बनाए रखने में मदद मिलती है तथा मेनोपॉज के बाद महिलाओं के खून में शुगर के स्तर में सुधार आता है।

सेहतमंद आहार लेंः सेहतमंद आहार से हृदय के कार्य और सेहत में सुधार होता है। मेनोपॉज के बाद महिलाओं को ऐसी डाइट लेनी चाहिए, जिसमें सैचुरेटेड फैट कम हों, फाइबर, साबुत अनाज, फलियां, ताजा फल और सब्जियां ज्यादा हों। उन्हें रेड मीट, बेवरेज और शक्करयुक्त आहार का सेवन कम कर कम फैटवाले डेयरी उत्पाद और नट्स खाने चाहिए।

हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट में अंतर

डॉ. ऋषि गुप्ता, चेअरमैन कार्डियक साइंसेज, एकॉर्ड सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, फरीदाबाद कहते हैं कि अधिकतर लोग हार्ट अटैक अौर कार्डियक अरेस्ट को एक जैसा ही मानते हैं, लेकिन ये दोनों अलग-अलग कंडीशन हैं। हार्ट अटैक में ब्लड का बहाव दिल में रुक जाता है, जबकि कार्डियक अरेस्ट में दिल के फंक्शन में गड़बड़ी आ जाती है अौर वह अचानक धड़कना बंद कर देता है। लगभग 99 प्रतिशत मामलों में हार्ट अटैक ही कार्डियक अरेस्ट की वजह बनता है, इसीलिए हार्ट अटैक ना हो, इसके उपाय किए जाने चाहिए।
डॉ. ऋषि गुप्ता का मानना है कि युवाओं में स्ट्रेस काफी बढ़ गया है, जिससे उनका ब्लड प्रेशर हाई हो जाता है, जो दिल को नुकसान पहुंचाता है। तनाव को कम करने के लिए अन्य उपायों के साथ-साथ दोस्तों, रिश्तेदारों से रेगुलर मिलजुल कर हंसी-खुशी के पल बिताना भी बहुत जरूरी है। आखिर आपका दिल बेहद नाजुक है, जिसे संभालना आपके हाथ में ही है।