क्या आपका फैसला सही है!
कहीं मेरा फैसला गलत तो नहीं है ! पछताना तो नहीं पडे़गा ! क्या ऐसा फैसला लेना ठीक होगा! फैसले लेने से पहले ऐसे कई विचार मन में आते हैं। कुछ लोग झटपट फैसला ले लेते हैं तो कुछ सोचने में वक्त लेते हैं। निर्णय लेना जटिल प्रक्रिया है। कुछ निर्णय आसान होते हैं, मगर कुछ फैसलों से पूरी जिंदगी बदल सकती है, ऐसे में निर्णय लेना और भी मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा फैसला लेते हुए मन में कई पूर्वाग्रह, धारणाएं या वैचारिक आग्रह भी चलते रहते हैं। कई बार डर, असुरक्षा और एंग्जाइटी भी होती है। इसके अलावा कुछ खास पर्सनेलिटी ट्रेट्स भी होते हैं। मसलन कुछ लोग हर चीज का आकलन करते हैं या जोखिम लेने से घबराते हैं, जबकि कुछ लोग अनिश्चितता से नहीं डरते और मिनटों में फैसले ले लेते हैं। कई बार विकल्पों का दबाव निर्णय से रोकता है तो कई बार निर्णय लेना इतना जरूरी होता है कि सोचने-विचाने की मोहलत ही नहीं मिलती। पछतावे का विचार, अतीत की घटनाएं और न्यूरोलॉजिकल तत्व (ब्रेन के कुछ तत्व जैसे डोपामाइन सिस्टम्स, प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स) भी निर्णय लेने की क्षमता पर प्रभाव डालते हैं।
फिर भी जीवन में हमेशा फैसले लेने होते हैं। तो फिर बेहतर फैसले कैसे लिए जा सकते हैं, इस बारे में जानकारी दे रही हैं फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टिट्यूट, गुरुग्राम में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट रोशनी सोंधी अब्बी-
सूचनाएं जुटाएं
फैसले से जुड़ी जानकारियां जुटाएं। कैरिअर के स्तर पर फैसला लेना है या जॉब स्विच करनी है तो पहले पर्याप्त रिसर्च करें, खुद से पूछें कि आप ऐसा क्यों चाहते हैं, संबंधित फील्ड से जुड़ी जानकारियां हासिल करें, वर्तमान स्थिति से आगे आने वाली स्थिति कितनी अलग होगी, इस पर विचार करें, तभी आप सही नतीजे तक पहुंच सकेंगे।
हर पहलू पर सोचें
फैसला लेते हुए क्रिटिकल थिंकिंग जरूरी है। जानकारियों और विकल्पों का आकलन करें और सूचनाओं का तर्कपूर्ण विश्लेषण करें, स्रोतों की विश्वसनीयता जांचें। इसके बाद ही निर्णय लें।
रणनीति बनाएं
सोच-विचार कर स्पष्ट लक्ष्य बनाएं तो फैसला लेना आसान होगा। फैसला लेने से पहले इसके दूरगामी प्रभावों पर अवश्य विचार करें। अपने लक्ष्यों के साथ फैसले का तालमेल बिठाएं और प्राथमिकताएं तय करें।
सलाह-मशविरा जरूरी
अगर फैसला लेने में उलझन का सामना करना पड़ रहा है तो किसी से सलाह-मशविरा करें। कई बार जिन पहलुओं पर हमारी नजर नहीं जाती, दूसरे उसे भांप लेते हैं। परिजनों, मेंटर, कलीग्स, एक्सपर्ट्स से सलाह लें। बेहतर नतीजे तक पहुंच सकेंगे।
अनुभवों से सीख लें
पिछले फैसलों पर पुनर्विचार करने और उनके नतीजों के बारे में सोचने से भविष्य से जुड़े फैसले लेने में आसानी होती है। हम सफल रहे हों या विफल, दोनों ही स्थितियों में हम सीखते जरूर हैं। पहले से कोई जानकारी है तो उसका अनुभव भविष्य में बहुत काम आ सकता है।
भावनाओं का प्रबंधन
फैसला लेने में कई बार आवेगपूर्ण स्थितियां भी आती हैं। अगर स्थिति जटिल व तनावपूर्ण हो तो शांत रहें, तार्किक हो कर हर पहलू पर सोचें, ताकि भावनाओं का असर फैसलों पर ना पड़े।
अड़ियल रवैया ना हो बाधक
सोच में फ्लैक्सिबिलिटी जरूरी है। कई बार स्थितियों के हिसाब से फैसले लेने होते हैं, जिद्दी बने रहे तो जीवन के कई अच्छे पल दूर छिटक जाएंगे। नयी जानकारियों के लिए खुद को ओपन रखें, नयी चीजों को जानने की कोशिश करें, खुद पर और स्थितियों पर भरोसा रखें और सकारात्मक हो कर फैसला लें।
फैसलों की जिम्मेदारी लें
अपने फैसलों की जिम्मेदारी लें, फिर चाहे वे गलत हों या सही। उनके लिए आप ही जिम्मेदार होंगे, इस बात को ध्यान में रख कर निर्णय लें।
कुछ लोग अनिश्चितता से नहीं घबराते, खुद पर भरोसा रख कर फैसले लेते हैं। वे सोचते हैं, पर इसमें वक्त नहीं गंवाते। दूसरी ओर कुछ लोग सोचने में ज्यादा वक्त लेते हैं। वे गलतियों की गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहते और फैसला लेने में देर लगा देते हैं। इससे सफलता की संभावनाएं कम हो जाती हैं। सही वक्त पर फैसला लेना भी जरूरी है। गलती हो भी जाए तो याद रखें कि जिंदगी दूसरा मौका भी देती है।