आंखों को ले कर कवियों-शायरों ने ना जाने कितनी कल्पनाएं कर डाली हैं, ना जाने कितने मुहावरे आंखों पर बनाए गए हैं। वाकई हकीकत यही है कि इसके बिना जीवन सूना है। तो क्यों ना कुदरत से मिले इस बेशकीमती तोहफे को संभाल कर रखें, ताकि ये जिंदगी भर हमें दुनिया दिखाती रहें। आंखों की सेहत कैसे बनी रहे, कभी कोई

आंखों को ले कर कवियों-शायरों ने ना जाने कितनी कल्पनाएं कर डाली हैं, ना जाने कितने मुहावरे आंखों पर बनाए गए हैं। वाकई हकीकत यही है कि इसके बिना जीवन सूना है। तो क्यों ना कुदरत से मिले इस बेशकीमती तोहफे को संभाल कर रखें, ताकि ये जिंदगी भर हमें दुनिया दिखाती रहें। आंखों की सेहत कैसे बनी रहे, कभी कोई

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आंखों को ले कर कवियों-शायरों ने ना जाने कितनी कल्पनाएं कर डाली हैं, ना जाने कितने मुहावरे आंखों पर बनाए गए हैं। वाकई हकीकत यही है कि इसके बिना जीवन सूना है। तो क्यों ना कुदरत से मिले इस बेशकीमती तोहफे को संभाल कर रखें, ताकि ये जिंदगी भर हमें दुनिया दिखाती रहें। आंखों की सेहत कैसे बनी रहे, कभी कोई

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आंखों को ले कर कवियों-शायरों ने ना जाने कितनी कल्पनाएं कर डाली हैं, ना जाने कितने मुहावरे आंखों पर बनाए गए हैं। वाकई हकीकत यही है कि इसके बिना जीवन सूना है। तो क्यों ना कुदरत से मिले इस बेशकीमती तोहफे को संभाल कर रखें, ताकि ये जिंदगी भर हमें दुनिया दिखाती रहें। आंखों की सेहत कैसे बनी रहे, कभी कोई तकलीफ हो तो क्या उपाय करें, नेत्र विज्ञान में क्या-क्या नयी तकनीकें आयी हैं, ऐसी ही तमाम बातों को ले कर हमने बात की नेत्र रोग चिकित्सक डॉ. श्वेता वर्मा से, जो दिल्ली के वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज और सफदरजंग अस्पताल के ऑप्थेलमोलॉजी विभाग में सीनियर रेजिडेंट हैं।

आंखों की सामान्य समस्याएं

मायोपिया : इससे ग्रस्त व्यक्ति दूर की चीजें साफ-साफ नहीं देख पाता।

उपचार : विजन को सही करने के लिए पावर वाला चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस। कुछ मामलों में कॉर्निया को सही शेप में लाने के लिए लेजर सर्जरी की जाती है।

हायपरोपिया : नजदीक की चीजों का साफ-साफ नजर ना आना।

उपचार : पावर वाला चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस। कॉर्निया को सही शेप में लाने के लिए लेजर सर्जरी की जा सकती है।

एस्टिगमैटिज्म : इसमें कॉर्निया या लेंस का शेप बिगड़ जाने के कारण दूर से देखें या नजदीक से, चीजें धुंधली या टेढ़ी दिखायी देती हैं।

उपचार : कॉर्निया या लेंस के शेप को ठीक करने के लिए विशेष रूप से बनाया गया चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस। लेजर सर्जरी से भी कॉर्निया का शेप ठीक किया जाता है।

प्रेसबायोपिया : उम्र बढ़ने के साथ नजदीक की चीजों को साफ-साफ ना देख पाना। यह परेशानी आमतौर पर 40 साल की उम्र के बाद होती है।

उपचार : नजदीक का चश्मा, बायफोकल या मल्टीफोकल चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस। कुछ मामलों में सर्जरी की भी जरूरत पड़ सकती है।

कैटरेक्ट (मोतियाबिंद) : इसमें लेंस पर झिल्ली जम जाती है, जिससे चीजें धुंधली दिखती हैं, रात में देखने में दिक्कत होती है, आंखें चौंधिया जाती हैं।

उपचार : सर्जरी करके धुंधले लेंस को हटा कर कृत्रिम लेंस लगा दिया जाता है।

ग्लूकोमा (सफेद मोतिया) : आंखों के भीतर प्रेशर बढ़ने के कारण ऑप्टिक नर्व्स का डैमेज हो जाना, जिससे रोशनी जा सकती है।

उपचार : प्रेशर कम करने के लिए आई ड्रॉप्स, दवाएं, लेजर ट्रीटमेंट, या सर्जरी।

मैक्यूलर डिजेनरेशन : रेटिना का मध्य भाग मैक्यूला डैमेज हो जाती है, जिससे सेंट्रल विजन का चले जाना।

उपचार : इसे पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन दवाओं, लेजर थेरैपी या स्पेशल इन्जेक्शन से इस प्रोसेस को धीमा किया जा सकता है। कुछ विजन उपकरण व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों में सहायक हो सकते हैं।

डाइबिटिक रेटिनोपैथी : डाइबिटीज के कारण रेटिना की रक्तवाहिकाओं को नुकसान पहुंचना, जिससे नजर की समस्याएं हो सकती हैं।

उपचार : ब्लड में शुगर के लेवल को कंट्रोल में रखना, लेजर सर्जरी, इन्जेक्शन, या और ज्यादा डैमेज से बचाने के लिए आंख की सर्जरी।

ड्राई आई : आंखें पर्याप्त मात्रा में या सही तरह का आंसू नहीं बना पातीं, जिससे आंखों में तकलीफ हो सकती है या नजर की समस्याएं हो सकती हैं।

उपचार : कृत्रिम आंसू (आई ड्रॉप्स), ऐसी दवाएं जिनसे आंसू अधिक मात्रा में बनें, या आंसू को आंखों में लंबे समय तक रोके रखने के लिए टियर डक्ट को ब्लॉक करने वाली प्रक्रिया।

कंजक्टिवाइटिस : आंख के सफेद भाग को ढकने वाले ऊपरी लेअर में इन्फेक्शन और सूजन, जिससे आंखों में लाली, खुजली और डिस्चार्ज होता है।

उपचार : जैसा इन्फेक्शन वैसा उपचार। बैक्टीरियल इन्फेक्शन के लिए एंटीबायोटिक आई ड्रॉप्स, वायरल इन्फेक्शन आमतौर पर खुद ही खत्म हो जाता है, एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस का उपचार एंटी-एलर्जिक दवाओं और एलर्जन से दूरी रख कर किया जाता है।

फ्लोटर्स : आंखों में छोटे-छोटे धब्बे या लाइनें तैरती हुई दिखना।

उपचार : आमतौर पर किसी उपचार की जरूरत नहीं, जब तक कि इससे देखने में बाधा ना पैदा हो। दिक्कत होने पर फ्लोटर्स को हटाने के लिए एक प्रोसिजर किया जाता है।

आंखों को ऐसे रखें सेहतमंद

नियमित आई चेकअप : चाहे आपकी आंखों में कोई तकलीफ ना भी हो, तो भी नियमित रूप से आंखों के डॉक्टर के पास जा कर चेकअप कराएं, ताकि किसी समस्या का पता चले तो समय रहते उपचार हो जाए।

सनग्लासेज व प्रोटेक्टिव आईवेअर पहनें : धूप का चश्मा ऐसा पहनें, जो सूरज की हानिकारक किरणों को पूरी तह से रोके। इसी तरह कोई खतरनाक मशीनरी आदि पर काम करते हुए या कोई खेल खेलते हुए प्रोटेक्टिव आईवेअर पहनें, ताकि आंखों को कोई नुकसान ना पहुंचे।

स्क्रीन टाइम का रखें खयाल : 20-20-20 रूल को फॉलो करें। टीवी-मोबाइल-कंप्यूटर देखते समय हर 20 मिनट के बाद 20 सेकेंड का ब्रेक लें और 20 फीट दूर किसी चीज को देखें। इससे स्क्रीन पर नजर गड़ाए रखने से होने वाला तनाव दूर होगा। यह भी ध्यान रखें कि कंप्यूटर स्क्रीन आंखों से लगभग एक हाथ की दूरी पर हो और स्क्रीन का ऊपरी हिस्सा आंखों के लेवल पर या थोड़ा नीचे हो।

रोग कंट्रोल में रखें : डाइबिटीज और हायपरटेंशन आंखों की सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इन्हें काबू में रखें।

पलकें झपकाएं : कंप्यूटर पर काम करते हुए या पढ़ते हुए पलकों को झपकाना ना भूलें। पलक झपकाने से आंखों में नमी बनी रहती है।

और भी हैं अच्छी आदतें : स्मोकिंग ना करना, पर्याप्त रोशनी में काम करना या पढ़ना-लिखना, पर्याप्त नींद लेना, आंखों को ना रगड़ना और आंखों को बार-बार ना छूना कुछ ऐसी आदतें हैं, जो हमारी आंखों को सेहतमंद बनाए रखने में मददगार साबित होती हैं।