लांसेट न्यूरोलॉजी स्टडी के एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 1990 से 2021 के बीच स्ट्रोक के केसेज में 51 प्रतिशत तक बढ़ोतरी देखने को मिली है। इस अध्ययन से यह खुलासा हुआ है कि हर 4 में से 1व्यक्ति स्ट्रोक के खतरे का शिकार है। इस बारे में रमैया मेमोरियल हास्पिटल, के एचओडी और न्यूरोलॉजी के कंसल्टेंट डॉ.

लांसेट न्यूरोलॉजी स्टडी के एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 1990 से 2021 के बीच स्ट्रोक के केसेज में 51 प्रतिशत तक बढ़ोतरी देखने को मिली है। इस अध्ययन से यह खुलासा हुआ है कि हर 4 में से 1व्यक्ति स्ट्रोक के खतरे का शिकार है। इस बारे में रमैया मेमोरियल हास्पिटल, के एचओडी और न्यूरोलॉजी के कंसल्टेंट डॉ.

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लांसेट न्यूरोलॉजी स्टडी के एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 1990 से 2021 के बीच स्ट्रोक के केसेज में 51 प्रतिशत तक बढ़ोतरी देखने को मिली है। इस अध्ययन से यह खुलासा हुआ है कि हर 4 में से 1व्यक्ति स्ट्रोक के खतरे का शिकार है। इस बारे में रमैया मेमोरियल हास्पिटल, के एचओडी और न्यूरोलॉजी के कंसल्टेंट डॉ.

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लांसेट न्यूरोलॉजी स्टडी के एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 1990 से 2021 के बीच स्ट्रोक के केसेज में 51 प्रतिशत तक बढ़ोतरी देखने को मिली है। इस अध्ययन से यह खुलासा हुआ है कि हर 4 में से 1व्यक्ति स्ट्रोक के खतरे का शिकार है। इस बारे में रमैया मेमोरियल हास्पिटल, के एचओडी और न्यूरोलॉजी के कंसल्टेंट डॉ. महेंद्रा जे.वी. का कहना है, ‘‘स्ट्रोक तब होता है, जब आर्टरी में ब्लॉकेज या इंटरनल ब्लीडिंग की वजह से हमारे मस्तिष्क की ब्लड सप्लाई में रुकावट आती है। जब मस्तिष्क को पर्याप्त रक्त की आपूर्ति नहीं होती, तो दिमाग के सेल्स को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिसकी वजह से सेल्स मृत हो जाते हैं और कई और दिक्कतें हो सकती हैं। ’’

मुख्य रूप से स्ट्रोक्स दो तरह के होते हैं- इशेमिक स्टोक, जिसमें मस्तिष्क को होने वाली रक्त की आपूर्ति रुक जाती है और ब्रेन सेल्स को जरूरी पोषक तत्व और ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, इससे कुछ ही मिनटों में सेल मृत हो जाते हैं। दूसरा हेमरेजिक स्ट्रोक, जिसमें मस्तिष्क में अचानक ब्लीडिंग होने लगती है और सेल्स पर प्रेशर पड़ता है। इससे ब्रेन डैमेज होता है।

रिसर्च से पता चला है कि 75 प्रतिशत तक स्ट्रोक के केसेज 65 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों में देखे जाते हैं। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले समय में इस दर में और भी बढ़ोतरी हो सकती है। वहीं उन युवाओं में स्ट्रोक होने की संभावना बढ़ जाती है, जो मोटापे, हाई बीपी, डाइबिटीज जेसी बीमारियों के शिकार होते हैं। इनके अलावा कुछ वायरल इंफेक्शन जैसे एचआईवी, हाई कोलेस्ट्रॉल, जेनेटिक कारणों और कुछ खास दवाओं की वजह से भी यह खतरा बढ़ जाता है। जो लोग स्मोकिंग करते हैं, शारीरिक श्रम नहीं करते, अल्कोहल या हाई शुगर और सैचुरेटेड फैट युक्त चीजों का सेवन करते हैं, उनमें भी स्ट्रोक के मामले ज्यादा देखे गए हैं।

कैसे पहचानें स्ट्रोक

अगर आपके आस-पास किसी को स्ट्रोक हो, तो जितनी जल्दी उसे उपचार या फर्स्ट एड मिलेगी, उसकी जान बचने और ठीक होने की संभावना उतनी ही ज्यादा रहेगी। डॉक्टर्स ने इसके लिए अंग्रेजी का फास्ट शब्द तैयार किया है, जो इस प्रकार है-

एफ- फेस ड्रॉपिंगः जिस व्यक्ति की तबियत खराब हो, उसके चेहरे को ध्यान से देखें। चेहरा एक तरफ से सुन्न हो रहा है, एक तरफ ज्यादा झुका हुआ है या टेढ़ा हो रहा है, तो यह खतरे का संकेत है।

ए- आर्म वीकनेसः अचानक से एक बाजू में कमजोरी आना या उसका सुन्न होना खतरे का संकेत है। स्ट्रोक का पता लगाने के लिए प्रभावित व्यक्ति को अपने दोनों हाथ ऊपर उठाने को कहंे, अगर बाजू अपने आप नीचे गिर जाती है या फिर हाथ उठाने में समस्या होती है, तो तुरंत अस्पताल ले कर जाएं।

एस- स्पीच डिफिकल्टीः बोलने में लड़खड़ाहट या परेशानी स्ट्रोक का मुख्य लक्षण हैं। अगर आपको संदेह हो, तो प्रभावित व्यक्ति से कुछ बोलने को कहें।

टी- टाइम टू कॉल इमर्जेंसीः यदि इनमें से कोई एक या ज्यादा लक्षण मौजूद हैं, तो प्रभावित व्यक्ति को तुरंत डॉक्टर के पास या अस्पताल में ले जाएं।

इन लक्षणों के अलावा धुंधला दिखना, एक आंख से दिखायी देना बंद हो जाना, शरीर के किसी एक भाग में कमजोरी, सुन्नपन या सनसनाहट महसूस होना, उल्टी आना, चक्कर आना, सिर घूमना और शरीर का संतुलन कम होना आदि पर भी गौर करें। कुछ मामलों में अचानक बेहोशी या तेज सिर दर्द होना हैमरेजिक स्ट्रोक की निशानी है।

कैसे दें फर्स्ट-एड

जब एक बार लक्षणों की पहचान हो जाए या आपको संदेह हो कि किसी को स्ट्रोक आ रहा है, तो यह जरूरी है कि आप उन्हें जल्द से जल्द मेडिकल सहायता प्रदान करें। देर करने पर स्थिति गंभीर होती जाएगी और पेशेंट के पूरी तरह से ठीक होने की संभावना कम होती जाएगी। इन बातों का ध्यान रखें-

जिसे स्ट्रोक आया हो, उसे करवट दिला कर सुरक्षित जगह पर लिटा दें, सिर को थोड़ा सा ऊपर की तरफ उठाएं, ताकि उल्टी आने की स्थिति में गले में ना फंसे।

  • यदि व्यक्ति घबरा रहा हो, तो उसे शांत करने की कोशिश करें।

  • उस समय को नोट करें, जब से पहला लक्षण दिखायी देना शुरू हुआ था, इसके बारे में अस्पताल में डॉक्टर या हेल्थ केयर टीम को बताएं।

  • ट्रीटमेंट के साथ ही पेशेंट की देखभाल भी जरूरी है। यदि स्ट्रोक का प्रभाव गंभीर था, तो पेशेंट को स्पीच, ऑक्यूपेशनल या फिजिकल थेरैपी की जरूरत पड़ सकती है।

  • थेरैपी के अलावा खून को पतला करने वाली दवाएं, कोलेस्टेरॉल कम करने वाली दवाएं और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने वाली दवाएं भी पेशेंट को दी जाती हैं।

  • दवाओं के अलावा लाइफस्टाइल में बदलाव करना भी जरूरी है। स्मोकिंग, अल्कोहल आदि को छोड़ना और हेल्दी डाइट लेने से ना सिर्फ स्ट्रोक से रिकवरी होगी, बल्कि बहुत सी अन्य समस्याओं से भी बचा जा सकता है।