इयर एंड ब्लूज से लड़ना आसान है। मदद लेने से पीछे ना हटें। अपनी मेंटल हेल्थ या सोच में आने वाले बदलाव को समझें और किसी साइकोलॉजिस्ट से जरूर बात करें।

इयर एंड ब्लूज से लड़ना आसान है। मदद लेने से पीछे ना हटें। अपनी मेंटल हेल्थ या सोच में आने वाले बदलाव को समझें और किसी साइकोलॉजिस्ट से जरूर बात करें।

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इयर एंड ब्लूज से लड़ना आसान है। मदद लेने से पीछे ना हटें। अपनी मेंटल हेल्थ या सोच में आने वाले बदलाव को समझें और किसी साइकोलॉजिस्ट से जरूर बात करें।

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बीतने वाला साल कितना भी अच्छा रहा हो, जाते-जाते मिक्स फीलिंग्स देता है। कुछ लोग साल के खत्म होने से ज्यादा आने वाले नए साल के स्वागत में लग जाते हैं और कई लोगों को खत्म होते हुए साल का एक-एक दिन भारी लगता है। दिन कम होने लग जाते हैं और अधूरे कामों की लिस्ट बड़ी लगने लगती है। साल की शुरुआत में सेट किए गए गोल्स इयर एंड तक ना पूरे होने पर स्ट्रेस बढ़ने लगता है। सारे गोल्स साल के अंत होने से पहले पूरा करने का प्रेशर फील होता है, जो मूड को लो और दिमाग को स्ट्रेस का घर बना देता है।

साल के अंत में होने वाले इस तरह के मूड स्विंग से डरें नहीं। इससे कई लोग इस तरह के ब्लूज फील करते हैं। ये भी मंडे ब्लूज की तरह ही होते हैं, जो ज्यादा काम होने या अधूरे कामों के बारे में साेचने से एक तरह का प्रेशर या स्ट्रेस फील होने लगता है। इयर एंड ब्लूज को समझने और इससे बाहर आने के लिए किसी साइकोलॉजिस्ट की मदद लें।

इयर एंड ब्लूज को समझें

साइकोलॉजिस्ट आयुषी शर्मा इस प्रॉब्लम के बारे बता रही हैं-

क्यों होते हैं इस तरह के ब्लूज?

सेट किए गए गोल्स को जब छोटे-छोटे हिस्सों में नहीं बांटते, तो एक साथ कई तरह के गोल्स पेंडिंग रह जाते हैं, जोकि दिमाग में स्ट्रेस पैदा करते हैं। ऐसे में इन गोल्स के बारे में सोच कर इयर एंड ब्लूज फील होने लगते हैं।

साल के अंत ही क्यों फील होता है मेंटल प्रेशर?

कई बार हम अपने लिए पूरे ना होने वाले गोल्स सेट कर लेते हैं। जिस टार्गेट को पाना मुश्किल होता है, उन्हें पाने का प्रेशर हमारी मेंटल एनर्जी को लो कर देता है। उम्मीदें ना पूरी होने पर स्ट्रेस भी बढ़ जाता है। अमूमन हमारी कंडीशनिंग इस तरह हुई होती है कि हम यह सोचते हैं कि हमारी सफलताएं गिनती में फेलिअर से ज्यादा होनी चाहिए। जब हम अपनी सफलताएं गिनते हैं, तो चाहे वो कितनी भी बड़ी हों, अगर उनकी संख्या कम हो, तो हम स्ट्रेस में चले जाते हैं। फेलिअर को हम खुद से जोड़ लेते हैं, इससे हमारा वजन भी बढ़ सकता है।

ऐसे ब्लूज से बचाने के लिए साइकोलॉजिस्ट दिमाग की कंडीशनिंग को बदलने की कोशिश करते हैं। वे फेलिअर को ज्यादा महत्व देने वाली या अपनी पहचान को जीत की जगह हार से जोड़ने वाली सोच को बदलने की कोशिश करते हैं। पेशेंट की सोच में इस तरह के बदलाव लाने के प्रोसेस को सीबीटी कहते हैं।

क्या है सीबीटी?

सीबीटी (कॉग्निटिव बिहेविअर थेरैपी) के जरिए सोच या बिहेविअर में कई तरह के पॉजिटिव बदलाव लाए जा सकते हैं। सीबीटी डिप्रेशन के ट्रीटमेंट के लिए इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब मेंटल हेल्थ से जुड़ी कई समस्याओं जैसे एंग्जाइटी, ड्रग एडिक्शन, मैरिटल प्राॅब्लम और ईटिंग डिस्अॉर्डर से निबटने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह की थेरैपी से बचपन से की गयी कंडीशनिंग की पकड़ को समझ कर उसे ठीक किया जाता है।

कैसे रखें अपना ध्यान

- स्मार्ट गोल्स सेट करें, जो छोटे हों और जिन्हें आप पूरा कर सकें। हर 3 महीने में छोटे गोल्स रिव्यू करें और हर 6 महीने में बड़े गोल्स।

- अगर कुछ गोल्स पूरे नहीं होते, तो खुद को उस अधूरे गोल से ना जोड़ें। पूरे हुए गोल्स पर ध्यान दें। जो पूरे नहीं हुए हैं, उन्हें आगे के लिए प्लान करें।