हमारी बॉडी को शेप देनेवाली हडि्डयां मजबूत रहें, इसके लिए बचपन से ही इस पर ध्यान देने की जरूरत है। कैसे खयाल रख सकते हैं हम बोन हेल्थ का, जानिए

हमारी बॉडी को शेप देनेवाली हडि्डयां मजबूत रहें, इसके लिए बचपन से ही इस पर ध्यान देने की जरूरत है। कैसे खयाल रख सकते हैं हम बोन हेल्थ का, जानिए

Want to gain access to all premium stories?

Activate your premium subscription today

  • Premium Stories
  • Ad Lite Experience
  • UnlimitedAccess
  • E-PaperAccess

हमारी बॉडी को शेप देनेवाली हडि्डयां मजबूत रहें, इसके लिए बचपन से ही इस पर ध्यान देने की जरूरत है। कैसे खयाल रख सकते हैं हम बोन हेल्थ का, जानिए

Want to gain access to all premium stories?

Activate your premium subscription today

  • Premium Stories
  • Ad Lite Experience
  • UnlimitedAccess
  • E-PaperAccess

हमारी बॉडी का आधार स्तंभ हैं हडि्डयां और हम अकसर इनकी सेहत के प्रति लापरवाह रहते हैं। दरअसल मजबूत हडि्डयां ना सिर्फ हमारे शरीर को एक आकार देती हैं, बल्कि अनेक अन्य रोगों से भी हमारा बचाव करती हैं। हमें अपनी हडि्डयों की देखभाल कब से और किस तरह करनी चाहिए, हडि्डयों से जुड़ी सामान्य बीमारियां कौन सी हैं, उनके ट्रीटमेंट के क्या तरीके हैं, इन सब सवालों के साथ हम मिले डॉ. गुरिंदर बेदी से, जो फोर्टिस हॉस्पिटल, वसंत कुंज, दिल्ली में ऑर्थोपेडिक विभाग के डाइरेक्टर और हेड हैं।

डॉ. गुरिंदर बेदी कहते हैं कि हडि्डयों के स्वास्थ्य पर केवल वृद्धावस्था में ही ध्यान देने से काम नहीं चलता, इसके लिए जन्म से ही कुछ उपाय करने होते हैं। हम जो कुछ भी खाते-पीते हैं, या कोई दूसरी बीमारी हो जाती है, तो उसका हमारी बोन हेल्थ पर असर पड़ता है। एक बार जब हम चलना-फिरना शुरू कर देते हैं, तो जितना हम अपने पैरों का इस्तेमाल करेंगे यानी चलेंगे, घूमेंगे-फिरेंगे, एक्टिव रहेंगे, उतना ही हमारी हडि्डयां स्वस्थ रहेंगी।

30 साल तक पीक बोन मास

हडि्डयों को आप 30 साल की उम्र तक मजबूती दे सकते हैं, उसके बाद हडि्डयां कमजोर पड़ने लगती हैं। इसी अवस्था में हडि्डयां काफी मजबूत रहती हैं, जिसे पीक बोन मास कहते हैं। यहां ध्यान देनेवाली बात यह है कि 30 साल के बाद अगर आप ज्यादा एक्टिव रहेंगे, दौड़धूप करेंगे, खेलकूद में हिस्सा लेंगे, तो आपकी हडि्डयों की ताकत धीरे-धीरे कम होगी। लेकिन अगर आप सुस्त जीवनशैली जिएंगे, दफ्तर जाएंगे और आ कर घर में बैठ जाएंगे, तो आपकी हडि्डयों की ताकत बहुत तेजी से कम हो जाएगी। सेडेंटरी यानी सुस्त लाइफस्टाइल के कारण 50 साल की उम्र में ही हडि्डयां 75 साल जितनी कमजोर पड़ सकती हैं। आप स्त्री हैं, तो जैसे ही माहवारी बंद होती है, हारमोन्स बनने कम हो जाते हैं, ताे हडि्डयाें की ताकत बहुत जल्दी कम होने लगती है।

बचपन और जवानी में रखी गयी नींव के आधार पर हमारा बोन मास देर तक या कम समय तक बना रहता है। बोन मास को बनाए रखने के लिए कुछ उपाय करने होंगे, क्योंकि पीक बोन मास जितना अधिक होगा, हडि्डयों की ताकत में उतनी ही धीरे-धीरे कमी आएगी। इसका एकमात्र उपाय है एक्टिव रहना। हमारा जो अंग इस्तेमाल में नहीं आता, शरीर को लगता है उस अंग की जरूरत नहीं है और उसकी स्ट्रेंथ धीरे-धीरे कम हो जाती है। हमें हर हाल में सक्रिय रहना है, ताकि हडि्डयां मजबूत रहें।

हडि्डयों और मांसपेशियों की ताकत मिलीजुली है। अगर हडि्डयां स्ट्रॉन्ग होंगी, तो मांसपेशियों की ताकत भी बनी रहेगी। उम्र बढ़ने के साथ हमें अपने दैनिक कामकाज जैसे सीढि़यां चढ़ने, उठने-बैठने, पैदल चलने में इन दोनों की जरूरत होती है। उम्र के साथ होनेवाले गठिया का सीधा संबंध बोन और मसल्स की स्ट्रेंथ से नहीं होता, लेकिन देखा गया है कि जिन लोगों की मांसपेशियां मजबूत रहती हैं, उनका कार्टिलेज का न्यूट्रिशन बेहतर रहता है।

वजन का हडि्डयों की सेहत पर क्या फर्क पड़ता है?
डॉ. गुरिंदर बेदी कहते हैं कि अगर आपका वजन ज्यादा है, तो उससे कई तरह के नुकसान हैं। बाॅडी में फैट ज्यादा हो जाएगा, तो वे मांसपेशियों को रिप्लेस कर देंगी। दूसरा जब ओबिसिटी हो जाती है, फैट सेल्स बहुत अधिक हो जाते हैं, तो बोन्स को बनानेवाले हारमोन्स की एक्टिविटी खुदबखुद कम हो जाती है। वहीं वजन का बहुत कम होना भी नुकसानदेह है।

कैसे रखें हडि्डयां सेहतमंद

हडि्डयों को हेल्दी रखने में नंबर वन है फिजिकल एक्टिविटी। दूसरे नंबर पर आता है विटामिन डी और कैल्शियम। हमारी हडि्डयां कैल्शियम से बनती हैं, लेकिन यदि हमारे शरीर में विटामिन डी कम हो, तो कैल्शियम का अवशोषण ठीक से नहीं हो पाता। आपके खून में कैल्शियम की मात्रा कम हो जाएगी, तो बाकी हारमोन्स हडि्डयों में से कैल्शियम खींच लेंगे। कैल्शियम की जरूरत हमारे शरीर की मसल्स जैसे हार्ट की मसल्स और अन्य मसल्स के संकुचन के लिए पड़ती है। खून में कैल्शियम बनाना हमारे शरीर की प्राथमिकता है। कैल्शियम का स्टोर तो हडि्डयां ही हैं और यहां से कैल्शियम लिया जाता है।

हमारे देश में ज्यादातर लोग डेयरी प्रोडक्ट बहुत नहीं खाते। खाने-पीने की दूसरी चीजों में कैल्शियम इतनी मात्रा में नहीं होता। हमारी रोज की कैल्शियम की जरूरत लगभग 1250 मि.ग्रा. है। दूध के एक छोटे से गिलास में लगभग 250 मि.ग्रा. कैल्शियम ही होता है। देखा जाए, हमारे देश में आमतौर पर बच्चे ही दूध पीते हैं, बड़े नहीं। लेकिन खानपान के जरिये कैल्शियम लेने का रूटीन बनाना ही होगा। फिर हमारे यहां बड़ी उम्र के लोग कहना शुरू कर देते हैं कि अब दूध हजम नहीं होता। तो अगर दूध ना पी पाएं, तो आपको कैल्शियम सप्लीमेंट लेने की जरूरत है।

लेकिन अगर कैल्शियम लें और विटामिन डी ना लें, तो कोई फायदा नहीं होगा। विटामिन डी का लेवल बनाए रखना बहुत जरूरी है। अपने यहां विटामिन डी की कमी का मुख्य कारण यहां की गरमी है। विटामिन डी के लिए धूप में 10 से 12 बजे के बीच खड़ा होना होता है। लेकिन लोग सीधी धूप में खड़े नहीं होना चाहते। ऐसे में 50 की उम्र के बाद विटामिन डी का सप्लीमेंट भी लेने की जरूरत है। बेहतर है कि हर दो हफ्ते के बाद विटामिन डी के सप्लीमेंट लेते रहें। हमें प्रतिदिन विटामिन डी की लगभग 6000 यूनिट मात्रा चाहिए। चूंकि हमारी पिगमेंटेशन थोड़ी डार्क है, तो मेरी सलाह है कि हमें रोज 10000 यूनिट लेनी चाहिए।

क्या है ऑस्टियोपोरोसिस

हडि्डयों की सबसे सामान्य बीमारी है ऑस्टियोपोरोसिस। ऑस्टियोपोरोसिस बिलकुल ऐसे ही है, जैसे किसी खंडहर के पिलर्स अपने आप गिरते जा रहे हों। इससे हड्डी की शेप बिगड़ती जाती है। ऑस्टियोपोरोसिस में जरूरी नहीं कि फ्रैक्चर ही हो। माइक्रो फ्रैक्चर भी हो जाता है। माइक्रो फ्रैक्चर यानी चलते-चलते आपको लगा कि पीठ मे दर्द हो गया और यह दर्द जा नहीं रहा। आपको लगता है कि कोई पुराना दर्द उभर आया है। लेकिन ज्यादातर ऐसे मामलों में पीठ की हडि्डयां अपने आप कोलैप्स होने लगती हैं। जब एक्सरे से पता चलता है कि माइक्रो फ्रैक्चर है, हडि्डयां दब रही हैं, तो पेशेंट कहता है कि मैं तो कभी गिरा ही नहीं, फ्रैक्चर कैसे हो गया। होता यह है कि ऑस्टियोपोरोसिस के कारण हडि्डयां अपने आप दब रही हैं। यह स्लो प्रोसेस है।

ऑस्टियोपोरोसिस का प्रिवेंशन कैसे किया जाए? 

इसके लिए बोन मास पर ध्यान देने की जरूरत है। अपने देश में लोगों को ऑस्टियोपोरोसिस बहुत होती है। हमारे एक शोध में देखा गया कि भारतीय व्यक्ति की बोन स्ट्रेंथ पश्चिमी देशों में रहनेवालों के मुकाबले काफी कम है। इसकी वजह फिजिकल एक्टिविटी की कमी और मेनोपॉज का जल्दी होना। फिर खानपान में प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन डी जैसे पोषक तत्वों की कमी होना। प्रोटीन तो बॉडी का बिल्डिंग ब्लॉक है। अब अगर इन पोषक तत्वों के अलावा फिजिकल एक्टिविटी भी कम हो, तो मामला बहुत खराब है।

कुछ दवाएं भी बोन स्ट्रेंथ को कम करती हैं, जैसे स्टेरॉयड। अगर 3 महीने से ज्यादा समय तक 5 ग्राम से अधिक स्टेरॉयड लेना पड़े, तो आप ग्रे डे कैटेगरी के जोखिम में हैं। एपिलेप्सी की दवाएं, हेवी स्मोक, हेवी अल्कोहल, क्रोनिक किडनी डिजीज, लिवर डिजीज, आर्थराइटिस, पेट में ठीक से एब्जार्ब्शन ना हो पाना, ये सभी ग्रे डे कैटेगरी में आते हैं। इन्हें ज्यादा केअरफुल रहने की जरूरत है। अर्ली मेनोपॉज, ओवरी निकाल देने से भी हडि्डयां जोखिम में आती हैं। बड़ी उम्र में किसी को फ्रैक्चर हो गया, तो उसे दोबारा फ्रैक्चर होने का जोखिम उन लोगों के मुकाबले 4 गुना ज्यादा है, जिनका फ्रैक्चर नहीं हुआ है।

बोन डेंसिटी की नियमित जांच बहुत जरूरी है। महिलाओं में 60 साल के ऊपर और पुरुषों में 65 साल के ऊपर रेगुलर बोन डेंसिटी कराना चाहिए। पहली बार एक साल में फिर 3-4 साल के बाद। रिस्क कैटेगरी में हों, तो जल्दी भी कराना चाहिए।

बचाव के तरीके

ऑस्टियोपोरोसिस हो जाए, ताे क्या करें? कई दवाएं आ गयी हैं। लेकिन ये दवाएं आपको जिंदगीभर लेनी होंगी। आपके डॉक्टर बताएंगे कौन सी दवा लेनी है। बुजुर्ग लोग रोज 6000 कदम जरूर चलें। गिरने से बचें। उम्र के साथ बैलेंसिंग खराब हो जाती है। घर का एनवॉयरमेंट बदलें। गीले मैट ना हों। फर्नीचर बदलें। आम मान्यता है खरोड़े का सूप हडि्डयां मजबूत करता है। मेडिकल साइंस में साबित नहीं हुआ है कि इससे कोई लाभ पहुंचा है। जिन लोगों को लेक्टोज इनटाॅलरेंस है, उनके लिए बहुत से विकल्प जैसे बादाम मिल्क, सोया मिल्क हैं। महंगा जरूर है, पर लें जरूर। प्रिवेंशन मेडिसिन हमेशा थेरैप्यूटिक मेडिसिन से बेहतर है।