नाभि यानी बैली बटन का हमारी सेहत से रिश्ता जन्म से पहले से ही जुड़ा है। क्यों खास है नाभि?

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बचपन में दादी रोज शाम को संध्यावदन करने के बाद हम बच्चों की नाभि में दीये से तेल लगाया करती थीं। हमें बड़ा मजा आता था, गुगगुदी भी होती थी। अब जा कर पता चला कि नाभि में तेल या घी लगाने के कई फायदे हैं। जैसे मौसम के बदलने से डाइजेशन में गड़बड़ हो जाती है। ड्राई मौसम में हाथों और पैरों की त्वचा रूखी हो सकती है, होंठ फट सकते हैं और जोड़ों में अकड़न बढ़ सकती है। यदि ये समस्याएं किसी अंदरूनी रोग के कारण नहीं, बल्कि मौसम के प्रभाव के कारण बढ़ जाती हैं, तो इसके लिए एक विशेष आयुर्वेदिक दिनचर्या अपनायी जानी चाहिए। इसका नाम नाभि पुराण है। नाभि पुराण यानी नाभि में किसी खास पदार्थ का भरना। नाभि के महत्व के बारे में बता रहे हैं मुंबई स्थित वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य डॉ. रवि कोठारी।

नाभि क्यों महत्वपूर्ण है

जब बात शरीर के पोषण की आती है, तो नाभि सबसे अहम हिस्सा होता है। गर्भ में शिशु के पोषण का एकमात्र स्रोत नाभि होती है। गर्भस्थ शिशु का सारा विकास इसी बिंदु से जुड़ी फैलोपियन ट्यूब से मिलने वाले पोषण पर आधारित होता है। धरती पर पहली सांस लेने के बाद सारा सहारा गर्भनाल पर तब तक टिका रहता है, जब तक कि बच्चा सांस और पोषण स्वतंत्र रूप से ना ले ले। हालांकि उसके बाद नाभि का कोई विशेष काम नहीं रहता, परंतु वह अप्रत्यक्ष रूप से शरीर के पोषण का द्वार बनी रहती है। नाभि में एक सूक्ष्म चैनल है, जो शरीर में हर कोशिका को ऊर्जा पहुंचा सकता है।

वायु का मर्मस्थान

नाड़ियों के माध्यम से शरीर की आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रबंधन सात चक्रों का मूल है। इन सात चक्रों में से मणिपुर चक्र नाभि के पास स्थित है, जो अग्नि का केंद्र है। यह हमारे धड़ में पांच चक्रों के केंद्र में स्थित है। हवा हमारे शरीर को चलायमान रखने के लिए जिम्मेदार है। नाभि का प्रभाव चार वायु, उदान, व्यान, समान और अपान पर होता है, जो गले के नीचे की क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं, और इसलिए यदि इन 4 वायु में से कोई भी शरीर में परेशान हो, तो लक्षणों को नाभि द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।

नाभि कैसे भरें

नाभि में किसी निश्चित पदार्थ को भर कर कुछ समय तक रखने को नाभि पुराण कहते हैं। वायु नियंत्रण के लिए लुब्रिकेंट यानी स्नेहक आवश्यक हैं और इसमें तेल या घी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समस्या क्या है या लक्षण क्या है, इसके आधार पर नारियल का तेल, तिल का तेल, सरसों का तेल या गाय का घी इस्तेमाल किया जा सकता है। आयुर्वेद तरीके से नाभि भरनी हो, तो सबसे पहले नाभि की तेल या घी से हल्की मालिश करनी चाहिए और उसके चारों ओर गुंधे हुए आटे को भर देना चाहिए।

यदि आप अपने दैनिक जीवन में नाभि छेदन का लाभ उठाना चाहते हैं, तो रात को सभी क्रियाएं पूरी करने के बाद बिस्तर पर जाएं और यह आखिरी काम करें। दो से तीन बूंद तेल या घी ले कर नाभि के चारों ओर मालिश करें और फिर गाय के घी को हल्का गरम करके नाभि पर लगाएं। ज्यादातर मामलों में, नाभि 2 से 3 बूंदों में भर जाएगी। आप बस बिना हिले-डुले आराम करें। धीरे-धीरे घी नाभि में प्रवेश करेगा। आधे घंटे के बाद आप करवट बदल सकते हैं।

क्या फायदा है

नाभि में लुब्रिकेंट लगाने से अपान वायु संतुलित होगी। यदि अपान वायु की समस्या के कारण पुराना कब्ज हो, तो भी नाभि भरने से आराम मिल जाएगा। इसके लिए यह प्रयोग लंबे समय तक करना होगा।

यूरिनरी ब्लैडर की समस्या या यूरिनरी इन्कॉन्टिनेंस की दिक्कत होने पर भी नाभि भरने के अभ्यास से लाभान्वित होंगे।

गर्भाशय में समस्या हो, मासिकधर्म के समय दर्द हो, पेट में तकलीफ हो, तो गाय के घी में थोड़ी सी हींग मिला कर नाभि में लगाने से दर्द दूर हो जाता है।

अगर त्वचा रूखी, बेजान और रूखी है, तो मॉइस्चराइजर लगाएं। हालांकि, यह केवल बाहरी और अस्थायी लुब्रिकेशन है। लंबे समय तक नाभि भरने से त्वचा का रूखापन दूर होगा।

बच्चे की नाभि में तेल से सना हुआ एक छोटा सा हाथ लगाने से भी गैस और अपच से बचाव होता है।

किस लुब्रिकेंट का उपयोग करें

आमतौर पर जहां ज्यादा ठंड नहीं होती, वहां गाय के घी का इस्तेमाल जरूरी है। जहां भीषण और शुष्क सरदी पड़ती हो, वहां तिल या नारियल के तेल का प्रयोग करना चाहिए।

अगर गरमी के मौसम में ठंडक चाहिए या पैर के निचले हिस्से में पित्त की वजह से जलन हो रही हो, तो गुलाबजल भी नाभि में भरा जा सकता है।

अगर आपको नहीं पता कि क्या डालना है, तो गाय का घी सबसे सुरक्षित है। घर में लाए गाय के दूध से बना घी सबसे अच्छा होता है। भैंस के घी का प्रयोग ना करें, इससे शिथिलता आ जाती है।